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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 1, अध्याय 22 - Sanhita 1, Adhyaya 22

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शिव- नैवेद्य-भक्षणका निर्णय एवं बिल्वपत्रका माहात्म्य

ऋषिगण बोले हे महामुने! हमने पहले सुना है कि भगवान् शिवको अर्पित किया गया नैवेद्य अग्राह्य होता है, अतएव नैवेद्यके विषयमें निर्णय और बिल्वपत्रका माहात्म्य भी कहिये ॥ 1 ॥सूतजी बोले- हे मुनियों अब आप स सावधानीसे सुनें। मैं प्रेमपूर्वक सब कुछ कह रहा है। आप लोग शिवव्रत धारण करनेवाले हैं, अतः आप हैं। धन्य हैं ॥ 2 ॥

जो शिवका भक्त, पवित्र, शुद्ध, सद्व्रती तथा दुढनिश्चयी है, उसे शिवनैवेद्य अवश्य करना चाहिये और अग्राह्य भावनाका त्याग कर देना। चाहिये ॥ 3 ॥

शिवनैवेद्यको देखनेमात्र से ही सभी पाप दूर है | जाते हैं और शिवका नैवेद्य भक्षण करनेसे तो करोड़ों पुण्य स्वतः आ जाते हैं ॥ 4 ॥

हजार यज्ञोंकी बात कौन कहे, अर्बुद यह करने भी वह पुण्य प्राप्त नहीं हो पाता है, जो शिवनैवेद खानेसे प्राप्त हो जाता है। शिवका नैवेद्य खानेसे तो शिवसायुज्यकी प्राप्ति भी हो जाती है ॥ 5 ॥

जिस घरमें शिवको नैवेद्य लगाया जाता है या अन्यत्रसे शिवको समर्पित नैवेद्य प्रसादरूपमें आ जात है, वह घर पवित्र हो जाता है और वह अन्यको भी पवित्र करनेवाला हो जाता है ॥ 6 ll

आये हुए शिवनैवेद्यको प्रसन्नतापूर्वक सिर झुकाकर ग्रहण करके भगवान् शिवका स्मरण करते हुए उसे खा लेना चाहिये ॥ 7 ॥

आये हुए शिवनैवेद्यको दूसरे समयमें ग्रहण करूँगा-ऐसी भावना करके जो मनुष्य उसे ग्रहण करनेमें विलम्ब करता है, उसे पाप लगता है ॥ 8 ॥ जिसमें शिवनैवेद्य ग्रहण करनेकी इच्छा उत्पन्न नहीं होती, वह महान् पापी होता है और निश्चित रूपसे नरकको जाता है ॥ 9 ॥

हृदयमें अवस्थित शिवलिंग या चन्द्रकान्तमणि हुए शिवलिंग अथवा स्वर्ण या चाँदीसे बनाये। बने | गये शिवलिंगको समर्पित किया गया नैवेद्य शिवकी दीक्षा लिये भक्तको खाना ही चाहिये- ऐसा कहा गया है ॥ 10 ॥

इतना ही नहीं शिवदीक्षित भक्त समस्त | शिवलिंगोंके लिये समर्पित महाप्रसादरूप शुभ शिवनैवेद्यको खा सकता है ॥ 11 ॥जिन मनुष्योंने अन्य देवोंकी दीक्षा ली है और शिवकी भक्तिमें वे अनुरक्त रहते हैं, उनके लिये शिवनैवेद्यके भक्षणके विषयमें निर्णयको प्रेमपूर्वक आप सब सुनें ॥ 12 ॥

हे ब्रह्मणे शालग्राममें उत्पन्न शिवलिंग, रसलिंग (पारदलिंग), पाषाणलिंग, रजतलिंग, स्वर्णलिंग, देवों और सिद्ध मुनियोंके द्वारा प्रतिष्ठित शिवलिंग, केसरके बने हुए लिंग, स्फटिकलिंग, रत्नलिंग और ज्योतिर्लिंग आदि समस्त शिवलिंगोंके लिये समर्पित नैवेद्यका भक्षण करना चान्द्रायण व्रतके समान फल देनेवाला कहा गया है ।। 13-14 ।।

यदि ब्रह्महत्या करनेवाला भी पवित्र होकर शिवका पवित्र निर्माल्य धारण करता है और उसे खाता है, उसके सम्पूर्ण पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ॥ 15 ॥

जहाँ चण्डका अधिकार हो, वहाँ शिवलिंगके लिये समर्पित नैवेद्यका भक्षण मनुष्योंको नहीं करना चाहिये; जहाँ चण्डका अधिकार न हो, वहाँ भक्तिपूर्वक भक्षण करना चाहिये ll 16 ॥

बाणलिंग, लौहलिंग, सिद्धलिंग, स्वयम्भूलिंग और अन्य समस्त प्रतिमाओंमें चण्डका अधिकार नहीं होता है ॥ 17 ॥

