नारदजी बोले - हे विधे! हे प्राज्ञ ! हे महाबुद्धिमान् ! हे वक्ताओंमें श्रेष्ठ! इसके बाद विष्णुके सद्गुरु शिवका क्या चरित्र हुआ, उसको आप मुझसे कहिये ॥ 1 ॥
आपने मेनाके पूर्वजन्मकी शुभ एवं अद्भुत कथा कही। उनके विवाहप्रसंगको भी मैंने भलीभाँति सुन लिया, अब उनके उत्तम चरित्रको कहिये ॥ 2 ॥
हिमालयने मेनाके साथ विवाह करनेके बाद क्या किया ? जगदम्बा पार्वतीने उनसे किस प्रकार जन्म लिया। और कठोर तपकर किस प्रकार शिवजीको पतिरूपमें प्राप्त किया? यह सब बताइये और हे ब्रह्मन्! शंकरके यशका विस्तारसे वर्णन कीजिये ।। 3-4 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे मुने! आप शंकरके कल्याणकारी उत्तम यशको सुनिये, जिसे सुनकर ब्रह्महत्यारा भी शुद्ध हो जाता है और सभी मनोरथोंको प्राप्त कर लेता है ॥ 5 ॥
हे नारद! जब मेनाके साथ विवाह करके हिमवान् घर गये, तब तीनों लोकोंमें बड़ा भारी उत्सव हुआ ॥ 6 ॥हिमालयने भी अत्यन्त प्रसन्न होकर परमोत्सव मनाया और सद्बुद्धिसे ब्राह्मणों, बन्धुजनी एवं अन्य श्रेष्ठ लोगोंका अर्चन किया ॥ 7 ॥
तत्पश्चात् सभी सन्तुष्ट ब्राह्मण, बन्धुजन तथा अन्यलोग उन्हें उत्तम आशीर्वाद देकर अपने- अपने निवासस्थानको चले गये। हिमालय भी अपन प्रसन्न होकर अपने सुखदायक घरमें अन्य रम्य | स्थानमें तथा नन्दन आदि वनोंमें भी मेनाके साथ रमण करने लगे ।। 8-9 ।।
हे मुने! उसी समय विष्णु आदि समस्त देवता और महात्मा मुनि गिरिराजके पास गये ॥ 10 ॥ गिरिराजने उन देवताओंको आया हुआ देखकर प्रसन्नतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और अपने भाग्यकी सराहना करते हुए भक्तिभावसे उनका सत्कार किया ॥ 11 ॥
हाथ जोड़कर मस्तक झुकाये हुए उन्होंने उत्तम भक्तिसे स्तुति की। हिमालयके शरीरमें महान् रोमांच हो आया और उनके नेत्रोंसे प्रेमके आँसू बहने लगे ॥ 12 ॥
हे मुने। तब हिमालय प्रसन्न मनसे अत्यन्त प्रेमपूर्वक प्रणाम करके और विनीतभावसे खड़े हो विष्णु आदि देवताओंसे कहने लगे- ॥ 13 ॥
हिमाचल बोले- आज मेरा जन्म सफल हो गया, आज मेरी महान् तपस्या सफल हुई, आज मेरा ज्ञान सफल हुआ और आज मेरी क्रियाएँ सफल हो गयीं ॥ 14 ॥
आज मैं धन्य हो गया, मेरी समस्त भूमि धन्य हो गयी, मेरा कुल धन्य हो गया, मेरी स्त्री तथा मेरा सब कुछ धन्य हो गया, इसमें संशय नहीं है क्योंकि आप सभी लोग एक साथ मिलकर एक ही समय यहाँ पधारे हैं। मुझे अपना सेवक समझकर आपलोग प्रसन्नतापूर्वक उचित कार्यके लिये आज्ञा दें ।। 15-16 ।।
ब्रह्माजी बोले- तब हिमालयके इस वचनको | सुनकर विष्णु आदि वे देवता अपने कार्यकी सिद्धिको मानकर प्रसन्न होकर कहने लगे- ॥ 17 ॥
देवता बोले- हे महाप्राज्ञ हिमालय हमारा | हितकारक वचन सुनिये, हम सब लोग जिस कामके लिये यहाँ आये हैं, उसे प्रसन्नतापूर्वक बता रहे हैं।। 183 llहे गिरे। पहले जो जगदम्बा उमा दक्षकन्या | सतीके रूपमें उत्पन्न हुई थीं और रुद्रपत्नी होकर चिरकालतक इस भूतलपर क्रीड़ा करती रहीं, वे ही जगदम्बा अपने पितासे अनादर पाकर अपनी प्रतिज्ञाका स्मरण करके [ यज्ञमें] शरीरका त्यागकर अपने परम धामको चली गयीं ॥ 19-20 ॥
हे हिमगिरे। यह कथा लोकमें विख्यात है और आपको भी विदित है अब ऐसा होनेपर (आपके यहाँ उनके उत्पन्न होनेपर) सभी देवगणोंका तथा आपका भी बहुत लाभ होगा और वे सभी देवतागण भी आपके वशमें हो जायेंगे ।। 21-22 ॥
ब्रह्माजी बोले- उन विष्णु आदि देवताओंकी यह बात सुनकर गिरिराजने उनको आदर देनेके लिये नहीं, अपितु स्वयं प्रसन्नचित्त होकर 'तथास्तु' ऐसा कहा ।। 23 ।।
तत्पश्चात् वे देवता [ उमाको प्रसन्न करनेकी] उस विधिको हिमालयसे आदरपूर्वक कहकर स्वयं शंकरप्रिया उमाकी शरणमें गये ॥ 24 ll
वे देवता उत्तम स्थानपर स्थित होकर मनसे जगदम्बाका स्मरण करने लगे और अनेक बार उन्हें प्रणामकर श्रद्धाके साथ उनकी स्तुति करने लगे ॥ 25 ॥ देवता बोले- हे देवि! हे उमे! हे जगन्मातः ! शिवलोकमें निवास करनेवाली हे सदाशिवप्रिये! हे दुर्गे! हे महेश्वरि ! हम आपको प्रणाम करते हैं ॥ 26 ॥ हमलोग श्रीशक्ति, पावन, शान्त, पुष्टिरूपिणी, परम तथा महत् और अव्यक्तरूपिणी [ आपको ] भक्तिपूर्वक प्रणाम करते हैं॥ 27 ll
कल्याणरूपिणी, कल्याण करनेवाली, शुद्ध, स्थूल, सूक्ष्म, सबका परम आश्रय और अन्तर्विद्या तथा सुविद्यासे प्रसन्न होनेवाली आपको हम नमस्कार करते हैं ॥ 28 ॥ आप ही श्रद्धा हैं, आप ही धृति हैं, आप ही श्री हैं, आप ही सर्वगोचरा हैं, सूर्यमें रहनेवाली प्रकाशरूपा आप ही हैं तथा आप अपने प्रपंचको प्रकाशित करनेवाली हैं ॥ 29 ॥
जो ब्रह्माण्डमें तथा समस्त जीवोंमें रहनेवाली हैं। और जो ब्रह्मासे लेकर समस्त तृणपर्यन्त संसारको तृप्त करती हैं, उन्हें हम प्रणाम करते हैं ।। 30 ।।आप ही गायत्री हैं, आप ही वेदमाता सावित्री एवं सरस्वती हैं, आप ही समस्त जगत्की वार्ता हैं, आप ही वेदत्रयी एवं धर्मस्वरूपा हैं ॥ 31 ॥ आप ही समस्त प्राणियोंमें निद्रा, क्षुधा, तृप्ति,
तृष्णा, कान्ति, छवि तथा तुष्टिरूपसे विराजमान हैं। आप सदा सबको आनन्द देनेवाली हैं ॥ 32 ॥
पुण्यकर्ताओंमें आप लक्ष्मीरूपा हैं, पापियोंको दण्ड देनेके लिये आप ज्येष्ठा (अलक्ष्मी) हैं। आप सम्पूर्ण जगत्की शान्ति, धात्री तथा प्राणपोषिणी माता हैं ॥ 33 ॥ आप पाँचों भूतोंके सारतत्त्वको प्रकट करनेवाली
तत्त्वस्वरूपा हैं। आप ही नीतिज्ञोंकी नीति तथा
व्यवसायरूपिणी हैं ॥ 34 ॥
आप ही सामवेदकी गीतिस्वरूपा हैं, आप ही यजुर्वेदकी ग्रन्थि हैं, आप ही ऋग्वेदकी ऋचारूप स्तुति तथा अथर्ववेदकी मात्रा हैं और आप ही मोक्षस्वरूपा हैं ॥ 35 ॥
जो सभी देवगणोंकी शक्ति हैं, तमोमयी हैं, एकमात्र धारण-पोषण गुणोंसे देखनेमें आती हैं, रजोगुणके प्रपंचसे केवल सृष्टिरूपा हैं तथा जिन्हें हमने कल्याणकारिणी सुना है, उनकी हम स्तुति करते हैं ॥ 36 ॥
कराल संसारसागरके महान् दुःखोंसे पार करानेवाली पालरहित नौकारूपिणी, अष्टांगयोगके पालनरूपी क्रीडामें दक्ष और विन्ध्यपर्वतपर निवास करनेवाली उन भगवतीको हम प्रणाम करते हैं ॥ 37 ll
जो प्राणियोंके नासिका, नेत्र, मुख, भुजा, वक्षःस्थल एवं मनमें प्रतिष्ठित होकर सदा धैर्यपूर्वक सुख प्रदान करती हैं, जो संसारके कल्याणके लिये सुखकारी निद्रारूपमें प्रवृत्त होती हैं, वे संसारकी स्थिति तथा पालनके लिये हमारे ऊपर प्रसन्न हों ॥ 38 ॥
प्रकार जगदम्बा | महेश्वरी उमा सतीकी स्तुति करके [अपने] हृदयमें विशुद्ध प्रेमलिये वे सब देवता उनके दर्शनकी इच्छासे ब्रह्माजी बोले- इस वहाँ खड़े रहे ॥ 39 ॥