सनत्कुमार बोले - [ हे व्यासजी!] उस समय दानवोंने सभी देवताओंको पराजित कर दिया, जिससे शस्त्रास्त्रों क्षत-विक्षत अंगोंवाले देवता भयभीत होकर भागने लगे ॥ 1 ॥
वे लौटकर शिवजीकी शरणमें गये और 'हे सर्वेश रक्षा करो, रक्षा करो, ऐसा विह्वल वाणीमें कहने लगे ॥ 2 ॥
तब उन देवताओंकी इस प्रकारकी पराजय | देखकर तथा उनका भययुक्त वचन सुनकर शिवजीने महान् क्रोध किया। कृपादृष्टिसे देखकर उन्होंने देवताओंको अभवदान दिया तथा अपने तेजसे गणोंके बलको बढ़ाया ॥ 3-4 ॥
तब शिवपुत्र महावीर कार्तिकेय शिवजीकी आज्ञा लेकर रणक्षेत्रमें दानवोंके साथ निर्भय होकर युद्ध करने लगे। तारकासुरका वध करनेवाले कार्तिकेयने क्रोध करके वीरध्वनि करते हुए उनकी सौ अक्षौहिणी सेनाको युद्धमें मार डाला। कमलके समान नेत्रवाली काली सहसा दैत्योंका सिर काटकर रक्त बहाने लगीं और उनका भक्षण करने लगीं ॥ 5-7 ॥
वे दानवोंके रुधिरका चारों ओरसे पान करने लगीं और देवताओं तथा दानवोंके लिये भयंकर विविध प्रकारके युद्ध करने लगीं। उन्होंने रणमें लीलापूर्वक सौ लाख हाथी एवं सौ लाख दानवोंको एक हाथसे उठाकर मुखमें डाल लिया ॥ 8-9 ॥हजारों कबन्ध युद्धभूमिमें नृत्य करने लगे। उस समय महान् कोलाहल होने लगा, जो कायरोंके लिये भयप्रद था। इसके बाद स्कन्द कुपित हो पुनः बाणोंकी वर्षा करने लगे और उन्होंने क्षणभरमें करोड़ों असुरसेनापतियोंको मारकर गिरा दिया ।। 10-11 ॥ जो शेष दानव मरनेसे बच गये, वे सब स्कन्दके वाणोंसे क्षत-विक्षत तथा भयभीत होकर भागने लगे ॥ 12 ॥ तब वृषपर्वा विप्रचिति, दण्ड, विकम्पन- ये सब बारी-बारीसे स्कन्दके साथ युद्ध करने लगे ॥ 13 ॥
महामारी भी युद्ध करने लगी और बुद्धसे नहीं हटी। उधर स्कन्दकी शक्तिसे पीड़ित हुए असुरगण क्षत-विक्षत होने लगे। हे मुने! उस समय स्कन्द एवं महामारीकी विजय हुई, स्वर्गमें दुन्दुभियाँ बजने लगीं और फूलोंकी वृष्टि होने लगी ।। 14-15 ।।
तब कार्तिकेयके महाभयानक, अद्भुत, दानवोंका क्षय करनेवाले एवं कल्पान्तसदृश और महामारीके द्वारा किये गये क्षयकारी उपद्रवको देखकर वह शंखचूड अत्यन्त कुपित हुआ और स्वयं सहसा युद्धके लिये तैयार हुआ ।। 16-17 ।।
वह शंखचूड अनेक प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंसे युक्त, विविध रत्नोंसे जटित तथा सभी वीरोंको अभय देनेवाले विमानपर चढ़कर महावीरोंके साथ रणभूमिमें उपस्थित हो गया और कर्णपर्यन्त धनुषकी प्रत्यंचा खींचकर वाणोंकी वर्षा करने लगा ॥ 18-19 ॥
उसकी वह शरवृष्टि भयानक थी तथा प्रतीकारके योग्य नहीं थी, उससे युद्धस्थलमें घनघोर अन्धकार छा गया ॥ 20 ॥
सभी देवता तथा नन्दीश्वर आदि जो अन्य थे, वे महागण भागने लगे, उस युद्धमें एकमात्र कार्तिकेय ही डटे रहे ॥ 21 ॥
उस समय दानवराजने पर्वतों, सर्पों, नागों एवं वृक्षोंकी भयंकर एवं दुर्निवार्य वर्षा की उस वृष्टिसे शिवपुत्र स्कन्द उसी प्रकार आहत (आच्छन्न) हो गये जैसे घने कोहरे से आच्छादित सूर्य ॥ 22-23॥हे मुनिश्रेष्ठ! उसने मय दानवके द्वारा सिखायी गयी अपनी अनेक प्रकारकी माया फैलायी, किंतु कोई भी देवता तथा गण उसे नहीं जान सके॥ 24 ॥ उसी समय महामायावी एवं महाबली शंखचूडने अपने एक हो दिव्य वाणसे उनके धनुषको काट दिया ।। 25 ।।
