नारदजी बोले हे देवदेव! हे प्रजानाथ ! हे ब्रह्मन् हे सृष्टिकर्ता प्रभो। इसके बाद वहाँ क्या हुआ, इसे आप कृपाकर बताइये ॥ 1 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे तात! इसी समय विधाताके द्वारा प्रेरित होकर महाप्रतापी विश्वामित्र स्वेच्छासे घूमते-घूमते वहाँ जा पहुँचे। इस तेजस्वी बालकके अलौकिक तेजको देखकर वे कृतार्थ हो गये और उन्होंने प्रसन्न होकर उस बालकको नमस्कार किया । ll 2-3 ।।
उस बालकके प्रभावको जाननेवाले महर्षि विश्वामित्रने प्रसन्नचित्त हो विधिप्रेरित वाणीसे उस बालककी स्तुति की। महान् लीला करनेवाला वह बालक अत्यन्त प्रसन्न हुआ और अद्भुत हास्य करता हुआ विश्वामित्रसे बोला- ॥ 4-5 ll
शिवपुत्र बोले- हे महाज्ञानिन् ! आप अचानक शिवेच्छासे यहाँ आ पहुँचे हैं। अतः हे तात! वेदोक्त रीतिसे मेरा यथाविधि संस्कार सम्पन्न कीजिये। आजसे आप प्रसन्नतापूर्वक मेरे पुरोहित हो जायँ, इससे आप सदा सबके पूज्य होंगे। इसमें संशय नहीं है ll 6-7 ll
ब्रह्माजी बोले- बालककी यह बात सुनकर गाधिपुत्र विश्वामित्रजी अत्यन्त प्रसन्न हो गये और आश्चर्यचकित होकर मन्द स्वरसे उस बालकसे उन्होंने कहा- ॥ 8 ॥
विश्वामित्र बोले- हे तात! सुनो, मैं ब्राह्मण नहीं है, किंतु गाधिसुत क्षत्रियकुमार हूँ। मेरा नाम विश्वामित्र है, मैं तो ब्राह्मणसेवक क्षत्रिय हूँ ॥ 9 ॥
हे श्रेष्ठ बालक! मैंने तुमसे अपना सारा चरित निवेदन कर दिया, तुम कौन हो ? अपना सम्पूर्ण चरित्र मुझसे कहो मैं आश्चर्यान्वित हो रहा हूँ ॥ 10 llब्रह्माजी बोले- विश्वामित्रजीके इस वचनको सुनकर महान् लीला करनेवाले बालकने प्रसन्न हो उन गाधिपुत्र विश्वामित्रजीसे अपना सारा चरित्र कहा ॥ 11 ॥
शिवसुत बोले- हे विश्वामित्रजी आप मेरे वरदानसे ब्रह्मर्षि हैं, इसमें संशयकी बात नहीं है। वसिष्ठादि ऋषिगण भी आदरपूर्वक आपकी प्रशंसा करेंगे। इस कारण आप मेरी आज्ञासे मेरा संस्कार करें, यह सब रहस्य आपको गुप्त ही रखना चाहिये, कहीं नहीं कहना चाहिये ।। 12-13 ।।
ब्रह्माजी बोले- हे देवर्षे ! तदनन्तर विश्वामित्रजीने परम प्रेमपूर्वक वेदोक्तरीतिसे भगवान् शिवके उस बालकके सम्पूर्ण संस्कार सम्पन्न किये ॥ 14 ॥
महान् लीला करनेवाले प्रभु शिवपुत्रने भी बड़े प्रेमसे महर्षि विश्वामित्रजीको दिव्य ज्ञान प्रदान किया ॥ 15 ॥
नाना प्रकारकी लीलामें पारंगत अग्निपुत्रने विश्वामित्रजीको अपना पुरोहित बना लिया। उसी समयसे वे विश्वामित्र द्विजश्रेष्ठके रूपमें प्रतिष्ठित हो गये ॥ 16 ॥
हे मुने! उस बालकने इस प्रकार जो लीला की है, वह मैंने आपको बता दी। हे तात! उस बालककी दूसरी लीला मैं बता रहा हूँ, प्रेमपूर्वक सुनो ॥ 17 ॥ उसी समय श्वेतने उस दिव्य तेजसम्पन्न परम पावन बालकको देखकर अपना पुत्र मान लिया। तदनन्तर अग्निदेवने उस स्थानपर जाकर बालकको गले लगाकर उसका चुम्बन किया और उन्होंने उस बालकको 'पुत्र' शब्दसे पुकारते हुए अपनी शक्ति तथा अस्त्र उसे प्रदान किया ।। 18-19 ।।
गुह कार्तिकेय उस शक्तिको लेकर क्रौंच पर्वतके शिखरपर चढ़ गये और उस शक्तिसे शिखरपर ऐसा प्रहार किया कि वह शिखर पृथिवीपर गिर पड़ा ॥ 20 ॥
उस बालकका वध करनेके लिये सबसे पहले | दस पद्म वीर राक्षस वहाँ आये, किंतु कुमारके प्रहारसे वे सभी शीघ्र ही विनष्ट हो गये ॥ 21 ॥उस समय सभी जगह महान् हाहाकार मच गया, पर्वतोंके सहित सारी पृथ्वी और त्रैलोक्य काँपने लगा। उसी समय देवगणोंके साथ देवराज इन्द्र वहाँ आ पहुँचे ॥ 22 ॥
इन्द्रने अपने वज्रसे कार्तिकेयके दक्षिण पार्श्वमें प्रहार किया। वज्रके लगते ही उससे शाख नामक एक महान् बलवान् पुरुष प्रकट हो गया। पुनः इन्द्रने उसके वाम पार्श्वमें शीघ्र ही वज्रसे प्रहार किया, उस वज्रके लगते ही उससे एक और विशाख नामक बलवान् पुरुष उत्पन्न हो गया। फिर इन्द्रने बजसे उसके हृदयमें प्रहार किया, जिससे उसीके समान बलवान् नैगम नामक एक पुरुष प्रकट हो गया ।। 23-25॥
तब स्कन्द, शाख, विशाख तथा नैगम-ये चारों महाबलसम्पन्न महावीर इन्द्रको मारनेके लिये बड़ी शीघ्रतासे दौड़ पड़े। यह देखकर वे इन्द्र उनकी शरणमें गये ॥ 26 ॥
हे मुने! देवगणोंके सहित इन्द्र उनसे भयभीत हो उठे और वे विस्मित हो उस स्थानसे अपने लोक चले गये, किंतु उन्हें भी पराक्रमके रहस्यका ज्ञान नहीं हुआ ॥ 27 ॥
हे तात! विविध प्रकारकी लीलाओंको करनेवाला वह बालक आनन्दपूर्वक निर्भय हो वहींपर स्थित हो गया। उसी समय कृत्तिका नामवाली छः स्त्रियाँ वहाँ स्नान के लिये आयीं और उन्होंने प्रभावशाली उस बालकको देखा हे मुने। उन सभी कृत्तिकाओंने उस बालकको ग्रहण करना चाहा, उसी समय ग्रहण करनेकी इच्छासे उनमें परस्पर विवाद होने लगा ॥ 28-30 ॥
हे मुने! उनके विवादका शमन करनेके लिये उस बालकने छः मुख बना लिये और उन सबका स्तनपान किया, जिससे वे परम प्रसन्न हो उठीं। हे मुने। फिर उस बालकके मनकी गति जानकर वे सभी कृत्तिकाएँ प्रसन्नतासे उसे लेकर अपने लोक चली गयीं ॥ 31-32 ॥
उन्होंने सूर्यसे भी अधिक तेजस्वी तथा स्तनपानकी इच्छा करनेवाले उस कुमार नामवाले बालक शिवपुत्रको अपना दूध पिलाकर बड़ा किया। वे प्राणोंसे भी अधिक प्रिय उस बालकको कभी आँखोंकी ओट न करतीं, जो पोषण करता है, उसीका वह पुत्र होता है ll 33-34॥ जो-जो वस्त्र एवं आभूषण इस त्रैलोक्यमें दुर्लभ हैं, उन सभी वस्त्रों एवं श्रेष्ठ भूषणोंको प्रेमसे वे उस बालकको प्रदान करतीं। इसी प्रकार वे अत्यन्त प्रशंसाके योग्य, दुर्लभ एवं स्वादिष्ट अन्नोंको प्रतिदिन खिला खिलाकर उस बालकको पुष्ट करने लगीं ॥ 35-36 ॥
हे तात! इसके बाद एक दिन कृत्तिकाओंके उस पुत्रने दिव्य देवसभामें जाकर बड़ा सुन्दर चरित्र किया और महान् लीला करनेवाला वह बालक सम्पूर्ण देवताओंसहित विष्णुको अपना महान् अद्भुत ऐश्वर्य दिखाने लगा ॥ 37-38 ।।
उसकी इस महिमाको देखकर विष्णुसहित अन्य | देवगण तथा ऋषि अत्यन्त आश्चर्यचकित हो गये और उस बालकसे पूछने लगे कि हे बालक! तुम कौन हो ? उनकी बात सुनकर उस बालकने कुछ भी नहीं कहा और वह शीघ्र ही अपने घर चला गया और पूर्ववत् गुप्तरूपसे रहने लगा ॥ 39-40॥