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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 5, अध्याय 4 - Sanhita 5, Adhyaya 4

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शिवकी मायाका प्रभाव

मुनिगण बोले- हे तात! हे तात! हे महाभाग ! हे महामते! आप धन्य हैं; क्योंकि आपने परम भक्ति प्रदान करनेवाली यह अद्भुत शिवकथा सुनायी है ॥ 1 ॥

[हे सूतजी!] व्यासदेवके प्रश्नके अनुसार पुनः शिवकी कथा कहिये। आप सर्वज्ञ, व्यासजीके शिष्य और शिवतत्त्वके ज्ञाता हैं ॥ 2 ॥

सूतजी बोले- इसी प्रकार मेरे गुरु व्यासजीने सब कुछ जाननेवाले शिवभक्त मुनीश्वर ब्रह्मपुत्र सनत्कुमारजीसे पूछा था ॥ 3 ॥ व्यासजी बोले- हे सनत्कुमार! हे सर्वज्ञ! आपने अनेक प्रकारसे लीलाविहार करनेवाले महेश्वर शंकरकी यह शुभ कथा सुनायी। आप पुनः महादेव शिवको महिमाका विशेषरूपसे वर्णन करें। हे तात! मेरी बहुत अधिक श्रद्धा उसे सुननेके लिये बढ़ रही है ॥ 4-5 ॥

विविध प्रकारसे लोलाविहार करनेवाले सदाशिवकी जिस महिमा तथा मायाके प्रभावसे ज्ञानरहित होकर लोकमें जो जो लोग विमोहित हुए, उनकी कथा सुनाइये ॥ 6 ॥

सनत्कुमार बोले- हे व्यास! हे महामते! शंकरकी सुखदायिनी कथाको सुनिये, जिसके सुननेमात्र से शिवजीके प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है ॥ 7 ॥ शिवजी ही सर्वेश्वर देवता, सर्वात्मा एवं सभीके द्रष्टा हैं, उनकी महिमासे सम्पूर्ण जगत् व्याप्त है ॥ 8 ॥ ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्रके रूपमें भगवान् शिवकी ही त्रिलिंगात्मिका परामूर्ति अभिव्यक्त हो रही है और समस्त प्राणियोंकी आत्माके रूपमें उन्होंकी निष्कल मूर्ति स्थित है ॥ 9 ॥

आठ प्रकारको देवयोनियाँ, नौवीं मनुष्ययोनि एवं पाँच प्रकारकी तिर्यग्योनियाँ इन सबको मिलाकर चौदह योनियाँ होती है। जो हो चुके हैं, विद्यमान हैं तथा आगे होनेवाले हैं- ये सभी [प्राणि पदार्थ] शिवसे ही उत्पन्न होते हैं, वृद्धिको प्राप्त होते हैं और अन्तमें शिवमें ही विलीन हो जाते हैं । ll 10-11 ॥ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णु, चन्द्र, देवता, दानव, नाग, गन्धर्व, मनुष्य तथा अन्य सभी प्राणियोंके बन्धु मित्र, आचार्य, रक्षक, नेता, धनदाता, गुरु, भाई, पिता, माता एवं [वांछित फलोंको देनेवाले] कल्पवृक्षस्वरूप शिवजी ही माने गये हैं ।। 12-13 ॥

शिव सर्वमय हैं, वे ही मनुष्योंके लिये जाननेयोग्य हैं तथा परसे भी परे हैं, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता और जो पर तथा अनुपर हैं, उनकी माया परम दिव्य तथा सर्वत्र व्याप्त रहनेवाली है और हे मुने ! | देवता, असुर एवं मनुष्यों सहित सम्पूर्ण जगत् उसीके अधीन है ।। 14-15 ॥

शिवजीकी मायाने मनसे उत्पन्न होनेवाले, अपने प्रबल सहयोगी कामके द्वारा विष्णु आदि सभी प्रबल वीर देवताओंको भी अपने अधीन कर लिया है ॥ 16 ॥

हे मुनीश्वर शिवकी मायाके प्रभावसे विष्णु भी कामसे मोहित हो गये। देवताओंके स्वामी दुष्टात्मा इन्द्र भी गौतमकी पत्नीपर मोहित होकर पापकर्ममें प्रवृत्त हुए, तब उनको मुनिने शाप दे दिया ।। 17-18 ॥

जगत्में श्रेष्ठ अग्निदेव भी अहंकारके कारण शिवकी मायासे मोहित हो कामके अधीन हो गये, बादमें उन [शिवजी] ने ही उनका उद्धार किया ॥ 19 ॥

हे व्यास! जगत् के प्राणस्वरूप वायु भी शिवकी मायासे मोहित होकर कामके वशीभूत होकर प्रेममें आसक्त हो गये ॥ 20 ॥

शिवकी मायासे मोहित हुए प्रचण्ड किरणोंवाले सूर्यदेवने भी घोड़ी [के रूपमें स्थित अपनी पत्नी संज्ञा] को देखकर कामसे व्याकुल होकर घोड़ेका स्वरूप धारण किया ll 21 ॥

