ऋषिगण बोले- हे महाभाग हे व्यासशिष्य ! आप सप्रमाण हमें यह बतायें कि किन-किन पुष्पोंसे पूजन करनेपर भगवान् सदाशिव कौन-कौन-सा फल प्रदान करते हैं ? ॥ 1 ॥सूतजी बोले- हे शौनकादि ऋषियो! आप आदरपूर्वक सब सुनें। मैं बड़े प्रेमसे पुष्पार्पणकी विधि बता रहा ॥ 2 ॥
देवर्षि नारदने भी इसी विधिको विधाता ब्रह्माजी से पूछा था तब उन्होंने बड़े ही प्रेमसे शिव पुष्पार्पणकी विधि बतायी थी ॥ 3 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे नारद! लक्ष्मीप्राप्तिकी इच्छावालेको कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्पसे भगवान् शिवकी पूजा करनी चाहिये हे विप्र यदि 1 एक लाखकी संख्या में इन पुष्पद्वारा भगवान् शिवकी पूजा की जाय, तो सारे पापोंका नाश होता है और लक्ष्मीकी भी प्राप्ति हो जाती है, इसमें संशय नहीं है॥ 4-5 ॥
बीस कमलोंका एक प्रस्थ बताया गया है और एक सहस्र बिल्वपत्रोंका आधा प्रस्थ कहा गया है ॥ 6 ॥
एक सहस्र शतपत्रसे आधे प्रस्थकी परिभाषा की गयी है। सोलह पलोंका एक प्रस्थ होता है और दस टंकोंका एक पल जब इसी मानसे [पत्र, पुष्प आदिको] तुलापर रखे, तो वह सम्पूर्ण अभीष्टको प्राप्त कर लेता है और यदि निष्कामभावनासे युक्त है, तो वह [ इस पूजनसे] शिवस्वरूप हो जाता है॥ 78 ll
हे मुनीश्वरो जो राज्य प्राप्त करनेका इच्छुक है, उसको दस करोड़ पार्थिव शिवलिंगोंकी पूजाके द्वारा भगवान् शंकरको प्रसन्न करना चाहिये ॥ 9 ॥
प्रत्येक पार्थिव लिंगपर मन्त्रसहित पुष्प, खण्डरहित धानके अक्षत और सुगन्धित चन्दन चढ़ाकर अखण्ड जलधारासे अभिषेक करना चाहिये। तदनन्तर प्रत्येक पार्थिव लिंगपर मन्त्रसहित अच्छे-अच्छे बिल्वपत्र अथवा शतपत्र और कमलपुष्प समर्पित करना चाहिये । प्राचीन ऋषियोंने कहा है कि यदि शिवलिंगपर शंखपुष्पीके फूल चढ़ाये जायँ, तो इस लोक और परलोकमें सभी कामनाओंका दिव्य फल प्राप्त होता है ॥ 10-12 ॥
धूप, दीप, नैवेद्य, अर्ध्य, आरती, प्रदक्षिणा नमस्कार, क्षमाप्रार्थना और विसर्जन करके जिसने | ब्राह्मणभोजन करा दिया, उसे भगवान् शंकर अवश्य ही राज्य प्रदान करते हैं। जो मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बननेका इच्छुक है, वह [उपर्युक्त कही गयी विधिके अनुसार]उसके आधे अर्थात् पाँच करोड़ पार्थिव शिवलिंगों का | यथाविधि पूजन करे। कारागारमें पड़े मनुष्यको एक लाख पार्थिवलिंगोंसे भगवान् शंकरकी पूजा करनी चाहिये ।। 13 - 15 ॥
यदि रोगग्रस्त हो, तो उसे उस संख्याके आधे | अर्थात् पचास हजार पार्थिव लिंगोंसे शिवका पूजन | करना चाहिये। कन्या चाहनेवाले मनुष्यको उसके आधे अर्थात् पच्चीस हजार पार्थिव लिंगोंसे शिवका | पूजन करना चाहिये ॥ 16 ॥
जो विद्या प्राप्त करनेकी इच्छा रखता है, उसे चाहिये कि वह उसके भी आधे पार्थिव लिंगोंसे शिवकी अर्चना करे। जो वाणीका अभिलाषी हो, उसे घीसे शिवकी पूजा करनी चाहिये ॥ 17 ॥
