सूतजी बोले- हे मुनिवरो! आपलोग सुनें, जिससे महेश्वर सन्तुष्ट हुए थे, उस शिवसहस्रनामस्तोत्रको मैं कह रहा हूँ ॥ 1 ॥
भगवान् विष्णुने कहा – 1. शिवः - कल्याण स्वरूप, 2. हरः - भक्तोंके पाप-ताप हर लेनेवाले, 3. मृडः - सुखदाता, 4. रुद्रः दुःख दूर करनेवाले, 5. पुष्करः - आकाशस्वरूप, 6. पुष्पलोचन:पुष्पके समान खिले हुए नेत्रवाले, 7. अर्थिगम्यः प्रार्थियोंको प्राप्त होनेवाले, 8. सदाचारः - श्रेष्ठ आचरणवाले, 9. शर्वः संहारकारी, 10. शम्भु: कल्याणनिकेतन 19. महेश्वरः महान् ईश्वर ॥ 2 ॥
12. चन्द्रापीडः चन्द्रमाको शिरोभूषण के रूपमें धारण करनेवाले, 13. चन्द्रमौलिः– सिरपर चन्द्रमाका मुकुट धारण करनेवाले, 14. विश्वम्- सर्वस्वरूप, 15. विश्वम्भरेश्वर:- विश्वका भरण-पोषण करनेवाले श्रीविष्णुके भी ईश्वर 16. वेदान्तसारसंदोह: वेदान्तके सारतत्त्व सच्चिदानन्दमय ब्रह्मकी साकार मूर्ति, 17. कपाली - हाथमें कपाल धारण करनेवाले, 18. नीललोहितः- (गलेमें) नील और (शेष अंगोंमें) लोहित वर्णवाले ॥ 3 ॥
19. ध्यानाधारः - ध्यानके आधार, 20. अपरिच्छेद्यः - देश, काल और वस्तुकी सीमासे अविभाज्य, 21. गौरीभर्ता - गौरी अर्थात् पार्वतीजीके पति, 22. गणेश्वरः प्रमथगणक स्वामी, 23. अष्टमूर्तिः– जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा पृथ्वी और यजमान - इन आठ रूपोंवाले, 24. विश्वमूर्तिः– अखिल ब्रह्माण्डमय विराट् पुरुष, 25. त्रिवर्गस्वर्गसाधन धर्म, अर्थ, काम तथा स्वर्गकी प्राप्ति करानेवाले ॥ 4 ॥
26. ज्ञानगम्यः - ज्ञानसे ही अनुभवमें आनेके योग्य, 27. दृढप्रज्ञः – सुस्थिर बुद्धिवाले, 28. देव | देवः - देवताओंके भी आराध्य, 29. त्रिलोचन: सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूप तीन नेत्रोंवाले, 30. वामदेव: लोकके विपरीत स्वभाववाले देवता, 31. महादेवः महान् देवता ब्रह्मादिकोंके भी पूजनीय, 32. पटुः - सब कुछ करनेमें समर्थ एवं कुशल, 33. परिवृढः- स्वामी, 34. दृढः - कभी विचलित न होनेवाले ॥ 5 ॥
35. विश्वरूपः – जगत्स्वरूप, 36. विरू पाक्ष:- विकट नेत्रवाले, 37. वागीशः - वाणीके अधिपति, 38. शुचिसत्तम:- पवित्र पुरुषोंमें भी सबसे श्रेष्ठ, 39. सर्वप्रमाणसंवादी सम्पूर्ण प्रमाणोंमें सामंजस्य स्थापित करनेवाले, 40. वृषाङ्कः - अपनी ध्वजामें वृषभका चिह्न धारण करनेवाले, 41. वृषवाहनः वृषभ या धर्मको वाहन बनानेवाले ॥ 6 ॥42. ईशः - स्वामी या शासक, 43. पिनाकी – पिनाक नामक धनुष धारण करनेवाले, 45. खट्वाङ्गीखाटके पायेको आकृतिका एक आयुध धारण करनेवाले, 45. चित्रवेषः - विचित्र वेषधारी, 46. चिरंतन:- पुराण (अनादि) पुरुषोत्तम, 47. समोहर: अज्ञानान्धकारको दूर करनेवाले, 48. महायोगी – महान् योगसे सम्पन्न, 49. गोप्ता - रक्षक, 50. ब्रह्मा सृष्टिकर्ता, 51. धूर्जटि:- जटाके भारसे युक्त ॥ 7 ॥
52. कालकालः – कालके भी काल, 53. कृत्तिवासाः [गजासुरके] चर्मको वस्त्रके रूपये धारण करनेवाले, 54. सुभगः - सौभाग्यशाली, 55. प्रणवात्मकः - ओंकारस्वरूप अथवा प्रणवके वाच्यार्थ, 56. उन्नध्रः — बन्धनरहित, 57. पुरुषः - अन्तर्यामी आत्मा, 58. जुष्यः – सेवन करनेयोग्य, 59. दुर्वासाः दुर्वासा' नामक मुनिके रूपमें अवतीर्ण, 60. पुरशासन:- तीन मायामय असुरपुरोंका दमन करनेवाले ॥ 8 ॥
61. दिव्यायुधः - 'पाशुपत' आदि दिव्य अस्त्र धारण करनेवाले, 62. स्कन्दगुरुः कार्तिकेयजीके पिता, 63. परमेष्ठी अपनी प्रकृष्ट महिमामें स्थित रहनेवाले, 64. परात्परः - कारणके भी कारण, 65. अनादिमध्यनिधनः- आदि, मध्य और अन्तसे रहित, 66. गिरीश :- कैलासके अधिपति, 67. गिरिजाधवः - पार्वतीके पति ॥ 9 ॥
68. कुबेरबन्धुः - कुबेरको अपना बन्धु (मित्र) माननेवाले, 69. श्रीकण्ठः- श्यामसुषमासे सुशोभित कण्ठवाले, 70. लोकवर्णोत्तमः - समस्त लोकों और वर्णोंसे श्रेष्ठ, 71. मृदुः - कोमल स्वभाववाले, 72. समाधिवेद्यः समाधि अथवा चित्तवृत्तियोंके निरोधसे अनुभवमें आनेयोग्य, 73. कोदण्डी - धनुर्धर, 74. नीलकण्ठः कण्ठमें हालाहल विषका नील चिह्न धारण करनेवाले, 75. परश्वधी परशुधारी॥ 104 ll
76. विशालाक्ष:- बड़े-बड़े नेत्रोंवाले, 77. मृगव्याधः - वनमें व्याध या किरातके रूपमें प्रकट हो शूकरके ऊपर बाण चलानेवाले, 78. सुरेशः देवताओंके स्वामी, 79. सूर्यतापनः सूर्यको भीदण्ड देनेवाले, 80. धर्म-धाम- धर्मके आश्रय, 81. क्षमाक्षेत्रम् - क्षमाके उत्पत्ति स्थान, 82. भगवान् - सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान तथा वैराग्यके आश्रय, 83. भगनेत्रभित्- भगदेवताके नेत्रका भेदन करनेवाले ॥ 11 ॥
84. उग्रः - संहारकालमें भयंकर रूप धारण करनेवाले, 85. पशुपतिः मायारूपमें बंधे हुए पाशबद्ध पशुओं (जीवों) को तत्त्वज्ञानके द्वारा मुक्त करके यथार्थरूपसे उनका पालन करनेवाले, 86. साक्ष्य: गरुड़रूप 87. प्रियभक्तः भक्तोंसे प्रेम करनेवाले, 88. परंतपः-शत्रुता रखनेवालोंको संताप देनेवाले, 89. दाता- दानी, 90. दयाकरः दयानिधान अथवा कृपा करनेवाले, 91. दक्षः कुशल, 92. कपर्दी – जटाजूटधारी, 93. काम शासन:- कामदेवका दमन करनेवाले ॥ 12 ॥
94. श्मशाननिलयः – श्मशानवासी, 95. सूक्ष्मः - इन्द्रियातीत एवं एवं सर्वव्यापी, 96. श्मशानस्थ: - श्मशानभूमिमें विश्राम करनेवाले, 97. महेश्वरः महान् ईश्वर या परमेश्वर, 98. लोककर्ता — जगत् की सृष्टि करनेवाले, 99. मृगपतिः - मृगके पालक या पशुपति, 100. महाकर्ता – विराट् ब्रह्माण्डकी सृष्टि करनेके समय महान् कर्तृत्वसे सम्पन्न, 101. महौषधिः - भवरोगका निवारण करनेके लिये महान् ओषधिरूप ॥ 13 ॥ -
102. उत्तरः - संसार सागरसे पार उतारनेवाले, 103. गोपति : – स्वर्ग, पृथ्वी, पशु, वाणी, किरण, इन्द्रिय और जलके स्वामी, 104. गोप्ता-रक्षक, 105. ज्ञानगम्यः - तत्त्वज्ञानके द्वारा ज्ञानस्वरूपसे ही जाननेयोग्य, 106. पुरातनः - सबसे पुराने, 107. 108. सुनीति:- - उत्तम नीतिः - न्यायस्वरूप, नीतिवाले, 109. शुद्धात्मा विशुद्ध आत्मस्वरूप, 110. सोमः - उमासहित, 111. सोमरत: चन्द्रमापर प्रेम रखनेवाले, 112. सुखी आत्मानन्दसे परिपूर्ण ॥ 14 ॥ 113. सोमप:- सोमपान करनेवाले अथवा सोमनाथरूपसे चन्द्रमाके पालक, 114. अमृतपः समाधिके द्वारा स्वरूपभूत अमृतका आस्वादन करनेवाले, 115. सौम्य भक्तोंके लिये सौम्यरूपधारी, महान् तेजसे सम्पन्न, 117. महाद्युतिः परमकान्तिमान् 118. तेजोमय: प्रकाशस्वरूप, 119. अमृतमयः - अमृतरूप, 120. अन्नमयः अन्नरूप, 121. सुधापतिः अमृतके 116. महातेजाः - पालक ।। 15 ।।
122. अजातशत्रुः जिनके मनमें कभी किसीके प्रति शत्रुभाव नहीं पैदा हुआ, ऐसे समदर्शी, 123. आलोकः- प्रकाशस्वरूप, 124. सम्भाव्य: सम्माननीय 125. हव्यवाहनः अग्निस्वरूप, 126. लोककर:- जगत्के स्रष्टा, 127 वेदकरः वेदोंको प्रकट करनेवाले, 128. सूत्रकारः - ढक्कानादके रूपमें चतुर्दश माहेश्वर सूत्रोंके प्रणेता 129. सनातन:- नित्यस्वरूप ॥ 16 ॥