जो विधिपूर्वक शिवलिंगको स्नान कराकर उस स्नानजलको तीन बार पीता है, उसके समस्त पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ॥ 18 ॥ [चण्डके द्वारा अधिकृत होनेके कारण] अग्राह्य शिवनैवेद्य पत्र-पुष्प फल और जल - यह सब शालग्रामशिलाके स्पर्शसे पवित्र हो जाता है ।। 19 ।।

हे मुनीश्वरो! शिवलिंगके ऊपर जो भी द्रव्य चढ़ाया जाता है, वह अग्राह्य है और जो लिंगके स्पर्शसे बाहर है, उसे अत्यन्त पवित्र जानना चाहिये ॥ 20 ॥

हे मुनिश्रेष्ठो इस प्रकार मैंने शिवनैवेद्यका निर्णय कह दिया। अब आप सब सावधानीसे बिल्वपत्रके माहात्म्यको आदरपूर्वक सुनें ll 21 ll

बिल्ववृक्ष तो महादेवस्वरूप है, देवोंके द्वारा भी इसकी स्तुति की गयी है, अतः जिस किसी प्रकारसे | उसकी महिमाको कैसे जाना जा सकता है॥ 22 ॥संसारमें जितने भी प्रसिद्ध तीर्थ हैं, वे सब तीर्थ बिल्वके मूलमें निवास करते हैं ॥ 23 ॥

जो पुण्यात्मा बिल्ववृक्षके मूलमें लिंगरूपी अव्यय भगवान् महादेवकी पूजा करता है, वह निश्चित रूपसे शिवको प्राप्त कर लेता है ॥ 24 ॥

जो प्राणी बिल्ववृक्षके मूलमें शिवजीके मस्तकपर अभिषेक करता है, वह समस्त तीर्थोंमें स्नान करनेका फल प्राप्तकर पृथ्वीपर पवित्र हो जाता है ॥ 25 ॥

इस बिल्ववृक्षके मूलमें बने हुए उत्तम थालेको जलसे परिपूर्ण देखकर भगवान् शिव अत्यन्त प्रसन्न होते हैं ॥ 26 ॥

जो व्यक्ति गन्ध-पुष्पादिसे बिल्ववृक्षके मूलका पूजन करता है, वह शिवलोकको प्राप्त करता है और उसके सन्तान और सुखकी अभिवृद्धि होती है ॥ 27 ॥

जो मनुष्य बिल्ववृक्षके मूलमें आदरपूर्वक दीपमालाका दान करता है, वह तत्त्वज्ञानसे सम्पन्न होकर महादेवके सान्निध्यको प्राप्त हो जाता है ॥ 28 ll

जो बिल्वशाखाको हाथसे पकड़कर उसके नवपल्लवको ग्रहण करके बिल्वकी पूजा करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥ 29 ॥

जो पुरुष भक्तिपूर्वक बिल्ववृक्षके नीचे एक शिवभक्तको भोजन कराता है, उसे करोड़ों मनुष्योंको भोजन करानेका पुण्य प्राप्त होता है ॥ 30 ॥ जो बिल्ववृक्षके नीचे दूध और घीसे युक्त अन्न शिव-भक्तको प्रदान करता है, वह दरिद्र नहीं रह जाता है ॥ 31 ॥

हे ब्राह्मणो! इस प्रकार मैंने सांगोपांग शिवलिंगके पूजनविधानको कह दिया है। इसमें भी प्रवृत्तों और | निवृत्तोंके लिये दो भेद हैं ॥ 32 ॥

प्रवृत्तिमार्गियोंके लिये पीठपूजा इस भूतलपर सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओंको देने वाली होती है। प्रवृत्त पुरुषको चाहिये कि सुपात्र गुरु आदिके द्वारा ही सारी पूजा सम्पन्न करे ।। 33 ।।

शिवलिंगका अभिषेक करनेके पश्चात् अगहनी अन्नसे नैवेद्य लगाना चाहिये। पूजाके अन्तमें उस शिवलिंगको किसी शुद्ध पुट (डिब्बे) में रख देना चाहिये अथवा किसी दूसरे शुद्ध घरमें स्थापित करदेना चाहिये। निवृत्तिमार्गी उपासकोंके लिये हाथपर ही शिवपूजाका विधान है। उन्हें [भिक्षा आदिसे प्राप्त] अपने भोजनको ही नैवेद्यरूपमें अर्पित करना चाहिये। निवृत्तिमार्गियोंके लिये परात्पर सूक्ष्म लिंग ही श्रेष्ठ बताया गया है। उन्हें चाहिये कि विभूतिसे ही पूजा करें और विभूतिका ही नैवेद्य शिवको प्रदान करें। पूजा करनेके पश्चात् उस विभूतिस्वरूप लिंगको सिरपर सदा धारण करना चाहिये ॥ 34-36॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] प्रयागमें सूतजीसे मुनियों का शीघ्र पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न
  2. [अध्याय 2] शिवपुराणका माहात्म्य एवं परिचय
  3. [अध्याय 3] साध्य-साधन आदिका विचार
  4. [अध्याय 4] श्रवण, कीर्तन और मनन इन तीन साधनोंकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन
  5. [अध्याय 5] भगवान् शिव लिंग एवं साकार विग्रहकी पूजाके रहस्य तथा महत्त्वका वर्णन
  6. [अध्याय 6] ब्रह्मा और विष्णुके भयंकर युद्धको देखकर देवताओंका कैलास शिखरपर गमन
  7. [अध्याय 7] भगवान् शंकरका ब्रह्मा और विष्णु के युद्धमें अग्निस्तम्भरूपमें प्राकट्य स्तम्भके आदि और अन्तकी जानकारीके लिये दोनोंका प्रस्थान
  8. [अध्याय 8] भगवान् शंकरद्वारा ब्रह्मा और केतकी पुष्पको शाप देना और पुनः अनुग्रह प्रदान करना
  9. [अध्याय 9] महेश्वरका ब्रह्मा और विष्णुको अपने निष्कल और सकल स्वरूपका परिचय देते हुए लिंगपूजनका महत्त्व बताना
  10. [अध्याय 10] सृष्टि, स्थिति आदि पाँच कृत्योंका प्रतिपादन, प्रणव एवं पंचाक्षर मन्त्रकी महत्ता, ब्रह्मा-विष्णुद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति तथा उनका अन्तर्धान होना
  11. [अध्याय 11] शिवलिंगकी स्थापना, उसके लक्षण और पूजनकी विधिका वर्णन तथा शिवपदकी प्राप्ति करानेवाले सत्कर्मोका विवेचन
  12. [अध्याय 12] मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रोंका वर्णन, कालविशेषमें विभिन्न नदियोंके जलमें स्नानके उत्तम फलका निर्देश तथा तीर्थों में पापसे बचे रहनेकी चेतावनी
  13. [अध्याय 13] सदाचार, शौचाचार, स्नान, भस्मधारण, सन्ध्यावन्दन, प्रणव- जप, गायत्री जप, दान, न्यायतः धनोपार्जन तथा अग्निहोत्र आदिकी विधि एवं उनकी महिमाका वर्णन
  14. [अध्याय 14] अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ आदिका वर्णन, भगवान् शिवके द्वारा सातों वारोंका निर्माण तथा उनमें देवाराधनसे विभिन्न प्रकारके फलोंकी प्राप्तिका कथन
  15. [अध्याय 15] देश, काल, पात्र और दान आदिका विचार
  16. [अध्याय 16] मृत्तिका आदिसे निर्मित देवप्रतिमाओंके पूजनकी विधि, उनके लिये नैवेद्यका विचार, पूजनके विभिन्न उपचारोंका फल, विशेष मास, बार, तिथि एवं नक्षत्रोंके योगमें पूजनका विशेष फल तथा लिंगके वैज्ञानिक स्वरूपका विवेचन
  17. [अध्याय 17] लिंगस्वरूप प्रणवका माहात्म्य, उसके सूक्ष्म रूप (अकार) और स्थूल रूप (पंचाक्षर मन्त्र) का विवेचन, उसके जपकी विधि एवं महिमा, कार्यब्रह्मके लोकोंसे लेकर कारणरुद्रके लोकोंतकका विवेचन करके कालातीत, पंचावरणविशिष्ट शिवलोकके अनिर्वचनीय वैभवका निरूपण तथा शिवभक्तोंके सत्कारकी महत्ता
  18. [अध्याय 18] बन्धन और मोक्षका विवेचन, शिवपूजाका उपदेश, लिंग आदिमें शिवपूजनका विधान, भस्मके स्वरूपका निरूपण और महत्त्व, शिवके भस्मधारणका रहस्य, शिव एवं गुरु शब्दकी व्युत्पत्ति तथा विघ्नशान्तिके उपाय और शिवधर्मका निरूपण
  19. [अध्याय 19] पार्थिव शिवलिंगके पूजनका माहात्म्य
  20. [अध्याय 20] पार्थिव शिवलिंगके निर्माणकी रीति तथा वेद-मन्त्रोंद्वारा उसके पूजनकी विस्तृत एवं संक्षिप्त विधिका वर्णन
  21. [अध्याय 21] कामनाभेदसे पार्थिवलिंगके पूजनका विधान
  22. [अध्याय 22] शिव- नैवेद्य-भक्षणका निर्णय एवं बिल्वपत्रका माहात्म्य
  23. [अध्याय 23] भस्म, रुद्राक्ष और शिवनामके माहात्म्यका वर्णन
  24. [अध्याय 24] भस्म-माहात्म्यका निरूपण
  25. [अध्याय 25] रुद्राक्षधारणकी महिमा तथा उसके विविध भेदोंका वर्णन