सनत्कुमार बोले- तब उस दूतका वचन सुनकर देवाधिदेव भगवान् शंकर कुपित होकर वीरभद्रादि गणोंसे कहने लगे- ॥ 1 ॥
रुद्र बोले- हे वीरभद्र हे नन्दिन् हे क्षेत्रपालो ! हे अष्टभैरव ! समस्त बलशालीगण! तुम लोग मेरी आज्ञासे अपने-अपने शस्त्र लेकर युद्धके लिये तैयार हो जाओ और दोनों कुमारोंके साथ [युद्धके लिये ] निकल पड़ो। ये भद्रकाली भी अपनी सेनाके साथ युद्धके लिये चलें। मैं शंखचूड़का वध करनेके लिये अभी शीघ्र ही निकल रहा हूँ ।। 2-3 llसनत्कुमार बोले- इस प्रकारको आज्ञा | देकर शिवजी अपनी सेनाके साथ निकल पड़े और सभी वीरगण भी अत्यन्त हर्षित होकर उनके पीछे चल पड़े ॥ 4 ॥
इसी बीच सभी सेनाओंके स्वामी कुमार कार्तिकेय तथा गणेशजी भी प्रसन्न होकर आयुधोंसे युक्त होकर शिवजीके समीप गये। वीरभद्र, नन्दी, महाकाल, सुभद्रक, विशालाक्ष, बाण, पिंगलाक्ष, विकम्पन, विरूप, विकृति, मणिभद्र, बाष्कल, कपिल, दीर्घदंष्ट्र, विकर, ताम्रलोचन, कालंकर, बलीभद्र, कालजिह, कुटीचर, बलोन्मत्त, रण- श्लाघ्य, दुर्जय एवं दुर्गम इत्यादि गणेश्वर तथा श्रेष्ठ सेनापति भी शिवजीके साथ रणभूमिमें चले । अब मैं उनकी संख्या बता रहा हूँ, सावधानीपूर्वक सुनिये ॥ 5-9 ॥
शत्रुओंका मर्दन करनेवाला शंखकर्ण एक करोड़ सेनाके साथ, केकराक्ष दस करोड़, विकृत आठ करोड़, विशाख चौंसठ करोड़, पारियात्रिक नौ करोड़, सर्वान्तक छ: करोड़, श्रीमान् विकृतानन छः करोड़, गणोंमें श्रेष्ठ जालक बारह करोड़, समद सात करोड़, श्रीमान् दुन्दुभ आठ करोड़, करालाक्ष पाँच करोड़, श्रेष्ठ सन्दारक छ: करोड़, कन्दुक तथा कुण्डक एक एक करोड़, सभीमें श्रेष्ठ विष्टम्भ नामक गणेश्वर आठ करोड़, पिप्पल एवं सन्नाद हजार करोड़, आवेशन तथा चन्द्रतापन आठ-आठ करोड़ और गणेश्वर महाकेश सहस्र करोड़ गणोंसे घिरा हुआ था ॥ 10-15 ll
कुण्डी एवं पर्वतक बारह करोड़ बीरों, काल, कालक एवं महाकाल सौ करोड़, अग्निक सौ करोड़, अग्निमुख एक करोड़, आदित्य एवं धनावह आधा आधा करोड़, सन्नाह तथा कुमुद सौ करोड़, अमोघ, कोकिल एवं सुमन्त्रक सौ-सौ करोड़, काकपाद और सन्तानक साठ-साठ करोड़, महाबल नौ करोड़, मधुपिंगल पाँच करोड़, नील, देवेश एवं पूर्णभद्र नब्बे नब्बे करोड़, महाबलवान् चतुर्वका सात करोड़ गणोंके साथ, इसी प्रकार अन्य महावीर गण हजारों, सैकड़ों तथा बीसों करोड़ गणको साथ लेकर वहाँ युद्धोत्सवमें आये ॥ 16-21 ॥वीरभद्र सहस्र करोड़ भूतगणों, तीन करोड़ प्रमथों, चौसठ करोड़ गणों एवं तीन करोड़ लोमजक सहित आये। काष्ठारूढ, सुकेश, वृषभ, विरूपाक्ष एवं भगवान् सनातन भी चौंसठ करोड़ गणोंके साथ आये ।। 22-23 ॥
तालकेतु, पडास्य, पंचास्य, प्रतापी संवर्तक, चैत्र, लकुलीश स्वयंप्रभु लोकान्तक, दीप्तात्मा, दैत्यानक, प्रभु देव भृंगी देवाधिदेव महादेवके अत्यन्त प्रिय श्रीमान् रिटि अशनि, भानुक चौंसठ सहस्र करोड़ गणोंके साथ आये। इसी प्रकार कंकाल, कालक, काल, नन्दी, सर्वान्तक तथा अन्य असंख्य महाबली गणेश्वर शंखचूडके साथ युद्धके लिये निर्भय होकर प्रेमपूर्वक निकल पड़े ॥ 24-27॥
ये सभी गण हजारों हाथोंसे युक्त तथा जटा मुकुट धारण किये हुए थे। वे मस्तकपर चन्द्रकलासे युक्त, नीलकण्ठ एवं त्रिलोचन थे। सभी रुद्राक्ष एवं भस्म धारण किये हुए थे और हार, कुण्डल, केयूर एवं मुकुट आदिसे अलंकृत थे। वे ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णुके सहस अणिमादि सिद्धियोंसे युक्त, करोड़ों सूर्य के समान देदीप्य मान एवं युद्धक्रियामें अत्यन्त प्रवीण थे ॥ 28-30॥
हे मुने। उनमें कोई पृथ्वीमें, कोई पातालमें, कोई आकाशमें तथा कोई सातों स्वर्गों में विचरण करनेवाले
थे । हे देवर्षे ! बहुत कहनेसे क्या लाभ उस समय
सम्पूर्ण लोकोंमें रहनेवाले सभी शिवगण दानवोंसे युद्ध
करनेके लिये आ पहुँचे ।। 31-32 ।।
जो आठों भैरव, महाभयानक एकादश रुद्र, आठों वसु, इन्द्र, द्वादशादित्य थे, वे शीघ्र आ पहुँचे ॥ 33 ॥
हुताशन, चन्द्रमा, विश्वकर्मा, दोनों अश्विनीकुमार, कुबेर, यम, निर्ऋति, नलकूबर, वायु, वरुण, बुध एवं मंगल तथा अन्य ग्रह और वीर्यवान् कामदेव शिवजीके साथ आये ।। 34-35 ॥
उग्रदंष्ट्र, उग्रदण्ड, कोरट, कोटभ आदि महागण आये। स्वयं सौ भुजा धारण की हुई भगवती भद्रकाली | महादेवी स्वयं उस युद्धमें उपस्थित हुई। वे उत्तम | रत्नोंसे निर्मित विमानपर बैठी हुई थीं, रक्त वस्त्र, रक्त अनुलेपन एवं रक्तमाल्य धारण किये हुए थीं, प्रसन्नतासे हँसती हुई, सुस्वरसे गाती हुई, नृत्य करती हुई वे अपने भक्तोंको अभय प्रदान कर रही थीं तथा शत्रुओंको भय उत्पन्न कर रही थीं ॥ 36-38 ॥वे एक योजनपर्यन्त लम्बी विकट जिह्वा धारण किये उसे लपलपा रही थीं और शंख, चक्र, गदा, पद्म, खड्ग, चर्म, धनुष तथा बाण धारण की हुई थीं ॥ 39 ॥
वे एक योजनका गोल तथा अत्यन्त गहरा खर्पर, आकाशको स्पर्श करता हुआ त्रिशूल, एक योजन लम्बी शक्ति, मुद्गर, मुसल, वज्र, खड्ग, विशाल फलक (ढाल), वैष्णवास्त्र, वारुणास्त्र, वायव्यास्त्र, नागपाश, नारायणास्त्र, गन्धर्वास्त्र, ब्रह्मास्त्र, गरुडास्त्र, पर्जन्यास्त्र, पाशुपतास्त्र, जृम्भणास्त्र, पर्वतास्त्र, महावीरास्त्र, सौरास्त्र, कालकालास्त्र, महानलास्त्र, महेश्वरास्त्र, यमदण्ड, सम्मोहनास्त्र, दिव्य समर्थास्त्र एवं सैकड़ों सैकड़ों दिव्यास्त्र एवं अन्य भी अस्त्र अपने हाथोंमें धारण किये हुए तीन करोड़ योगिनियों एवं तीन करोड़ विकट डाकिनियोंके साथ वहाँ आकर स्थित हो गयीं ॥ 40-45 ॥
इसी प्रकार भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्माण्ड, ब्रह्मराक्षस, वेताल, राक्षस, यक्ष, गन्धर्व तथा किन्नरोंसे घिरे हुए स्कन्द शिवजीको प्रणाम करके और उनकी आज्ञासे वे उनके समीप स्थित हो गये । ll 46-47 ll
इसके बाद रुद्र शिवजी अपनी सारी सेना लेकर शंखचूडके साथ युद्ध करनेके लिये निर्भय होकर चल पड़े। महादेव चन्द्रभागा नदीके तटपर एक मनोहर वटवृक्षके नीचे देवताओंका कष्ट दूर करने हेतु स्थित हो गये । ll 48-49 ।।