मेना बोली- हे मुने। मैं पहले गिरिजाके होनेवाले पतिको देखेंगी। जिनके लिये उसके द्वारा उत्तम तप किया गया है, उन शिवका रूप कैसा है ? ॥ 1 ॥ ब्रह्माजी बोले- हे मुने! इस प्रकार अज्ञानके वशीभूत वे मेना शिवका दर्शन करनेके लिये आपके साथ शीघ्र ही चन्द्रशालापर गयीं। हे तात! उस समय प्रभु शिवजी भी अपने प्रति उनके अहंकारको जानकर अद्भुत लीला करके मुझसे और विष्णुसे बोले ॥ 2-3 ॥
शिवजीने कहा- हे तात! आप दोनों मेरी आज्ञासे देवताओंके साथ अलग-अलग पर्वत हिमालयके दरवाजेपर चलें हमलोग बादमें चलेंगे ॥ 4 ॥ब्रह्माजी बोले- यह सुनकर विष्णुने सभी देवगणोंको बुलाकर वैसा करनेको कहा। उसके बाद सभी देवता शिवमें चित्त लगाये हुए उत्सुक होकर चलने लगे ॥ 5 ॥
हे मुने! उसी समय शिवजीके दर्शनकी इच्छासे मेना भी तुमको साथ लेकर महलकी अटारीपर चढ़ गयीं। तब तुम उन्हें इस प्रकार दिखाने लगे, जिससे उनका हृदय विदीर्ण हो। हे मुने! उस समय परम शुभ सेनाको देखती हुई मेना सामान्यरूपसे हर्षित हो उठीं ॥ 6-7 ॥
सबसे पहले सुन्दर वस्त्र धारण किये हुए, सुभग, शुभ, नाना प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित, विविध वाहनोंसे युक्त, अनेक प्रकारके बाजे बजानेमें तत्पर और विचित्र पताकाओं तथा अप्सराओंको अपने साथ लिये हुए गन्धर्व आये। उस समय मेना गन्धर्वपति परमप्रभु वसुको देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उन्होंने पूछा कि क्या ये शिवजी हैं ? ॥ 8-10 ll
हे ऋषिश्रेष्ठ! तब आपने उनसे यह कहा ये शिवजीके गण हैं, शिवाके पति शंकरजी नहीं हैं ॥ 11 ॥
यह सुनकर मेनाने विचार किया कि जो इनसे भी अधिक श्रेष्ठ है, वह कैसा होगा ॥ 12 ॥
उसी समय जो मणिग्रीव आदि यक्ष थे, उनकी सेनाको उन्होंने देखा, जिनकी शोभा गन्धसे दुगुनी थी॥ 13 ॥
यक्षाधिपति मणिग्रीवको अत्यन्त शोभासे समन्वित देखकर ये शिवस्वामी रुद्र हैं-मेने हर्षित होकर ऐसा कहा हे नारद! तब तुमने कहा- ये शिवास्वामी रुद्र नहीं हैं, ये तो शिवके सेवक हैं। उसी समय अग्निदेव आ गये। मणिग्रीवको अपेक्षा उनकी दुगुनी शोभा देखकर मेनाने पूछा- क्या ये ही गिरिजाके स्वामी रुद्र हैं? तब आपने कहा- नहीं ।। 14–16 ॥
तत्पश्चात् उनकी भी शोभासे द्विगुणित शोभायुक्त यम आये। उन्हें देखकर प्रसन्न होकर मेनाने कहा क्या ये रुद्र हैं ? तब आपने उनसे कहा-नहीं, उसी समय उनसे भी द्विगुणित शोभा धारण किये हुए पुण्यजनोंके प्रभु शुभ निर्ऋति आये ॥ 17-18 ।।उन्हें देखकर मेनाने प्रसन्न होकर कहा-क्या ये रुद्र हैं? तब आपने उनसे कहा-नहीं। तभी वरुण आ गये। निर्ऋतिसे भी दुगुनी शोभा उनकी देखकर उन मेनाने कहा—ये गिरिजास्वामी रुद्र हैं? तब आपने कहा- नहीं ॥। 19-20 ॥
तदनन्तर उनसे भी दुगुनी शोभा धारण किये वायुदेव वहाँ आये । उनको देखकर मेनाने हर्षित होकर कहा- क्या ये ही रुद्र हैं? तब आपने उनसे कहा- नहीं। उसी समय गुह्यकपति कुबेर उनसे भी दूनी शोभा धारण किये हुए वहाँ आये ।। 21-22 ।। उनको देखकर प्रसन्न हो उन मेनाने कहा क्या ये ही रुद्र हैं ? तब आपने उनसे कहा- नहीं। इतनेमें ईशानदेव आ गये ।। 23 ।।
