ब्रह्माजी बोले- हे मुनीश्वर इसी बीच वहाँ दक्ष तथा देवता आदिको सुनाते हुए आकाशवाणीने यथार्थ बात कही ॥ 1 ॥
आकाशवाणी बोली- हे दुराचारी तथा दम्भवृत्तिमें तत्पर दक्ष हे महामूढ़! तुमने यह कैसा अनर्थकारी कर्म कर डाला ! ॥ 2 ॥
हे मूढ़ ! तुमने शिवभक्तराज दधीचिके कथनको भी प्रमाण नहीं माना, जो तुम्हारे लिये सब प्रकारसे आनन्ददायक और मंगलकारी था ॥ 3 ॥
वे ब्राह्मण तुमको दुस्सह शाप देकर चले गये, तब भी तुम मूढ़ने अपने मनमें कुछ भी नहीं समझा ॥ 4 ॥इसके अनन्तर तुमने अपने घरमें स्वतः आयी हुई अपनी मंगलमयी पुत्री सतीका विशेष आदर क्यों नहीं किया ? ॥ 5 ॥
हे दुर्बल तुमने सती और महादेवजी की पूजा नहीं की, यह तुमने क्या किया? मैं ब्रह्माजीका पुत्र हूँ - ऐसा समझकर विमोहमें पड़कर तुम व्यर्थ ही घमण्डमें भरे हुए हो ॥ 6 ॥
वे सती सदा आराधना करनेके योग्य, समस्त पुण्योंका फल देनेवाली, तीनों लोकोंकी माता, कल्याण स्वरूपा और शंकरके आधे अंगमें निवास करनेवाली हैं। वे माहेश्वरी सती देवी पूजित होनेपर सदा सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करनेवाली और अपने भक्तोंको सब प्रकारके मंगल देनेवाली हैं। वे सती देवी ही पूजित होनेपर सदा संसारका भय दूर करनेवाली, मनोवांछित फल देनेवाली हैं और समस्त उपद्रवोंको नष्ट करनेवाली हैं ॥ 7-9 ॥
वे परमा परमेश्वरी सती ही पूजित होनेपर सदा कीर्ति, भोग तथा मोक्ष प्रदान करती हैं। वे सती ही इस जगत्को जन्म देनेवाली माता, जगत्की रक्षा करनेवाली, अनादि शक्ति और कल्पके अन्तमें जगत्का संहार करनेवाली हैं॥ 10-11
वे सती ही जगत्की माता, भगवान् विष्णुकी माता, विलासिनी तथा ब्रह्मा, इन्द्र, चन्द्र, अग्नि एवं सूर्य आदिकी जननी मानी गयी हैं। वे सती ही तपस्या, धर्म तथा दान आदिका फल देनेवाली, शम्भुशक्ति, महादेवी, दुष्टोंका हनन करनेवाली और परात्पर शक्ति हैं ।। 12-13 ।।
ऐसी सती देवी जिनकी सदा प्रिय भार्या हैं, उन शिवको दुष्ट विचारवाले मूढ़ तुमने यज्ञ-भाग नहीं दिया। भगवान् शिव ही परमेश्वर, सबके स्वामी, परात्पर, ब्रह्मा-विष्णु आदिके द्वारा सम्यक् सेव्य हैं और सबका कल्याण करनेवाले हैं। ll 14-15 ।।
इन्हींके दर्शनकी इच्छावाले सिद्ध पुरुष तपस्या करते हैं और इन्हींके दर्शनकी इच्छावाले योगीजन योगसाधनामें प्रवृत्त होते हैं। अनन्त धनधान्य और यज्ञ आदिका सबसे महान फल शंकरका दर्शन ही | कहा गया है ।। 16-17 ॥शिवजी ही जगत्का धारण-पोषण करनेवाले, समस्त विद्याओंके पति सब कुछ करनेमें समर्थ, आदि विद्याके श्रेष्ठ स्वामी और समस्त मंगलोंके मंगल हैं। हे खल! तुमने उनकी शक्तिका आज सत्कार नहीं किया, इसलिये अवश्य ही इस यज्ञका विनाश हो जायगा ।। 18-19 ॥
पूजनीय व्यक्तियोंकी पूजा न करनेसे अमंगल होता है। क्या परम पूजनीया वे शिवा तुम्हारी पूजाके योग्य नहीं थीं? शेषनाग अपने हजार मस्तकोंसे प्रतिदिन जिनकी चरणरजको प्रेमपूर्वक धारण करते हैं, उन्हीं शिवकी शक्ति ये शिवा सती हैं ॥ 20-21 ॥
जिनके चरणकमलोंका आदरपूर्वक ध्यान और पूजनकर विष्णु विष्णुत्वको प्राप्त हो गये, उन्हीं शिवकी पत्नी सती हैं ॥ 22 ॥
जिनके चरणकमलोंका ध्यान एवं पूजनकर ब्रह्माजी ब्रह्मत्वको प्राप्त हो गये और जिनके चरण कमलोंका आदरपूर्वक निरन्तर ध्यान एवं पूजन करके इन्द्र आदि लोकपालोंने अपने-अपने उत्तम पदको प्राप्त किया है, उन्हीं शिवकी पत्नी सती हैं ॥ 23-24 ॥
भगवान् शिव [सम्पूर्ण] जगत्के पिता हैं और शक्तिरूपा देवी सती जगन्माता कही गयी हैं। हे मूढ़ ! तुमने उनका सत्कार नहीं किया, तुम्हारा कल्याण कैसे होगा ? तुम्हारे ऊपर दुर्भाग्यका आक्रमण हो गया है और विपत्तियाँ टूट पड़ी हैं क्योंकि तुमने भक्तिपूर्वक उन भवानी और शंकरकी आराधना नहीं की । ll 25-26 ।।
कल्याणकारी शिवजीका पूजन-अर्चन न करके मैं कल्याण प्राप्त कर लूंगा; यह कैसा गर्व है? वह तुम्हारा दुर्वार गर्व आज विनष्ट हो जायगा ॥ 27 ॥ इन देवताओंमें कौन ऐसा है, जो सर्वेश्वर शिवसे विमुख होकर तुम्हारी सहायता करेगा, मुझे तो ऐसा कोई दिखायी नहीं दे रहा है। यदि देवता इस समय तुम्हारी सहायता करेंगे तो जलती हुई आग से खेलनेवाले पतिंगोंके समान वे नाशको ही प्राप्त होंगे ll 28-29 ।।
आज तुम्हारा मुख जल जाय, तुम्हारे यज्ञका नाश हो जाय और जितने तुम्हारे सहायक हैं, वे भी आज शीघ्र ही भस्म हो जायें। जो आज इस दुरात्मा दक्षकी सहायता करेंगे; उन समस्त देवताओंके लिये शपथ है कि उनका कर्म तुझ दक्षके अमंगलके लिये हो ॥ 30-31 ॥समस्त देवता आज इस यज्ञमण्डपसे निकलकर अपने-अपने स्थानको चले जायें, अन्यथा आपलोगोंका सब प्रकारसे नाश हो जायगा। अन्य सब मुनि और नाग आदि भी इस यज्ञसे निकल जायें, अन्यथा आज आपलोगोंका सर्वथा नाश हो जायगा ।। 32-33 ।।
हे विष्णु आप इस यज्ञमण्डपसे शीघ्र निकल जायँ, अन्यथा आज आपका सर्वथा नाश हो जायगा। हे विधाता आप भी इस यज्ञमण्डपसे शीघ्र निकल जाइये, अन्यथा आज आपका सर्वथा नाश हो जायगा ।। 34-35 ॥
ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] सम्पूर्ण यज्ञशाला में बैठे हुए लोगों से ऐसा कहकर सबका कल्याण करनेवाली आकाशवाणी मौन हो गयी हे तात! इस प्रकारकी आकाशवाणीको सुनकर विष्णु आदि सभी देवता तथा अन्य मुनि आदि सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये ।। 36-37 ।।