130. महर्षिकपिलाचार्य: सांख्यशास्त्रके प्रणेता भगवान् कपिलाचार्य, 139. विश्वदीप्तिः अपनी प्रभासे सबको प्रकाशित करनेवाले, 132. त्रिलोचन: तीनों लोकोंके द्रष्टा, 133. पिनाकपाणि: हाथमें पिनाक नामक धनुष धारण करनेवाले, 134. भूदेवः - पृथ्वीके देवता - ब्राह्मण अथवा पार्थिवलिंगरूप, 135. स्वस्तिदः - कल्याणदाता, 136. स्वस्तिकृत् — कल्याणकारी, 137. सुधीः- विशुद्ध बुद्धिवाले ॥ 17 ॥ -
138. धातृधामा विश्वका धारण-पोषण करनेमें समर्थ तेजवाले, 139. धामकरः - तेजकी सृष्टि करनेवाले, 140. सर्वगः - सर्वव्यापी, 141. सर्वगोचर:- सबमें व्याप्त, 142. ब्रह्मसृक् ब्रह्माजीके उत्पादक, 143. विश्वसृक्- जगत्के स्रष्टा, 144. सर्गः सृष्टिस्वरूप, 145. कर्णिकारप्रियः कर्णिकारके फूलको पसन्द | करनेवाले, 146. कविः - त्रिकालदर्शी ॥ 18 ॥147. शाख:- कार्तिकेयके छोटे भाई.शाखस्वरूप, 148. विशाखः - स्कन्दके छोटे भाई विशाखस्वरूप अथवा विशाख नामक ऋषि, 149. गोशाखः - वेदवाणीकी शाखाओंका विस्तार करनेवाले, 150. शिवः – मंगलमय, 151. भिषगनुत्तमः भवरोगका निवारण करनेवाले वैद्यों (ज्ञानियों) में सर्वश्रेष्ठ, | 152. गङ्गाप्लवोदक:- गंगाके प्रवाहरूप जलको सिरपर धारण करनेवाले, 153. भव्यः - कल्याणस्वरूप, 154. पुष्कलः - पूर्णतम अथवा व्यापक, 155. स्थपतिः ब्रह्माण्डरूपी भवनके निर्माता (थवई), 156. स्थिरः - अचंचल अथवा स्थाणुरूप ॥ 19 ॥
157. विजितात्मा मनको वशमें रखनेवाले, 158. विधेयात्मा - शरीर, मन और इन्द्रियोंसे अपनी इच्छाके अनुसार काम लेनेवाले, 159. भूतवाहन सारथिः - पांचभौतिक रथ (शरीर ) का संचालन करनेवाले बुद्धिरूप सारथि, 160. सगण: प्रमथगणोंके साथ रहनेवाले, 161. गणकायः - गणस्वरूप 162. सुकीर्तिः उत्तम कीर्तिवाले, 163. छिन्नसंशयः — संशयोंको काट देनेवाले ॥ 20 ॥
164. कामदेवः मनुष्योंद्वारा अभिलषित समस्त कामनाओंके अधिष्ठाता परमदेव, 165. कामपालः – सकाम भक्तोंकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाले, 166. भस्मोद्धूलितविग्रहः – अपने श्री अंगोंमें भस्म रमानेवाले, 167. भस्मप्रियः - भस्मके प्रेमी, 168. भस्मशायी भस्मपर शयन करनेवाले, 169. कामी अपने प्रिय भक्तोंको चाहनेवाले, 170. 170. कान्तः - परम कमनीय प्राणवल्लभरूप, 171. कृतागमः - समस्त तन्त्रशास्त्रोंके रचयिता ॥ 21 ॥
172. समावर्तः - संसारचक्रको भलीभाँति घुमाने वाले, 173. अनिवृत्तात्मा सर्वत्र विद्यमान होनेके कारण जिनका आत्मा कहींसे भी हटा नहीं है, ऐसे, 174. धर्मपुञ्जः धर्म या पुण्यकी राशि, -धर्म 175. सदाशिवः - निरन्तर कल्याणकारी, 176. अकल्मषः – पापरहित, 177. चतुर्बाहुः चार भुजाधारी, 178. दुरावासः- जिन्हें योगीजन भी बड़ी कठिनाईसे अपने हृदयमन्दिरमें बसा पाते हैं, | ऐसे, 179. दुरासदः परम दुर्जय ॥ 22 ॥180. दुर्लभः - भक्तिहीन पुरुषोंको कठिनता से प्राप्त होनेवाले, 181. दुर्गमः- जिनके निकट पहुँचना किसीके लिये भी कठिन है, ऐसे, 182. दुर्ग: पाप-तापसे रक्षा करनेके लिये दुर्गरूप अथवा दुर्ज्ञेय, 183. सर्वायुधविशारदः - सम्पूर्ण अस्त्रोंके प्रयोगकी कलामें कुशल, 184. अध्यात्मयोगनिलय: अध्यात्मयोगमें स्थित, 185. सुतन्तुः सुन्दर विस्तृत जगत् रूप तन्तुवाले 186. तन्तुवर्धन- जगत् रूप तन्तुको बढ़ानेवाले ॥ 23 ॥
187. शुभाङ्गः - सुन्दर अंगोंवाले, 188. लोकसारङ्गः- लोकसारग्राही, 189. जगदीश: जगत्के स्वामी, 190. जनार्दनः - भक्तजनोंकी याचनाके आलम्बन, 191. भस्मशुद्धिकरः - भस्मसे शुद्धिका सम्पादन करनेवाले, 192. मेरुः - सुमेरुपर्वत के समान केन्द्ररूप, 193. ओजस्वी- तेज और बलसे सम्पन्न, 114. शुद्धविग्रहः निर्मल शरीरवाले ॥ 24 ॥
195. असाध्यः — साधन- भजनसे दूर रहनेवाले लोगोंके लिये अलभ्य, 196. साधुसाध्यः - साधन भजनपरायण सत्पुरुषोंके लिये सुलभ, 197. भृत्य मर्कटरूपधृक् श्रीरामके सेवक वानर हनुमान्का रूप धारण करनेवाले, 198. हिरण्यरेताः - अग्निस्वरूप अथवा सुवर्णमय वीर्यवाले, 199. पौराणः पुराणोंद्वारा प्रतिपादित, 200. रिपुजीवहर :- शत्रुओंके प्राण हर लेनेवाले, 201. बली - बलशाली ॥ 25 ॥
202. महाहृदः - परमानन्दके महान् सरोवर, 203. महागर्तः - महान् आकाशरूप, 204. सिद्धवृन्दार वन्दितःसिद्धों और देवताओंद्वारा वन्दित, 205. व्याघ्रचर्माम्बरः व्याघ्रचर्मको वस्त्रके समान धारण करनेवाले, 206. व्याली सर्पोको आभूषणकी भाँति धारण करनेवाले, 207. महाभूतः - त्रिकालमें भी कभी नष्ट न होनेवाले महाभूतस्वरूप, 208. महानिधिः- सबके महान् निवासस्थान ॥ 26 ॥
209. अमृताश: - जिनकी आशा कभी विफल न हो, ऐसे अमोघसंकल्प 210. अमृतवपुः - जिनका कलेवर कभी नष्ट हो, ऐसे नित्यविग्रह, 211. पाञ्चजन्य:- पांचजन्य नामक शंखस्वरूप, 212. प्रभञ्जनः वायुस्वरूप अथवा संहारकारी,213. पञ्चविंशतितत्त्वस्थः - प्रकृति, महत्तत्त्व (बुद्धि), अहंकार, चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, रसना, त्वक्, वाक्, पाणि, पायु, पाद, उपस्थ, मन, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन चौबीस जड तत्त्वोंसहित पचीसर्वे चेतनतत्त्व पुरुषमें व्याप्त, | 214. पारिजात:- याचकोंकी इच्छा पूर्ण करनेमें कल्पवृक्षरूप, 215. परावरः कारण- कार्यरूप ॥ 27 ॥
216. सुलभ :- नित्य निरन्तर चिन्तन करनेवाले एकनिष्ठ श्रद्धालु भक्तको सुगमतासे प्राप्त होनेवाले, 217. सुव्रतः — उत्तम व्रतधारी, 218. शूरः शौर्य सम्पन्न, 219. ब्रह्मवेदनिधिः – ब्रह्मा और वेदके प्रादुर्भावके स्थान, 220. निधिः – जगत्- रूपी रत्नके उत्पत्तिस्थान, 221 वर्णाश्रमगुरु: - वर्णों और आश्रमोंके गुरु (उपदेष्टा), 222. वर्णी ब्रह्मचारी, 223. शत्रुजित् - अन्धकासुर आदि शत्रुओंको जीतनेवाले, 224. शत्रुतापनः - शत्रुओंको संताप देनेवाले ॥ 28 ॥
225. आश्रमः - सबके विश्रामस्थान, 226. क्षपण: - जन्म मरणके कष्टका मूलोच्छेद करनेवाले, 227. क्षामः - प्रलयकालमें प्रजाको क्षीण करनेवाले, 228. ज्ञानवान् -ज्ञानी, 229. अचलेश्वर: पर्वतों अथवा स्थावर पदार्थोंके स्वामी, 230. प्रमाणभूतः - नित्यसिद्ध प्रमाणरूप, 231. दुर्ज्ञेयः कठिनतासे जाननेयोग्य, 232. सुपर्णः - वेदमय सुन्दर पंखवाले, गरुड़रूप, 233. वायुवाहनः - अपने भयसे वायुको प्रवाहित करनेवाले ॥ 29 ॥
234. धनुर्धरः - पिनाकधारी, 235. धनुर्वेदः - धनुर्वेदके ज्ञाता, 236. गुणराशि: अनन्त कल्याणमय गुणोंकी राशि, 237. गुणाकरः - सद्गुणोंकी खान, 238. सत्यः सत्यस्वरूप, 239. सत्यपरः - सत्य- परायण, 240. अदीनः - दीनतासे रहित - उदार, 241. धर्माङ्गः - धर्ममय विग्रहवाले, 242. धर्मसाधनः- धर्मका अनुष्ठान करनेवाले ॥ 30 ॥ 243. अनन्तदृष्टिः - असीमित दृष्टिवाले, 244. आनन्दः - परमानन्दमय, 245. दण्ड: दुष्टोंको दण्ड देनेवाले अथवा दण्डस्वरूप, 246. दमयिता — दुर्दान्त दानवोंका दमन करनेवाले,247. दमः– दमनस्वरूप, 248. अभिवाद्य: प्रणाम करनेयोग्य, 249. महा मायः - मायावियोंको भी मोहनेवाले महामायाबी, 250. विश्वकर्म विशारदः संसारको सृष्टि करनेमें कुशल ॥ 31 ॥
251. वीतरागः- पूर्णतया विरक्त 252. विनीतात्मा- मनसे विनयशील अथवा मनको वशमें रखनेवाले, 253. तपस्वी –तपस्यापरायण, 254. भूतभावनः– सम्पूर्ण भूतोंके उत्पादक एवं रक्षक, 255. उन्मत्तवेषः - पागलोंके समान वेष धारण करनेवाले, 256. प्रच्छन्नः मायाके पर्दे में छिपे हुए, 257. जितकामः कामविजयी, 258. अजितप्रियः भगवान् विष्णुके प्रेमी ॥ 32 ॥
259. कल्याणप्रकृतिः- कल्याणकारी स्वभाव वाले, 260. कल्पः - समर्थ, 261. सर्वलोकप्रजा पतिः - सम्पूर्ण लोकोंकी प्रजाके पालक, 262. तरस्वी- वेगशाली, 263. तारकः- उद्धारक, 264. धीमान्– विशुद्ध बुद्धिसे युक्त, 265. प्रधानः सबसे श्रेष्ठ, 266. प्रभुः सर्वसमर्थ, 267. अव्ययः -अविनाशी ॥ 33 ॥ - 268. लोकपालः समस्त लोकोंकी रक्षा करनेवाले, 269. अन्तर्हितात्मा अन्तर्यामी आत्मा अथवा अदृश्य स्वरूपवाले 270. कल्पादिः - कल्पके आदि- कारण, 271. कमलेक्षणः कमलके समान नेत्रवाले, 272. वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः - वेदों और शास्त्रोंके अर्थ एवं तत्त्वको जाननेवाले, 273. अनियमः - नियन्त्रणरहित, 274. नियताश्रयः - सबके सुनिश्चित आश्रयस्थान ॥ 34 ॥ -
275. चन्द्रः – चन्द्रमारूपसे आह्लादकारी, 276. सूर्य:- सबकी उत्पत्तिके हेतुभूत सूर्य, 277. शनि: शनैश्चररूप, 278. केतुः - केतु नामक ग्रहस्वरूप, 279. वराङ्गः – सुन्दर शरीरवाले, 280. विद्रुमच्छवि: मूँगेकी- सी लाल कान्तिवाले, 281. भक्तिवश्यः - भक्तिके द्वारा भक्तके वशमें होनेवाले, 282. परब्रह्म परमात्मा, 283. मृगबाणार्पण: - मृगरूपधारी यज्ञपर बाण चलानेवाले, 284. अनघः - पापरहित ॥ 35 ll285. अद्रि:- कैलास आदि पर्वतस्वरूप, 286. अद्र्यालयः - कैलास और मन्दर आदि पर्वतोंपर निवास करनेवाले, 287, कान्तः - सबके प्रियतम, 288. परमात्मा - परब्रह्म परमेश्वर, 289. जगद्गुरुः समस्त संसारके गुरु, 290. सर्वकर्मालयः - सम्पूर्ण कर्मो के आश्रयस्थान, 291. तुष्टः सदा प्रसन्न, 292. मङ्गल्यः- मंगलकारी, 293. मङ्गलावृतः - मंगल कारिणी शक्तिसे संयुक्त ॥ 36 ll
294. महातपाः - महान् तपस्वी, 295. दीर्घ तपाः- दीर्घकालतक तप करनेवाले, 296. स्थविष्ठः - अत्यन्त स्थूल, 297. स्थविरो ध्रुवः - अति प्राचीन एवं अत्यन्त स्थिर, 298. अहः संवत्सरः दिन एवं संवत्सर आदि कालरूपसे स्थित, अंश कालस्वरूप, 299. व्याप्तिः — व्यापकतास्वरूप, 300. प्रमाणम् — प्रत्यक्षादि प्रमाणस्वरूप, 301 परमं तपः- उत्कृष्ट तपस्यास्वरूप ॥ 37 ॥
302. संवत्सरकरः- संवत्सर आदि कालविभागके उत्पादक, 303. मन्त्रप्रत्ययः - वेद आदि मन्त्रोंसे प्रतीत (प्रत्यक्ष) होनेयोग्य, 304. सर्वदर्शनः - सबके साक्षी, 305. अजः - अजन्मा, 306. सर्वेश्वरः - सबके शासक, 307. सिद्धः - सिद्धियोंके आश्रय, 308. महारेताः - श्रेष्ठ वीर्यवाले, 309. महाबलः - प्रमथ- गणोंकी महती सेनासे सम्पन्न ॥ 38 ॥
310. योगी योग्य: - सुयोग्य योगी, 311. महातेजाः - महान् तेजसे सम्पन्न, 312. सिद्धिः समस्त साधनोंके फल, 313. सर्वादिः - सब भूतोंके आदिकारण, 314 अग्रहः – इन्द्रियोंकी ग्रहणशक्तिके अविषय, 315. वसुः - सब भूतोंके वासस्थान, 316. वसुमनाः- उदार मनवाले, 317. सत्य:- सत्यस्वरूप, 318. सर्वपापहरो हरः समस्त पापोंका अपहरण करनेके कारण हर नामसे प्रसिद्ध ॥ 39 ॥
319. सुकीर्तिशोभनः — उत्तम कीर्तिसे सुशोभित होनेवाले, 320. श्रीमान् - विभूतिस्वरूपा उमासे सम्पन्न, 321. वेदाङ्गः – वेदरूप अंगोंवाले, 322. | वेद-विन्मुनिः - वेदोंका विचार करनेवाले मननशीलमुनि, 323. भ्राजिष्णुः एकरस प्रकाशस्वरूप, | 324. भोजनम् - ज्ञानियोंद्वारा भोगनेयोग्य अमृतस्वरूप, 325 भोका पुरुषरूपसे उपभोग करनेवाले, 326, लोकनाथः - भगवान् विश्वनाथ, 327. दुराधरः अजितेन्द्रिय पुरुषोंद्वारा जिनकी आराधना अत्यन्त कठिन हैं, ऐसे ॥ 40 ॥
- -सनातन अमृतस्वरूप, 328. अमृतः शाश्वतः 329. शान्तः शान्तिमय, 330. बाणहस्तः प्रताप |वान्- हाथमें बाण धारण करनेवाले प्रतापी वीर, 331. | कमण्डलुधरः - कमण्डलु धारण करनेवाले, 332. धन्वीपिनाकधारी, 333. अवाङ्मनसगोचर:.मन और वाणीके अविषय ॥ 41 ॥ 334. अतीन्द्रियो महामायः - इन्द्रियातीत एवं महामायावी, 335. सर्वावासः - सबके वासस्थान, 336. चतुष्पथः चारों पुरुषार्थोकी सिद्धिके एकमात्र मार्ग, 337, कालयोगी - प्रलयके समय सबको कालसे संयुक्त करनेवाले, 338. महानादः - गम्भीर शब्द करनेवाले अथवा अनाहत नादरूप, 339. महोत्साहो महाबलः - महान् उत्साह और वलसे सम्पन्न ॥ 42 ॥
340, महाबुद्धिः श्रेष्ठ बुद्धिवाले, 341. महावीर्यः अनन्त पराक्रमी, 342. भूतचारी भूतगणोंके साथ विचरनेवाले, 343. पुरंदरः त्रिपुरसंहारक, 344. निशाचरः- रात्रिमें विचरण करनेवाले, 345. प्रेतचारी-प्रेतोंके साथ भ्रमण करनेवाले, 346. महाशक्तिर्महा इतिः - अनन्तशक्ति - एवं श्रेष्ठ कान्तिसे सम्पन्न ॥ 43 ॥
- 1347. अनिर्देश्यवपुः - अनिर्वचनीय स्वरूपवाले, 348. श्रीमान् - ऐश्वर्यवान्, 349. सर्वाचार्यमनो गतिः - सबके लिये अविचार्य मनोगतिवाले, 350. बहुश्रुतः - बहुज्ञ अथवा सर्वज्ञ, 351. अमामायः बड़ी से बड़ी माया भी जिनपर प्रभाव नहीं डाल सकती ऐसे, 352. नियतात्मा - मनको वशमें रखनेवाले, 353. ध्रुवोऽध्रुवः - ध्रुव (नित्य कारण) और अध्रुव (अनित्य | कार्य) रूप ॥ 44 ॥
354. ओजस्तेजोद्युतिधरः - ओज (प्राण और बल), तेज (शौर्य आदि गुण) तथा ज्ञानकी दीप्तिको धारण करनेवाले, 355. जनक:- सबके उत्पादक, 356. सर्वशासन: सबके शासक,357. नृत्यप्रियः - नृत्यके प्रेमी, 358. नित्यनृत्यः प्रतिदिन ताण्डव नृत्य करनेवाले, 359. प्रकाशात्मा प्रकाशस्वरूप, 360. प्रकाशक:- सूर्य आदिको भी प्रकाश देनेवाले ॥ 45 ॥
361. स्पष्टाक्षरः - ओंकाररूप स्पष्ट अक्षरवाले, 362. बुधः - ज्ञानवान्, 363. मन्त्रः - ऋक्, साम और यजुर्वेदके मन्त्रस्वरूप, 364. समानः – सबके प्रति समान भाव रखनेवाले, 365. सारसम्प्लवः - संसारसागरसे पार होनेके लिये नौकारूप, 366. युगादि- कृद्युगावर्त: - युगादिका आरम्भ करनेवाले तथा चारों युगोंको चक्रकी तरह घुमानेवाले, 367. गम्भीरः - गाम्भीर्यसे युक्त, 368. वृषवाहनः नन्दी नामक वृषभपर सवार होनेवाले ॥ 46 ॥
