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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 43 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 43

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मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना

मेना बोली- हे मुने। मैं पहले गिरिजाके होनेवाले पतिको देखेंगी। जिनके लिये उसके द्वारा उत्तम तप किया गया है, उन शिवका रूप कैसा है ? ॥ 1 ॥ ब्रह्माजी बोले- हे मुने! इस प्रकार अज्ञानके वशीभूत वे मेना शिवका दर्शन करनेके लिये आपके साथ शीघ्र ही चन्द्रशालापर गयीं। हे तात! उस समय प्रभु शिवजी भी अपने प्रति उनके अहंकारको जानकर अद्भुत लीला करके मुझसे और विष्णुसे बोले ॥ 2-3 ॥

शिवजीने कहा- हे तात! आप दोनों मेरी आज्ञासे देवताओंके साथ अलग-अलग पर्वत हिमालयके दरवाजेपर चलें हमलोग बादमें चलेंगे ॥ 4 ॥ब्रह्माजी बोले- यह सुनकर विष्णुने सभी देवगणोंको बुलाकर वैसा करनेको कहा। उसके बाद सभी देवता शिवमें चित्त लगाये हुए उत्सुक होकर चलने लगे ॥ 5 ॥

हे मुने! उसी समय शिवजीके दर्शनकी इच्छासे मेना भी तुमको साथ लेकर महलकी अटारीपर चढ़ गयीं। तब तुम उन्हें इस प्रकार दिखाने लगे, जिससे उनका हृदय विदीर्ण हो। हे मुने! उस समय परम शुभ सेनाको देखती हुई मेना सामान्यरूपसे हर्षित हो उठीं ॥ 6-7 ॥

सबसे पहले सुन्दर वस्त्र धारण किये हुए, सुभग, शुभ, नाना प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित, विविध वाहनोंसे युक्त, अनेक प्रकारके बाजे बजानेमें तत्पर और विचित्र पताकाओं तथा अप्सराओंको अपने साथ लिये हुए गन्धर्व आये। उस समय मेना गन्धर्वपति परमप्रभु वसुको देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उन्होंने पूछा कि क्या ये शिवजी हैं ? ॥ 8-10 ll

हे ऋषिश्रेष्ठ! तब आपने उनसे यह कहा ये शिवजीके गण हैं, शिवाके पति शंकरजी नहीं हैं ॥ 11 ॥

यह सुनकर मेनाने विचार किया कि जो इनसे भी अधिक श्रेष्ठ है, वह कैसा होगा ॥ 12 ॥

उसी समय जो मणिग्रीव आदि यक्ष थे, उनकी सेनाको उन्होंने देखा, जिनकी शोभा गन्धसे दुगुनी थी॥ 13 ॥

यक्षाधिपति मणिग्रीवको अत्यन्त शोभासे समन्वित देखकर ये शिवस्वामी रुद्र हैं-मेने हर्षित होकर ऐसा कहा हे नारद! तब तुमने कहा- ये शिवास्वामी रुद्र नहीं हैं, ये तो शिवके सेवक हैं। उसी समय अग्निदेव आ गये। मणिग्रीवको अपेक्षा उनकी दुगुनी शोभा देखकर मेनाने पूछा- क्या ये ही गिरिजाके स्वामी रुद्र हैं? तब आपने कहा- नहीं ।। 14–16 ॥

तत्पश्चात् उनकी भी शोभासे द्विगुणित शोभायुक्त यम आये। उन्हें देखकर प्रसन्न होकर मेनाने कहा क्या ये रुद्र हैं ? तब आपने उनसे कहा-नहीं, उसी समय उनसे भी द्विगुणित शोभा धारण किये हुए पुण्यजनोंके प्रभु शुभ निर्ऋति आये ॥ 17-18 ।।उन्हें देखकर मेनाने प्रसन्न होकर कहा-क्या ये रुद्र हैं? तब आपने उनसे कहा-नहीं। तभी वरुण आ गये। निर्ऋतिसे भी दुगुनी शोभा उनकी देखकर उन मेनाने कहा—ये गिरिजास्वामी रुद्र हैं? तब आपने कहा- नहीं ॥। 19-20 ॥

तदनन्तर उनसे भी दुगुनी शोभा धारण किये वायुदेव वहाँ आये । उनको देखकर मेनाने हर्षित होकर कहा- क्या ये ही रुद्र हैं? तब आपने उनसे कहा- नहीं। उसी समय गुह्यकपति कुबेर उनसे भी दूनी शोभा धारण किये हुए वहाँ आये ।। 21-22 ।। उनको देखकर प्रसन्न हो उन मेनाने कहा क्या ये ही रुद्र हैं ? तब आपने उनसे कहा- नहीं। इतनेमें ईशानदेव आ गये ।। 23 ।।

