सूतजी बोले- हे तात! यह सर्ग स्वारोचिष मन्वन्तरमें कहा गया है, वैवस्वत मन्वन्तरमें जब महान् वारुण यज्ञका विस्तार हुआ, उस समय ब्रह्मदेवद्वारा हवन करते समय जो सृष्टि हुई, उसका वर्णन करता हूँ। हे महर्षे! पूर्व समयमें स्वयं ब्रह्माने जिन सात ब्रह्मर्षियोंको मानस पुत्रके रूपमें उत्पन्न किया था, उन्हींके वंशमें उत्पन्न होनेवाले देवगणों तथा दानवोंमें विरोध हो जानेसे भयंकर संग्राम हुआ। जिसमें अपने पुत्रोंके नष्ट हो जानेपर दिति कश्यपके पास गयी। उसके द्वारा सम्यक् आराधित हुए उन कश्यपने प्रसन्नचित्त होकर उसे वर माँगनेको कहा। तब उसने इन्द्रका वध करनेके लिये सामर्थ्ययुक्त तथा महातेजस्वी पुत्रका वरदान माँगा ॥ 1-5 ॥
तदनन्तर उन महातपस्वीने उसे वांछित वरदान दिया और सौ वर्षपर्यन्त ब्रह्मचर्य आदि नियमके पालन करनेका उपदेश दिया ॥ 6 ॥
उसके अनन्तर परम सुन्दरी तथा पवित्र आचरण वाली दितिने गर्भ धारण किया और वह उपदेशानुसार ब्रह्मचर्यादि व्रतनियमोंका पालन करने लगी। उसके बाद प्रशंसनीय व्रतवाले कश्यप भी दितिमें गर्भाधान करके प्रसन्नचित्त होकर तप करनेके लिये चले गये । 7-8 ॥
इधर इन्द्र दितिके व्रतनियममें छिद्रान्वेषणका अवसर खोजने लगे। जब सौ वर्षमें एक वर्ष कम रहा, उसी समय इन्द्रको छिद्रावकाश दिखायी पड़ा। होनहारकी प्रबलतावश दिति अपना पैर बिना धोये ही पलंगपर पैर रखनेवाले निचले भागमें उलटे सिर करके सो गयी। इसी बीच हाथमें वज्र लिये हुए इन्द्रने दितिके गर्भ में प्रविष्ट होकर उस गर्भके सात टुकड़े कर दिये । 9 - 11॥
इस प्रकार वज्रसे टुकड़े टुकड़े कर दिये जानेपर जब गर्भ रोने लगा, तब पुनः रोते हुए उस गर्भके एक एक टुकड़ेको वज्रधारी इन्द्रने सात भागों में काट डाला और उन [ प्राणवान् गर्भखण्डों] से कहा-मत रोओ, मत रोओ, उनचास टुकड़े करनेपर भी वे नहीं मरे हे | मुने इस तरह इन्द्रद्वारा काटे जानेपर उन उनचास टुकड़ोंने हाथ जोड़कर उनसे कहा- हे इन्द्र ! आप हमारा वध क्यों करते हैं, हम आपके भाई मरुत हैं॥ 12-13 ॥
उसी समय इन्द्रने उन सभीको अपना भाई मान लिया। हे विप्रर्षे! इसके बाद उन मरुतोंने शिवजीकी इच्छासे अपने दैत्यभावका परित्याग कर दिया। तभीसे | वे महाबली उनचास मस्त नामवाले दितिपुत्र देवता हो गये और इन्द्रकी सहायतामें संलग्न हो आकाश (अथवा (स्वर्ग) में विचरण करने लगे ।। 14-15 ।।
वे ही प्राणी जब अत्यन्त प्रबुद्ध हो गये, तब प्रजापति हरिने पृथुसे पूर्व उन्हें राज्य दिया। उन हरिके नामोंका श्रवण कीजिये। अरिष्ट, पुरुष, वीर, कृष्ण, जिष्णु, प्रजापति, पर्जन्य और धनाध्यक्ष उन्हींका यह समस्त संसार है ॥ 16- 17 ॥
हे महामुने! इस प्रकार मैंने समस्त भूतसर्गकी उत्पत्तिका ठीक-ठीक वर्णन किया, अब क्रमसे राज्योंकि विभागका वर्णन सुनिये। पितामहने वेनपुत्र पृथुको [परमशासकके रूपमें] राज्यपर अभिषिक्तकर क्रमश: राज्योंका इस प्रकार नियोजन किया ।। 18- 19 ॥
उन्होंने ब्राह्मण, वृक्ष, नक्षत्र, ग्रह, यज्ञ तथा तपस्वियोंका राजा चन्द्रमाको बनाया। वरुणको जलका आधिपत्य, विश्रवापुत्र कुबेरको राजाओंका आधिपत्य, विष्णुको आदित्योंका आधिपत्य तथा पावकको वसुओंका आधिपत्य, दक्षको प्रजापतियोंका, इन्द्रको मरुतोंका,
महातेजस्वी प्रह्लादको दैत्य एवं दानवोंका और विवस्वान्पुत्र यमको पितरोंका आधिपत्य प्रदान किया। उन्होंने मातृगणों, व्रतों, मन्त्रों, गौओं, यक्षों, राक्षसों, राजाओं एवं सभी भूत-पिशाचोंका राजा शूलपाणि भगवान् शिवको नियुक्त किया। उन्होंने शैलोंका राजा हिमालयको, नदियोंका राजा समुद्रको, मृगों (पशुओं) का राजा सिंहको तथा गाय एवं बैलोंका राजा गोवृषको और वनस्पतियों तथा वृक्षोंका राजा वटवृक्षको नियुक्त किया। इस प्रकार प्रजापतिने सर्वत्र क्रमशः राज्यका प्रविभाग कर दिया ॥ 20 - 26 ॥
सर्वात्मा विश्वपति प्रभु ब्रह्मदेवने पूर्व दिशामें वैराज प्रजापतिके पुत्रको स्थापित किया। इसी प्रकार हे मुनिश्रेष्ठ! उन्होंने दक्षिण दिशामें कर्दम प्रजापतिके पुत्र सुधन्वाको राज्यपदपर नियुक्त किया। उन प्रभुने पश्चिम दिशामें रजसके पुत्र अच्युत महात्मा केतुमान्को नियुक्त किया। उन्होंने उत्तर दिशामें पर्जन्य प्रजापतिके पुत्र दुर्धर्ष राजा हिरण्यरोमाको अभिषिक्त किया । 27-30 ॥
हे शौनक ! इस प्रकार मैंने उन वेनपुत्र पृथुका विस्तृत वृत्तान्त बताया। यह प्राचीन वृत्तान्त महान् समृद्धिका साक्षात् अधिष्ठान कहा गया है ॥ 31 ॥