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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 3 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 3

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विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना

नारदजी बोले - हे विधे! हे प्राज्ञ ! हे महाबुद्धिमान् ! हे वक्ताओंमें श्रेष्ठ! इसके बाद विष्णुके सद्गुरु शिवका क्या चरित्र हुआ, उसको आप मुझसे कहिये ॥ 1 ॥

आपने मेनाके पूर्वजन्मकी शुभ एवं अद्भुत कथा कही। उनके विवाहप्रसंगको भी मैंने भलीभाँति सुन लिया, अब उनके उत्तम चरित्रको कहिये ॥ 2 ॥

हिमालयने मेनाके साथ विवाह करनेके बाद क्या किया ? जगदम्बा पार्वतीने उनसे किस प्रकार जन्म लिया। और कठोर तपकर किस प्रकार शिवजीको पतिरूपमें प्राप्त किया? यह सब बताइये और हे ब्रह्मन्! शंकरके यशका विस्तारसे वर्णन कीजिये ।। 3-4 ॥

ब्रह्माजी बोले- हे मुने! आप शंकरके कल्याणकारी उत्तम यशको सुनिये, जिसे सुनकर ब्रह्महत्यारा भी शुद्ध हो जाता है और सभी मनोरथोंको प्राप्त कर लेता है ॥ 5 ॥

हे नारद! जब मेनाके साथ विवाह करके हिमवान् घर गये, तब तीनों लोकोंमें बड़ा भारी उत्सव हुआ ॥ 6 ॥हिमालयने भी अत्यन्त प्रसन्न होकर परमोत्सव मनाया और सद्बुद्धिसे ब्राह्मणों, बन्धुजनी एवं अन्य श्रेष्ठ लोगोंका अर्चन किया ॥ 7 ॥

तत्पश्चात् सभी सन्तुष्ट ब्राह्मण, बन्धुजन तथा अन्यलोग उन्हें उत्तम आशीर्वाद देकर अपने- अपने निवासस्थानको चले गये। हिमालय भी अपन प्रसन्न होकर अपने सुखदायक घरमें अन्य रम्य | स्थानमें तथा नन्दन आदि वनोंमें भी मेनाके साथ रमण करने लगे ।। 8-9 ।।

हे मुने! उसी समय विष्णु आदि समस्त देवता और महात्मा मुनि गिरिराजके पास गये ॥ 10 ॥ गिरिराजने उन देवताओंको आया हुआ देखकर प्रसन्नतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और अपने भाग्यकी सराहना करते हुए भक्तिभावसे उनका सत्कार किया ॥ 11 ॥

हाथ जोड़कर मस्तक झुकाये हुए उन्होंने उत्तम भक्तिसे स्तुति की। हिमालयके शरीरमें महान् रोमांच हो आया और उनके नेत्रोंसे प्रेमके आँसू बहने लगे ॥ 12 ॥

हे मुने। तब हिमालय प्रसन्न मनसे अत्यन्त प्रेमपूर्वक प्रणाम करके और विनीतभावसे खड़े हो विष्णु आदि देवताओंसे कहने लगे- ॥ 13 ॥

हिमाचल बोले- आज मेरा जन्म सफल हो गया, आज मेरी महान् तपस्या सफल हुई, आज मेरा ज्ञान सफल हुआ और आज मेरी क्रियाएँ सफल हो गयीं ॥ 14 ॥

आज मैं धन्य हो गया, मेरी समस्त भूमि धन्य हो गयी, मेरा कुल धन्य हो गया, मेरी स्त्री तथा मेरा सब कुछ धन्य हो गया, इसमें संशय नहीं है क्योंकि आप सभी लोग एक साथ मिलकर एक ही समय यहाँ पधारे हैं। मुझे अपना सेवक समझकर आपलोग प्रसन्नतापूर्वक उचित कार्यके लिये आज्ञा दें ।। 15-16 ।।

ब्रह्माजी बोले- तब हिमालयके इस वचनको | सुनकर विष्णु आदि वे देवता अपने कार्यकी सिद्धिको मानकर प्रसन्न होकर कहने लगे- ॥ 17 ॥

देवता बोले- हे महाप्राज्ञ हिमालय हमारा | हितकारक वचन सुनिये, हम सब लोग जिस कामके लिये यहाँ आये हैं, उसे प्रसन्नतापूर्वक बता रहे हैं।। 183 llहे गिरे। पहले जो जगदम्बा उमा दक्षकन्या | सतीके रूपमें उत्पन्न हुई थीं और रुद्रपत्नी होकर चिरकालतक इस भूतलपर क्रीड़ा करती रहीं, वे ही जगदम्बा अपने पितासे अनादर पाकर अपनी प्रतिज्ञाका स्मरण करके [ यज्ञमें] शरीरका त्यागकर अपने परम धामको चली गयीं ॥ 19-20 ॥

हे हिमगिरे। यह कथा लोकमें विख्यात है और आपको भी विदित है अब ऐसा होनेपर (आपके यहाँ उनके उत्पन्न होनेपर) सभी देवगणोंका तथा आपका भी बहुत लाभ होगा और वे सभी देवतागण भी आपके वशमें हो जायेंगे ।। 21-22 ॥

ब्रह्माजी बोले- उन विष्णु आदि देवताओंकी यह बात सुनकर गिरिराजने उनको आदर देनेके लिये नहीं, अपितु स्वयं प्रसन्नचित्त होकर 'तथास्तु' ऐसा कहा ।। 23 ।।

तत्पश्चात् वे देवता [ उमाको प्रसन्न करनेकी] उस विधिको हिमालयसे आदरपूर्वक कहकर स्वयं शंकरप्रिया उमाकी शरणमें गये ॥ 24 ll

वे देवता उत्तम स्थानपर स्थित होकर मनसे जगदम्बाका स्मरण करने लगे और अनेक बार उन्हें प्रणामकर श्रद्धाके साथ उनकी स्तुति करने लगे ॥ 25 ॥ देवता बोले- हे देवि! हे उमे! हे जगन्मातः ! शिवलोकमें निवास करनेवाली हे सदाशिवप्रिये! हे दुर्गे! हे महेश्वरि ! हम आपको प्रणाम करते हैं ॥ 26 ॥ हमलोग श्रीशक्ति, पावन, शान्त, पुष्टिरूपिणी, परम तथा महत् और अव्यक्तरूपिणी [ आपको ] भक्तिपूर्वक प्रणाम करते हैं॥ 27 ll

कल्याणरूपिणी, कल्याण करनेवाली, शुद्ध, स्थूल, सूक्ष्म, सबका परम आश्रय और अन्तर्विद्या तथा सुविद्यासे प्रसन्न होनेवाली आपको हम नमस्कार करते हैं ॥ 28 ॥ आप ही श्रद्धा हैं, आप ही धृति हैं, आप ही श्री हैं, आप ही सर्वगोचरा हैं, सूर्यमें रहनेवाली प्रकाशरूपा आप ही हैं तथा आप अपने प्रपंचको प्रकाशित करनेवाली हैं ॥ 29 ॥

जो ब्रह्माण्डमें तथा समस्त जीवोंमें रहनेवाली हैं। और जो ब्रह्मासे लेकर समस्त तृणपर्यन्त संसारको तृप्त करती हैं, उन्हें हम प्रणाम करते हैं ।। 30 ।।आप ही गायत्री हैं, आप ही वेदमाता सावित्री एवं सरस्वती हैं, आप ही समस्त जगत्की वार्ता हैं, आप ही वेदत्रयी एवं धर्मस्वरूपा हैं ॥ 31 ॥ आप ही समस्त प्राणियोंमें निद्रा, क्षुधा, तृप्ति,
तृष्णा, कान्ति, छवि तथा तुष्टिरूपसे विराजमान हैं। आप सदा सबको आनन्द देनेवाली हैं ॥ 32 ॥

पुण्यकर्ताओंमें आप लक्ष्मीरूपा हैं, पापियोंको दण्ड देनेके लिये आप ज्येष्ठा (अलक्ष्मी) हैं। आप सम्पूर्ण जगत्की शान्ति, धात्री तथा प्राणपोषिणी माता हैं ॥ 33 ॥ आप पाँचों भूतोंके सारतत्त्वको प्रकट करनेवाली
तत्त्वस्वरूपा हैं। आप ही नीतिज्ञोंकी नीति तथा
व्यवसायरूपिणी हैं ॥ 34 ॥

आप ही सामवेदकी गीतिस्वरूपा हैं, आप ही यजुर्वेदकी ग्रन्थि हैं, आप ही ऋग्वेदकी ऋचारूप स्तुति तथा अथर्ववेदकी मात्रा हैं और आप ही मोक्षस्वरूपा हैं ॥ 35 ॥

जो सभी देवगणोंकी शक्ति हैं, तमोमयी हैं, एकमात्र धारण-पोषण गुणोंसे देखनेमें आती हैं, रजोगुणके प्रपंचसे केवल सृष्टिरूपा हैं तथा जिन्हें हमने कल्याणकारिणी सुना है, उनकी हम स्तुति करते हैं ॥ 36 ॥

कराल संसारसागरके महान् दुःखोंसे पार करानेवाली पालरहित नौकारूपिणी, अष्टांगयोगके पालनरूपी क्रीडामें दक्ष और विन्ध्यपर्वतपर निवास करनेवाली उन भगवतीको हम प्रणाम करते हैं ॥ 37 ll

जो प्राणियोंके नासिका, नेत्र, मुख, भुजा, वक्षःस्थल एवं मनमें प्रतिष्ठित होकर सदा धैर्यपूर्वक सुख प्रदान करती हैं, जो संसारके कल्याणके लिये सुखकारी निद्रारूपमें प्रवृत्त होती हैं, वे संसारकी स्थिति तथा पालनके लिये हमारे ऊपर प्रसन्न हों ॥ 38 ॥

प्रकार जगदम्बा | महेश्वरी उमा सतीकी स्तुति करके [अपने] हृदयमें विशुद्ध प्रेमलिये वे सब देवता उनके दर्शनकी इच्छासे ब्रह्माजी बोले- इस वहाँ खड़े रहे ॥ 39 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा