नन्दीश्वर बोले- हे मुने! अब इसके पश्चात् शिवजीने जिस प्रकार हनुमान्जीके रूपमें अवतार लेकर गोहर लीलाएँ की उम्र हनुमच्चरित्रको प्रेमपूर्वक सुनिये ॥1॥
उन परमेश्वरने प्रेमपूर्वक [हनुमद्रूपसे ] श्रीरामका परम हित किया, हे विप्र सर्वसुखकारी उस सम्पूर्ण चरित्रका श्रवण कीजिये ॥ 2 ॥एक बार अत्यन्त अद्भुत लीला करनेवाले तथा सर्वगुणसम्पन्न उन भगवान् शिवने विष्णुके मोहिनी रूपको देखा ॥ 3 ॥
[उस मोहिनी रूपको देखते ही] कामबाणको आहतकी भाँति शम्भुने अपनेको विक्षुब्ध कर दिया और उन ईश्वरने श्रीरामके कार्यके लिये अपने तेजका उत्सर्ग कर दिया ॥ 4 ॥
शिवजीके मनकी प्रेरणासे प्रेरित हुए सप्तर्षियोंने उनके तेजको रामकार्यके लिये आदरपूर्वक पतेपर स्थापित कर दिया ॥ 5 ॥
तत्पश्चात् उन महर्षियोंने शम्भुके उस तेजको श्रीरामके कार्यके लिये गौतमकी कन्या अंजनी में कानके माध्यमसे स्थापित कर दिया ॥ 6 ॥
समय आनेपर वह शम्भुतेज महान् बल तथा पराक्रमवाला और वानर शरीरवाला होकर हनुमान्के नामसे प्रकट हुआ ॥ 7 ॥
वे महाबलवान् कपीश्वर हनुमान् जब शिशु ही थे, उसी समय प्रातःकाल उदय होते हुए सूर्यबिम्बको छोटा फल जानकर निगल गये थे ॥ 8 ॥
तब देवताओंकी प्रार्थनासे उन्होंने सूर्यको उगल दिया। उन्हें महाबली शिवावतार जानकर देवताओं तथा ऋषियोंके द्वारा प्रदत्त वरोंको उन्होंने प्राप्त किया ॥ 9 ॥
तत्पश्चात् अत्यन्त प्रसन्न हनुमान्जी अपनी माताके निकट गये और आदरपूर्वक उनसे वह वृतान्त कह सुनाया ॥ 10 ॥
इसके बाद माताकी आज्ञासे नित्यप्रति सूर्यके पास जाकर धैर्यशाली हनुमान्जीने बिना यत्नके ही उनसे सारी विद्याएँ पढ़ लीं ॥ 11 ॥
उसके बाद माताकी आज्ञा प्राप्तकर रुद्रके अंशभूत कपिश्रेष्ठ हनुमानजी सूर्यकी आज्ञासे [प्रेरित हो] सूर्यके अंशसे उत्पन्न हुए सुग्रीवके पास गये। वे सुग्रीव अपने ज्येष्ठ भ्राता वालि, जिसने उनकी स्त्रीका बलात् हरण कर लिया था, तिरस्कृत हो ऋष्यमूक पर्वतापर हनुमानजी के साथ निवास करने लगे ।। 12-13 ।।
तब वे सुग्रीवके मन्त्री हो गये। शिवजीके अंशसे उत्पन्न परम बुद्धिमान् कपिश्रेष्ठ हनुमानजीने सब प्रकारसे सुग्रीवका हित किया। उन्होंने भाई [लक्ष्मण]के साथ वहाँ आये हुए अपहृत पत्नीवाले दुखी रामके साथ उनकी सुखदायी मित्रता करवायी ।। 14-15 ।। रामचन्द्रजीने भाईकी स्त्रीके साथ रमण करनेवाले, महापापी एवं अपनेको वीर माननेवाले कपिराज वालिका वध कर दिया ॥ 16 ॥
हे तात! तदनन्तर वे महाबुद्धिमान् वानरेश्वर | हनुमान् रामचन्द्रजीकी आज्ञासे बहुतसे वानरोंके साथ सीताकी खोजमें लग गये ॥ 17 ll
सीताको लंकामें विद्यमान जानकर वे कपीश्वर दूसरोंके द्वारा न लाँघे जा सकनेवाले उस समुद्रको बड़ी शीघ्रतासे लाँघकर वहाँ गये ॥ 18 ॥
वहाँ उन्होंने पराक्रमयुक्त अद्भुत कार्य किया और जानकीको प्रीतिपूर्वक अपने प्रभुका उत्तम [मुद्रिकारूप] चिह्न प्रदान किया। जानकीके प्राणोंकी | रक्षा करनेवाला रामवृत्त सुनाकर उन वीर वानरनायकने शीघ्र ही उनके शोकको दूर कर दिया ।। 19-20 ।।
