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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 48 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 48

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शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना

ब्रह्माजी बोले- इसी समय वहाँ गर्गाचार्यमे प्रेरित हो मेनासहित हिमवान् कन्यादान करने हेतु उद्यत हुए ॥ 1 ॥

उस समय वस्त्र तथा आभूषणोंसे शोभित महाभागा मेना सोनेका कलश लेकर पति हिमवान्के दाहिने भागमें बैठ गयीं। तत्पश्चात् पुरोहितके सहित हिमालयने प्रसन्न होकर पाद्य आदिसे और वस्त्र, चन्दन तथा आभूषणसे उन वरका वरण किया ।। 2-3 ।।

इसके बाद हिमालयने ब्राह्मणोंसे कहा- अब [कन्या- दानका] यह समय उपस्थित हो गया है, अतः आपलोग संकल्पके लिये तिथि आदिका उच्चारण कीजिये। उनके यह कहनेपर कालके ज्ञाता श्रेष्ठ ब्राह्मण निश्चिन्त होकर प्रेमपूर्वक तिथि आदिका उच्चारण करने लगे ।। 4-5 ।।

तब सृष्टिकर्ता परमेश्वर शम्भुके द्वारा हृदयसे प्रेरित हुए हिमालयने हँसते हुए प्रसन्नताके साथ शिवजीसे कहा- हे शम्भो ! अब आप अपने गोत्र, प्रवर, कुल, नाम, वेद तथा शाखाको कहिये, विलम्ब मत कीजिये ।। 6-7 ॥ब्रह्माजी बोले- उन हिमालयकी यह बात सुनकर भगवान् शंकर प्रसन्न होते हुए भी उदास हो गये और शोकके योग्य न होते हुए भी शोकयुक्त हो गये ॥ 8 ॥

उस समय श्रेष्ठ देवताओं, मुनियों, गन्धव यक्षों तथा सिद्धोंने जब शंकरको निरुत्तरमुख देखा, तब हे नारद! आपने सुन्दर हास्य किया। हे नारद! उस समय ब्रह्मवेत्ता तथा शिवजीमें आसक्त चित्तवाले आपने शिवजीके द्वारा मनसे प्रेरित होकर वीणा बजायी। उस समय पर्वतराज, विष्णु, मैंने देवताओं तथा सभी मुनियोंने आप बुद्धिमान्‌को ऐसा करनेसे हठपूर्वक रोका ॥ 9-11 ॥

किंतु जब शिवजीकी इच्छासे आप नहीं माने, तब [पुनः] हिमालयने आपसे कहा - इस समय आप वीणा मत बजाइये। हे बुद्धिमान्! हे देवर्षे ! जब उन्होंने हठपूर्वक आपको मना किया, तब आप महेश्वरका स्मरण करके हिमालयसे कहने लगे-॥ 12-13 ।।

नारदजी बोले – [हे पर्वतराज!] आप मूढ़तासे - युक्त हैं, अतः कुछ भी नहीं जानते। महेश्वरके विषयमें कथनीय बातेंसे आप सर्वथा अनभिज्ञ है ।। 14 । आपने इस समय जो इन साक्षात् महेश्वरसे गोत्र बतानेके लिये कहा है, वह वचन अत्यन्त हास्यास्पद है ॥ 15 ॥

हे पर्वत ! ब्रह्मा, विष्णु आदि भी इनका गोत्र, कुल, नाम नहीं जानते, दूसरोंकी क्या बात कही जाय ! ॥ 16 ॥

हे शैल! जिनके एक दिनमें करोड़ों ब्रह्मा लयको प्राप्त हो जाते हैं, उन शंकरका दर्शन आपने आज कालीके तपके प्रभावसे ही किया है ll 17 ll

ये प्रकृतिसे परे, परब्रह्म, अरूप, निर्गुण, निराकार, निर्विकार, मायाधीश तथा परात्पर हैं ॥ 18 ॥

ये स्वतन्त्र, भक्तवत्सल और गोत्र, कुल तथा नामसे सर्वथा रहित हैं। ये अपनी इच्छासे ही सगुण, सुन्दर शरीरवाले तथा अनेक नामवाले हो जाते हैं ॥ 19 ॥