369. इष्टः — परमानन्दस्वरूप होनेसे सर्वप्रिय, 370. अविशिष्टः- सम्पूर्ण विशेषणोंसे रहित, 371. शिष्टेष्ट:- शिष्ट पुरुषोंके इष्टदेव, 372. सुलभः अनन्यचित्तसे निरन्तर स्मरण करनेवाले भक्तोंके लिये सुगमतासे प्राप्त होनेयोग्य, 373. सारशोधन: - सार तत्त्वकी खोज करनेवाले, 374. तीर्थरूपः - तीर्थस्वरूप, 375. तीर्थनामा - तीर्थनामधारी अथवा जिनका नाम भवसागरसे पार लगानेवाला है, ऐसे, 376. तीर्थदृश्य: तीर्थसेवनसे अपने स्वरूपका दर्शन करानेवाले अथवा गुरु- कृपासे प्रत्यक्ष होनेवाले, 377. तीर्थदः - चरणोदक स्वरूप तीर्थको देनेवाले ॥ 47 ॥
378. अपांनिधिः – जलके निधान समुद्ररूप, 379. अधिष्ठानम्—उपादान- कारणरूपसे सब भूतोंके आश्रय अथवा जगत्- रूप प्रपंचके अधिष्ठान, 380. दुर्जयः - जिनको जीतना कठिन है, ऐसे, 381. जय कालवित्- विजयके अवसरको समझनेवाले, 382. प्रतिष्ठितः - अपनी महिमामें स्थित, 383. प्रमाणज्ञः - प्रमाणोंके ज्ञाता, 384. हिरण्यकवचः सुवर्णमय कवच धारण करनेवाले, 385. हरिः - श्रीहरिस्वरूप ॥ 48 ॥
386. विमोचनः - संसारबन्धनसे सदाके लिये छुड़ा देनेवाले, 387. सुरगणः - देवसमुदायरूप, 388. विद्येश: – सम्पूर्ण विद्याओंके स्वामी, 389. विन्दु-संश्रयः - बिन्दुरूप प्रणवके आश्रय,390. बालरूपः - बालकका रूप धारण करनेवाले, 391. अबलोन्मत्तः - बलसे उन्मत्त न होनेवाले, 392. अविकर्ता — विकाररहित, 393. गहन: दुर्बोधस्वरूप या अगम्य, 394. गुहः – मायासे अपने यथार्थ स्वरूपको छिपाये रखनेवाले ॥। 49 ।।
395. करणम् – संसारकी उत्पत्तिके सबसे बड़े साधन, 396. कारणम् – जगत्के उपादान और निमित्त कारण, 397. कर्ता-सबके रचयिता, 398. सर्वबन्धविमोचन: - सम्पूर्ण बन्धनोंसे छुड़ानेवाले, 399. व्यवसाय:- निश्चयात्मक ज्ञानस्वरूप, 400. व्यवस्थान: - सम्पूर्ण जगत्की व्यवस्था करनेवाले, 401. स्थानदः - ध्रुव आदि भक्तोंको अविचल स्थिति प्रदान कर देनेवाले, 402. जगदादिजः - हिरण्यगर्भरूपसे जगत्के आदिमें प्रकट होनेवाले ॥ 50 ॥
403. गुरुदः - श्रेष्ठ वस्तु प्रदान करनेवाले अथवा जिज्ञासुओंको गुरुकी प्राप्ति करानेवाले, 404. ललितः - सुन्दर स्वरूपवाले, 405. अभेदः भेदरहित, 406. भावात्मात्मनि संस्थितः - सत्स्वरूप, आत्मामें प्रतिष्ठित, 407. वीरेश्वरः- वीरशिरोमणि, 408. वीरभद्रः - वीरभद्र नामक गणाध्यक्ष, 409. वीरासनविधिः – वीरासनसे बैठनेवाले, 410. विराट् अखिल ब्रह्माण्ड- स्वरूप ॥ 51 ॥
411 वीरचूडामणिः - वीरोंमें श्रेष्ठ, 412. वेत्ता - विद्वान्, 413. चिदानन्दः - विज्ञानानन्दस्वरूप, 414. नदीधरः - मस्तकपर गंगाजीको धारण करनेवाले, 415. आज्ञाधारः - आज्ञाका पालन करनेवाले, 416. त्रिशूली - त्रिशूलधारी, 417. शिपिविष्टः - तेजोमयी किरणोंसे व्याप्त, 418. शिवालयः - भगवती शिवाके आश्रय ॥ 52 ॥
419. वालखिल्यः- वालखिल्य ऋषिरूप, 420. माचापः – महान् धनुर्धर, 421. तिग्मांशुः - सूर्यरूप, 422. बधिरः - लौकिक विषयोंकी चर्चा न सुननेवाले, 423. खगः - आकाशचारी, 424. अभिरामः - परम सुन्दर, 425. सुशरणः सबके लिये सुन्दर आश्रयरूप, 426. सुब्रह्मण्यः - ब्राह्मणोंके परम हितैषी, 427. सुधापतिः - अमृतकलशके रक्षक ॥ 53 ॥428. मघवान् कौशिकः - कुशिकवंशीय इन्द्र- स्वरूप, 429. गोमान् - प्रकाशकिरणोंसे युक्त, | 430, विराम:- समस्त प्राणियोंके लयके स्थान, 431 सर्व साधनः- समस्त कामनाओंको सिद्ध करनेवाले, 432. ललाटाक्षः - ललाटमें तीसरा नेत्र धारण करनेवाले, 433. विश्वदेहः – जगत्स्वरूप, 434. सारः - सार तत्त्वरूप, 435. संसारचक्रभृत् संसारचक्रको धारण करनेवाले ॥ 54 ॥
436. अमोघदण्डः - जिनका दण्ड कभी व्यर्थ नहीं जाता है, ऐसे, 437. मध्यस्थः उदासीन, 438. हिरण्यः सुवर्ण अथवा तेजः स्वरूप, 439. ब्रह्म-वर्चसी - ब्रह्मतेजसे सम्पन्न, 440. परमार्थः – मोक्षरूप उत्कृष्ट अर्थकी प्राप्ति करानेवाले, 441 परो मायी- महामायावी, 442. शम्बरः कल्याणप्रद, 443. व्याघ्र- लोचनः - व्याघ्रके समान भयानक नेत्रोंवाले ॥ 55 ॥
444. रुचिः - दीप्तिरूप, 445. विरञ्चिः - ब्रह्मस्वरूप, 446. स्वर्बन्धुः - स्वर्लोकमें बन्धुके समान सुखद, 447. वाचस्पतिः - वाणीके अधिपति, 448. अहर्पतिः - दिनके स्वामी सूर्यरूप, 449. रविः - समस्त रसोंका शोषण करनेवाले, 450. विरोचनः - विविध प्रकारसे प्रकाश फैलानेवाले, 451. स्कन्दः - स्वामी कार्तिकेयरूप, 452. शास्ता यम ॥ 56 ॥
वैवस्वतो यमः - सबपर शासन करनेवाले सूर्यकुमार 453. युक्तिरुन्नतकीर्तिः - अष्टांगयोगस्वरूप तथा ऊर्ध्वलोकमें फैली हुई कीर्तिसे युक्त, 454. सानुरागः - भक्तजनोंपर प्रेम रखनेवाले, 455. परञ्जय: – दूसरोंपर विजय पानेवाले, 456. कैलासाधिपतिः - कैलासके स्वामी, 457. कान्तः कमनीय अथवा कान्तिमान् 458. सविता समस्त जगत्को उत्पन्न करनेवाले, 459. रविलोचन: - सूर्यरूप नेत्रवाले ॥ 57 ॥
460. विद्वत्तमः - विद्वानोंमें सर्वश्रेष्ठ, परम विद्वान्, 461. वीतभयः - सब प्रकारके भयसे रहित, 462. विश्वभर्ता - जगत्का भरण पोषण करनेवाले, 463. अनिवारितः - जिन्हें कोईरोक नहीं सकता, ऐसे, 464. नित्यः सत्यस्वरूप, 465. नियतकल्याण: सुनिश्चितरूपसे कल्याणकारी, 466. पुण्यश्रवणकीर्तनः जिनके नाम, गुण, महिमा और स्वरूपके श्रवण तथा कीर्तन परम पावन हैं, ऐसे॥ 58 ॥
467. दूरश्रवाः – सर्वव्यापी होनेके कारण दूरकी बात भी सुन लेनेवाले, 468, विश्वसहः भक्तजनोंके सब अपराधोंको कृपापूर्वक सह लेनेवाले, ध्येयः - ध्यान करनेयोग्य, 470. 469. दुःस्वप्ननाशनः - चिन्तन करनेमात्रसे बुरे स्वप्नोंका नाश करनेवाले, 471. उत्तारण:- संसारसागरसे पार उतारनेवाले, 472. दुष्कृतिहा— पापोंका नाश करनेवाले, 473. विज्ञेयः – जाननेके योग्य, 474. दुस्सहः - जिनके वेगको सहन करना दूसरोंके लिये अत्यन्त कठिन है ऐसे, 475. अभवः – संसारबन्धनसे रहित अथवा अजन्मा ॥ 59 ॥
476. अनादिः - जिनका कोई आदि नहीं है, ऐसे सबके कारणस्वरूप, 477 भूर्भुवो लक्ष्मी:- भूलक और भुवर्लोककी शोभा, 478. किरीटी - मुकुटधारी, 479. त्रिदशाधिपः - देवताओंके स्वामी, 480. विश्व गोप्ता जगत्के रक्षक, 481. विश्व कर्ता-संसारकी सृष्टि करनेवाले, 482. सुवीरः श्रेष्ठ वीर, 483. रुचिराङ्गदः- सुन्दर बाजूबन्द धारण करनेवाले ll 60 ॥ -
484. जननः – प्राणिमात्रको जन्म देनेवाले, 485. जनजन्मादिः - जन्म लेनेवालोंके जन्मके मूल कारण 486. प्रीतिमान् प्रसन्न, 487. नीतिमान् - सदा नीतिपरायण, 488. धवः - सबके स्वामी, 489. वसिष्ठः मन और इन्द्रियोंको अत्यन्त - - - वसमें रखनेवाले अथवा वसिष्ठ ऋषिरूप, 490. कश्यपः- द्रष्टा अथवा कश्यप मुनिरूप, 491. भानुः - प्रकाशमान अथवा सूर्यरूप, 492. भीमः दुष्टोंको भय देनेवाले, 493. भीम-पराक्रमः अतिशय भयदायक पराक्रमसे युक्त ॥ 61 ॥
494. प्रणवः - ओंकारस्वरूप, 495. सत्पथा चारः सत्पुरुषोंके मार्गपर चलनेवाले, 496. महा कोश:- अन्नमयादि पाँचों कोशोंको अपने भीतर धारण करनेके कारण महाकोशरूप, 497 महाधनः अपरिमितऐश्वर्यवाले अथवा कुबेरको भी धन देनेके कारण महाधनवान्, 498. जन्माधिपः - जन्म (उत्पादन) रूपी कार्यके अध्यक्ष ब्रह्मा, 499. मह्मदेवः - सर्वोत्कृष्ट देवता, 500. सकलागमपारगः समस्त शास्त्रोंके पारंगत विद्वान् ॥ 62 ॥