अभिचारादि कर्मोंमें कमलपुष्पोंसे शिवपूजनका विधान है। सामन्त राजाओंपर विजय प्राप्त करनेके लिये एक करोड़ कमलपुष्पोंसे शिवका पूजन करना प्रशस्त माना गया है। राजाओंको अपने अनुकूल करनेके लिये दस लाख कमलपुष्पोंसे पूजन करनेका विधान है ॥ 18-19 ॥
यश प्राप्त करनेके लिये उतनी ही संख्या कही गयी है और वाहन आदिकी प्राप्तिके लिये एक हजार पार्थिव लिंगोंकी पूजा करनी चाहिये। मोक्ष | चाहनेवालेको पाँच करोड़ कमलपुष्पोंसे उत्तम भक्तिके | साथ शिवकी पूजा करनी चाहिये ॥ 20 ॥
ज्ञान चाहनेवाला एक करोड़ कमलपुष्पसे लोक कल्याणकारी शिवका पूजन करे और शिवका दर्शन प्राप्त करनेका इच्छुक उसके आधे कमलपुष्पसे उनकी पूजा करे। कामनाओंकी पूर्तिके लिये | महामृत्युंजय मन्त्रका जप भी करना चाहिये। पाँच | लाख महामृत्युंजय मन्त्रका जप करनेपर भगवान् | सदाशिव निश्चित ही प्रत्यक्ष हो जाते हैं ॥ 21-22 ॥
एक लाखके जपसे शरीरकी शुद्धि होती हैं, दूसरे लाखके जपसे पूर्वजन्मकी बातोंका स्मरण होता है, तीसरे लाखके जपसे सम्पूर्ण काम्य वस्तुएँ प्राप्त | होती हैं। चौथे लाखका जप होनेपर भगवान् शिवकादर्शन होता है और जब पाँचवें लाखका जप पूरा होता है, तब भगवान् शिव जपका फल निःसन्देह प्रदान करते हैं। इसी मन्त्रका दस लाख जप हो जाय, तो सम्पूर्ण फलकी सिद्धि होती है 23-24 ॥
जो मोक्षकी अभिलाषा रखता है, वह एक लाख दभौंद्वारा शिवका पूजन करे। मुनिश्रेष्ठ । शिवकी पूजामें सर्वत्र लाखकी ही संख्या समझनी चाहिये ll 25 ॥
आयुकी इच्छावाला पुरुष एक लाख दूर्वाद्वारा पूजन करे जिसे पुत्रकी अभिलाषा हो, वह धतूरेके एक लाख फूलोंसे पूजा करे ।। 26 ।।
लाल डंठलवाला धतूरा पूजनमें शुभदायक माना गया है। अगस्त्यके फूलोंसे पूजा करनेवाले पुरुषको महान् यशकी प्राप्ति होती है ॥ 27 ॥
यदि तुलसीदलसे शिवकी पूजा करे, तो उपासकको भोग और मोक्षका फल प्राप्त होता है। लाल और सफेद मदार, अपामार्ग और कहारके फूलोंद्वारा पूजा करनेसे प्रतापकी प्राप्ति होती है ॥ 28 ॥
अड़हुलके फूलोंसे की हुई पूजा शत्रुविनाशक कही गयी है। करवीरके एक लाख फूल यदि शिवपूजनके उपयोग में लाये जायें, तो वे यहाँ रोगोंका उच्चाटन करनेवाले होते हैं ॥ 29 ॥
1. बन्धूक [गुलदुपहरिया ] के फूलोंद्वारा [पूजन करनेसे] आभूषणकी प्राप्ति होती है। चमेलीसे शिवकी पूजा करके मनुष्य वाहनोंको उपलब्ध करता है, इसमें संशय नहीं है। अतसीके फूलोंसे महादेवजीका पूजन करनेवाला पुरुष भगवान् विष्णुका प्रिय हो जाता है ॥ 30 ॥
शमीपत्रोंसे [पूजा करके] मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। बेलाके फूल चढ़ानेपर भगवान् शिव अत्यन्त शुभलक्षणा पत्नी प्रदान करते हैं ॥ 31 ॥
