View All Puran & Books

शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 2 (सती खण्ड) , अध्याय 7 - Sanhita 2, Khand 2 (सती खण्ड) , Adhyaya 7

Previous Page 59 of 466 Next

महर्षि मेधातिथिकी यज्ञाग्निमें सन्ध्याद्वारा शरीरत्याग, पुनः अरुन्धतीके रूपमें ज्ञाग्नि उत्पत्ति एवं वसिष्ठमुनिके साथ उसका विवाह

ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार भगवान् सदाशिव जब सन्ध्याको वर प्रदानकर अन्तर्धान हो गये, तब सन्ध्या वहाँ गयी, जहाँ महर्षि मेधातिथि थे ॥ 1 ॥ वहाँपर भगवान् सदाशिवकी कृपासे उसे किसीने नहीं देखा। उसने उस समय तपस्याके विषयमें उपदेश करनेवाले उन ब्रह्मचारीका स्मरण किया ॥ 2 ॥

हे महामुने! वे ब्रह्मचारी वसिष्ठ मुनि ही थे, जो ब्रह्माजीकी आज्ञासे ब्रह्मचारीका रूप धारणकर सन्ध्याको तपस्याके सम्बन्धमें उपदेश करने आये थे ॥ 3 ॥

तपश्चर्याका उपदेश करनेवाले उन्हीं ब्रह्मचारी ब्राह्मण [ वसिष्ठ] का पतिरूपसे स्मरण करके वह ब्रह्मपुत्री सन्ध्या प्रसन्नमनसे सदाशिवकी कृपासे मुनियोंद्वारा अलक्षित हो उस महायज्ञकी प्रज्वलित अग्निमें प्रवेश कर गयी ।। 4-5 ।।

उसका समस्त शरीर पुरोडाशके समान तत्क्षण ही जलकर राख हो गया, जिससे अलक्षित रूपसे पुरोडाशका गन्ध चारों ओर फैल गया ॥ 6 ॥

पुनः सदाशिवकी आज्ञासे अग्निने उसके शुद्ध शरीरको भस्मकर सूर्यमण्डलमें प्रविष्ट करा दिया ॥ 7 ॥ तदनन्तर सूर्यने उसके शरीरको दो भागोंमें विभक्तकर पितरों एवं देवताओंकी प्रसन्नताके लिये अपने रथमें स्थापित कर लिया ॥ 8 ॥ हे मुनीश्वर! उसके शरीरका जो ऊपरका भाग था, वही रात्रि तथा दिनके बीचमें होनेवाली | प्रातः सन्ध्या हुई ॥ 9 ॥जो उसके शरीरका शेष भाग था, वही दिन तथा रात्रिके बीचमें होनेवाली सायंसन्ध्या हुई, जो सदैव ही पितरोंकी प्रसन्नताका कारण होती है ॥ 10 ॥

सूर्योदयके पहले जब अरुणोदय होता है, तब देवताओंको प्रसन्न करनेवाली प्रातः सन्ध्याका उदय होता है ॥ 11 ॥

जब लाल कमलके समान सूर्य अस्त हो जाता है, तब पितरोंको प्रसन्न करनेवाली सायंसन्ध्याका उदय होता है ॥ 12 ॥

उसके मनसहित प्राणको परम दयालु शिवने शरीरभारियोंके दिव्य शरीरसे निर्मित किया था ।। 13 ।। जब मेधातिथिका यज्ञ समाप्त हो रहा था, तब उन्हें देदीप्यमान सुवर्णके समान कान्तिवाली वह कन्या यज्ञाग्निमें प्राप्त हुई ॥ 14 ॥

हे मुने! महामुनि मेधातिथिने यज्ञसे प्राप्त हुई उस कन्याको बड़ी प्रसन्नतासे ग्रहण किया और उसे स्नान कराकर अपनी गोदमें बिठाया ॥ 15 ॥

उन्होंने उसका नाम अरुन्धती रखा। [ उस कन्याको प्राप्तकर] वे शिष्योंके साथ बड़े ही हर्षित हुए ॥ 16 ॥