501 तत्त्वम् — यथार्थ तत्त्वरूप, 502. तत्त्व वित्— यथार्थ तत्त्वको पूर्णतया जाननेवाले, 503. एकात्मा-अद्वितीय आत्मरूप 504. विभुः सर्वत्र व्यापक, 505. विश्वभूषणः - सम्पूर्ण जगत्को उत्तम गुणोंसे विभूषित करनेवाले, 506. ऋषिः - मन्त्रद्रष्टा, 507. ब्राह्मण: - ब्रह्मवेत्ता, 508. ऐश्वर्यजन्ममृत्यु-जरातिगः - ऐश्वर्य, जन्म, मृत्यु और जरासे अतीत ॥ 63 ॥
509. पञ्चयज्ञसमुत्पत्तिः - पंच महायज्ञोंकी उत्पत्तिके हेतु. 510. विश्वेशः - विश्वनाथ, 511. | विमलोदयः - निर्मल अभ्युदयकी प्राप्ति करानेवाले धर्मरूप, 512. आत्मयोनिः – स्वयम्भू, 513. अनाद्यन्तः - आदि- अन्तसे रहित, 514. वत्सलः भक्तोंके प्रति वात्सल्य स्नेहसे युक्त, 515. भक्तलोकधृक् — भक्तजनोंके आश्रय ॥ 64 ॥
516. गायत्रीवल्लभः - गायत्रीमन्त्रके प्रेमी, 517. प्रांशुः – ऊँचे शरीरवाले, 518. विश्वावासः – सम्पूर्ण जगत्के आवासस्थान, 519. प्रभाकरः – सूर्यरूप, 520. शिशुः - बालकरूप, 521. गिरिरत: - कैलासपर्वतपर रमण करनेवाले, 522. सम्राट् — देवेश्वरोंके भी ईश्वर, 523. सुषेणः सुरशत्रुहा - प्रमथगणोंकी सुन्दर सेनासे युक्त तथा देवशत्रुओंका संहार करनेवाले ॥ 65 ॥ -
524. अमोघोऽरिष्टनेमिः - अमोघ संकल्पवाले महर्षि कश्यपरूप, 525. कुमुदः - भूतलको आह्लाद प्रदान करनेवाले चन्द्रमारूप, 526. विगतज्वरः चिन्तारहित, 527. स्वयंज्योतिस्तनुज्योतिः - अपने ही प्रकाशसे प्रकाशित होनेवाले सूक्ष्मज्योतिः स्वरूप, 528. आत्मज्योतिः - अपने स्वरूपभूत ज्ञानकी प्रभासे प्रकाशित, 529. अचञ्चलः - चंचलतासे रहित 66 ॥530. पिङ्गलः - पिंगलवर्णवाले, 531. कपिल श्मश्रुः - कपिल वर्णकी दाढ़ी-मूँछ रखनेवाले दुर्वासा मुनिके रूपमें अवतीर्ण, 532. भालनेत्र:- ललाटमें तृतीय नेत्र धारण करनेवाले, 533. त्रयीतनुः- तीनों लोक या तीनों वेद जिनके स्वरूप हैं, ऐसे, 534. ज्ञानस्कन्दो महानीतिः — ज्ञानप्रद और श्रेष्ठ नीतिवाले, 535. विश्वोत्पत्तिः- जगत्के उत्पादक, 536. उपप्लव: संहारकारी ॥ 67 ॥
537. भगो विवस्वानादित्यः - अदितिनन्दन भग एवं विवस्वान्, 538. योगपारः - योगविद्यामें पारंगत, 539. दिवस्पतिः - स्वर्गलोकके स्वामी, 540. कल्याणगुणनामा - कल्याणकारी गुण और नामवाले, 541. पापहा— पापनाशक, 542. पुण्यदर्शनः पुण्यजनक दर्शनवाले अथवा पुण्यसे ही जिनका दर्शन होता है, ऐसे ॥ 68 ॥
543. उदारकीर्तिः - उत्तम कीर्तिवाले, 544. उद्योगी उद्योगशील, 545. सद्योगी श्रेष्ठ योगी, 546. सदसन्मयः - सदसत्स्वरूप, 547. नक्षत्र माली-नक्षत्रोंकी मालासे अलंकृत आकाशरूप, 548. नाकेशः - स्वर्गके स्वामी, 549. स्वाधिष्ठान पदाश्रयः -स्वाधिष्ठान चक्रके आश्रय ॥ 69 ॥ 550. पवित्रः पापहारी - नित्य शुद्ध एवं पाप नाशक, 551. मणिपूर: मणिपूर नामक चक्रस्वरूप, 552. नभोगतिः आकाशचारी, 553. हृत्पुण्डरीक-मासीनः - हृदयकमलमें स्थित, 554. शक्रः - इन्द्ररूप, 555. शान्तः शान्तस्वरूप, 556. वृषाकपिः - हरिहर ॥ 70 ॥ -
557. उष्णः - हालाहल विषकी गर्मीसे उष्णतायुक्त, 558. गृहपतिः - समस्त ब्रह्माण्डरूपी गृहके स्वामी, 559. कृष्णः - सच्चिदानन्दस्वरूप, 560. समर्थः – सामर्थ्यशाली, 561. अनर्थनाशन:- अनर्थका नाश करनेवाले, 562. अधर्मशत्रुः - अधर्मनाशक, 563. अज्ञेयः बुद्धिकी पहुँचसे परे अथवा जाननेमें न आनेवाले, 564. पुरुहूतः पुरुश्रुतः- बहुत से नामोंद्वारा पुकारे | और सुने जानेवाले ॥565. ब्रह्मगर्भः - ब्रह्मा जिनके गर्भस्थ शिशुके समान हैं, ऐसे, 566. बृहद्गर्भः - विश्वब्रह्माण्ड प्रलय कालमें जिनके गर्भ में रहता है, ऐसे, 567. धर्मधेनुः - धर्मरूपी वृषभको उत्पन्न करनेके लिये धेनुस्वरूप, 568. धनागमः - धनकी प्राप्ति करानेवाले, 569. जगद्धि-तैषी - समस्त संसारका हित चाहनेवाले, 570. सुगतः - उत्तम ज्ञानसे सम्पन्न अथवा बुद्धस्वरूप, 571. कुमारः - कार्तिकेयरूप, 572. कुशलागमः - कल्याणदाता ॥ 72 ॥
573. हिरण्यवर्णो ज्योतिष्मान् - सुवर्णके समान गौरवर्णवाले तथा तेजस्वी, 574. नानाभूतरतः - नाना प्रकारके भूतोंके साथ क्रीडा करनेवाले, 575. ध्वनि :- नादस्वरूप, 576. अरागः - आसक्तिशून्य, 577. नयनाध्यक्षः - नेत्रोंमें द्रष्टारूपसे विद्यमान, 578. विश्वामित्रः - सम्पूर्ण जगत्के प्रति मैत्री भावना रखनेवाले मुनिस्वरूप, 579. धनेश्वरः धनके स्वामी कुबेर ॥ 73 ॥
580. ब्रह्मज्योतिः – ज्योति: स्वरूप ब्रह्म, 581. वसुधामा - सुवर्ण और रत्नोंके तेजसे प्रकाशित अथवा वसुधास्वरूप, 582. महाज्योतिरनुत्तमः सूर्य आदि ज्योतियोंके प्रकाशक सर्वोत्तम महाज्योति: स्वरूप, 583. मातामहः – मातृकाओंके जन्मदाता होनेके कारण मातामह, 584. मातरिश्वा नभस्वान्- आकाशमें विचरनेवाले वायुदेव, 585. नागहारधृक्- सर्पमय हार धारण करनेवाले ॥ 74 ॥
586. पुलस्त्यः - पुलस्त्य नामक मुनि, 587. पुलहः - पुलह नामक ऋषि, 588. अगस्त्यः कुम्भ- जन्मा अगस्त्य ऋषि, 589. जातूकर्ण्यः इसी नाम से प्रसिद्ध मुनि, 590. पराशरः - शक्तिके पुत्र तथा व्यासजीके पिता मुनिवर पराशर, 591. निरावरण- निर्वार : - आवरणशून्य तथा अवरोधरहित, 592. वैरञ्चयः - ब्रह्माजीके पुत्र नीललोहित रुद्र, 593. विष्टरश्रवाः - विस्तृत यशवाले विष्णुस्वरूप, 594. आत्मभूः - स्वयम्भू ब्रह्मा, 595. अनिरुद्धः - अकुण्ठित गतिवाले, 596. अत्रिः - अत्रि नामक ऋषि अथवा त्रिगुणातीत, 597. ज्ञानमूर्ति: ज्ञानस्वरूप, 598. महायशाः – महायशस्वी,599. लोकवीराग्रणी :- विश्वविख्यात वीरोंमें अग्रगण्य, 600. वीरः शूरवीर, 601. चण्ड: प्रलयके समय अत्यन्त क्रोध करनेवाले, 602. सत्यपराक्रमः - सच्चे पराक्रमी ॥ 75-76 ॥
603. व्यालाकल्पः – सर्पोंके आभूषणसे शृङ्गार करनेवाले, 604. महाकल्पः- महाकल्पसंज्ञक काल स्वरूपवाले 605 कल्पवृक्षः शरणागतोंकी इच्छा पूर्ण करनेके लिये कल्पवृक्षके समान उदार, 606. कलाधरः - चन्द्रकलाधारी, 607. अलंकरिष्णुः अलंकार धारण करने या करानेवाले, 608. अचल: विचलित न होनेवाले 609. रोचिष्णुः प्रकाशमान, 610. विक्रमोन्नतः - पराक्रममें बढ़े चढ़े 77 ॥ 611. आयुः शब्दपतिः - आयु तथा वाणीके स्वामी, 612. वेगी प्लवनः - वेगशाली तथा कूदने या तैरनेवाले, 613. शिखिसारथिः अग्निरूप सहायकवाले, 614. असंसृष्टः– निर्लेप, 615. अतिथिः प्रेमी भक्तोंके घरपर अतिथिकी भाँति उपस्थित हो उनका सत्कार ग्रहण करनेवाले, 616. शक्रप्रमाथी – इन्द्रका मान-मर्दन करनेवाले, 617. पादपासन: - वृक्षोंपर या वृक्षोंके नीचे आसन लगानेवाले ॥ 78 ॥
