ऋषिगण बोले- हे महाभाग सूत! हे सुव्रत ! आप ज्ञानी हैं, आप शिवजीके चरित्रका ही विस्तारपूर्वक पुनः वर्णन करें। पुरातन ऋषियों, देवताओं एवं राजाओंने उन देवाधिदेव शिवकी ही आराधना की है ॥ 1-2 ॥
सूतजी बोले- हे श्रेष्ठ ऋषियो! आपलोगोंने उत्तम बात पूछी है, आपलोग सुनें। अब मैं शंकरके मनोहर चरित्रका वर्णन आपलोगोंसे करता हूँ, जो सुननेवालोंको भोग तथा मोक्ष प्रदान करता है ॥ 3 ॥ पूर्वकालमें नारदने यही बात ब्रह्माजी से पूछी थी, तब उन्होंने प्रसन्नचित्त होकर मुनिश्रेष्ठ नारदसे कहा था- ॥ 4 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे नारद! आप प्रेमसे सुनिये, मैं आपके स्नेहके कारण महापापोंका नाश करनेवाले शिवके श्रेष्ठ चरित्रका वर्णन करूँगा। लक्ष्मीसहित विष्णुने शिवजीकी पूजा की और परमेश्वरकी कृपासे उन्होंने समस्त मनोरथोंको प्राप्त किया ll 5-6 ॥
हे तात! मैं ब्रह्मा भी शिवकी पूजा करता हूँ और उन्हींकी कृपासे सदा विश्वकी सृष्टि करता हूँ ॥ 7 ॥ मेरे पुत्र परमर्षिगण भी नित्य शिवपूजन करते हैं एवं अन्य जो ऋषि हैं, वे भी शिवजीकी पूजा करते हैं। हे नारद! आप तो विशेष रूपसे शिवकी पूजा करते हैं, वसिष्ठादि सातों ऋषि भी शिवकी पूजा करते हैं ॥ 8-9 ॥
महापतिव्रता अरुन्धती, लोपामुद्रा तथा गौतमस्त्री अहल्या भी शिवकी पूजा करनेवाली हैं ॥ 10 ॥दुर्वासा, कौशिक, शक्ति, दधीच, गौतम, | कणाद, भार्गव, बृहस्पति, वैशम्पायन- ये सभी मुनि शिवजीकी पूजा करनेवाले कहे गये हैं। पराशर तथा व्यास भी सर्वदा शिवकी ही पूजामें लगे रहते हैं ।। 11-12 ll
उपमन्यु तो परमात्मा शिवके महाभक्त हैं। याज्ञवल्क्य, जैमिनि एवं गर्ग भी महाशैव हैं 13 ॥ शुक, शौनक आदि ऋषि शिवकी भलीभाँति पूजा करनेवाले हैं। इसी प्रकार अन्य भी बहुत-से मुनि तथा मुनिश्रेष्ठ हैं ll 14 ॥ देवमाता अदिति अपनी पुत्रवधुओंके साथ प्रेमसे तत्पर हो प्रीतिपूर्वक नित्य पार्थिव शिवपूजन करती रहती हैं ॥ 15 ॥
इन्द्र आदि लोकपाल, अष्टवसुगण, देवता, महाराजिक देवता तथा साध्यगण भी शिवका पूजन करते रहते हैं। गन्धर्व, किन्नर आदि उपदेवता शिवपूजक है एवं महात्मा असुरगण भी शिवके उपासक माने गये हैं ।। 16-17 ॥
हे मुने! अपने छोटे भाई एवं पुत्रसहित हिरण्यकशिपु तथा विरोचन एवं बलि भी नित्य शिवपूजन करते थे। हे तात! बलिपुत्र बाण महाशैव कहा ही गया है तथा हिरण्याक्षपुत्र [अन्धक], दनुपुत्र वृषपर्वा आदि दानव भी शिवपूजक थे।॥ 18-19 ॥