उसने किसी भी कारणके उपस्थित होनेपर अपने पातिव्रत्यधर्मका परित्याग नहीं किया, इसलिये त्रिलोकीमें उसने स्वयं यह प्रसिद्ध [ अरुन्धती] नाम धारण किया ॥ 17 ॥

[ब्रह्माजी बोले- ] हे सुरर्षे! यज्ञ समाप्त करनेके उपरान्त वे मुनि कन्यारूप सम्पत्तिसे युक्त हो अपने शिष्यों सहित अत्यन्त कृतकृत्य होकर अपने उस आश्रम में उसका लालन-पालन करने लगे ॥ 18 ॥

उसके बाद वह कन्या चन्द्रभागा नदीके तटपर श्रेष्ठ मुनिके तापसारण्य नामक आश्रम में बढ़ने लगी ॥ 19 ॥

वह सती पाँच वर्षकी अवस्थामें अपने गुणोंसे चन्द्रभागा नदी तथा तापसारण्यको पवित्र करने लगी ॥ 20 ॥

ब्रह्मा, विष्णु तथा महेशने ब्रह्मपुत्र वसिष्ठके साथ उस अरुन्धतीका विवाह करवाया ॥ 21 ॥हे मुने! उसके विवाहमें सुखदायक महान् उत्सव हुआ, जिससे सभी देवता तथा मुनिगण अत्यन्त प्रसन्न हुए ॥ 22 ॥

[उस विवाहमें] ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वरके हाथसे गिरे हुए जलसे शिप्रा आदि सात पवित्र नदियाँ उत्पन्न हुईं ॥ 23 ॥ हे मुने! साध्वी स्त्रियोंमें सर्वश्रेष्ठ महासाध्वी वह मेधातिथिकी कन्या अरुन्धती वसिष्ठको [पतिरूपमें] प्राप्तकर अत्यन्त शोभित हुई ॥ 24 ॥ हे मुनिश्रेष्ठ! उससे शक्ति आदि श्रेष्ठ तथा सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुए। इस प्रकार वसिष्ठको पतिरूपमें प्राप्तकर वह शोभा पाने लगी ॥ 25 ॥

हे मुनिसत्तम! इस प्रकार मैंने सन्ध्याका चरित्र कहा, जो अत्यन्त पवित्र, दिव्य तथा सम्पूर्ण कामनाओंका फल देनेवाला है ॥ 26 ॥

जो शुभ व्रतवाला पुरुष अथवा नारी इस चरित्रको सुनता है, उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं, इसमें सन्देह नहीं है ॥ 27 ॥