ये गोत्रहीन होते हुए भी श्रेष्ठ गोत्रवाले हैं, कुलहीन होते हुए भी उत्तम कुलवाले हैं और आज पार्वतीके तपसे आपके जामाता हुए हैं, इसमें सन्देह नहीं ॥ 20 ॥उन लीलाविहारीने चराचरसहित जगत्को मोहित कर रखा है। हे गिरिसत्तम! कोई महान् ज्ञानी भी इन्हें नहीं जानता। ब्रह्माजी भी लिंगकी | आकृतिवाले महेशके मस्तकको नहीं देख सके। विष्णु भी पातालतक जाकर इन्हें नहीं प्राप्त कर पाये और आश्चर्यचकित हो गये ।। 21-22 ।।

हे गिरिश्रेष्ठ! अधिक कहनेसे क्या लाभ, | शिवजीकी माया बड़ी दुस्तर है। त्रैलोक्य और विष्णु ब्रह्मा आदि भी उसी [माया] के अधीन हैं ॥ 23 ॥

इसलिये हे पार्वतीतात प्रयत्नपूर्वक भली-भाँति विचार करके आप वरके गोत्र, कुल एवं इस प्रकारके वरके सम्बन्धमें थोड़ा भी सन्देह मत कीजिये ॥ 24 ॥

ब्रह्माजी बोले- हे मुने! ऐसा कहकर ज्ञानी तथा शिवकी इच्छासे कार्य करनेवाले आप पर्वतराजको [अपनी] वाणीसे हर्षित करते हुए पुनः उनसे कहने लगे- ll 25 ॥

नारदजी बोले हे तात! हे महाशैल! हे शिवाजनक ! आप मेरी बात सुनिये तथा उसे सुनकर शंकरजीको अपनी कन्या प्रदान कीजिये ॥ 26 ॥

[अपनी] लीलासे अनेक रूप धारण करनेवाले सगुण महेशका गोत्र तथा कुल केवल नाद ही जानिये ॥ 27 ॥

शिव नादमय हैं और नाद भी शिवमय है, यही सत्य है। शिव तथा नाद-इन दोनोंमें भेद नहीं है॥ 28 ॥

सृष्टिके आरम्भमें लीलासे सगुण रूप धारण करनेवाले शिवके द्वारा सर्वप्रथम नादकी उत्पत्ति होनेके कारण वह सर्वश्रेष्ठ है ।। 29 ll

इसलिये हे हिमालय अपने मनमें सर्वेश्वर शिवसे प्रेरित होकर मैंने आज वीणा बजायी है ll 30 ll

ब्रह्माजी बोले- हे मुने! गिरीश्वर हिमालय आपका यह वचन सुनकर सन्तुष्ट हो गये और उनके मनका विस्मय जाता रहा ।। 31 ।।

तब विष्णु आदि वे देवता एवं मुनि विस्मयरहित हो 'साधु-साधु' - ऐसा कहने लगे ॥ 32 ॥सभी विद्वान् लोग महेश्वरके गाम्भीर्यको जानकर विस्मित होकर परम आनन्दमें निमग्न हो परस्पर कहने लगे। जिनकी आज्ञासे यह विशाल जगत् उत्पन्न हुआ है और जो परसे भी परे, निजबोधस्वरूप हैं, स्वतन्त्र गतिवाले एवं उत्कृष्ट भावसे जाननेयोग्य हैं, उन त्रिलोकपति शिवको आज हमलोगोंने भलीभाँति देखा ।। 33-34 ।।

तदनन्तर वे सुमेरु आदि सभी श्रेष्ठ पर्वत सन्देहरहित होकर एक साथ पर्वतराज हिमालयसे कहने लगे-ll 35 ll

पर्वत बोले- हे शैलराज! अब आप कन्यादान करनेके लिये समुद्यत हो जाइये। विवादसे क्या लाभ ! ऐसा करनेसे [ निश्चय ही] आपके कार्यमें बाधा होगी। हमलोग सत्य कहते हैं, अब आपको विचार नहीं करना चाहिये, अतः आप शिवको कन्या प्रदान कीजिये ll 36 ll

ब्रह्माजी बोले- उन सुहृदोंकी वह बात सुनकर विधिसे प्रेरित होकर हिमालयने शिवको अपनी कन्याका दान कर दिया ॥ 37 ॥

[उन्होंने कहा-] हे परमेश्वर ! मैं अपनी कन्या आपको दे रहा है, हे सकलेश्वर आप भायकि रूपमें इसे ग्रहण कीजिये और प्रसन्न होइये ॥ 38 ॥ इस प्रकार तीनों लोकोंको उत्पन्न करनेवाली अपनी कन्या पार्वतीको हिमालयने इस मन्त्रसे उन महान् शिवको अर्पण कर दिया ।। 39 ।।

इस प्रकार पार्वतीका हाथ शिवजीके हाथमें रखकर वे हिमालय मनमें बहुत प्रसन्न हुए, मानो उन्होंने इच्छारूपी महासागरको पार कर लिया हो ॥ 40 ll

पर्वतपर शयन करनेवाले परमेश्वरने प्रसन्न होकर अपने हाथसे वेदमन्त्रके द्वारा पार्वतीका करकमल ग्रहण किया। हे मुने! लौकिक गति प्रदर्शित करते हुए पृथिवीका स्पशंकर महादेवने भी 'कोऽदात्" इस कामसम्बन्धी मन्त्रका प्रेमपूर्वक पाठ किया ।। 41-42 ॥उस समय सर्वत्र आनन्ददायक महान् उत्सव होने लगा और स्वर्ग, भूमि तथा अन्तरिक्षमें तीव्र जयध्वनि होने लगी। सभी लोगोंने अत्यन्त प्रसन्न होकर 'साधु' शब्द तथा 'नमः' शब्दका उच्चारण किया, गन्धर्वगण प्रीतिपूर्वक गान करने लगे तथा अप्सराएँ नाचने लगीं ॥ 43-44 ।। हिमालयके नगरके लोग भी अपने मनमें परम आनन्दका अनुभव करने लगे। [ उस समय] महान् उत्सवके साथ परम मंगल मनाया जाने लगा ॥ 45 ॥ मैं, विष्णु, इन्द्र, देवता एवं सभी मुनिगण अत्यन्त हर्षित हुए और सभीके मुखकमल खिल उठे ॥ 46 ॥

उसके बाद उन शैलराज हिमालयने अति प्रसन्न होकर कन्यादानकी यथोचित सांगता शिवको प्रदान की ll 47 ll

तत्पश्चात् उनके बन्धुजनोंने भक्तिपूर्वक भली. भाँति पार्वतीका पूजनकर शिवजीको विधि-विधानसे अनेक प्रकारके उत्तम द्रव्य प्रदान किये हे मुनीश्वर! हिमालयने भी प्रसन्नचित्त होकर पार्वती तथा शिवकी | प्रसन्नताके लिये अनेक प्रकारके द्रव्य दिये ।। 48-49 ।।

उन्होंने उपहारस्वरूप नाना प्रकारके रत्न एवं उत्तम रत्नोंसे जड़े हुए विविध पात्र प्रदान किये। हे मुने। उन्होंने एक लाख सुसज्जित गायें, सजे-सजाये सौ घोड़े, नाना रत्नोंसे विभूषित एक लाख अनुरागिणी दासियाँ दीं और एक करोड़ हाथी तथा सुवर्णजटित एवं उत्तम रत्नोंसे निर्मित रथ प्रदान किये। इस प्रकार परमेश्वर .. शिवको विधिपूर्वक अपनी पुत्री शिवा गिरिजाको प्रदान करके हिमालय कृतार्थ हो गये ॥ 50-53 ॥

तत्पश्चात् पर्वतराजने हाथ जोड़कर श्रेष्ठ वाणीमें माध्यन्दिनी शाखामें कहे गये स्तोत्रसे परमेश्वरकी स्तुति की। इसके बाद वेदज्ञ हिमालयकी आज्ञा पाकर मुनियोंने अतिप्रसन्न होकर शिवाके सिरपर अभिषेक किया और देवताओंके नामका उच्चारणकर पर्युक्षण | विधि सम्पन्न की। हे मुने! उस समय परम आनन्द | उत्पन्न करनेवाला महोत्सव हुआ ॥ 54-56 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा