सनत्कुमार बोले – उस दूतने वहाँ जाकर शिवजीको सारी बात तथा उनका निश्चय विस्तारपूर्वक यथार्थ रूपसे कह दिया ॥ 1 ॥
उसे सुनकर उस प्रतापी दानवेन्द्र शंखचूडने बड़े प्रेमके साथ युद्ध करनेकी चुनौती स्वीकार कर ली ॥ 2 ॥
इसके बाद वह बड़ी शीघ्रताके साथ अमात्योंके सहित विमानपर आरूढ़ हुआ और शंकरजीके साथ युद्ध करनेके लिये उसने अपनी सेनाको आज्ञा दे दी ॥ 3 ll शिवजीने भी शीघ्रतासे अपनी सेना एवं देवताओंको
[ युद्धके लिये] प्रेरित किया और वे स्वयं सर्वेश्वर होकर लीलापूर्वक युद्धके लिये तैयार हो गये ॥ 4 ॥ इसके बाद शीघ्र ही युद्ध प्रारम्भ हो गया। उस समय अनेक प्रकारके बाजे बजने लगे, कोलाहल और वीरोंकी गर्जनाएँ होने लगीं ॥ 5 ॥ हे मुने! देव और दानवोंका परस्पर युद्ध होने
लगा। देवता तथा दानव धर्मपूर्वक युद्ध करने लगे ॥ 6 ॥ स्वयं महेन्द्र वृषपर्वाके साथ तथा भास्कर विप्रचितिके साथ धर्मपूर्वक युद्ध करने लगे ॥7॥
दम्भके साथ विष्णुका महान् युद्ध होने लगा। काल कालासुरके साथ, अग्नि गोकर्णके साथ, कुबेर कालकेयके साथ, विश्वकर्मा मयके साथ, मृत्यु भयंकरके साथ, यमराज संहारके साथ, वरुण कालम्बिकके साथ, समीरण चंचलके साथ, बुध घटपृष्ठके साथ, शनैश्चर रक्ताक्षके साथ, जयन्त रत्नसारके साथ, अष्ट वसु वर्चस्गणोंके साथ, अश्विनीकुमार दोनों दीप्तिमानोंके साथ, नलकूबर धूम्रके साथ, धर्म धुरन्धरके साथ, मंगल गणकाक्षके साथ, वैश्वान शोभाकरके साथ, कामदेव पिपिटके साथ, बारहों आदित्य गोकामुख, चूर्ण, खड्ग नामक असुर, धूम्र, संहल, विश्व, प्रतापी एवं पलाशके साथ धर्मपूर्वक युद्ध करने लगे। शिवकी सहायता प्राप्तकर | देवगण असुरोंके साथ युद्ध करने लगे ॥ 8-14 ॥
एकादश महारुद्र भयंकर, महाबली, महापराक्रमी तथा वीर ग्यारह असुरोंसे युद्ध करने लगे। महामणि उग्रचण्ड आदिके साथ, चन्द्रमा राहुके साथ तथा बृहस्पति शुक्राचार्यके साथ धर्मपूर्वक युद्ध करने लगे। नन्दीश्वर आदि शिवगण भी दानवोंके साथ युद्ध करने लगे, उसका पृथक्-पृथक् वर्णन विस्तारके भयसे नहीं किया गया । ll 15-17॥
हे मुने! उस समय शिवजी काली एवं पुत्रके साथ वटके मूलमें स्थित रहे और समस्त सैन्यसमूह निरन्तर युद्ध कर रहे थे। रत्नजटित आभूषणोंसे भूषित शंखचूड भी करोड़ों दानवोंसे युक्त रनजटित मनोहर सिंहासनपर बैठा हुआ था। इसके बाद देवताओं एवं असुरोंका विनाश करनेवाला महायुद्ध छिड़ गया। उस महायुद्ध में नाना प्रकारके दिव्य आयुध चल रहे थे ॥ 18-20 ॥गदा, ऋष्टि, पट्टिश, चक्र, भुशुण्डी, प्रास, मुद्गर, निरिवंश, भाला, परिष, शक्ति, उन्मुख, परशु बाग, तोमर, खड्ग, सहस्रों तोपें, भिन्दिपाल एवं अन्य शस्त्र वीरकि हाथोंमें शोभित हो रहे थे ।। 21-22 ।।
महान् उत्साहसे युक्त वीर लोग युद्धमें गरजती हुई दोनों सेनाओंके वीरोंके सिरोंको इन आयुधों से काटने लगे। हाथी, घोड़े, रथ, पैदल तथा अनेक प्रकारके सवारसहित वाहन युद्धमें कट रहे थे ।। 23-24 ॥
भुजा जहर, हाथ, कटि, दोनों कान, पैर, ध्वज, बाण, तलवार, कवच एवं उत्तम आभूषण कटकर पृथ्वीपर गिरने लगे। उस समय योद्धाओंके कटे हुए किरीट-कुण्डलयुक्त सिरोंसे तथा हाथियोंकी कटी हुई मुँहाँसे, कटी हुई आभूषणयुक्त भुजाओं तथा कटे हुए आयुधों एवं कटे हुए अन्य अंगोंसे समस्त पृथ्वी मधुमक्खीके छत्तोंके समान पट गयी ।। 25-27॥
युद्धमें कटे हुए सिरोंकी आँखोंसे कबन्धकी ओर देखते हुए योद्धा शस्त्र धारण की हुई भुजाओंको ऊपरकी ओर उठाकर जहाँ-तहाँ दौड़ रहे थे ॥ 28 ।।
महाबलवान् एवं महापराक्रमी वीर तीव्र नाद करते हुए अनेक प्रकारके शस्त्रास्त्रोंसे परस्पर युद्ध कर रहे थे। कुछ योद्धा युद्धमें सुवर्णमुखवाले बाणोंसे योद्धाओंको मारकर जलवृष्टि करनेवाले मेथोंके समान वीरगर्जना कर रहे थे कोई वीर चारों ओरसे अपने बाणोंसे रथसहित सारथीको इस प्रकार ढँक दे रहा था, जिस प्रकार बादल सूर्यको ढँक लेता है ॥ 29-31 ॥
द्वन्द्वयुद्ध करनेवाले वीर एक-दूसरे से भिड़कर ललकारते हुए तथा एक-दूसरेके आगे जाते हुए मर्मस्थलपर प्रहार करते हुए आपसमें युद्ध कर रहे थे ॥ 32 ॥
उस महायुद्धमें वीरसमूह चारों ओरसे अपने हाथोंमें नाना प्रकारके ध्वज तथा आयुध लेकर सिंहनाद करते हुए दिखायी पड़ रहे थे। उस युद्धमें महाबीर महान् शब्द करनेवाले अपने शंखोंको पृथक पृथक् बजा रहे थे और प्रसन्न होकर घोर नाद कररहे थे। इस प्रकार दीर्घकालतक देवताओं तथा दानवोंका विकट, भयंकर तथा वीरोंको हर्षित करनेवाला महायुद्ध हुआ। परमात्मा महाप्रभु शंकरकी यह लीला है, जिसने देवता, मनुष्य एवं असुरोंसहित सभीको मोहित कर रखा है ॥ 33-36 ॥