Previous Page 59 of 466 Next

शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] सतीचरित्रवर्णन, दक्षयज्ञविध्वंसका संक्षिप्त वृत्तान्त तथा सतीका पार्वतीरूपमें हिमालयके यहाँ जन्म लेना
  2. [अध्याय 2] सदाशिवसे त्रिदेवोंकी उत्पत्ति, ब्रह्माजीसे देवता आदिकी सृष्टिके पश्चात् देवी सन्ध्या तथा कामदेवका प्राकट्य
  3. [अध्याय 3] कामदेवको विविध नामों एवं वरोंकी प्राप्ति कामके प्रभावसे ब्रह्मा तथा ऋषिगणोंका मुग्ध होना, धर्मद्वारा स्तुति करनेपर भगवान् शिवका प्राकट्य और ब्रह्मा तथा ऋषियोंको समझाना, ब्रह्मा तथा ऋषियोंसे अग्निष्वात्त आदि पितृगणोंकी उत्पत्ति, ब्रह्माद्वारा कामको शापकी प्राप्ति तथा निवारणका उपाय
  4. [अध्याय 4] कामदेवके विवाहका वर्णन
  5. [अध्याय 5] ब्रह्माकी मानसपुत्री कुमारी सन्ध्याका आख्यान
  6. [अध्याय 6] सन्ध्याद्वारा तपस्या करना, प्रसन्न हो भगवान् शिवका उसे दर्शन देना, सन्ध्याद्वारा की गयी शिवस्तुति, सन्ध्याको अनेक वरोंकी प्राप्ति तथा महर्षि मेधातिथिके यज्ञमें जानेका आदेश प्राप्त होना
  7. [अध्याय 7] महर्षि मेधातिथिकी यज्ञाग्निमें सन्ध्याद्वारा शरीरत्याग, पुनः अरुन्धतीके रूपमें ज्ञाग्नि उत्पत्ति एवं वसिष्ठमुनिके साथ उसका विवाह
  8. [अध्याय 8] कामदेवके सहचर वसन्तके आविर्भावका वर्णन
  9. [अध्याय 9] कामदेवद्वारा भगवान् शिवको विचलित न कर पाना, ब्रह्माजीद्वारा कामदेवके सहायक मारगणोंकी उत्पत्ति; ब्रह्माजीका उन सबको शिवके पास भेजना, उनका वहाँ विफल होना, गणोंसहित कामदेवका वापस अपने आश्रमको लौटना
  10. [अध्याय 10] ब्रह्मा और विष्णुके संवादमें शिवमाहात्म्यका वर्णन
  11. [अध्याय 11] ब्रह्माद्वारा जगदम्बिका शिवाकी स्तुति तथा वरकी प्राप्ति
  12. [अध्याय 12] दक्षप्रजापतिका तपस्याके प्रभावसे शक्तिका दर्शन और उनसे रुद्रमोहनकी प्रार्थना करना
  13. [अध्याय 13] ब्रह्माकी आज्ञासे दक्षद्वारा मैथुनी सृष्टिका आरम्भ, अपने पुत्र हर्यश्वों तथा सबलाश्वोंको निवृत्तिमार्गमें भेजने के कारण दक्षका नारदको शाप देना
  14. [अध्याय 14] दक्षकी साठ कन्याओंका विवाह, दक्षके यहाँ देवी शिवा (सती) - का प्राकट्य, सतीकी बाललीलाका वर्णन
  15. [अध्याय 15] सतीद्वारा नन्दा व्रतका अनुष्ठान तथा देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  16. [अध्याय 16] ब्रह्मा और विष्णुद्वारा शिवसे विवाहके लिये प्रार्थना करना तथा उनकी इसके लिये स्वीकृति
  17. [अध्याय 17] भगवान् शिवद्वारा सतीको वरप्राप्ति और शिवका ब्रह्माजीको दक्ष प्रजापतिके पास भेजना
  18. [अध्याय 18] देवताओं और मुनियोंसहित भगवान् शिवका दक्षके घर जाना, दक्षद्वारा सबका सत्कार एवं सती तथा शिवका विवाह
  19. [अध्याय 19] शिवका सतीके साथ विवाह, विवाहके समय शम्भुकी मायासे ब्रह्माका मोहित होना और विष्णुद्वारा शिवतत्त्वका निरूपण
  20. [अध्याय 20] ब्रह्माजीका 'रुद्रशिर' नाम पड़नेका कारण, सती एवं शिवका विवाहोत्सव, विवाहके अनन्तर शिव और सतीका वृषभारूढ़ हो कैलासके लिये प्रस्थान
  21. [अध्याय 21] कैलास पर्वत पर भगवान् शिव एवं सतीकी मधुर लीलाएँ
  22. [अध्याय 22] सती और शिवका बिहार- वर्णन
  23. [अध्याय 23] सतीके पूछनेपर शिवद्वारा भक्तिकी महिमा तथा नवधा भक्तिका निरूपण
