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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 4, अध्याय 5 - Sanhita 4, Adhyaya 5

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रेवानदीके तटपर स्थित विविध शिवलिंग-माहात्म्य वर्णनके क्रममें द्विजदम्पतीका वृत्तान्त

सूतजी बोले- दिव्य कालंजर पर्वतपर नीलकण्ठ
नामक महादेव लिंगरूपसे सदा निवास करते हैं, जो भक्तजनोंको सर्वदा आनन्द प्रदान करनेवाले हैं ॥ 1 ॥ उनकी महिमा परम दिव्य है, जिसका वर्णन वेद तथा स्मृतियोंमें किया गया है। वहाँपर नीलकण्ठ नामक तीर्थ है, जो स्नान करनेसे [मनुष्योंके ] | पापको नष्ट करनेवाला है ॥ 2 ॥

हे सुव्रतो! रेवा नदीके तटपर जितने शिवलिंग हैं, उनकी गणना नहीं की जा सकती; वे सभी सब | प्रकारके सुखोंको देनेवाले हैं ॥ 3 ll[साक्षात्]] रुद्रस्वरूप वह रेवा दर्शनमात्रमे | पापका नाश कर देनेवाली है और उसमें जो भी पाषाण स्थित हैं, वे शिवस्वरूप हैं। फिर भी हे मुनि! भोग एवं मोक्षको देनेवाले प्रधान शिवलिंगोंका वर्णन यथोचितरूपसे कर रहा हूँ ।। 4-5 ॥ वहाँ आर्तेश्वर नामक लिंग है, जो सभी पापको दूर करनेवाला है। इसी प्रकार परमेश्वर एवं सिंहेश्वर नामक लिंग भी कहे गये हैं॥ 6 ॥ इसी प्रकार वहाँपर शर्मेश्वर, कुमारेश्वर, पुण्डरीकेश्वर एवं मण्डपेश्वर नामक लिंग भी हैं॥ 7 ॥

वहाँ नर्मदा नदीके किनारे दर्शनमात्रसे पापको नष्ट करनेवाला तीक्ष्णेश्वर नामक लिंग है तथा पापको दूर करनेवाला धुन्धुरेश्वर नामक लिंग भी है॥ 8 ॥

शूलेश्वर, कुम्भेश्वर, कुबेरेश्वर तथा सोमेश्वर नामक लिंग भी प्रसिद्ध हैं। नीलकण्ठ तथा मंगलेश तो महामंगलके स्थान ही हैं महाकपीश्वर महादेवकी स्थापना स्वयं हनुमानजीने की थी ।॥ 9-10 ॥

इसी क्रममें करोड़ों हत्याओंके पापको नष्ट करनेवाले, सम्पूर्ण कामनाओंका फल प्रदान करनेवाले और मोक्षदायक नन्दिकदेव भी कहे गये हैं। जो अति प्रसन्नतापूर्वक नन्दिकेश्वरका पूजन करता है, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ नित्य प्राप्त होती हैं; इसमें संशाय नहीं है ll 11-12 ll

हे श्रेष्ठ मुनियो वहाँ रेवा नदीके तटपर जो स्नान करता है, उसकी समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं तथा उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ॥ 13 ॥

ऋषिगण बोले- उस नन्दिकेश्वर लिंगका ऐसा माहात्म्य क्यों है; आप इस समय कृपा करके उसे बतायें ? ॥ 14 ॥

सूतजी बोले [हे ऋषियो।] आपलोगोने बड़ा उत्तम प्रश्न किया; इस विषयमें मैंने जैसा सुना है, वैसा कह रहा हूँ। शौनक आदि आप सभी मुनिलोग आदरपूर्वक सुनिये पूर्व समयमें युधिष्ठिरके प्रश्न करनेपर ऋषिवर व्यासजीने जैसा कहा था, वही बात मैं आपलोगोंके स्नेहके कारण कह रहा है। ll 15.16 ll

रेवा (नर्मदा नदीके पश्चिमी तटपर कर्णिकी नामक एक नगरी विराजमान है, जो सम्पूर्ण शोभासे युक्त है और चारों वर्णोंसे भरी पड़ी है। 17 ॥वहीं उतथ्यके कुलमें उत्पन्न कोई श्रेष्ठ ब्राह्मण [रहता था, वह] अपनी पत्नीको अपने दो पुत्रोंको सौंपकर काशी चला गया। वह विप्र वहीं पर मर गया। जब उसके पुत्रोंने यह समाचार सुना, तो दोनों पुत्रोंने उसका [ श्राद्ध आदि] कृत्य कर दिया ।। 18-19 ।।

पुत्रोंका हित चाहनेवाली उसकी पत्नीने अपने बालकोंका लालन पालन किया। [पुत्रोंके बड़े हो जानेपर] उसने कुछ धन बचाकर शेष धनका बँटवारा कर दिया। उसने कुछ धन अपने मरण- कृत्यके लिये सुरक्षितकर अपने पास रख लिया। कुछ समय बीतनेपर मरणासन्न होनेपर उस ब्राह्मणीने अनेक प्रकारके पुण्य कार्य किये, किंतु हे द्विजो दैवयोगसे वह ब्राह्मणी मरी नहीं ॥। 20-22 ।।

जब दैववश उन दोनोंकी माताके प्राण नहीं निकले, तब माताके उस कष्टको देखकर उसके दोनों पुत्रोंने कहा— ॥ 23 ॥

पुत्र बोले- हे माता ! अब किस बातकी कमी रह गयी है, जिससे आपको यह महान् कष्ट मिल रहा है? आप शीघ्रतासे हमें बतायें, हमलोग प्रेमपूर्वक उसे करेंगे ll 24 ॥

सूतजी बोले- यह सुनकर माताने कहा कि कमी तो बहुत रह गयी है, किंतु यदि तुमलोग उसे पूरा करो तो सुखपूर्वक मेरी मृत्यु हो सकती है। तब उसका जो ज्येष्ठ पुत्र था, उसने कहा कि आप बताइये मैं उसे अवश्य पूर्ण करूँगा। तब उसने कहा- ।। 25-26 ॥

द्विजपत्नी बोली हे पुत्र ! मेरी बात प्रेमसे सुनो; पहले मेरी इच्छा काशी जानेकी थी, किंतु वैसा नहीं हो सका और अब मैं मर रही हूँ। हे पुत्र! तुम आलस्यका त्यागकर मेरी अस्थियोंको [ काशी में ] गंगाजल में फेंक देना तुम्हारा कल्याण होगा, इसमें संशय नहीं है ।। 27-28 ॥

सूतजी बोले- माताके इस प्रकार कहनेपर मातामै भक्ति रखनेवाले उस ज्येष्ठ पुत्रने सुव्रता, मरणासन्न मातासे कहा- ॥ 29 ॥पुत्र बोला—हे मातः! आप सुखपूर्वक अपने प्राणोंका त्याग कीजिये; मैं सर्वप्रथम आपका कार्य करनेके बाद ही अपना काम करूँगा; इसमें संशय नहीं है। इसके बाद [अपनी माताके] हाथमें जल देकर ज्यों ही पुत्र घर गया, तभी वह शिवजीका ध्यान करती हुई वहाँ मर गयी ॥ 30-31 ॥

तब उसका जो भी कृत्य था, वह सब भलीभाँति करके पुनः सारा मासिक [पिण्डदानादि] कार्य करके वह काशी जानेको तैयार हो गया। दोनोंमें ज्येष्ठ पुत्र जो सुवाद नामसे प्रसिद्ध था, वह उसकी अस्थियोंको लेकर तीर्थकी कामनासे निकल पड़ा ॥ 32-33 ॥

श्राद्धदान तथा ब्राह्मणभोजन आदि उत्तम विधि सम्पन्नकर अपनी भार्या और पुत्रोंको आश्वासन देकर माताका हित करनेकी इच्छासे किसी सेवकको बुलाकर उसीके साथ मंगलस्मरण करके वह द्विज घरसे चल दिया ।। 34-35 ।।

उस दिन उसने एक योजन चलकर सूर्यास्त होनेपर किसी विंशति नामक शुभ ग्राममें किसी ब्राह्मणके घरमें निवास किया ॥ 36 ॥

उसके बाद उस द्विजने विधिपूर्वक सन्ध्यादि सत्कर्म किया और अद्भुत क्रिया-कलापवाले शंकरकी स्तुति आदि की ॥ 37 ॥ इस प्रकार सेवकके सहित वह ब्राह्मण वहाँ रुका रहा और दो मुहूर्तभर रात बीत गयी ॥ 38 ॥ हे मुनियों! इसी बीच वहाँ जो आश्चर्यमयी घटना घटी, उसे आपलोग आदरपूर्वक सुनिये; मैं | आपलोगोंको बता रहा हूँ ॥ 39 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पुत्रप्राप्तिके लिये कैलासपर गये हुए श्रीकृष्णका उपमन्युसे संवाद
  2. [अध्याय 2] श्रीकृष्णके प्रति उपमन्युका शिवभक्तिका उपदेश
  3. [अध्याय 3] श्रीकृष्णकी तपस्या तथा शिव पार्वतीसे वरदानकी प्राप्ति, अन्य शिवभक्तोंका वर्णन
  4. [अध्याय 4] शिवकी मायाका प्रभाव
  5. [अध्याय 5] महापातकोंका वर्णन
  6. [अध्याय 6] पापभेदनिरूपण
  7. [अध्याय 7] यमलोकका मार्ग एवं यमदूतोंके स्वरूपका वर्णन
  8. [अध्याय 8] नरक - भेद-निरूपण
  9. [अध्याय 9] नरककी यातनाओंका वर्णन
  10. [अध्याय 10] नरकविशेषमें दुःखवर्ण
  11. [अध्याय 11] दानके प्रभावसे यमपुरके दुःखका अभाव तथा अन्नदानका विशेष माहात्यवर्णन
  12. [अध्याय 12] जलदान, सत्यभाषण और तपकी महिमा
  13. [अध्याय 13] पुराणमाहात्म्यनिरूपण
  14. [अध्याय 14] दानमाहात्म्य तथा दानके भेदका वर्णन
  15. [अध्याय 15] ब्रह्माण्डदानकी महिमाके प्रसंगमें पाताललोकका निरूपण
  16. [अध्याय 16] विभिन्न पापकर्मोंसे प्राप्त होनेवाले नरकोंका वर्णन और शिव नाम स्मरणकी महिमा
  17. [अध्याय 17] ब्रह्माण्डके वर्णन प्रसंगमें जम्बुद्वीपका निरूपण
  18. [अध्याय 18] भारतवर्ष तथा प्लक्ष आदि छः द्वीपोंका वर्णन
  19. [अध्याय 19] सूर्यादि ग्रहों की स्थितिका निरूपण करके जन आदि लोकोंका वर्णन
  20. [अध्याय 20] तपस्यासे शिवलोककी प्राप्ति, सात्त्विक आदि तपस्याके भेद, मानवजन्मकी प्रशस्तिका कथन
  21. [अध्याय 21] कर्मानुसार जन्मका वर्णनकर क्षत्रियके लिये संग्रामके फलका निरूपण
  22. [अध्याय 22] देहकी उत्पत्तिका वर्णन
  23. [अध्याय 23] शरीरकी अपवित्रता तथा उसके बालादि अवस्थाओंमें प्राप्त होनेवाले दुःखोंका वर्णन
  24. [अध्याय 24] नारदके प्रति पंचचूडा अप्सराके द्वारा स्त्रीके स्वभाव का वर्णन
  25. [अध्याय 25] मृत्युकाल निकट आनेके लक्षण
  26. [अध्याय 26] योगियोंद्वारा कालकी गतिको टालनेका वर्णन
  27. [अध्याय 27] अमरत्व प्राप्त करनेकी चार यौगिक साधनाएँ
  28. [अध्याय 28] छायापुरुषके दर्शनका वर्णन
  29. [अध्याय 29] ब्रह्माकी आदिसृष्टिका वर्णन
  30. [अध्याय 30] ब्रह्माद्वारा स्वायम्भुव मनु आदिकी सृष्टिका वर्णन
  31. [अध्याय 31] दैत्य, गन्धर्व, सर्प एवं राक्षसोंकी सृष्टिका वर्णन तथा दक्षद्वारा नारदके शाप- वृत्तान्तका कथन
  32. [अध्याय 32] कश्यपकी पलियोंकी सन्तानोंके नामका वर्णन
  33. [अध्याय 33] मरुतोंकी उत्पत्ति, भूतसर्गका कथन तथा उनके राजाओंका निर्धारण
  34. [अध्याय 34] चतुर्दश मन्वन्तरोंका वर्णन
  35. [अध्याय 35] विवस्वान् एवं संज्ञाका वृत्तान्तवर्णनपूर्वक अश्विनीकुमारों की उत्पत्तिका वर्णन
  36. [अध्याय 36] वैवस्वतमनुके नौ पुत्रोंके वंशका वर्णन
  37. [अध्याय 37] इक्ष्वाकु आदि मनुवंशीय राजाओंका वर्णन
  38. [अध्याय 38] सत्यव्रत- त्रिशंकु सगर आदिके जन्मके निरूपणपूर्वक उनके चरित्रका वर्णन
  39. [अध्याय 39] सगरकी दोनों पत्नियोंके वंशविस्तारवर्णनपूर्वक वैवस्वतवंशमें उत्पन्न राजाओंका वर्णन
  40. [अध्याय 40] पितृश्राद्धका प्रभाव-वर्णन
  41. [अध्याय 41] पितरोंकी महिमाके वर्णनक्रममें सप्त व्याधोंके आख्यान का प्रारम्भ
  42. [अध्याय 42] 'सप्त व्याध' सम्बन्धी श्लोक सुनकर राजा ब्रह्मदत्त और उनके मन्त्रियोंको पूर्वजन्मका स्मरण होना और योगका आश्रय लेकर उनका मुक्त होना
  43. [अध्याय 43] आचार्यपूजन एवं पुराणश्रवणके अनन्तर कर्तव्य कथन
  44. [अध्याय 44] व्यासजीकी उत्पत्तिकी कथा, उनके द्वारा तीर्थाटनके प्रसंगमें काशीमें व्यासेश्वरलिंगकी स्थापना तथा मध्यमेश्वरके अनुग्रहसे पुराणनिर्माण
  45. [अध्याय 45] भगवती जगदम्बाके चरितवर्णनक्रममें सुरथराज एवं समाधि वैश्यका वृत्तान्त तथा मधु-कैटभके वधका वर्णन
  46. [अध्याय 46] महिषासुरके अत्याचारसे पीड़ित ब्रह्मादि देवोंकी प्रार्थनासे प्रादुर्भूत महालक्ष्मीद्वारा महिषासुरका वध
  47. [अध्याय 47] शुम्भ निशुम्भसे पीड़ित देवताओंद्वारा देवीकी स्तुति तथा देवीद्वारा धूम्रलोचन, चण्ड-मुण्ड आदि असुरोंका वध
  48. [अध्याय 48] सरस्वतीदेवीके द्वारा सेनासहित शुम्भ निशुम्भका वध
  49. [अध्याय 49] भगवती उमाके प्रादुर्भावका वर्णन
  50. [अध्याय 50] दस महाविद्याओं की उत्पत्ति तथा देवीके दुर्गा, शताक्षी, शाकम्भरी और भ्रामरी आदि नामोंके पड़नेका कारण
  51. [अध्याय 51] भगवतीके मन्दिरनिर्माण, प्रतिमास्थापन तथा पूजनका माहात्म्य और उमासंहिताके श्रवण एवं पाठकी महिमा