जूहीके फूलोंसे पूजा की जाय, तो घरमें कभी अन्नकी कमी नहीं होती। कनेरके फूलोंसे पूजा करनेपर मनुष्योंको वस्त्र सम्पदाकी प्राप्ति होती है ॥ 32 ॥ सेंदुआरि या शेफालिकाके फूलोंसे लोकमें शिवका पूजन किया जाय, तो मन निर्मल होता है। एक लाख बिल्वपत्रोंसे पूजन करनेपर मनुष्य अपनी सारी कामनाओंको प्राप्त कर लेता है ॥ 33 ॥हरसिंगारके फूलोंसे पूजा करनेपर सुख-सम्पत्तिकी वृद्धि होती है। ऋतुमें पैदा होनेवाले फूल [यदि शिवकी पूजामें समर्पित किये जायँ, तो वे] मोक्ष देनेवाले होते हैं, इसमें संशय नहीं है ॥ 34 ॥
राईके फूल शत्रुओंके लिये अनिष्टकारी होते हैं। इन फूलोंको एक लाखकी संख्यामें शिवके ऊपर चढ़ाया जाय, तो भगवान् शिव प्रचुर फल प्रदान करते हैं ॥ 35 ॥
चम्पा और केवड़ेको छोड़कर अन्य कोई ऐसा फूल नहीं है, जो भगवान् शिवको प्रिय न हो, अन्य सभी पुष्पोंको समर्पित करना चाहिये ॥ 36 ॥
सत्तम! अब इसके अनन्तर शंकरके पूजनमें धान्योंका प्रमाण तथा [उनके अर्पणका] फल - यह सब प्रेमपूर्वक सुनिये ॥ 37 ॥
हे विप्र ! महादेवके ऊपर परम भक्तिसे अखण्डित चावल चढ़ानेसे मनुष्योंकी लक्ष्मी बढ़ती है ॥ 38 ॥
साढ़े छः प्रस्थ और दो पलभर चावल संख्यामें एक लाख हो जाते है। ऐसा लोगोंका कहना है ॥ 39 ॥
रुद्रप्रधान मन्त्रसे पूजा करके भगवान् शिवके ऊपर बहुत सुन्दर वस्त्र चढ़ाये और उसीपर चावल रखकर समर्पित करे, तो उत्तम है ॥ 40 ॥
तत्पश्चात् उसके ऊपर गन्ध, पुष्प आदिके साथ एक श्रीफल चढ़ाकर धूप आदि निवेदन करे, तो पूजाका पूरा-पूरा फल प्राप्त होता है ॥ 41 ॥
प्रजापति देवतासे चिह्नांकित दो चाँदीके रुपये अथवा माषसंख्यासे उपदेष्टाको दक्षिणा देनी चाहिये अथवा यथाशक्ति जितनी दक्षिणा हो सके, उतनी दक्षिणा बतायी गयी है ॥ 42 ॥
वहाँ शिवके समीप बारह ब्राह्मणोंको भोजन कराये। | इससे मन्त्रपूर्वक सांगोपांग लक्षपूजा सम्पन्न होती है। जहाँ सौ मन्त्र जपनेकी विधि हो, वहाँ एक सौ आठ मन्त्र जपनेका विधान बताया गया है ।। 431/2 ॥
एक लाख पल तिलोंका अर्पण पातकोंका नाश करनेवाला होता है। ग्यारह पल (64 माशा) में एक | लाखकी संख्या में तिल होते हैं। [ अतः इस परिमाणके अनुसार ] तिलद्वारा अपने कल्याणके लिये पूर्वकी भाँति पूर्वोक्त विधिसे शिवकी पूजा करनी चाहिये ।। 44-45 ॥इस अवसरपर मनुष्यको ब्राह्मणोंको भोजन कराना चाहिये। इससे महापातकजन्य दुःख निश्चित ही दूर हो जाता है ॥ 46 ॥
इसी प्रकार एक लाख यवसे भी की गयी शिवकी पूजा उत्तम कही गयी है। साढ़े आठ प्रस्थ और दो पल (साढ़े आठ सेर तेरह माशा) यव प्राचीन परिमाणके अनुसार संख्यामें एक लाख सबके बराबर होते हैं। मुनियोंने यवके द्वारा की गयी पूजाको स्वर्गका सुख प्रदान करनेवाली बताया है ॥ 47-48 ।।
फलप्राप्तिके इच्छुक लोगोंको (यवपूजा करनेके पश्चात्) ब्राह्मणोंके लिये प्रजापति देवताके द्रव्यभूत | चाँदीके रुपये भी दक्षिणारूपमें देना चाहिये। गेहूँ भी की गयी शिवपूजा प्रशस्त है यदि एक लाख गेहूँ शिवकी पूजा की जाय, तो उसकी सन्ततिकी अभिवृद्धि होती है। विधानतः आधा द्रोण (आठ सेर) परिमाणमें गेहूँकी संख्या एक लाख होती है शेष विधान विधिपूर्वक करने चाहिये ll 49-50 ।।
(एक लाख) मूंगसे पूजन किये जानेपर भगवान् शिव सुख देते हैं। साढ़े सात प्रस्थ और दो पल (साढ़े सात सेर तेरह माशा भर) मूँग संख्यामें एक लाख होती है-ऐसा प्राचीन लोगोंने कहा है। इसमें ग्यारह ब्राह्मणोंको भोजन कराना चाहिये ।। 51-52 ॥
प्रियंगु ( काकुन) के द्वारा धर्माध्यक्ष परमात्मा शिवकी पूजा करनेपर धर्म, अर्थ और कामकी अभिवृद्धि होती है। वह पूजा सभी सुखोंको देनेवाली है। प्राचीन लोगोंने कहा है कि एक प्रस्थमें एक लाख प्रियंगु होते हैं। इसके अनन्तर बारह ब्राह्मणोंको भोजन कराना बताया गया है ।। 53-54 ll
राईसे की गयी शिवपूजा शत्रुविनाशक कही गयी है। बीस पल (30 माशा) भर सरसोंके एक लाख दाने हो जाते हैं। उन एक लाख सरसोंके दानोंसे की गयी शिवकी पूजा निश्चित ही शत्रुके लिये घातक होती है-ऐसा कहा गया है। अरहरकी पत्तियोंसे शिवजीको सुशोभित करके उनका पूजन करना चाहिये ।। 55-56 ।।
शिवकी पूजा करनेके पश्चात् एक गौ और एक बैलका दान करना चाहिये। मरीचि (काली मिर्च) से की गयी शिवकी पूजा शत्रुका नाश करनेवाली बतायीगयी है। अरहरकी पत्तियोंसे रँग करके शिवकी पूजा करनी चाहिये। यह पूजा नाना प्रकारके सुख एवं सभी अभीष्ट फलोंको देनेवाली है ।। 57-58 ।।
हे मुनिसत्तम! [शिवपूजामें] इस प्रकारसे प्रयुक्त धान्योंका परिमाण तो हमने आपलोगोंको बता दिया है। हे मुनीश्वर ! अब प्रेमपूर्वक एक लाख पुष्पोंका परिमाण भी सुनें ॥ 59 ॥
सूक्ष्म मानको प्रदर्शित करनेवाले व्यासजीने एक प्रस्थमें शंखपुष्पीके पुष्पोंकी संख्या एक लाख बतायी है ॥ 60 ॥
ग्यारह प्रस्थमें चमेलीके फूलोंका मान एक लाख कहा गया है। इतना ही जूहीके फूलोंका मान है और उसका आधा राईके फूलोंका मान होता है ॥ 61 ॥
मल्लिका [मालती]-के लाख फूलोंका पूर्ण मान बीस प्रस्थ है। तिलके पुष्पोंका मान मल्लिकाके मानकी अपेक्षा एक प्रस्थ कम होता है ॥ 62 ॥
कनेरके पुष्पोंका मान तिलके पुष्पोंके मानका तिगुना कहा गया है। पण्डितोंने निर्गुण्डीके पुष्पोंका भी उतना ही मान बताया है ॥ 63 ॥
केवड़ा, शिरीष तथा बन्धुजीव (दुपहरिया) के एक लाख पुष्पोंका मान दस प्रस्थके बराबर होता है ॥ 64 ॥
इस तरह अनेक प्रकारके मानको दृष्टिमें रखकर सभी कामनाओंकी सिद्धिके लिये तथा मुक्ति प्राप्त करनेके लिये कामनारहित होकर शिवकी पूजा करनी चाहिये ll 65 ॥
अब मैं जलधारा-पूजाके महान् फलको कह रहा हूँ, जिसके श्रवणमात्रसे ही मनुष्योंका कल्याण हो जाता है ॥ 66 ॥ भक्तिपूर्वक सदाशिवकी विधिवत् पूजा करनेके पश्चात् उन्हें जलधारा समर्पित करे ॥ 67 ॥ [सन्निपातादि] ज्वरमें होनेवाले प्रलापकी शान्तिके लिये भगवान् शिवको दी जानेवाली कल्याणकारी जलधारा शतरुद्रिय मन्त्रसे, एकादश रुद्रसे, रुद्रमन्त्रोंके जपसे, पुरुषसूक्तसे, छः ऋचावाले रुद्रसूक्त, महामृत्युंजयमन्त्र से, गायत्रीमन्त्रसे अथवा शिवके शास्त्रोक्त नामोंके आदिमें प्रणव और अन्तमें नमः पद जोड़कर | बने हुए मन्त्रोंद्वारा अर्पित करनी चाहिये ॥ 68-70 ॥सुख और सन्तानकी वृद्धिके लिये जलधाराद्वारा पूजन उत्तम होता है। उत्तम भस्म धारण करके उपासकको प्रेमपूर्वक नाना प्रकारके शुभ एवं दिव्य द्रव्योंद्वारा शिवकी पूजा करनी चाहिये और शिवपर | उनके सहस्रनाम मन्त्रोंसे घृतकी धारा गिरानी चाहिये । ऐसा करनेपर वंशका विस्तार होता है, इसमें संशय नहीं है ।। 71-72 ।।
इस प्रकार यदि दस हजार मन्त्रोंद्वारा शिवजीकी पूजा की जाय तो प्रमेह रोगकी शान्ति होती है और उपासकको मनोवांछित फलकी प्राप्ति हो जाती है। यदि कोई नपुंसकताको प्राप्त हो तो वह घीसे शिवजीकी भलीभाँति पूजा करे। इसके पश्चात् ब्राह्मणोंको भोजन कराये, साथ ही उसके लिये मुनीश्वरोंने प्राजापत्यव्रतका भी विधान किया है ॥ 73 ॥
यदि बुद्धि जड़ हो जाय, तो उस अवस्थामें पूजकको केवल शर्करामिश्रित दुग्धकी धारा चढ़ानी चाहिये। ऐसा करनेपर उसकी बृहस्पतिके समान उत्तम बुद्धि हो जाती है। जबतक दस हजार मन्त्र न हो जायँ, तबतक दुग्धधाराद्वारा भगवान् शिवका पूजन करते रहना चाहिये ।। 74-75 ।।
जब शरीरमें अकारण ही उच्चाटन होने लगे जी उचट जाय, जहाँ कहीं भी प्रेम न रहे, दुःख बढ़ जाय और अपने घरमें सदा कलह होने लगे, तब पूर्वोक्त रूपसे दूधकी धारा चढ़ानेसे सारा दुःख नष्ट हो जाता है ।। 76-77 ॥ शत्रुओंको सन्तप्त करनेके लिये पूर्ण प्रयत्नके साथ भगवान् शंकरके ऊपर तेलकी धारा अर्पित करनी चाहिये। ऐसा करनेपर निश्चित ही कर्मकी सिद्धि होती है ॥ 78 ॥
सुगन्धित तेलकी धारा अर्पित करनेपर भोगोंकी वृद्धि होती है। यदि मधुकी धारासे शिवकी पूजा की जाय, तो राजयक्ष्माका रोग दूर हो जाता है। शिवजीके ऊपर ईखके रसकी धारा चढ़ायी जाय, तो वह भी सम्पूर्ण आनन्दकी प्राप्ति करानेवाली होती है ।। 79-80 ।।
गंगाजलकी धारा तो भोग और मोक्ष दोनों फलोंको देनेवाली है। ये सब जो-जो धाराएँ बतायी गयी हैं, इन सबको मृत्युंजय मन्त्रसे चढ़ाना चाहिये,उसमें भी उक्त मन्त्रका विधानतः दस हजार जप करना चाहिये और ग्यारह ब्राह्मणोंको भोजन कराना चाहिये ll 81-82 ॥
हे मुनीश्वर ! जो आपने पूछा था, वह सब मैंने आपको बता दिया। संसारमें सदाशिवकी यह पूजा समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेमें समर्थ और सफल है ॥ 83 ॥
भक्तिपूर्वक यथाविधि स्कन्द और उमाके सहित भगवान् शम्भुकी पूजा करके भक्त जो फल प्राप्त करता है, उसे जैसा सुना है, वैसा ही कह रहा हूँ ॥ 84 ॥ वह इस लोकमें पुत्र-पौत्र आदिके साथ समस्त सुखोंका उपभोग करके अन्तमें सभी सुखोंको देनेवाले शिवलोकको जाता है ॥ 85 ॥
वह भक्त वहाँ करोड़ों सूर्यके समान देदीप्यमान | तथा सभी कामनाओंको पूर्ण करनेवाले विमानोंपर गान-वाद्ययन्त्रोंसे युक्त रुद्रकन्याओंसे घिरकर बैठे हुए शिवरूपमें प्रलयपर्यन्त क्रीड़ा करता है। तदनन्तर अविनाशी परम ज्ञानको प्राप्त करके मोक्षको पा लेता है ॥ 86 ॥