618. वसुश्रवाः - यशरूपी धनसे सम्पन्न, 619. हव्यवाहः – अग्निस्वरूप, 620. प्रतप्तः सूर्यरूप प्रचण्ड ताप देनेवाले 621. विश्वभोजन: प्रलयकालमें विश्व-ब्रह्माण्डको अपना ग्रास बना लेनेवाले, 622. जप्यः – जपनेयोग्य नामवाले, 623. जरादिशमन आदि दोषका निवारण करने 624. लोहितात्मा तनूनपात्-लोहितवर्णवाले अग्निरूप ॥ 79 ॥
625. बृहदश्व: विशाल अश्ववाले 626. नभो- योनिः - आकाशकी उत्पत्तिके स्थान, 627. सुप्रतीकः - सुन्दर शरीरवाले, 628. तमिस्त्रहा अनान्धकारनाशक 629. निदाघस्तपनः तपनेवाले ग्रीष्मरूप, 630. मेघः - बादलोंसे उपलक्षित वर्षारूप, 631. स्वक्षः - सुन्दर नेत्रोंवाले, 632. परपुरञ्जय: त्रिपुरकाप शत्रुनगरोपर विजय पानेवाले ॥ 80ll(633. सुखानिलः - सुखदायक वायुको प्रकट करनेवाले शरत्कालरूप, 634. सुनिष्पन्नः - जिसमें अन्नका सुन्दररूपसे परिपाक होता है, वह हेमन्तकालरूप, 635. सुरभिः शिशिरात्मकः - सुगन्धित मलयानिलसे युक्त शिशिर ऋतुरूप, 636. वसन्तो माधवः चैत्र वैशाख– इन दो मासोंसे युक्त वसन्तरूप, 637. ग्रीष्मः - ग्रीष्म ऋतुरूप, 638. नभस्यः भाद्रपदमासरूप, 639. बीज- वाहनः धान आदिके बीजोंकी प्राप्ति करानेवाला शरत्काल ॥ 81 ॥
640. अङ्गिरा गुरुः- अंगिरा नामक ऋषि तथा उनके पुत्र देवगुरु बृहस्पति, 641. आत्रेयः - अत्रिकुमार दुर्वासा, 642. विमलः - निर्मल, 643. विश्ववाहनः – सम्पूर्ण जगत्का निर्वाह करानेवाले, 644. पावन:- पवित्र करनेवाले, 645. सुमतिर्विद्वान् — उत्तम बुद्धिवाले विद्वान्, 646. त्रैविद्यः - तीनों वेदोंके विद्वान् अथवा तीनों वेदोंके द्वारा प्रतिपादित, 647. वरवाहनः - वृषभरूप श्रेष्ठ वाहनवाले ॥ 82 ॥
648. मनोबुद्धिरहंकारः - मन, बुद्धि और अहंकारस्वरूप, 649. क्षेत्रज्ञः - आत्मा, 650. क्षेत्र - पालक :- शरीररूपी क्षेत्रका पालन करनेवाले परमात्मा, 651. जमदग्नि :- जमदग्नि नामक ऋषिरूप, 652. बलनिधिः - अनन्त बलके सागर, 653. विगालः - अपनी जटासे गंगाजीके जलको टपकानेवाले, 654. विश्वगालवः - विश्वविख्यात गालव मुनि अथवा प्रलय- कालमें कालाग्निस्वरूपसे जगत्को निगल जानेवाले ॥ 83 ॥
655. अघोरः - सौम्यरूपवाले, 656. अनुत्तरः- सर्वश्रेष्ठ, 657. यज्ञः श्रेष्ठः - श्रेष्ठ यज्ञरूप, 658. निःश्रेयसप्रदः -कल्याणदाता, 659. शैलः– शिलामय लिंगरूप, 660. गगनकुन्दाभः - आकाशकुन्द- चन्द्रमाके समान गौर कान्तिवाले, 661. दानवारि:- दानव- शत्रु, 662. अरिंदमः - शत्रुओंका दमन करनेवाले ॥ 84 ॥
663. रजनीजनकश्चारुः - सुन्दर निशाकर रूप, 664. निः शल्यः - निष्कण्टक, 665. लोक | शल्यधृक्- शरणागतजनोंके शोक- शल्यको निकालकरस्वयं धारण करनेवाले, 666. चतुर्वेदः - चारों वेदोंके द्वारा जाननेयोग्य, 667. चतुर्भावः - चारों पुरुषार्थोंकी प्राप्ति करानेवाले, 668. चतुरश्चतुरप्रियः - चतुर एवं चतुर पुरुषोंके प्रिय ॥ 85 ॥669. आम्नाय :- वेदस्वरूप, समाम्नाय : – अक्षरसमाम्नाय - शिवसूत्ररूप, 671. तीर्थदेव- शिवालयः - तीर्थोके देवता और शिवालयरूप, 672. बहुरूपः — अनेक रूपवाले, 673. मारूप: विराट्- रूपधारी, 674. सर्वरूपश्चराचरः - चर और अचर सम्पूर्ण रूपवाले ॥ 86 ॥675. न्यायनिर्मायको न्यायी - न्यायकर्ता तथा न्यायशील, 676. न्यायगम्यः - न्याययुक्त आचरणसे प्राप्त होनेयोग्य, 677. निरञ्जन: निर्मल, 678. सहस्रमूर्द्धा - सहस्रों सिरवाले, 679. देवेन्द्रः - देवताओंके स्वामी, सर्वशस्त्रप्रभञ्जनः - विपक्षी योद्धाओंके सम्पूर्ण शस्त्रोंको नष्ट कर देनेवाले ॥ 87 ॥ 680.
681. मुण्ड: – मुँड़े हुए सिरवाले संन्यासी, 682. विरूपः - विविध रूपवाले, 683. विक्रान्तः - विक्रम- शील, 684. दण्डी - दण्डधारी, 685. दान्तः - मन और इन्द्रियोंका दमन करनेवाले, 686. गुणोत्तमः - गुणोंमें सबसे श्रेष्ठ, 687. | पिङ्गलाक्षः - पिंगल नेत्र- वाले, 688. जनाध्यक्ष: जीवमात्रके साक्षी, 689. नीलग्रीवः - नीलकण्ठ, 690. निरामयः - नीरोग ॥ 88 ॥
691. सहस्रबाहुः – सहस्रों भुजाओंसे युक्त, 692. सर्वेश: - सबके स्वामी, 693. शरण्यः शरणागत- हितैषी, 694. सर्वलोकधृक् — सम्पूर्ण लोकोंको धारण करनेवाले, 695. पद्मासन: कमलके आसन पर विराजमान, 696. परं ज्योतिः - परम प्रकाशस्वरूप, 697. पारम्पर्यफलप्रदः - परम्परागत फलकी प्राप्ति करानेवाले ॥ 89 ॥
698. पद्मगर्भः - अपनी नाभिसे कमलको प्रकट करनेवाले विष्णुरूप, 699. महागर्भः - विराट् ब्रह्माण्डको गर्भमें धारण करनेके कारण महान् गर्भवाले, 700. विश्वगर्भः - सम्पूर्ण जगत्को अपने उदरमें धारण करनेवाले, 701. विचक्षणः - चतुर,702. परावरज्ञः - कारण और कार्यके ज्ञाता, 703. वरदः - अभीष्ट वर देनेवाले, 704. वरेण्यः वरणीय अथवा श्रेष्ठ, 705 महास्वनः डमरूका गम्भीर नाद करनेवाले ॥ 90 ॥
706. देवासुरगुरुर्देवः – देवताओं तथा असुरोंके गुरुदेव एवं आराध्य, 707. देवासुरनमस्कृतः - देवताओं तथा असुरोंसे वन्दित, 708. देवासुर महामित्रः - देवता तथा असुर दोनोंके बड़े मित्र, 709. देवासुर-महेश्वरः- देवताओं और असुरोंके महान् ईश्वर ॥ 91 ॥
710. देवासुरेश्वरः – देवताओं और असुरोंके शासक, 711. दिव्यः - अलौकिक स्वरूपवाले, |712. देवासुरमहाश्रयः - देवताओं और असुरोंके महान् आश्रय, 713. देवदेवमयः - देवताओंके लिये भी देवतारूप, 714. अचिन्त्यः - चित्तकी सीमासे परे विद्यमान, 715. देवदेवात्मसम्भवः – देवाधिदेव ब्रह्माजीसे रुद्ररूपमें उत्पन्न ॥ 92 ॥
716. सद्योनिः – सत्पदार्थोकी उत्पत्तिके हेतु, 717. असुरव्याघ्रः - असुरोंका विनाश करनेके लिये व्याघ्ररूप, 718. देवसिंहः - देवताओंमें श्रेष्ठ, 719. दिवाकरः - सूर्यरूप, 720. विबुधाग्रचरश्रेष्ठः देवताओंके नायकों में सर्वश्रेष्ठ, 721. सर्वदेवोत्तमोत्तमः - सम्पूर्ण श्रेष्ठ देवताओंके भी शिरोमणि ॥ 93 ॥
722. शिवज्ञानरतः - कल्याणमय शिवतत्त्वके विचारमें तत्पर, 723. श्रीमान्- अणिमा आदि विभूतियोंसे सम्पन्न, 724. शिखिश्रीपर्वतप्रियः | कुमार कार्तिकेयके निवासभूत श्रीशैल नामक पर्वतसे प्रेम करनेवाले, 725. वज्रहस्तः- वज्रधारी इन्द्ररूप, 726. सिद्धखड्गः - शत्रुओंको मार गिरानेमें जिनकी तलवार कभी असफल नहीं होती, ऐसे, 727. नरसिंहनिपातनः - शरभरूपसे नृसिंहको धराशायी करनेवाले ॥ 94 ॥
728. ब्रह्मचारी - भगवती उमाके प्रेमकी परीक्षा लेनेके लिये ब्रह्मचारीरूपसे प्रकट, 729. लोकचारी समस्त लोकोंमें विचरनेवाले, 730. धर्मचारी धर्मका आचरण करनेवाले, 731. धनाधिपःधनके अधिपति कुबेर, 732. नन्दी – नन्दी नामक | गण, 733. नन्दीश्वरः इसी नाम से प्रसिद्ध वृषभ, 734. अनन्तः - अन्तरहित, 735. नग्नव्रतधरः दिगम्बर रहने का व्रत धारण करनेवाले 736. शुचिः नित्यशुद्ध ॥ 95 ॥ लिङ्गाध्यक्षः - लिंगदेहके द्रष्टा, 737. अधिपति, 738. सुराध्यक्ष:- देवताओंके | 739. योगाध्यक्षः योगेश्वर, 740. युगावहः युगके निर्वाहक, 741. स्वधर्मा— आत्मविचाररूप धर्ममें स्थित अथवा स्वधर्म परायण, 742. स्वर्गतः स्वर्गलोक में स्थित 743. स्वर्गस्वरः - स्वर्गलोकमें जिनके यशका गान किया जाता है, ऐसे, 744. स्वरमयस्वनः -सात प्रकारके स्वरोंसे युक्त ध्वनिवाले ll 96 ll
745. बाणाध्यक्षः बाणासुरके स्वामी अथवा बाणलिंग नर्मदेश्वर में अधिदेवतारूपसे स्थित 746. बीजकर्ता - बीजके उत्पादक, 747. धर्मकृद्धर्म सम्भवः- धर्मके पालक और उत्पादक, 748. दम्भः - मायामयरूपधारी, 749. अलोभः लोभरहित 750 अर्धविच्छम्भुः सबके प्रयोजनको जाननेवाले कल्याण- निकेतन शिव, 751. सर्वभूतमहेश्वरः- सम्पूर्ण प्राणियोंके परमेश्वर ॥ 97 ॥
752. श्मशाननिलयः श्मशानवासी, 753. त्र्यक्षः - त्रिनेत्रधारी, 754. सेतुः - धर्ममर्यादाके पालक, 755. अप्रतिमाकृतिः - अनुपम रूपवाले, 756. लोकोत्तरस्फुटालोकः - अलौकिक एवं सुस्पष्ट प्रकाशसे युक्त, 757. त्र्यम्बकः त्रिनेत्रधारी अथवा त्र्यम्बक नामक ज्योतिर्लिंग, 758. नागभूषणः - नागहारसे विभूषित ॥ 98 ॥
759. अन्धकारिः - अन्धकासुरका वध करनेवाले, 760. मखद्वेषी दक्षके यज्ञका विध्वंस करनेवाले, 761. विष्णुकन्धरपातनः - यज्ञमय विष्णुका गला काटनेवाले 762. हीनदोषः दोषरहित, 763. अक्षय गुणः अविनाशी गुणोंसे सम्पन्न, 764. दक्षादिक्षी 765. पूषदन्तभित्— पूषा देवताके दाँत तोड़नेवाले ॥ 99 ॥766. धूर्जटि :- जटाके भारसे विभूषित, 767. खण्डपरशुः खण्डित परशुवाले, 768. सकलो निष्कलः - साकार एवं निराकार परमात्मा, 769. अनघः - पापके स्पर्शसे शून्य, 770. अकालः कालके प्रभावसे रहित, 771. सकलाधारः - सबके आधार, 772. पाण्डुराभ:- श्वेत कान्तिवाले, 773. मृडो नटः- सुखदायक एवं ताण्डवनृत्यकारी ॥ 100 ॥
774. पूर्णः - सर्वव्यापी परब्रह्म परमात्मा, 775. पूरयिता - भक्तोंकी अभिलाषा पूर्ण करनेवाले, 776. पुण्यः - परम पवित्र, 777. सुकुमारः सुन्दर कुमार हैं जिनके, ऐसे अथवा मृदुतासे युक्त, 778. सुलोचनः – सुन्दर नेत्रवाले, 779. सामगेयप्रियः – सामगानके प्रेमी, 780. अक्रूरः क्रूरतारहित, 781. पुण्यकीर्तिः– पवित्र कीर्तिवाले, 782. अनामयः - रोग-शोकसे रहित ॥ 101 ॥
783. मनोजवः - मनके समान वेगशाली, 784. तीर्थकर :- तीर्थोंके निर्माता, 785. जटिल: जटाधारी, 786. जीवितेश्वरः – सबके प्राणेश्वर, 787. जीवितान्तकरः - प्रलयकालमें सबके जीवनका अन्त करनेवाले, 788. नित्यः- सनातन, 789. वसुरेताः - सुवर्णमय वीर्यवाले, 790. वसुप्रदः - धनदाता ॥ 102 ॥
791. सद्गतिः - सत्पुरुषोंके आश्रय, 792. सत्कृतिः - शुभ कर्म करनेवाले, 793. सिद्धिः - सिद्धिस्वरूप, 794. सज्जातिः - सत्पुरुषोंके जन्मदाता, 795. खलकण्टकः- दुष्टोंके लिये कण्टकरूप, 796. कलाधरः - कलाधारी, 797. महाकालभूतः - महाकाल नामक ज्योतिर्लिंगस्वरूप अथवा कालके भी काल होनेसे महाकाल, 798. सत्यपरायणः - सत्यनिष्ठ ll 103 ॥
799. लोकलावण्यकर्ता-सब लोगोंको सौन्दर्य प्रदान करनेवाले, 800. लोकोत्तरसुखालयः - लोकोत्तर सुखके आश्रय, 801 चन्द्रसंजीवनः शास्ता-सोम- नाथरूपसे चन्द्रमाको जीवन प्रदान करनेवाले सर्वशासक शिव, 802. लोकगूढः समस्त संसारमें अव्यक्तरूपसे व्यापक, 803. महाधिपः - महेश्वर ॥ 104 ॥804. लोकबन्धुर्लोकनाथः - सम्पूर्ण लोकोंके बन्धु एवं र 805. कृतज्ञः उपकारको माननेवाले, 806. कीर्तिभूषणः उत्तम यशसे विभूषित, 807 अन पायोऽक्षर:- विनाशरहित-अविनाशी, 808. कान्तः - प्रजापति दक्षका अन्त करनेवाले अथवा कान्तिमय, 809. सर्वशस्त्रभृतां वरः - सम्पूर्ण शस्त्रधारियोंमें श्रेष्ठ ॥ 105 ॥
810. तेजोमयो द्युतिधरः- तेजस्वी और कान्ति- मानु 811. लोकानामग्रणी: सम्पूर्ण जगत्के लिये अग्रगण्य देवता अथवा जगत्को आगे बढ़ानेवाले, 812. अणुः अत्यन्त सूक्ष्म 813. शुचिस्मितः पवित्र मुसकानवाले, 814. प्रसन्नात्मा - हर्षभरे हृदयवाले, 815. दुर्जेयः - जिनपर विजय पाना अत्यन्त कठिन है, ऐसे, 816. दुरतिक्रमः दुर्लघ्य ll 106 ॥
817. ज्योतिर्मयः - तेजोमय, 818. जगन्नाथः - विश्वनाथ, 819 निराकारः आकाररहित परमात्मा, 820. जलेश्वर:- जलके स्वामी, 821. तुम्बवीणः - तूंबीकी वीणा बजानेवाले, 822. महाकोपः - संहारके समय महान् क्रोध करनेवाले, 823. विशोकः - शोकरहित, 824. शोकनाशनः शोकका नाश करने वाले ॥ 107 - 825. त्रिलोकपः - तीनों लोकोंका पालन करनेवाले, 826. त्रिलोकेशः - त्रिभुवनके स्वामी, 827. सर्व-शुद्धिः - सबकी शुद्धि करनेवाले, 828. अधोक्षजः इन्द्रियों और उनके विषयोंसे अतीत, 829. अव्यक्तलक्षणो देवः - अव्यत लक्षणवाले | देवता, 830. व्यक्ता व्यक्तः - स्थूलसूक्ष्मरूप, 831 विशाम्पतिः प्रजाओंके पालक ॥ 108 ॥
832. वरशील:- श्रेष्ठ स्वभाववाले, 833. वरगुणः- उत्तम गुणोंवाले, 834. सारः - सारतत्त्व, 835. मानधनः - स्वाभिमानके धनी, 836. मयः सुखस्वरूप, 830. ब्रह्मा सृष्टिकर्ता ब्रह्मा 838. विष्णुः प्रजापाल:- प्रजापालक विष्णु 839. हंसः - सूर्यस्वरूप, 840. हंसगतिः - हंसके समान चालवाले, 849. वयः गरुड़ पक्षी ॥ 109 ॥842. वेधा विधाता धाता ब्रह्मा, धाता और विधाता नामक देवतास्वरूप, 843. स्स्रष्टा सृष्टिकर्ता, 844. हर्ता-संहारकारी, 845. मुखवाले 846. चतुर्मुखः - चार कैलासशिखरावासी- कैलासके शिखरपर निवास करनेवाले, 847. सर्वावासी सर्वव्यापी, 848. सदागतिः - निरन्तर गतिशील वायुदेवता ॥ 110 ॥
- 849. हिरण्यगर्भः ब्रह्मा 850. दुहिण: ब्रह्मा, 851. भूतपालः - प्राणियोंका पालन करनेवाले, 852. भूपतिः पृथ्वीके स्वामी, 853. सद्योगी श्रेष्ठ योगी, 854. योगविद्योगी– योगविद्याके ज्ञाता योगी, 855. वरदः – वर देनेवाले, 856. ब्राह्मण प्रियः ब्राह्मणोंके प्रेमी ॥ 111 ॥
857. देवप्रियो देवनाथः देवताओंके प्रिय तथा रक्षक, 858. देवन:- देवतत्त्वके ज्ञाता, 859. देव-चिन्तक: - देवताओंका विचार करनेवाले, 860. विष माक्षः - विषम नेत्रवाले, 861. विशालाक्ष: बड़े- बड़े नेत्रवाले, 862. वृषदो वृषवर्धनः- धर्मका दान और वृद्धि करनेवाले ॥ 112 ll
निर्ममः - ममतारहित, 864. निरहङ्कारः अहंकारशून्य, 865. निर्मोहः मोहशून्य, 866. निरुप- द्रवः - उपद्रव या उत्पातसे दूर, 867. दर्पा दर्पदः दर्पका हनन और खण्डन करनेवाले, 868. दृप्तः - स्वाभिमानी, 869. सर्वर्तुपरिवर्तकः समस्त ऋतुओंको बदलते रहनेवाले ॥ 113 ॥ -
870. सहस्रजित् सहसौपर विजय पानेवाले, 871. सहस्त्रार्चिः - सहस्रों किरणोंसे प्रकाशमान सूर्यरूप, 872. स्निग्धप्रकृतिदक्षिणः - स्नेहयुक्त स्वभाववाले तथा उदार, 873. भूतभव्यभवन्नाथः भूत, भविष्य और वर्तमानके स्वामी, 874. प्रभवः सबकी उत्पत्तिके कारण, 875. भूतिनाशन: दुष्टोंके ऐश्वर्यका नाश करनेवाले ॥ 114 ॥ 876. अर्थः – परमपुरुषार्थरूप, 877. अनर्थः प्रयोजनरहित, 878. महाकोशः अनन्त धनराशिके स्वामी, 879. परकायैकपण्डितः पराये कार्यको सिद्ध करनेकी कलाके एकमात्र विद्वान्,880. 881. निष्कण्टकः - कण्टकरहित, कृतानन्दः - नित्यसिद्ध आनन्दस्वरूप, 882. निर्व्याजो व्याजमर्दनः - स्वयं कपटरहित होकर दूसरेके कपटको नष्ट करनेवाले ॥ 115 ॥
- 883. सत्त्ववान् सत्त्वगुणसे युक्त, 884. सात्त्विकः- सत्त्वनिष्ठ, 885. सत्यकीर्तिः - सत्य कीर्तिवाले, 886. स्नेहकृतागमः - जीवोंके प्रति स्नेहके कारण विभिन्न आगमोंको प्रकाशमें लानेवाले, 887. अकम्पितः - सुस्थिर, 888. गुणग्राही-गुणोंका आदर करनेवाले, 889. नैकात्मा नैककर्मकृत् अनेकरूप होकर अनेक प्रकार के कर्म करनेवाले ll 116 ॥
890. सुप्रीतः - अत्यन्त प्रसन्न, 891. सुमुखः सुन्दर मुखवाले, 892. सूक्ष्मः स्थूलभावसे रहित, 893. सुकरः सुन्दर हावाले 894. दक्षिणानिलः - मलयानिलके समान सुखद, 895 नन्दिस्कन्धधरः- नन्दीकी पीठपर सवार होनेवाले 896. धुर्यः - उत्तरदायित्वका भार वहन करने में समर्थ, 897. प्रकटः - भक्तोंके सामने प्रकट होनेवाले अथवा ज्ञानियोंके सामने नित्य प्रकट, 898. प्रीतिवर्धनः प्रेम बढ़ानेवाले ॥ 117 ॥
899. अपराजितः - किसीसे परास्त न होनेवाले, 900. सर्वसत्त्वः - सम्पूर्ण सत्त्वगुणके आश्रय अथवा समस्त प्राणियोंकी उत्पत्तिके हेतु, 101. गोविन्दः गोलोककी प्राप्ति करानेवाले, 202. सत्त्ववाहन: सत्त्वस्वरूप धर्ममय वृषभसे वाहनका काम लेनेवाले, 903. अधृतः आधाररहित 104. स्वभूतः - अपने आपमें ही स्थित, 905. सिद्धः - नित्यसिद्ध, 906. पूतमूर्तिः पवित्र शरीरवाले, 207 - यशोधनः - सुयशके धनी ॥ 118 ॥
908. वाराहशृङ्गभृङ्गी - वाराहको मारकर उसके दाढ़रूपी शृंगोंको धारण करनेके कारण श्रृंगी नामसे प्रसिद्ध, 909. बलवान्-शक्तिशाली, 910. एकनायकः - अद्वितीय नेता, 911 श्रुतिप्रकाश: वेदोंको प्रकाशित करनेवाले, 912. श्रुतिमान् वेदज्ञानसे सम्पन्न, 113. एकबन्धुः - सबके एकमात्र सहायक, 914. अनेक कृत्— अनेक प्रकारके | पदार्थोंकी सृष्टि करनेवाले ॥ 119 ॥915. श्रीवत्सलशिवारम्भः — श्रीवत्सधारी विष्णुके लिये मंगलकारी, 916. शान्तभद्रः - शान्त एवं मंगलरूप, 917. समः सर्वत्र समभाव रखनेवाले, 918. यश:- यशस्वरूप, 919. भूशयः - पृथ्वीपर शयन करनेवाले, 920. भूषणः - सबको विभूषित करनेवाले, 921. भूतिः - कल्याणस्वरूप, 922. भृतकृत् — प्राणियोंकी सृष्टि करनेवाले, 923. भूतभावनः- भूतोंके उत्पादक ॥ 120 ॥
924. अकम्पः - कम्पित न होनेवाले, 925. भक्तिकायः - भक्तिस्वरूप, 926. कालहा-काल और नाशक, 927. नीललोहितः - नील लोहितवर्णवाले, 928. सत्यव्रतमहात्यागी सत्यव्रतधारी एवं महान् त्यागी, 929. नित्यशान्तिपरायणः - निरन्तर शान्त ॥ 121 ॥
930. परार्थवृत्तिर्वरदः - परोपकारव्रती एवं अभीष्ट वरदाता, 931. विरक्त:- वैराग्यवान्, 932. विशारदः - विज्ञानवान् 933. शुभदः शुभकर्ता - शुभ देने और करनेवाले, 934. शुभनामा शुभः स्वयम् - स्वयं शुभस्वरूप होनेके कारण शुभ नामधारी 122 ॥
935. अनर्थितः – याचनारहित, 936. अगुणः - निर्गुण, 937. साक्षी अकर्ता- द्रष्टा एवं कर्तृत्व- रहित, 938. कनकप्रभः - सुवर्णके समान कान्ति- मानू, 939. स्वभावभद्रः - स्वभावतः कल्याणकारी, 940. मध्यस्थः - उदासीन, 941. शत्रुघ्नः - शत्रुनाशक, 942. विघ्ननाशनः– विघ्नोंका निवारण करनेवाले ॥ 123 ॥
943. शिखण्डी कवची शूली–मोरपंख, कवच और त्रिशूल धारण करनेवाले, 944. जटी मुण्डी च कुण्डली - जय, मुण्डमाला और कवच धारण करनेवाले, 945. अमृत्युः - मृत्युरहित, 946. सर्वदृक्सिंहः - सर्वज्ञोंमें श्रेष्ठ, 947. तेजोराशिर्महामणिः - तेज:पुंज महामणि कौस्तुभादिरूप ॥ 124 ॥
948. असंख्येयोऽप्रमेयात्मा – असंख्य नाम, रूप और गुणोंसे युक्त होनेके कारण किसीके द्वारा मापे न जा सकनेवाले, 949. वीर्यवान् | वीर्यकोविदः - पराक्रमी एवं पराक्रमके ज्ञाता,950. वेद्य:- जाननेयोग्य, 951. वियोगात्मा दीर्घकालतक सतीके वियोगमें अथवा विशिष्ट योगकी साधनामें संलग्न हुए मनवाले, 952 परावरमुनीश्वरः - भूत और भविष्य के ज्ञाता मुनीश्वर रूप ।। 125 ।।
953. अनुत्तमो दुराधर्षः - सर्वोत्तम एवं दुर्जय, 954 मधुरप्रियदर्शन: जिनका दर्शन मनोहर एवं प्रिय लगता है, ऐसे, 955. सुरेश :- देवताओंके ईश्वर, 956. शरणम् आश्रयदाता, 957. सर्व: सर्वस्वरूप, 958. शब्दब्रह्म सतां गतिः - प्रणवरूप तथा सत्पुरुषोंके आश्रय ॥ 126 ॥
959. कालपक्षःकाल जिनका सहायक है, ऐसे, 960. कालकाल:- कालके भी काल, 969. कङ्कणीकृतवासुकिः - वासुकि नागको अपने हाथमें कंगनके समान धारण करनेवाले, 962. महेष्वासः - महाधनुर्धर, 963. महीभर्ता पृथ्वीपालक, 964. निष्कलङ्कः- कलंकशून्य, 965. विशृङ्खलः - बन्धनरहित ॥ 127 ll
966. धुमणिस्तरणिः - आकाशमें मणिके समान प्रकाशमान तथा भक्तोंको भवसागरसे तारनेके लिये नौकारूप सूर्य, 167 धन्यः कृतकृत्य 968. सिद्धिदः सिद्धिसाधनः- सिद्धिदाता और सिद्धिके साधक, 969. विश्वतः संवृतः - सब ओरसे मायाद्वारा आवृत, 970. स्तुत्यः-स्तुतिके योग्य, 971. व्यूढोरस्क: चौड़ी छातीवाले, 972. महाभुजः- बड़ी बाँहवाले 128 -.973. सर्वयोनिः सबकी उत्पत्तिके स्थान, 974 निरातङ्कः- निर्भय, 975 नरनारायणप्रियः नर नारायणके प्रेमी अथवा प्रियतम, 976. निर्लेपो निष्प्रपञ्चात्पा दोषसम्पर्कसे रहित तथा जगत्प्रपंचसे अतीत स्वरूपवाले 177. निर्व्यङ्ग विशिष्ट अंगवाले प्राणियोंके प्राकट्य हेतु, 978. व्यङ्गनाशन: यज्ञादि कर्मोंमें होनेवाले अंग वैगुण्यका नाश करनेवाले 129
979. स्तव्यः स्तुतिके योग्य, 980. स्तव प्रियः-स्तुतिके प्रेमी, 981. स्तोता- स्तुति करनेवाले, 982. व्यासमूर्तिः व्यासस्वरूप, 983. निरङ्कुशः - अंकुशरहित स्वतन्त्र,984. निरवद्यमयोपायः - मोक्ष प्राप्तिके निर्दोष उपायरूप, 985. विद्याराशि:- विद्याओंके सागर, 986. रसप्रियः - ब्रह्मानन्दरसके प्रेमी ॥ 130 ॥
987. प्रशान्तबुद्धिः - शान्त बुद्धिवाले, 988. अक्षुण्णः - क्षोभ या नाशसे रहित, 989. संग्रही भक्तोंका संग्रह करनेवाले, 990. नित्यसुन्दरः सतत मनोहर, 999. वैयाघ्रधुर्यः - व्याघ्रचर्मधारी, 992. धात्रीशः - ब्रह्माजीके स्वामी, 993. शाकल्यः- शाकल्य ऋषिरूप, 994. शर्वरीपतिः - रात्रिके स्वामी चन्द्रमारूप ॥ 131 ॥
955. परमार्थगुरुर्दत्तः सूरिः — परमार्थ- तत्त्वका | उपदेश देनेवाले ज्ञानी गुरु दत्तात्रेयरूप, 996. आश्रित वत्सलः - शरणागतोंपर दया करनेवाले, 997. सोमः - उमासहित, 998. रसज्ञः - भक्तिरसके ज्ञाता, 999. रसदः - प्रेमरस प्रदान करनेवाले, 1000. सर्वसत्त्वावलम्बनः - समस्त प्राणियोंको सहारा देनेवाले ॥ 132 ॥
इस प्रकार विष्णुजीने सहस्र नामोंसे शिवजीकी स्तुति और प्रार्थना की तथा हजार कमलोंसे उनकी पूजा की ॥ 133 ॥
हे द्विजो ! उसके बाद लीला करनेवाले उन शिवजीने जो अत्यन्त अद्भुत तथा सुखदायक चरित्र किया, उसे आदरसे सुनिये ॥ 134 ॥