उन्होंने रावणकी अशोकवाटिका उजाड़कर बहुत से राक्षसोंका वध कर दिया; फिर सीतासे स्मरणचिह्न लेकर रामचन्द्रके पास लौटने लगे ॥ 21 ॥
उस समय महालीला करनेवाले उन्होंने अत्यन्त निर्भय होकर रावणके पुत्र तथा अनेक राक्षसोंको मारकर वहाँ लंकामें महान् उपद्रव किया ॥ 22 ॥
हे मुने! जब महाबलशाली रावणने तैलसे | सने हुए वस्त्रोंको उनकी पूँछमें दृढ़तापूर्वक लपेटकर उसमें आग लगा दी, तब महादेवके अंशसे उत्पन्न हनुमान्जीने इसी बहानेसे कूद-कूदकर समस्त लंकाको जला दिया ।। 23-24 ॥
तदनन्तर वे कपिश्रेष्ठ वीर हनुमान् [केवल ] विभीषणके घरको छोड़कर सारी लंकाको जला करके समुद्रमें कूद पड़े ॥ 25 ॥
वहाँ अपनी पूँछ बुझाकर शिवके अंशसे उत्पन्न वे समुद्रके दूसरे किनारेपर आये और प्रसन्न होकर श्रीरामजीके पास गये ॥ 26 ॥
सुन्दर वेगवाले कपिश्रेष्ठ हनुमानजीने शीघ्रतापूर्वक श्रीरामके निकट जाकर उन्हें सीताजीकी चूड़ामणि प्रदान की ।। 27 llतत्पश्चात् उनकी आज्ञासे वानरोंके साथ उन तथा वीर हनुमानजीने अनेक विशाल पर्वतोंको लाकर समुद्रपर पुल बाँधा ॥ 28 ॥
तब पार जानेकी कामनावाले श्रीरामचन्द्रजीने विजय प्राप्त करनेकी इच्छासे शिवलिंगको यथाविधि प्रतिष्ठितकर तदुपरान्त उसका पूजन किया ।। 29 ।। तत्पश्चात् उन्होंने पूज्यतम शिवजीसे विजयका वरदान प्राप्त करके समुद्र पारकर वानरोंके साथ लंकाको घेरकर राक्षसोंसे युद्ध किया ॥ 30 ॥
उन वीर हनुमान्ने राक्षसोंका वध किया, श्रीरामचन्द्रजीकी सेनाकी रक्षा की तथा शक्तिसे घायल लक्ष्मणको संजीवनी बूटीके द्वारा पुनः जीवित कर दिया ।। 31 ll
इस प्रकार महादेव के पुत्र प्रभु उन हनुमानजीने लक्ष्मणसहित श्रीरामजीको सब प्रकारसे सुखी बनाया और सम्पूर्ण सेनाकी रक्षा की ।। 32 ।।
महान् बल धारण करनेवाले उन कपिने बिना श्रमके परिवारसहित रावणका विनाश किया और देवताओंको सुखी बनाया ॥ 33 ॥
उन्होंने महिरावण नामक राक्षसको मारकर लक्ष्मणसहित रामको रक्षा करके उसके स्थानसे उन्हें अपने स्थानपर ला दिया ll 34 ll
इस प्रकार उन कपिपुंगवने सब प्रकारसे श्रीरामका | कार्य शीघ्र ही सम्पन्न किया, असुरोंका वध किया एवं नाना प्रकारकी लीलाएँ कीं ॥ 35 ॥
सीतारामको सुख देनेवाले वानरराजने स्वयं श्रेष्ठ भक्त होकर भूलोकमें रामभक्तिकी स्थापना की ॥ 36 ॥
वे लक्ष्मणके प्राणोंके रक्षक, सभी देवताओंका गर्व चूर करनेवाले, रुद्रके अवतार, भगवत्स्वरूप और भक्तोंका उद्धार करनेवाले थे ॥ 37 ॥
वे हनुमानजी महावीर, सदा रामका कार्य सिद्ध करनेवाले, लोकमें रामदूतके रूपमें विख्यात, दैत्योंका संहार करनेवाले तथा भक्तवत्सल थे ॥ 38 ॥
हे तात! इस प्रकार मैंने हनुमानजीका श्रेष्ठ चरित्र कहा, जो धन, यश, आयु तथा सम्पूर्ण कामनाओंका फल देनेवाला है ॥ 39 ॥जो सावधान होकर भक्तिपूर्वक इसे सुनता है अथवा सुनाता है, वह इस लोकमें सभी सुखोंको भोगकर अन्तमें परम मोक्षको प्राप्त करता है ॥ 40 ॥