कुबेरसे भी दुगुनी उनकी शोभा देखकर मेनाने कहा- क्या ये गिरिजापति रुद्र हैं, तब आपने कहा- नहीं ॥ 24 ॥
तदनन्तर उनसे भी दुगुनी शोभासे सम्पन्न, सभी | देवताओंमें श्रेष्ठ, अनेक प्रकारकी दिव्य कान्तिवाले और स्वर्गलोकके स्वामी इन्द्र आये ॥ 25 ॥
उनको देखकर वे मेना बोलीं- क्या ये ही शंकर हैं? तब आपने कहा- ये देवराज इन्द्र हैं, वे नहीं हैं ॥ 26 ll
तब उनसे भी दुगुनी शोभा धारण करनेवाले चन्द्रमा आये। उन्हें देखकर मेना बोलीं- क्या ये ही रुद्र हैं? तब आपने कहा- नहीं। इसके बाद उनसे भी दुगुनी शोभा धारण करनेवाले सूर्य आये। उन्हें देखकर मेनाने कहा-क्या ये ही शिव हैं? आपने कहा- नहीं ।। 27-28 ॥
इतनेमें तेजोराशि भृगु आदि मुनीश्वर अपने शिष्योंसहित वहाँ पहुँच गये ॥ 29 ॥
उनके मध्यमें बृहस्पतिको देखकर मेना बोलीं- ये ही गिरिजापति रुद्र हैं? तब आपने कहा नहीं ॥ 30 ॥
उसके बाद तेजोंकी महाराशि तथा साक्षात् धर्मके पुंजके समान मैं ब्रह्मा स्तुत होता हुआ ऋषियों तथा पुत्रोंके सहित उपस्थित हुआ। हे मुने! मुझे देखकर मेना बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने कहा- क्या ये ही शिव हैं? तब आपने उनसे कहा- नहीं ॥ 31-32 ॥इसी बीच सम्पूर्ण शोभासे युक्त, श्रीमान्, मेघके समान श्याम वर्णवाले, चार भुजाओंसे युक्त, करोड़ों कामदेवके समान कमनीय, पीताम्बर धारण किये हुए, अपने तेजसे प्रकाशित, कमलनयन, शान्तस्वभाव, श्रेष्ठ गरुड़पर सवार, शंख आदि लक्षणोंसे युक्त, मुकुट आदिसे विभूषित, वक्षःस्थलपर श्रीवत्सका चिह्न धारण किये हुए, अप्रमेय कान्तिसे सम्पन्न लक्ष्मीपति भगवान् विष्णु वहाँ आये ।। 33-35 ॥
उनको देखकर उनके नेत्र चकित हो गये और उन्होंने हर्षसे भरकर कहा- ये ही साक्षात् गिरिजापति शिव हैं, इसमें सन्देह नहीं ॥ 36 ॥
तब मेनकाका वचन सुनकर परम कौतुकी आपने कहा- वे शिवापति नहीं हैं, अपितु ये केशव विष्णु हैं ॥ 37 ॥
ये शंकरजीके समस्त कार्योंके अधिकारी तथा उनके प्रिय हैं, उन पार्वतीपति शिवको इनसे भी अधिक श्रेष्ठ समझना चाहिये। हे मेने उनकी शोभाका वर्णन मैं नहीं कर सकता, वे ही समस्त ब्रह्माण्डोंके अधिपति, सर्वेश्वर तथा स्वराट् हैं ।। 38-39 ।।
ब्रह्माजी बोले- नारदके वचनको सुनकर मेनाने उसको [पार्वतीको] महाधनवती, भाग्यवती, तीनों कुलों (पितृकुल, मातृकुल तथा पतिकुल) को सुख देनेवाली तथा कल्याणकारिणी समझा ॥ 40 ॥
उसके बाद प्रीतियुक्त चित्तसे प्रसन्न मुखवाली मेना बार बार अपने भाग्यकी बड़ाई करती हुई कहने लग- ॥ 41 ॥ मेना बोली- पार्वतीके जन्मसे इस समय मैं सर्वथा धन्य हो गयी, गिरीश्वर भी आज धन्य हो गये, मेरा सब कुछ धन्य हो गया। उत्तम प्रभासे युक्त जिन-जिन देवताओं एवं देवाधिपतियोंको मैंने देखाइन सबके जो स्वामी हैं, वे ही इसके पति होंगे ।। 42-43 ।।
उसके भाग्यका क्या वर्णन किया जाय। उसके द्वारा भगवान् शिवको पतिरूपमें प्राप्त करनेके कारण सौ वर्षोंमें भी पार्वती के सौभाग्यका वर्णन नहीं किया जा सकता ।। 44 ।। ब्रह्माजी बोले- प्रेमसे परिपूर्ण चित्तवाली मेना जब इस प्रकार कह रही थीं, उसी समय सब कुछ करनेमें सर्वथा समर्थ प्रभु रुद्र अद्भुत वेष धारणकर आ गये ।। 45 ।।
हे तात! उनके गण भी अद्भुत थे, जो मेनाके गर्वको दूर करनेवाले थे। उस समय प्रभु रुद्र अपनेको मायासे निर्लिप्त तथा निर्विकार दिखा रहे थे ।। 46 ।।
हे नारद! हे मुने! उस समय उनको आया देखकर परम प्रेमसे आप शिवाके पति शंकरको दिखाते हुए मेनासे कहने लगे- ll 47॥
नारदजी बोले - हे सुन्दरि ! आप देखिये, ये ही वे साक्षात् शंकर हैं, जिनके निमित्त वनमें पार्वतीने कठिन तप किया था ।। 48 ।।
ब्रह्माजी बोले- नारदके वचनको सुनकर मेना हर्षित होकर अद्भुत आकृतिवाले, अद्भुत गणोंसे युक्त तथा आश्चर्यजनक प्रभु शिवजीको देखने लगीं ।। 49 ।। उसी समय भूत प्रेत आदिसे युक्त तथा नाना प्रकारके गणोंसे समन्वित अत्यन्त अद्भुत रुद्रसेना आ पहुँची ll 50 ll
उनमें कोई आँधीके समान रूप धारण किये हुए थे, कोई पताकाके समान मर्मर शब्द कर रहे थे, कोई वक्रतुण्ड थे तथा कोई विकृत रूपवाले, कोई विकराल थे, कोई बड़ी दाढ़ी वाले थे, कोई लंगड़े थे, कोई अन्धे थे, कोई हाथमें दण्ड, पाश तथा कोई मुद्गर धारण किये हुए थे, कोई विरुद्ध वाहनपर सवार थे, कोई श्रृंगीनाद कर रहे थे, कोई डमरू बजा रहे थे, कोई गोमुख बजा रहे थे, कोई मुखरहित थे, कोई विकट मुखवाले थे, कोई गण बहुत मुखवाले थे, कोई हाथसे रहित थे, कोई विकृत हावाले थे, कोई गण बहुत हाथोंवाले थे कोई नेत्रहीन, कोई बहुत नेत्रवाले, कोई बिना सिरके, कोई विकृत सिरवाले, कोई कर्णहीन तथा कोई बहुत कानवाले थे। सभी गण नाना प्रकारके वेष धारण किये हुए थे। इसी प्रकार और भी विकृत आकारवाले अनेक प्रबल गण थे हे तात! वे असंख्य, बड़े वीर और भयंकर थे ॥ 51-56॥उसके बाद हे मुने! आपने मेनाको रुद्रगणोंको अँगुलीसे दिखाते हुए कहा- हे वरानने! आप इन शंकरके गणोंको और शंकरको भी देखिये ।। 57 ॥ हे मुने! भूत-प्रेत आदि असंख्य गणोंको देखकर वे मेना तत्क्षण भयसे अत्यन्त व्याकुल हो गयीं ॥ 58 ॥ उन गणोंके मध्य निर्गुण, परम गुणी, वृषभपर पाँच मुख तथा तीन नेत्रवाले, शिवविभूतिसे सवार, विभूषित, जटाजूटसे युक्त, मस्तकमें चन्द्रकलासे शोभित, दस भुजाओंसे युक्त, कपाल धारण किये, व्याघ्रचर्मका उत्तरीय धारण किये हुए, हाथमें श्रेष्ठ पिनाक धारण किये हुए, शूलसे युक्त, विरूप नेत्रवाले, विकृत आकारवाले, व्याकुल तथा गजचर्म ओढ़े हुए शिवको देखकर पार्वतीकी माता भयभीत हो उठीं ।। 59-61 ॥
उसके अनन्तर आश्चर्यचकित, काँपती हुई, व्याकुल तथा भ्रमित बुद्धिवाली उन मेनाको अँगुलीके संकेतसे शिवजीकी ओर दिखाते हुए आपने कहा- ये ही शिव हैं। आपके उस वचनको सुनते ही वे सती मेना दुःखित होकर वायुके झोंकेसे गिरी हुई लताके समान शीघ्र ही पृथिवीपर गिर पड़ीं। इस विकृत रूपको देखकर दुराग्रहमें फँसकर मैं ठगी गयी-ऐसा कहकर वे मेना क्षणमात्रमें मूच्छित हो गयीं ॥ 62-64॥
उसके बाद सखियोंके द्वारा अनेक प्रकारके प्रयत्नोंसे उपचार करनेपर हिमालयप्रिया मेनाको धीरे धीरे चैतन्य प्राप्त हुआ ।। 65 ॥