ब्रह्माजी बोले- [हे नारद!] इस प्रकार ब्राह्मणीने देवी पार्वतीको पातिव्रत्यधर्मका उपदेश देकर मेनाको बुलाकर कहा-अब इनकी यात्राकी तैयारी कीजिये ॥ 1 ॥मेनाने भी 'तथास्तु' कहा और व प्रमस विभार हो गयीं। तदनन्तर धैर्य धारणकर कालीको बुलाकर उसके विरहसे व्याकुल हो उठीं, उस समय वे मेना पार्वतीको बारंबार गले लगाकर ऊँचे स्वरमें रोने लगीं और पार्वती भी दीनवचन कहती हुई ऊँचे स्वरसे रोने लगीं ॥2-3 ॥
शोकव्यथित होकर शैलप्रिया मेना और पार्वती मूच्छित हो गयीं। पार्वतीके रोनेके शब्दसे सभी देवपलियाँ भी अपनी सुध-बुध खो बैठीं। उस समय सभी देवस्त्रियाँ रोने लगीं तथा अचेत हो गयीं। विदा होते हुए स्वयं योगीश्वर भी रो पड़े, तब दूसरोंकी क्या बात! ॥ 4-5 ।।
इसी समय बड़ी शीघ्रताके साथ हिमालय भी अपने सभी पुत्रों, मन्त्रियों तथा अन्य ब्राह्मणोंके साथ वहाँ आ पहुँचे। उस समय हिमालय भी पार्वतीको गोदमें लेकर मोहवश रोने लगे। हे वत्से ! इस घरको शून्यकर तुम कहाँ जा रही हो? इस प्रकार कह करके वे बारंबार रोने लगे ॥ 6-7 ॥
तब ब्राह्मणोंके साथ उनके ज्ञानी तथा श्रेष्ठ पुरोहितने उनपर कृपाकर अध्यात्मविद्याका उपदेश | देकर उन्हें समझाया। महामाया पार्वतीने [ विदाईके समय] माता-पिता तथा गुरुजनोंको भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और वे लोकाचारवश जोर-जोर से रोने लगीं ॥ 8-9 ।।
पार्वतीके रोनेसे वहाँ उपस्थित सभी स्त्रियाँ, माता मेना, सगे-सम्बन्धी तथा अन्य भी रोने लगे ॥ 10 ॥ इस प्रकार पार्वतीकी माता, सगे-सम्बन्धी तथा अन्य स्त्रियाँ, भाई, पिता तथा सखियाँ अत्यन्त प्रेमवश बार-बार रोते रहे। उस समय ब्राह्मणोंने आकर सबको आदरपूर्वक समझाया और कहा कि यात्राके लिये सुखदायी लग्नवेला आ गयी है। तब हिमालयने मेनाको धीरज बँधाया और स्वयं विवेकयुक्त होकर पार्वतीके चढ़नेके लिये शिविका मँगवायी। तदनन्तर ब्राह्मणस्त्रियोंने पार्वतीको पालकीमें चढ़ाया और माता-पिता, ब्राह्मण आदि सबने आशीर्वाद प्रदान किया । ll 11 - 14 ॥मेना और हिमालयने महारानियोंके योग्य उपचार पार्वतीको प्रदान किये और अन्योंके लिये सर्वथा | दुर्लभ द्रव्यसमूह दिये। हे मुने! पार्वतीने अपने माता | पिता, गुरुजन, ब्राह्मण, पुरोहित, सम्बन्धी एवं स्त्रियोंको प्रणाम करके प्रस्थान किया ।। 15-16 ।।
परम बुद्धिमान् हिमालय भी अपने पुत्रोंके साथ प्रेमसे विभोर होकर पालकीके साथ चले और वहाँ पहुँचे जहाँ सभी देवता ठहरे हुए थे ।। 17 ।।
तत्पश्चात् सभी लोगोंने भक्तिसे सदाशिवको प्रणाम किया और प्रशंसा करते हुए अपने नगरको चले आये। तब पार्वतीके कैलास पहुँचते ही सभी | लोगोंने बहुत बड़ा उत्सव किया। [शिवजीने पार्वतीके साथ अपने स्थानपर पहुँचकर कहा-] हे देवेशि ! मैं तुम्हें पूर्वजन्मका स्मरण करा रहा हूँ और यदि तुम अपनी लीलासे उसे स्मरण करती हो, तो बताओ तुम तो आजसे नहीं, जन्म-जन्मान्तरसे मेरी प्राणप्रिया हो ।। 18-19 ।।
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार अपने स्वामी महेशका वचन सुनकर हँसती हुई शिवप्रिया पार्वती कहने लगीं- ॥ 20 ॥
पार्वती बोलीं- हे प्राणेश्वर! मुझे सभी बातोंका स्मरण है, किंतु हे भव! इस समय आप चुप रहिये और आज जो कार्य उपस्थित है, उसीको शीघ्र कीजिये, आपको नमस्कार है ॥ 21 ॥
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार प्रिया पार्वतीके सैकड़ों सुधाधाराओंके समान वचनको सुनकर विश्वेश्वर प्रसन्न हो गये और लौकिकाचारमें संलग्न हो गये ॥ 22 ॥
शिवजीने अनेक प्रकारकी भोजन-सामग्री एकत्रितकर नारायण आदि सभी देवगणोंको नानाविध मनोहर भोज्य-वस्तुओंका भोजन कराया। उन्होंने अपने विवाहमें आये हुए सभी लोगोंको यथायोग्य विधिवत् उत्तम रससे सम्पन्न भोजन कराया। तब भोजन करके नाना रत्नोंसे विभूषित सभी देवताओंने अपनी स्त्रियों तथा गणोंके साथ चन्द्रशेखरको प्रणाम किया ।। 23 - 25 ॥तदनन्तर उन्होंने प्रिय वचनोंद्वारा प्रसन्नतापूर्वक शिवजीकी स्तुति करते हुए उनकी परिक्रमा की तथा विवाहको प्रशंसा करते हुए वे सभी अपने अपने स्थानोंको चले गये। हे मुने शिवजीने मुझे तथा विष्णुजीको उसी प्रकार प्रणाम किया, जैसे लोकाचारसे विष्णुजी कश्यपको प्रणाम करते हैं ।। 26-27 ।।
मैंने उन्हें गले लगाकर उनको आशीर्वाद दिया, फिर शंकरको परब्रह्म जानकर उनके आगे खड़े होकर मैंने उनकी स्तुति की। इसके पश्चात् मैं तथा विष्णु शिवा एवं शिवजीको हाथ जोड़कर प्रणामकर विवाहकी प्रशंसा करते हुए अपने-अपने स्थानोंको चले गये ॥ 28-29 ॥
इधर, शिवजी भी पार्वतीके साथ आनन्द विहार करते हुए अपने निवासभूत कैलासमें रहने लगे और उनके सभी गण आनन्दपूर्वक प्रेमसे शिवा-शिवकी आराधना करने लगे। हे तात! इस प्रकार मैंने शिवा एवं शिवके विवाहका आपसे वर्णन किया, यह विवाह परम मंगलदायक, शोक नाशक, आनन्ददायक तथा धन एवं आयुकी वृद्धि करनेवाला है । ll 30-31 ॥
जो पवित्र होकर शिवजीमें मन लगाकर नित्य इस विवाहचरित्रको नियमपूर्वक सुनता है अथवा दूसरोंको सुनाता है, वह अवश्य ही शिवलोकको प्राप्त कर लेता है। मेरा कहा हुआ यह आख्यान अद्भुत, मंगलका धाम, सभी विघ्नोंका नाश करनेवाला, समस्त व्याधियोंको दूर करनेवाला, यश देनेवाला, स्वर्ग देनेवाला, आयु प्रदान करनेवाला, पुत्र-पौत्रोंको बढ़ानेवाला, सभी कामनाओंको सिद्ध करनेवाला, भोग और मोक्ष देनेवाला, अपमृत्युको दूर करनेवाला, महाशान्ति प्रदान करनेवाला, कल्याणकारक, समस्त दुःस्वप्नोंको शान्त करनेवाला और बुद्धि-ज्ञान आदिकी वृद्धि करनेवाला है ।। 32-35॥अपने शुभकी इच्छा रखनेवाले लोगोंको सभी कल्याण-कारक उत्सवोंमें प्रयत्नपूर्वक प्रेमके साथ शिवको सन्तुष्ट करनेवाले इस आख्यानका पाठ करना चाहिये ॥ 36 ॥
विशेष रूपसे देवता आदिकी प्रतिष्ठाके समय और शिवके सभी कार्योंके प्रारम्भमें प्रेमसे इस आख्यानका पाठ करना चाहिये। जो पवित्र होकर शिवा- शिवके इस चरित्रको सुनता है, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं, यह सत्य है, सत्य है, इसमें संशय नहीं है ॥ 37-38 ।।