  24. [अध्याय 24] दण्डकारण्यमें शिवको रामके प्रति मस्तक झुकाते देख सतीका मोह तथा शिवकी आज्ञासे उनके द्वारा रामकी परीक्षा
  25. [अध्याय 25] श्रीशिवके द्वारा गोलोकधाममें श्रीविष्णुका गोपेशके पदपर अभिषेक, श्रीरामद्वारा सतीके मनका सन्देह दूर करना, शिवद्वारा सतीका मानसिक रूपसे परित्याग
  26. [अध्याय 26] सतीके उपाख्यानमें शिवके साथ दक्षका विरोधवर्णन
  27. [अध्याय 27] दक्षप्रजापतिद्वारा महान् यज्ञका प्रारम्भ, यज्ञमें दक्षद्वारा शिवके न बुलाये जानेपर दधीचिद्वारा दक्षकी भर्त्सना करना, दक्षके द्वारा शिव-निन्दा करनेपर दधीचिका वहाँसे प्रस्थान
  28. [अध्याय 28] दक्षयज्ञका समाचार पाकर एवं शिवकी आज्ञा प्राप्तकर देवी सतीका शिवगणोंके साथ पिताके यज्ञमण्डपके लिये प्रस्थान
  29. [अध्याय 29] यज्ञशाला में शिवका भाग न देखकर तथा दक्षद्वारा शिवनिन्दा सुनकर क्रुद्ध हो सतीका दक्ष तथा देवताओंको फटकारना और प्राणत्यागका निश्चय
  30. [अध्याय 30] दक्षयज्ञमें सतीका योगाग्निसे अपने शरीरको भस्म कर देना, भृगुद्वारा यज्ञकुण्डसे ऋभुओंको प्रकट करना, ऋभुओं और शंकरके गणोंका युद्ध, भयभीत गणोंका पलायित होना
  31. [अध्याय 31] यज्ञमण्डपमें आकाशवाणीद्वारा दक्षको फटकारना तथा देवताओंको सावधान करना
  32. [अध्याय 32] सतीके दग्ध होनेका समाचार सुनकर कुपित हुए शिवका अपनी जटासे वीरभद्र और महाकालीको प्रकट करके उन्हें यज्ञ विध्वंस करनेकी आज्ञा देना
  33. [अध्याय 33] गणोंसहित वीरभद्र और महाकालीका दक्षयज्ञ विध्वंसके लिये प्रस्थान
  34. [अध्याय 34] दक्ष तथा देवताओंका अनेक अपशकुनों एवं उत्पात सूचक लक्षणोंको देखकर भयभीत होना
  35. [अध्याय 35] दक्षद्वारा यज्ञकी रक्षाके लिये भगवान् विष्णुसे प्रार्थना, भगवान्‌का शिवद्रोहजनित संकटको टालनेमें अपनी असमर्थता बताते हुए दक्षको समझाना तथा सेनासहित वीरभद्रका आगमन
  36. [अध्याय 36] युद्धमें शिवगणोंसे पराजित हो देवताओंका पलायन, इन्द्र आदिके पूछनेपर बृहस्पतिका रुद्रदेवकी अजेयता बताना, वीरभद्रका देवताओंको बुद्धके लिये ललकारना, श्रीविष्णु और वीरभद्रकी बातचीत
  37. [अध्याय 37] गणसहित वीरभद्रद्वारा दक्षयज्ञका विध्वंस, दक्षवध, वीरभद्रका वापस कैलास पर्वतपर जाना, प्रसन्न भगवान् शिवद्वारा उसे गणाध्यक्ष पद प्रदान करना
  38. [अध्याय 38] दधीचि मुनि और राजा ध्रुवके विवादका इतिहास, शुक्राचार्यद्वारा दधीचिको महामृत्युंजयमन्त्रका उपदेश, मृत्युंजयमन्त्र के अनुष्ठानसे दधीचिको अवध्यताकी प्राप्ति
  39. [अध्याय 39] श्रीविष्णु और देवताओंसे अपराजित दधीचिद्वारा देवताओंको शाप देना तथा राजा ध्रुवपर अनुग्रह करना
  40. [अध्याय 40] देवताओंसहित ब्रह्माका विष्णुलोकमें जाकर अपना दुःख निवेदन करना, उन सभीको लेकर विष्णुका कैलासगमन तथा भगवान् शिवसे मिलना
  41. [अध्याय 41] देवताओं द्वारा भगवान् शिवकी स्तुति
  42. [अध्याय 42] भगवान् शिवका देवता आदिपर अनुग्रह, दक्षयज्ञ मण्डपमें पधारकर दक्षको जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदिद्वारा शिवकी स्तुति
  43. [अध्याय 43] भगवान् शिवका दक्षको अपनी भक्तवत्सलता, ज्ञानी भक्तकी श्रेष्ठता तथा तीनों देवोंकी एकता बताना, दक्षका अपने यज्ञको पूर्ण करना, देवताओंका अपने-अपने लोकोंको प्रस्थान तथा सतीखण्डका उपसंहार और माहात्म्य