View All Puran & Books

शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 5 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 5

Previous Page 100 of 466 Next

मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म

नारदजी बोले हे तात! जब देवी दुर्गा अन्तर्धान हो गयीं और देवगण अपने-अपने धामको चले गये, उसके बाद क्या हुआ ? ॥ 1 ॥

हे तात! मेना तथा हिमाचलने किस प्रकार कठोर तप किया और भगवती किस प्रकार मेनाके गर्भसे उत्पन्न होकर उन हिमाचलकी कन्या हुईं, उसे कहिये ॥ 2 ॥

ब्रह्माजी बोले- हे विप्रवर्य! हे सुतश्रेष्ठ ! मैं शिवजीको भक्तिपूर्वक प्रणामकर उनके भक्तिवर्धक महान् चरित्रको कह रहा हूँ ॥ 3 ॥

उपदेश देकर विष्णु आदि देवसमुदायके चले जानेपर पर्वतराज हिमाचल तथा मेनका कठोर तप करने लगे ll 4 ॥

वे पति पत्नी भक्तियुक्त चित्तसे दिन-रात शम्भु और शिवाका चिन्तन करते हुए उनकी सम्यक् रीति से नित्य आराधना करने लगे। गिरिप्रिया वे मेना प्रसन्नतापूर्वक शिवजीके साथ देवीका पूजन करती थीं और उन्हें प्रसन्न करनेके लिये नित्य ब्राह्मणोंको दान देती थीं ॥ 5-6 ll

सन्तानकी कामनासे मेनाने चैत्रमाससे आरम्भ करके सत्ताईस वर्षोंतक प्रतिदिन तत्परतापूर्वक शिवाको पूजा की ॥ 7 ॥

वे अष्टमीको उपवास करके नवमी तिथिको लड्डू, पीठी, खीर, गन्ध, पुष्प आदि अर्पण करती थीं ॥ 8 ॥ वे गंगाके औषधिप्रस्थमें उमादेवीकी मिट्टीकी प्रतिमा बनाकर अनेक प्रकारको वस्तुएँ समर्पितकर उनकी पूजा किया करती थीं। वे कभी निराहार रहती थीं, कभी व्रत धारण करती थीं, कभी जल पीकर ही रहतीं थीं और कभी हवा पीकर ही रह जाती थीं ॥ 9-10 ॥इस प्रकार विशुद्ध तेजसे दीप्तिमती मेनाने प्रेमपूर्वक शिवामें चित्त लगाते हुए सत्ताईस वर्ष व्यतीत किये ॥ 11 ॥ सत्ताईसवें वर्ष की समाप्तिपर जगन्मयी जगज्जननी शंकरकामिनी उमा अत्यन्त प्रसन्न हो गर्यो ॥ 12 ॥ मेनाकी उत्तम भक्तिसे सन्तुष्ट होकर परमेश्वरी देवी उनपर अनुग्रह करनेके लिये उनके सामने प्रकट हुई ।। 13 ।।

तेजोराशिके बीच में विराजमान तथा दिव्य अवयवोंसे संयुक्त उमादेवी प्रत्यक्ष होकर मेनासे हँसती हुई कहने लगी- ॥ 14 ॥

देवी बोलीं- हे महासाध्वि जो तुम्हारे मनमें हो, वह वर माँगो हे गिरिकामिनि! मैं तुम्हारी तपस्यासे बहुत प्रसन्न हूँ ।। 15 ।।

हे मेने ! तुमने तपस्या, व्रत और समाधिके द्वारा जो प्रार्थना की है, वह सब मैं तुम्हें प्रदान करूंगी और जब भी तुम्हारी जो इच्छा होगी, वह भी दूँगी ॥ 16 ॥

तब उन मेनाने प्रत्यक्ष प्रकट हुई कालिका देवीको देखकर प्रणाम किया और यह वचन कहा ॥ 17 ॥

मेना बोलीं- हे देवि इस समय मुझे आपके रूपका प्रत्यक्ष दर्शन हुआ है, अतः मैं आपकी स्तुति करना चाहती हूँ। हे कालिके आप प्रसन्न हों ॥ 18 ॥

ब्रह्माजी बोले- [ नारद!] मेनाके ऐसा कहनेपर सर्वमोहिनी कालिकाने अत्यन्त प्रसन्नचित्त होकर अपनी दोनों बाँहोंसे मेनाका आलिंगन किया 19 तत्पश्चात् मेनकाको महाज्ञानकी प्राप्ति हो गयी और वे प्रिय वचनोंद्वारा भक्तिभावसे प्रत्यक्ष हुई शिवा कालिकाकी स्तुति करने लगीं ॥20॥ मेना बोलीं- मैं महामाया, जगत्का पालन | करनेवाली, चण्डिका, लोकको धारण करनेवाली तथा सम्पूर्ण मनोवांछित पदार्थोंको देनेवाली महादेवीको प्रणाम करती हूँ ॥ 21 ॥

नित्य आनन्द प्रदान करनेवाली, माया, योगनिद्रा, जगज्जननी, सिद्धस्वरूपिणी तथा सुन्दर कमलेको माला धारण करनेवाली देवीको सदा प्रणाम करती हूँ ॥ 22 ॥मातामही, नित्य आनन्द प्रदान करनेवाली, भक्तोंके शोकको सर्वदा विनष्ट करनेवाली तथा नारियों एवं प्राणियोंकी बुद्धिस्वरूपिणी देवीको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 23 ॥

आप यतियोंके बन्धनके नाशकी हेतुभूत [ब्रह्मविद्या] हैं, तो मुझ जैसी नारियाँ आपके प्रभावका क्या वर्णन कर सकती हैं। अथर्ववेदकी जो हिंसा है, वह आप ही हैं। [हे देखि!] आप मेरे अभीष्ट फलको सदा प्रदान कीजिये ॥ 24 ॥

भावहीन तथा अदृश्य नित्यानित्य तन्मात्राओंसे आप ही पंचभूतोंके समुदायको संयुक्त करती हैं। आप उनकी शक्ति हैं और सदा नित्यरूपा हैं। आप समय-समयपर योगयुक्त एवं समर्थ नारीके रूपमें प्रकट होती हैं ।। 25 ।।

आप ही जगत्की उत्पादिका और आधारशक्ति हैं, आप ही सबसे परे नित्या प्रकृति हैं। जिसके द्वारा ब्रह्मके स्वरूपको वशमें किया जाता है, वह नित्या [विद्या] आप ही हैं। हे मातः ! आज मुझपर प्रसन्न होइये ॥ 26 ॥

आप ही अग्निके भीतर व्याप्त उम्र शक्ति हैं। आप ही सूर्यकिरणोंकी प्रकाशिका शक्ति हैं। चन्द्रमामें जो आह्नादिका शक्ति है, वह भी आप ही हैं, उन आप चण्डी देवीका मैं स्तवन और वन्दन करती हूँ॥ 27 ॥ आप स्त्रियोंको बहुत प्रिय हैं। ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारियोंकी नित्या ब्रह्मशक्ति भी आप ही हैं। आप सम्पूर्ण जगत्की वांछा हैं तथा श्रीहरिकी माया भी आप ही हैं ॥ 28 ॥

जो देवी इच्छानुसार रूप धारण करके सृष्टि, स्थिति, पालन तथा संहारमयी होकर उन कार्योंका सम्पादन करती हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं रुद्रके शरीरकी भी हेतुभूता हैं, वे आप ही हैं। आप मुझपर प्रसन्न हों। आपको पुनः मेरा नमस्कार है ।। 29 ।।

ब्रह्माजी बोले [हे नारद!] मेनाके इस प्रकार स्तुति करनेपर दुर्गा कालिकाने पुनः मेना देवीसे कहा- तुम अपना मनोवांछित वर माँग लो ॥ 30 ॥

उमा बोलीं- हे हिमाचलप्रिये तुम मुझे प्राणोंसे अधिक प्रिय हो, तुम जो भी चाहती हो, उसे मैं निश्चय ही दूँगी, तुम्हारे लिये मुझे कुछ भी अदेय नहीं है ।। 31 ।।महेश्वरीका अमृतके समान यह मधुर वचन सुनकर हिमगिरिकामिनी मेना अत्यधिक सन्तुष्ट होकर कहने लगीं- ॥ 32 ॥

मेना बोली- हे शिवे! आपकी जय हो, जय हो हे प्राजे हे महेश्वरि हे भवाम्बिके। यदि मैं कर पानेके योग्य हूँ, तो आपसे पुनः श्रेष्ठ वर माँगती हूँ ॥ 33 ॥ हे जगदम्बिके! पहले तो मुझे सौ पुत्र हों, वे दीर्घ आयुवाले, पराक्रमसे युक्त तथा ऋद्धि सिद्धिसे सम्पन्न हों ॥ 34 ॥