उसने उनके दिव्य रथ एवं रथके रक्षकोंको नष्ट कर दिया तथा अपने दिव्यास्त्रसे उनके मयूरको जर्जर कर दिया ।। 26 ।।
उसने उनके वक्षःस्थलपर सूर्यके समान देदीप्यमान | एवं आघात करनेवाली अपनी शक्तिची तब उसके प्रहारसे वे कार्तिकेय सहसा मूच्छित हो गये ॥ 27 ॥
पुनः [क्षणमात्रमें] चेतना प्राप्तकर शत्रुवीरोंको नष्ट करनेवाले कार्तिकेय अपने महारत्नजटित वाहनपर सवार हो गये। वे कार्तिकेय पार्वतीसहित शिवके चरणोंका स्मरणकर अस्त्र-शस्त्र लेकर घनघोर संग्राम करने लगे ॥ 28-29 ।।
उन शिवपुत्रने क्रोधपूर्वक अपने दिव्यास्त्रसे उसके समस्त सप, पर्वतों, वृक्षों एवं पाषाणोंको काट दिया ॥ 30 ॥
'उन्होंने पार्जन्य बाणके द्वारा लीलासे ही शंखचूडके आग्नेयास्त्रको शान्त कर दिया और उसका रथ तथा धनुष भी काट डाला। वे उसके कवच, समस्त वाहन, उज्ज्वल किरीट एवं मुकुटको नष्टकर वीरध्वनि करने लगे तथा बारंबार गरजने लगे ।। 31-32 ॥
उसके बाद उन्होंने दानवेन्द्रकी छातीपर सूर्यके समान देदीप्यमान शक्तिसे प्रहार किया। उस अत्यन्त तीव्र प्रहारसे वह मूच्छित हो गया। वह महाबली थोड़ी ही देरमें शक्तिकी पीड़ा दूरकर चेतना प्राप्त करके उठ गया तथा सिंहके समान गर्जना करने लगा ॥ 33-34 ।।
उस महाबलीने कार्तिकेयपर अपनी शक्ति प्रहार किया, तब कार्तिकेय विधाता द्वारा दी गयी शतिको अमोध सिद्ध करनेके लिये पृथ्वीतलपर गिर पड़े॥ 235॥
तब काली उन्हें अपनी गोदमें उठाकर शिवजीके पास ले आयीं। शिवजीने अपनी लीलासे ज्ञानके द्वारा उन्हें जीवित कर दिया और उन्हें अनन्त बल प्रदान किया। तब वे महाप्रतापी शिवपुत्र उठ बैठे तथा पुनः बुद्धमें जानेका विचार करने लगे ॥ 36-37॥इसी बीच महाबली तथा पराक्रमी वीरभद्र बलशाली शंखचूडके साथ रणक्षेत्रमें युद्ध करने लगे ॥ 38 ॥
उस दानवने समरमें जिन-जिन अस्त्रोंको चलाया, उन-उन अस्त्रोंको उन वीरभद्रने लीलापूर्वक अपने बाणोंसे नष्ट कर दिया ।। 39 ।।
तब उस दानवेश्वरने सैकड़ों दिव्य अस्त्र छोड़े, किंतु प्रतापी वीरभद्रने अपने बाणोंसे उनका छेदन कर दिया ॥ 40 ॥
तब प्रतापी शंखचूड अत्यन्त कुपित हुआ। उसने अपनी शक्तिके द्वारा उनकी छातीपर प्रहार किया, जिससे वे काँप उठे और पृथ्वीपर गिर गये ॥ 41 ॥ इसके बाद गणोंमें प्रमुख गणेश्वर वीरभद्र क्षणमात्रमें चेतना प्राप्तकर उठ बैठे और उन्होंने पुनः अपना धनुष ले लिया ॥ 42 ॥
इसी बीच काली कार्तिकेयकी इच्छासे दानवोंका भक्षण करने तथा अपने गणोंकी रक्षा करने हेतु युद्धभूमिमें गयीं और वे नन्दीश्वर आदि वीरगण, सभी देवता, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस तथा नाग उनके पीछे-पीछे चलने लगे। बाजे बजने लगे, सैकड़ों वीर मधुभाण्ड लिये हुए थे। दोनों पक्षके वीर युद्धके लिये उद्यत थे । ll 43-45 ॥