शिवमायासे विमोहित होकर कामसे व्याकुल चन्द्रमाने भी आसक्त होकर गुरुपत्नीका अपहरण किया, बादमें उन शिवने ही उनका उद्धार किया ॥ 22 ॥ पूर्व समयमें मित्र एवं वरुण दोनों मुनि तपस्यामें स्थित थे, तब शिवकी मायासे मोहित हुए वे दोनों उर्वशी अप्सरा) को देखकर मुग्धचित्त तथा कामनायुक्त हो गये। तब मित्रने अपना तेज पड़ेमें और वरुणने जलमें छोड़ दिया। तत्पश्चात् उस कुम्भसे वडवाग्निके | समान कान्तिवाले अगस्त्य उत्पन्न हुए और वरुणके तेजसे जलसे वसिष्ठका जन्म हुआ ।। 23 - 25 ॥पूर्वकालमें ब्रह्माके पुत्र दक्ष भी शिवमायासे मोहित हो गये और भाइयोंके साथ वे अपनी भगिनीसे सम्पर्ककी कामनावाले हो गये ।। 26 ।।

शिवमायासे मोहित होकर ब्रह्मा भी अनेक बार स्त्री- संगकी कामनावाले हो गये ॥ 27 ॥

महायोगी च्यवन भी शिवकी मायासे मोहित हो गये और उन्होंने कामासक्त हो [अपनी पत्नी ] सुकन्याके साथ विहार किया ।। 28 ।।

पूर्वकालमें [ महर्षि] कश्यपने शिवमायासे मोहित होकर कामके अधीन हो मोहपूर्वक राजा धन्वासे उनकी कन्याकी याचना की शिवकी मायासे मोहित हुए गरुड़ने भी शांडिली नामक कन्याको ग्रहण करनेकी इच्छा की, तब उनके अभिप्रायको जान लेनेके बाद उसने उनके पंखोंको भस्म कर दिया ।। 29-30 ॥

मुनि विभांडक स्त्रीको देखकर कामके अधीन हो गये और शिवकी प्रेरणासे हरिणीसे ऋष्यश्रृंग नामक पुत्र उन्हें उत्पन्न हुआ ॥ 31 ॥

शिवमायासे मोहित चित्तवाले महर्षि गौतम शारद्वतीको वस्त्रहीन देखकर क्षुब्ध हो गये और उन्होंने उसके साथ रमण किया ॥ 32 ॥ तपस्वी [ भारद्वाज] ने [घृताची अप्सराको देखकर] अपने स्खलित वीर्यको द्रोणीमें रख दिया, तब उस कलशसे शस्त्रधारियोंमें श्रेष्ठ द्रोणाचार्य
उत्पन्न हुए ।। 33 ।

शिवकी मायासे मोहित होकर महायोगी पराशरने भी निषादराजकी कुमारी कन्या मत्स्योदरीके साथ विहार किया ॥ 34 ॥

हे व्यास ! विश्वामित्र भी शिवमायासे मोहित हो गये और उन्होंने कामके वशीभूत हो वनमें मेनकाके साथ रमण किया। नष्ट बुद्धिवाले उन्होंने वसिष्ठके साथ विरोध किया और शिवकी कृपासे ही पुनः वे [क्षत्रियसे] ब्राह्मण हो गये ।। 35-36 ॥

विश्रवाके पुत्र कामासक्त दुर्बुद्धि रावणने शिवकी मायासे विमोहित होकर सीताका अपहरण किया और अन्तमें उसकी मृत्यु हुई ॥ 37 ॥

शिवकी मायासे विमोहित हुए जितेन्द्रिय मुनिवर बृहस्पतिने अपने भाईकी पत्नीके साथ रमण किया, उसके फलस्वरूप महर्षि भरद्वाज उत्पन्न हुए ॥ 38 ॥हे व्यास ! इस प्रकार मैंने महात्मा शिवकी मायाके प्रभावका आपसे वर्णन कर दिया, अब आप आगे और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ 39 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] द्वादश ज्योतिर्लिंगों एवं उनके उपलिंगोंके माहात्म्यका वर्णन
  2. [अध्याय 2] काशीस्थित तथा पूर्व दिशामें प्रकटित विशेष एवं सामान्य लिंगोंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] अत्रीश्वरलिंगके प्राकट्यके प्रसंगमें अनसूया तथा अत्रिकी तपस्याका वर्णन
  4. [अध्याय 4] अनसूयाके पातिव्रतके प्रभावसे गंगाका प्राकट्य तथा अत्रीश्वरमाहात्म्यका वर्णन
  5. [अध्याय 5] रेवानदीके तटपर स्थित विविध शिवलिंग-माहात्म्य वर्णनके क्रममें द्विजदम्पतीका वृत्तान्त
  6. [अध्याय 6] नर्मदा एवं नन्दिकेश्वरके माहात्म्य-कथनके प्रसंगमें ब्राह्मणीकी स्वर्गप्राप्तिका वर्णन
  7. [अध्याय 7] नन्दिकेश्वरलिंगका माहात्म्य- वर्णन
  8. [अध्याय 8] पश्चिम दिशाके शिवलिंगोंके वर्णन क्रममें महाबलेश्वरलिंग का माहात्म्य कथन
  9. [अध्याय 9] संयोगवश हुए शिवपूजनसे चाण्डालीकी सद्गतिका वर्णन
  10. [अध्याय 10] महाबलेश्वर शिवलिंगके माहात्म्य वर्णन प्रसंगमें राजा मित्रसहकी कथा
  11. [अध्याय 11] उत्तरदिशामें विद्यमान शिवलिंगोंके वर्णन क्रममें चन्द्रभाल एवं पशुपतिनाथलिंगका माहात्म्य वर्णन
  12. [अध्याय 12] हाटकेश्वरलिंगके प्रादुर्भाव एवं माहात्म्यका वर्णन
  13. [अध्याय 13] अन्धकेश्वरलिंगकी महिमा एवं बटुककी उत्पत्तिका वर्णन
  14. [अध्याय 14] सोमनाथ ज्योतिर्लिंगकी उत्पत्तिका वृत्तान्त
  15. [अध्याय 15] मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगकी उत्पत्ति-कथा
  16. [अध्याय 16] महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगके प्राकट्यका वर्णन
  17. [अध्याय 17] महाकाल ज्योतिर्लिंगके माहात्म्य वर्णनके क्रममें राजा चन्द्रसेन तथा श्रीकर गोपका वृत्तान्त
  18. [अध्याय 18] ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंगके प्रादुर्भाव एवं माहात्म्यका वर्णन
  19. [अध्याय 19] केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगके प्राकट्य एवं माहात्म्यका वर्णन
  20. [अध्याय 20] भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के माहात्म्य वर्णन-प्रसंग में भीमासुर के उपद्रव का वर्णन
  21. [अध्याय 21] भीमशंकर ज्योतिर्लिंगकी उत्पत्ति तथा उसके माहात्म्यका वर्णन
  22. [अध्याय 22] परब्रह्म परमात्माका शिव-शक्तिरूपमें प्राकट्य, पंचक्रोशात्मिका काशीका अवतरण, शिवद्वारा अविमुक्त लिंगकी स्थापना, काशीकी महिमा तथा काशीमें रुद्रके आगमनका वर्णन
  23. [अध्याय 23] काशीविश्वेश्वर ज्योतिर्लिंगके माहात्म्यके प्रसंगमें काशीमें मुक्तिक्रमका वर्णन
  24. [अध्याय 24] त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंगके माहात्म्य प्रसँगमें गौतमऋषिकी परोपकारी प्रवृत्तिका वर्णन
  25. [अध्याय 25] मुनियोंका महर्षि गौतमके प्रति कपटपूर्ण व्यवहार
  26. [अध्याय 26] त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा गौतमी गंगाके प्रादुर्भावका आख्यान
  27. [अध्याय 27] गौतमी गंगा एवं त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंगका माहात्म्यवर्णन
  28. [अध्याय 28] वैद्यनाथेश्वर ज्योतिर्लिंगके प्रादुर्भाव एवं माहात्म्यका वर्णन
  29. [अध्याय 29] दारुकावनमें राक्षसोंके उपद्रव एवं सुप्रिय वैश्यकी शिवभक्तिका वर्णन
  30. [अध्याय 30] नागेश्वर ज्योतिर्लिंगकी उत्पत्ति एवं उसके माहात्म्यका वर्णन
  31. [अध्याय 31] रामेश्वर नामक ज्योतिर्लिंगके प्रादुर्भाव एवं माहात्म्यका वर्णन
  32. [अध्याय 32] घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंगके माहात्म्यमें सुदेहा ब्राह्मणी एवं सुधर्मा ब्राह्मणका चरित-वर्णन
  33. [अध्याय 33] घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं शिवालयके नामकरणका आख्यान
  34. [अध्याय 34] हरीश्वरलिंगका माहात्म्य और भगवान् विष्णुके सुदर्शनचक्र प्राप्त करनेकी कथा
  35. [अध्याय 35] विष्णुप्रोक्त शिवसहस्रनामस्तोत्र
  36. [अध्याय 36] शिवसहस्त्रनामस्तोत्रकी फल- श्रुति
  37. [अध्याय 37] शिवकी पूजा करनेवाले विविध देवताओं, ऋषियों एवं राजाओंका वर्णन
  38. [अध्याय 38] भगवान् शिवके विविध व्रतोंमें शिवरात्रिव्रतका वैशिष्ट्य
  39. [अध्याय 39] शिवरात्रिव्रतकी उद्यापन विधिका वर्णन
  40. [अध्याय 40] शिवरात्रिव्रतमाहात्म्यके प्रसंगमें व्याध एवं मृगपरिवारकी कथा तथा व्याधेश्वरलिंगका माहात्म्य
  41. [अध्याय 41] ब्रह्म एवं मोक्षका निरूपण
  42. [अध्याय 42] भगवान् शिवके सगुण और निर्गुण स्वरूपका वर्णन
  43. [अध्याय 43] ज्ञानका निरूपण तथा शिवपुराणकी कोटिरुद्रसंहिताके श्रवणादिका माहात्म्य