उन पुत्रोंके पश्चात् मेरी एक पुत्री हो, जो स्वरूप और गुणोंसे युक्त, दोनों कुलोंको आनन्द देनेवाली तथा तीनों लोकोंमें पूजित हो ॥ 35 ॥

हे शिवे आप ही देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये मेरी पुत्री हों। हे भवाम्बिके! आप रुद्रदेवकी पत्नी हों और लीला करें ॥ 36 ॥

ब्रह्माजी बोले- [ हे नारद!] मेनकाकी वह बात | सुनकर प्रसन्नहृदया देवी उमा उनके मनोरथको पूर्ण करती हुई मुसकराकर यह वचन कहने लगीं- ॥ 37 ॥

देवी बोलीं- तुम्हें सौ बलवान् पुत्र होंगे। उनमें एक बलवान् और प्रधान होगा, जो सबसे पहले उत्पन्न होगा ॥ 38 ॥

तुम्हारी भक्तिसे सन्तुष्ट मैं [स्वयं] पुत्रीके रूपमें अवतीर्ण होऊँगी और समस्त देवताओंसे सेवित होकर उनका कार्य सिद्ध करूँगी ।। 39 ।।

ब्रह्माजी बोले- ऐसा कहकर जगद्धात्री परमेश्वरी कालिका शिवा मेनकाके देखते-देखते वहाँ अन्तर्धान हो गयीं ॥ 40 ॥ हे तात! महेश्वरीसे अभीष्ट वर पाकर मेनकाको भी अपार हर्ष हुआ और उनका तपस्याजनित क्लेश नष्ट हो गया ।। 41 ll

अत्यन्त प्रसन्नचित्त साध्वी मेना उस दिशामें नमस्कारकर जय शब्दका उच्चारण करती हुई अपने स्थानको चली गयीं ॥। 42 ।।

ऐसे तो मेनाके प्रसन्न मुखमण्डलसे हो हिमवान्‌को सारी बातोंकी जानकारी हो गयी, फिर भी मेनाने अपने मुखसे वरदानकी सारी बात पुनरुक्त वचनोंके समान हिमालयसे पुनः कह दी। ll 43 llमेनाका वचन सुनकर पर्वतराज [ हिमालय ] प्रसन्न हुए और उन्होंने शिवामें भक्ति रखनेवाली [अपनी] उन प्रियाकी प्रेमपूर्वक प्रशंसा की ॥ 44 ॥ हे मुने ! तत्पश्चात् कालक्रमसे उन दोनोंके सहवासमें प्रवृत्त होनेपर मेनाको गर्भ रह गया और वह प्रतिदिन बढ़ने लगा ॥ 45 ॥

समयानुसार उन्होंने एक उत्तम पुत्रको जन्म दिया, जिसका नाम मैनाक था। उसने समुद्रके साथ उत्तम मैत्री की। वह अद्भुत पर्वत नागवधुओंके विहारका स्थल है ॥ 46 ॥

हे देवर्षे ! जिस समय इन्द्रने पर्वतोंपर क्रोधित होकर उनके पंख काटना प्रारम्भ किया, उस समय वज्रद्वारा कटे हुए पर्वतोंके पंखोंको देखकर वह मैनाक वेदनासे अनभिज्ञ ही रहा और पंखयुक्त ही रहा ॥ 47 ॥

हिमालयके सौ पुत्रोंमें मैनाक सबसे श्रेष्ठ और महाबल तथा पराक्रमसे युक्त था । अपने आप प्रकट हुए समस्त पर्वतोंमें एकमात्र मैनाक ही पर्वतराजके पदपर अधिष्ठित हुआ ॥ 48 ॥

उस समय हिमालयके नगरमें महान् उत्सव हुआ। दोनों पति-पत्नी अत्यधिक प्रसन्नताको प्राप्त हुए और उनका क्लेश नष्ट हो गया ॥ 49 ॥ उन्होंने ब्राह्मणोंको दान दिया तथा अन्य लोगोंको भी धन प्रदान किया। शिवाशिवके चरणयुगलमें उन दोनोंका अत्यधिक स्नेह हो गया ॥ 50 ॥

Previous Page 100 of 466 Next

शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा