नन्दीश्वर बोले- हे सनत्कुमार! हे सर्वज्ञ! अब शंकरजीके जिस सुखदायक चरित्रको हर्षित होकर रुद्रने ब्रह्माजीसे प्रेमपूर्वक कहा था, [उस चरित्रको सुनें] ॥ 1 ॥
शिवजी बोले - [ हे ब्रह्मन्!] वाराहकल्पके सातवें मन्वन्तरमें सम्पूर्ण लोकोंको प्रकाशित करनेवाले भगवान् कल्पेश्वर, जो तुम्हारे प्रपौत्र हैं, वैवस्वत मनुके पुत्र होंगे ॥ 2-3 ॥
हे विधे! हे ब्रह्मन्! उस समय लोकोंके कल्याणके निमित्त तथा ब्राह्मणोंके हितके लिये मैं [प्रत्येक] द्वापर युगके अन्तमें अवतार ग्रहण करूँगा ॥ 4 ॥
इस प्रकार क्रमशः युगोंके प्रवृत्त होनेपर प्रथम युग के प्रथम द्वापरयुगमें जब स्वयंप्रभु नामक व्यास होंगे, तब मैं ब्राह्मणोंके हितके लिये उस कलिके अन्तमें पार्वतीसहित श्वेत नामक महामुनिके रूपमें अवतार लूँगा ।। 5-6 ll
हे विधे! उस समय पर्वतोंमें श्रेष्ठ, रमणीय हिमालयके छागल नामक शिखरपर शिखासे युक्त श्वेत, श्वेतशिख, श्वेताश्व और श्वेतलोहित नामक मेरे चार शिष्य होंगे। वे चारों ध्यानयोगके प्रभावसे मेरे लोकको जायेंगे ll 7-8 ॥
तब [ वहाँ] मुझ अविनाशीको तत्त्वपूर्वक जानकर वे मेरे भक्त होंगे और जन्म-मृत्यु जरासे रहित तथा परम ब्रह्ममें समाधि लगानेवाले होंगे ॥ 9 ॥
हे पितामह! हे वत्स! ध्यानके बिना मनुष्य मुझे दान-धर्मादि कर्मके हेतुभूत साधनोंसे देखनेमें असमर्थ हैं ॥ 10 ॥
दूसरे द्वापरमें जब सत्य नामक प्रजापति व्यास होंगे, तब मैं कलियुगमें सुतार नामसे अवतार ग्रहण करूंगा ॥ 11 ॥उस युगमें भी दुन्दुभि, शतरूप, हषीक तथा केतुमान् नामक वेदज्ञ ब्राह्मण मेरे शिष्य होंगे ।। 12 ।।
वे चारों ध्यानयोगके प्रभावसे मेरे लोकको प्राप्त करेंगे और मुझ अव्ययको यथार्थरूपसे जानकर मुक्त हो जायेंगे ।। 13 ।।
तीसरे द्वापर युगके अन्तमें जब भार्गव [नामक ] व्यास होंगे, तब मैं दमन नामसे अवतार ग्रहण करूँगा 14 ॥ उस समय भी विशोक, विशेष, विपाप और पापनाशन नामक मेरे चार पुत्र (शिष्य) होंगे ॥ 15 ॥ हे चतुरानन! उस कलियुगमें मैं अपने शिष्योंके द्वारा व्यासकी सहायता करूँगा तथा निवृत्तिमार्गको दृढ़ करूँगा। ।। 16 ।।
चौथे द्वापरमें जब अंगिरा व्यासरूपमें प्रसिद्ध होंगे, तब मैं सुहोत्र नामसे अवतार ग्रहण करूँगा। उस समय भी महात्मा योगसाधक मेरे चार पुत्र (शिष्य) होंगे। है ब्रह्मन् ! मैं उनके नाम बता रहा हूँ। सुमुख, दुर्मुख, दुर्दम और दुरतिक्रम । हे विधे! उस समय मैं अपने शिष्योंके द्वारा व्यासकी सहायता करूँगा ll 17-19 ॥
पाँचवें द्वापरमें सविता नामक व्यास कहे गये हैं, उस समय मैं महातपस्वी कंक नामक योगीके रूपमें अवतार ग्रहण करूँगा। उस समय भी मेरे चार योगसाधक तथा महात्मा पुत्र (शिष्य) होंगे, उनके नाम मुझसे सुनिये - सनक, सनातन, प्रभु सनन्दन और सर्वव्यापी निर्मल अहंकाररहित सनत्कुमार। हे ब्रह्मन् ! उस समय भी कंक नामक मैं सविता व्यासकी सहायता करूँगा और निवृत्तिमार्गका संवर्धन करूँगा ।। 20 - 23 ॥
इसके बाद छठे द्वापरके आनेपर लोककी रचना करनेवाले तथा वेदोंका विभाग करनेवाले मृत्यु नामक व्यास होंगे। उस समय भी मैं लोकाक्षि नामसे अवतार ग्रहण करूँगा और व्यासकी सहायताके लिये निवृत्ति मार्गका वर्धन करूँगा। उस समय भी सुधामा, विरजा, संजय एवं विजय नामक मेरे चार दृढव्रती शिष्य होंगे ॥ 24 - 26 ॥हे विधे सातवें द्वापरके आनेपर जब शतक्रतु [नामक] व्यास होंगे, उस समय भी मैं विभु जैगीषव्य नामसे अवतरित होऊंगा और महायोगविचक्षण होकर काशीकी गुफाएँ दिव्य स्थानमें कुशाके आसनपर बैठकर योगमार्गको दृढ करूँगा तथा शतक्रतु व्यासकी सहायता करूंगा एवं हे विधे संसारके भयसे भोंका उद्धार करूँगा उस युगमें भी सारस्वत, योगीश, मेघवाह और सुवाहन नामक मेरे चार पुत्र (शिष्य) होंगे ॥ 27-30 ॥
आठवें द्वापरयुगके आनेपर वेदोंका विभाग करनेवाले मुनिश्रेष्ठ वसिष्ठ वेदव्यास होंगे। हे योग जाननेवालोंमें श्रेष्ठ ! उस समय में दधिवाहन नामसे अवतार ग्रहण करूँगा और व्यासकी सहायता करूँगा। उस समय कपिल, आसुरि, पंचशिख और शाल्वल नामक मेरे चार पुत्र (शिष्य) होंगे, जो मेरे ही समान योगी होंगे ॥ 31-33 ॥
हे विधे नौवें द्वापरयुगके आनेपर उसमें सारस्वत नामक मुनिश्रेष्ठ व्यास होंगे। उस समय वे व्यासजी निवृत्तिमार्गको बढ़ानेका विचार करेंगे, तब मैं ऋषभ नामसे विख्यात होकर अवतार लूँगा। उस समय पराशर, गर्ग, भार्गव एवं गिरिश नामक मेरे परम योगी शिष्य होंगे। हे प्रजापते! मैं उनके साथ योगमार्गको दृढ़ करूँगा और हे सन्मुने! मैं वेदव्यासकी सहायता करूँगा ।। 34-37 ॥
उस समय हे विधे! दयालु मैं अपने उस रूपसे बहुत-से दुःखित भक्तोंका और स्वयं आपका भी उद्धार करूँगा। हे विधे! मेरा वह ऋषभ नामक अवतार योगमार्गका प्रवर्तक, सारस्वत व्यासके मनको सन्तुष्ट करनेवाला तथा अनेक प्रकारकी लीला करनेवाला होगा ।। 38-39 ।।
मेरे उस अवतारने भद्रायु नामक राजकुमारको, जो विषके दोषसे मर गया था एवं जिसके पिताने त्याग दिया था, पुनः जीवित कर दिया था ॥ 40 ॥ उस राजकुमारके सोलह वर्षका होनेपर मेरे अंशसे उत्पन्न ऋषभ पुनः सहसा उसके घर गये ll 41 ॥ हे प्रजापते ! उस राजकुमारने कृपानिधि तथा | अति सुन्दर उन ऋषभजीका [आदरपूर्वक] पूजन किया और ऋषभजीने उसे उस समय राजयोगसे युक्त धर्मोपदेश दिया। तदनन्तर उन्होंने प्रसन्नचित्त होकर दिव्य कवच, शंख तथा प्रकाशमान खड्ग प्रदान किया, जो शत्रुओंके विनाशमें समर्थ था ॥ 42-43 ।।
तदनन्तर दीनवत्सल उन [महात्मा] ऋषभजीने उसके अंगोंमें भस्म लगाकर कृपापूर्वक बारह हजार हाथियोंका बल भी उसे प्रदान किया ॥ 44 ॥
इस प्रकार मातासहित भद्रायको भलीभाँति आश्वस्त करके तथा उन दोनोंसे पूजित होकर स्वेच्छागामी प्रभु ऋषभ चले गये ll 45 ll
हे विधे ! राजर्षि भद्रायु भी अपने शत्रुओंको जीतकर कीर्तिमालिनीसे विवाहकर धर्मानुसार राज्य करने लगे ॥ 46 ॥
मैंने इस प्रकारके प्रभाववाले, सज्जनोंको गति प्रदान करनेवाले तथा दीन-दु:खियोंके बन्धुरूप मुझ शंकरके नौवें ऋषभ अवतारका वर्णन आपसे किया ॥ 47 ॥
ऋषभका चरित्र परम पवित्र, महान्, स्वर्ग | देनेवाला यश तथा कीर्ति देनेवाला और आयुको बढ़ानेवाला है, इसे यत्नपूर्वक सुनना चाहिये ॥ 48 ॥