शेष, वासुकि, तक्षक एवं अन्य महानाग तथा गरुड़ आदि पक्षी भी शिवभक्त हुए हैं॥ 20 ll
हे मुनीश्वर ! इस पृथ्वीपर वंशको चलानेवाले सूर्य एवं चन्द्र- वे दोनों भी अपने- अपने वंशजोंके सहित नित्य शिवपूजामें निरत रहते हैं ॥ 21 ॥
हे मुने! स्वायम्भुव आदि मनु भी शैव वेष धारणकर विशेष रूपसे शिवपूजन करते थे 22 ॥ प्रियव्रत, उनके पुत्र, उत्तानपाद के पुत्र एवं उनके वंशमें उत्पन्न हुए सभी राजा शिवपूजन करनेवाले थे। ध्रुव, ऋषभ, भरत, नवयोगीश्वर एवं उनके अन्य भाई भी शिवपूजन करनेवाले थे । ll 23-24 ॥
वैवस्वत मनु, उनके पुत्र इक्ष्वाकु आदि राजागण तथा ताक्ष्य शिवपूजामें अपने चित्तको समर्पितकर | निरन्तर सुखका भोग करनेवाले हुए हैं ॥ 25 ॥ककुत्स्थ, मान्धाता, शैवश्रेष्ठ सगर, मुचुकुन्द, हरिश्चन्द्र, कल्माषपाद, भगीरथ आदि राजाओं तथा बहुत से अन्य श्रेष्ठ राजाओंको शैववेष धारण करनेवाला तथा शिवजीका पूजन करनेवाला जानना चाहिये ।। 26-27 ॥
देवताओंकी सहायता करनेवाले महाराज खट्वांग विधानपूर्वक पार्थिव शिवमूर्तिका सदा पूजन किया करते थे। उनके पुत्र महाराज दिलीप भी सदा शिवपूजन करते थे तथा उनके पुत्र शिवभक्त रघु थे, जो प्रीतिसे शिवका पूजन करते थे ॥ 28-29 ॥
धर्मयुद्ध करनेवाले उनके पुत्र अज शिवकी पूजा करनेवाले थे और अजपुत्र महाराज दशरथ तो विशेष
रूपसे शिवजीके पूजक थे ॥ 30 वे महाराज दशरथ पुत्रप्राप्तिके लिये वसिष्ठ मुनिकी आज्ञासे विशेषरूपसे पार्थिव शिवलिंगका पूजन करते थे। उन शिवभक्त नृपश्रेष्ठ महाराज दशरथने श्रृंगी ऋषिकी आज्ञा प्राप्तकर पुत्रेष्टियज्ञका अनुष्ठान किया था ll 31-32 ॥
उनकी पत्नी कौसल्या पुत्रप्राप्तिहेतु श्रृंगीऋषिकी आज्ञासे आनन्दपूर्वक शिवकी पार्थिवमूर्तिका अर्चन करती थीं। हे मुनिश्रेष्ठ! इसी प्रकार उन राजाकी प्रिय पत्नी सुमित्रा तथा कैकेयी भी श्रेष्ठ पुत्रकी प्राप्तिहेतु प्रेमपूर्वक शिवकी पूजा करती थीं ॥ 33-34 ॥
हे मुने! उन सभी रानियोंने शिवजीकी कृपासे कल्याणकारी, महाप्रतापी, वीर तथा सन्मार्गपर चलनेवाले पुत्रोंको प्राप्त किया ॥ 35 ॥
उसके बाद शिवजीकी आज्ञासे स्वयं भगवान् विष्णु उन राजासे उन रानियोंके गर्भसे राजाके पुत्र होकर चार रूपोंसे प्रकट हुए। कौसल्यासे रामचन्द्र, सुमित्रासे लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न तथा कैकेयीसे भरत ये उत्तम व्रतवाले पुत्र उत्पन्न हुए ॥ 36-37 ॥
वे रामचन्द्र शैवागमके अनुसार विरजादीक्षामें दीक्षित हो गये और वे भस्म तथा रुद्राक्ष धारणकर भाइयोंसहित नित्य पार्थिवपूजन किया करते थे ॥ 38 ॥
हे मुने! उस वंशमें जितने भी राजा उत्पन्न हुए थे, वे सभी अपने अनुगामियोंके साथ पार्थिव शिवलिंगका पूजन किया करते थे ॥ 39 ॥हे मुने! मनुपुत्र शिवभक्त महाराज सुद्युम्न | शिवके शापसे अपने सेवकोंसहित स्त्री हो गये थे ॥ 40 ॥
पुनः शिवकी पार्थिव मूर्तिका पूजन करनेसे उत्तम पुरुष बन गये। वे एक मासतक स्त्री तथा एक मासतक पुरुष हो जाते थे, इस प्रकार वे स्त्रीत्वसे निवृत्त हो गये। तत्पश्चात् उन्होंने राज्य त्यागकर शैव | वेष धारणकर भक्तिपूर्वक शिवधर्ममें परायण हो दुर्लभ मोक्षको प्राप्त किया ॥ 41-42 ॥
उनके पुत्र महाराज पुरूरवा भी शिवोपासक थे तथा उनके पुत्र भी देवाधिदेव शिवके पूजक हुए थे। महाराज भरत नित्य ही शिवकी महापूजा किया करते थे। इसी प्रकार महाशैव नहुष भी [निरन्तर] शिवकी पूजामें तत्पर रहते थे ॥ 43-44 ॥
ययातिने भी शिवपूजाके प्रभावसे अपने सभी मनोरथ प्राप्त किये और [शिवकी कृपासे ] शिवधर्मपरायण पाँच पुत्रोंको उत्पन्न किया। उन ययातिके यदु आदि पाँचों पुत्र शिवाराधक हुए और शिवकी पूजाके प्रभावसे उन सभीने अपनी समस्त कामनाएँ पूर्ण कीं ॥ 45-46 ।।
हे मुने! इसी प्रकार उनके वंशवाले तथा अन्य वंशवाले जो अन्य महाभाग्यवान् राजागण थे, उन्होंने भी भोग तथा मोक्ष प्रदान करनेवाले शिवकी पूजा की थी ll 47 ll
स्वयं भगवान् श्रीकृष्णने पर्वत श्रेष्ठ हिमालयके बदरिकाश्रममें स्थित होकर सात मासपर्यन्त नित्य शिवका ही पूजन किया और प्रसन्न हुए भगवान् शंकरसे अनेक दिव्य वरदान प्राप्तकर सम्पूर्ण जगत्को अपने वशमें कर लिया ॥ 48-49 ॥
हे तात! उनके पुत्र प्रद्युम्न सदा शिवकी पूजा करते थे तथा कृष्णके साम्ब आदि अन्य प्रमुख पुत्र भी शिवपूजक थे। जरासन्ध तो महाशैव था ही, उसके वंशवाले राजा भी शिवपूजक थे महाशैव निमि, जनक तथा उनके पुत्र भी | शिवपूजक थे ॥ 50-51 ॥वीरसेनके पुत्र राजा नलने भी शिवकी पूजा की थी, जो पूर्वजन्ममें वनके भील होकर पथिकोंकी रक्षा किया करते थे । पूर्वकालमें उस भीलने शिवलिंगके पास किसी संन्यासीकी रक्षा की थी और वह स्वयं [अतिथि रक्षारूप] धर्मपालनके प्रसंगमें रात्रिमें बाघ आदिके द्वारा भक्षण कर लेनेसे मर गया। उसी पुण्य प्रभावके वह भील [दूसरे जन्ममें] चक्रवर्ती महाराज नल हुआ, जो दमयन्तीका प्रिय पति था ॥ 52-54॥
हे तात! हे अनघ ! आपने शिवजीका जो दिव्य चरित्र पूछा था, वह सब मैं निवेदन किया, अब और क्या पूछना चाहते हैं? ॥ 55 ॥