कुबेरसे भी दुगुनी उनकी शोभा देखकर मेनाने कहा- क्या ये गिरिजापति रुद्र हैं, तब आपने कहा- नहीं ॥ 24 ॥

तदनन्तर उनसे भी दुगुनी शोभासे सम्पन्न, सभी | देवताओंमें श्रेष्ठ, अनेक प्रकारकी दिव्य कान्तिवाले और स्वर्गलोकके स्वामी इन्द्र आये ॥ 25 ॥

उनको देखकर वे मेना बोलीं- क्या ये ही शंकर हैं? तब आपने कहा- ये देवराज इन्द्र हैं, वे नहीं हैं ॥ 26 ll

तब उनसे भी दुगुनी शोभा धारण करनेवाले चन्द्रमा आये। उन्हें देखकर मेना बोलीं- क्या ये ही रुद्र हैं? तब आपने कहा- नहीं। इसके बाद उनसे भी दुगुनी शोभा धारण करनेवाले सूर्य आये। उन्हें देखकर मेनाने कहा-क्या ये ही शिव हैं? आपने कहा- नहीं ।। 27-28 ॥
इतनेमें तेजोराशि भृगु आदि मुनीश्वर अपने शिष्योंसहित वहाँ पहुँच गये ॥ 29 ॥

उनके मध्यमें बृहस्पतिको देखकर मेना बोलीं- ये ही गिरिजापति रुद्र हैं? तब आपने कहा नहीं ॥ 30 ॥

उसके बाद तेजोंकी महाराशि तथा साक्षात् धर्मके पुंजके समान मैं ब्रह्मा स्तुत होता हुआ ऋषियों तथा पुत्रोंके सहित उपस्थित हुआ। हे मुने! मुझे देखकर मेना बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने कहा- क्या ये ही शिव हैं? तब आपने उनसे कहा- नहीं ॥ 31-32 ॥इसी बीच सम्पूर्ण शोभासे युक्त, श्रीमान्, मेघके समान श्याम वर्णवाले, चार भुजाओंसे युक्त, करोड़ों कामदेवके समान कमनीय, पीताम्बर धारण किये हुए, अपने तेजसे प्रकाशित, कमलनयन, शान्तस्वभाव, श्रेष्ठ गरुड़पर सवार, शंख आदि लक्षणोंसे युक्त, मुकुट आदिसे विभूषित, वक्षःस्थलपर श्रीवत्सका चिह्न धारण किये हुए, अप्रमेय कान्तिसे सम्पन्न लक्ष्मीपति भगवान् विष्णु वहाँ आये ।। 33-35 ॥

उनको देखकर उनके नेत्र चकित हो गये और उन्होंने हर्षसे भरकर कहा- ये ही साक्षात् गिरिजापति शिव हैं, इसमें सन्देह नहीं ॥ 36 ॥

तब मेनकाका वचन सुनकर परम कौतुकी आपने कहा- वे शिवापति नहीं हैं, अपितु ये केशव विष्णु हैं ॥ 37 ॥

ये शंकरजीके समस्त कार्योंके अधिकारी तथा उनके प्रिय हैं, उन पार्वतीपति शिवको इनसे भी अधिक श्रेष्ठ समझना चाहिये। हे मेने उनकी शोभाका वर्णन मैं नहीं कर सकता, वे ही समस्त ब्रह्माण्डोंके अधिपति, सर्वेश्वर तथा स्वराट् हैं ।। 38-39 ।।

ब्रह्माजी बोले- नारदके वचनको सुनकर मेनाने उसको [पार्वतीको] महाधनवती, भाग्यवती, तीनों कुलों (पितृकुल, मातृकुल तथा पतिकुल) को सुख देनेवाली तथा कल्याणकारिणी समझा ॥ 40 ॥

उसके बाद प्रीतियुक्त चित्तसे प्रसन्न मुखवाली मेना बार बार अपने भाग्यकी बड़ाई करती हुई कहने लग- ॥ 41 ॥ मेना बोली- पार्वतीके जन्मसे इस समय मैं सर्वथा धन्य हो गयी, गिरीश्वर भी आज धन्य हो गये, मेरा सब कुछ धन्य हो गया। उत्तम प्रभासे युक्त जिन-जिन देवताओं एवं देवाधिपतियोंको मैंने देखाइन सबके जो स्वामी हैं, वे ही इसके पति होंगे ।। 42-43 ।।

उसके भाग्यका क्या वर्णन किया जाय। उसके द्वारा भगवान् शिवको पतिरूपमें प्राप्त करनेके कारण सौ वर्षोंमें भी पार्वती के सौभाग्यका वर्णन नहीं किया जा सकता ।। 44 ।। ब्रह्माजी बोले- प्रेमसे परिपूर्ण चित्तवाली मेना जब इस प्रकार कह रही थीं, उसी समय सब कुछ करनेमें सर्वथा समर्थ प्रभु रुद्र अद्भुत वेष धारणकर आ गये ।। 45 ।।

हे तात! उनके गण भी अद्भुत थे, जो मेनाके गर्वको दूर करनेवाले थे। उस समय प्रभु रुद्र अपनेको मायासे निर्लिप्त तथा निर्विकार दिखा रहे थे ।। 46 ।।

हे नारद! हे मुने! उस समय उनको आया देखकर परम प्रेमसे आप शिवाके पति शंकरको दिखाते हुए मेनासे कहने लगे- ll 47॥

नारदजी बोले - हे सुन्दरि ! आप देखिये, ये ही वे साक्षात् शंकर हैं, जिनके निमित्त वनमें पार्वतीने कठिन तप किया था ।। 48 ।।

ब्रह्माजी बोले- नारदके वचनको सुनकर मेना हर्षित होकर अद्भुत आकृतिवाले, अद्भुत गणोंसे युक्त तथा आश्चर्यजनक प्रभु शिवजीको देखने लगीं ।। 49 ।। उसी समय भूत प्रेत आदिसे युक्त तथा नाना प्रकारके गणोंसे समन्वित अत्यन्त अद्भुत रुद्रसेना आ पहुँची ll 50 ll

उनमें कोई आँधीके समान रूप धारण किये हुए थे, कोई पताकाके समान मर्मर शब्द कर रहे थे, कोई वक्रतुण्ड थे तथा कोई विकृत रूपवाले, कोई विकराल थे, कोई बड़ी दाढ़ी वाले थे, कोई लंगड़े थे, कोई अन्धे थे, कोई हाथमें दण्ड, पाश तथा कोई मुद्गर धारण किये हुए थे, कोई विरुद्ध वाहनपर सवार थे, कोई श्रृंगीनाद कर रहे थे, कोई डमरू बजा रहे थे, कोई गोमुख बजा रहे थे, कोई मुखरहित थे, कोई विकट मुखवाले थे, कोई गण बहुत मुखवाले थे, कोई हाथसे रहित थे, कोई विकृत हावाले थे, कोई गण बहुत हाथोंवाले थे कोई नेत्रहीन, कोई बहुत नेत्रवाले, कोई बिना सिरके, कोई विकृत सिरवाले, कोई कर्णहीन तथा कोई बहुत कानवाले थे। सभी गण नाना प्रकारके वेष धारण किये हुए थे। इसी प्रकार और भी विकृत आकारवाले अनेक प्रबल गण थे हे तात! वे असंख्य, बड़े वीर और भयंकर थे ॥ 51-56॥उसके बाद हे मुने! आपने मेनाको रुद्रगणोंको अँगुलीसे दिखाते हुए कहा- हे वरानने! आप इन शंकरके गणोंको और शंकरको भी देखिये ।। 57 ॥ हे मुने! भूत-प्रेत आदि असंख्य गणोंको देखकर वे मेना तत्क्षण भयसे अत्यन्त व्याकुल हो गयीं ॥ 58 ॥ उन गणोंके मध्य निर्गुण, परम गुणी, वृषभपर पाँच मुख तथा तीन नेत्रवाले, शिवविभूतिसे सवार, विभूषित, जटाजूटसे युक्त, मस्तकमें चन्द्रकलासे शोभित, दस भुजाओंसे युक्त, कपाल धारण किये, व्याघ्रचर्मका उत्तरीय धारण किये हुए, हाथमें श्रेष्ठ पिनाक धारण किये हुए, शूलसे युक्त, विरूप नेत्रवाले, विकृत आकारवाले, व्याकुल तथा गजचर्म ओढ़े हुए शिवको देखकर पार्वतीकी माता भयभीत हो उठीं ।। 59-61 ॥

उसके अनन्तर आश्चर्यचकित, काँपती हुई, व्याकुल तथा भ्रमित बुद्धिवाली उन मेनाको अँगुलीके संकेतसे शिवजीकी ओर दिखाते हुए आपने कहा- ये ही शिव हैं। आपके उस वचनको सुनते ही वे सती मेना दुःखित होकर वायुके झोंकेसे गिरी हुई लताके समान शीघ्र ही पृथिवीपर गिर पड़ीं। इस विकृत रूपको देखकर दुराग्रहमें फँसकर मैं ठगी गयी-ऐसा कहकर वे मेना क्षणमात्रमें मूच्छित हो गयीं ॥ 62-64॥

उसके बाद सखियोंके द्वारा अनेक प्रकारके प्रयत्नोंसे उपचार करनेपर हिमालयप्रिया मेनाको धीरे धीरे चैतन्य प्राप्त हुआ ।। 65 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा