शौनकजी बोले- हे महाप्राज्ञ ! हे व्यासशिष्य ! हे सूतजी! आपको नमस्कार है। आप धन्य हैं और शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ हैं। आपके महान् गुण वर्णन करनेयोग्य हैं। अब आप कल्याणमय शिवपुराणके श्रवणकी विधि बतलाइये, जिससे सभी श्रोताओंको सम्पूर्ण उत्तम फलकी प्राप्ति हो सके ॥ 1-2 ॥
सूतजी बोले- हे शौनक ! हे मुने! अब मैं आपको सम्पूर्ण फलकी प्राप्तिके लिये शिवपुराणके श्रवणकी विधि बता रहा हूँ ॥ 3 ॥
[सर्वप्रथम ] किसी ज्योतिषीको बुलाकर दान मानसे सन्तुष्ट करके अपने सहयोगी लोगोंके साथ बैठकर बिना किसी विघ्न-बाधाके कथाकी समाप्ति होनेके उद्देश्यसे शुद्ध मुहूर्तका अनुसन्धान कराये। तदनन्तर प्रयत्नपूर्वक देश-देशमें स्थान-स्थानपर यह शुभ सन्देश | भेजे कि हमारे यहाँ शिवपुराणकी कथा होनेवाली है। अपने कल्याणकी इच्छा रखनेवाले लोगोंको [उसे सुननेके लिये ] अवश्य पधारना चाहिये ll 4-5 llकुछ लोग भगवान् श्रीहरिको कथास बहुत दूर पड़ गये हैं। कितने ही स्त्री शूद्र आदि भगवान् | शंकरके कथा-कीर्तनसे वंचित रहते हैं-उन सबको भी सूचना हो जाय, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये। देश | देशमें जो भगवान् शिवके भक्त हों तथा शिव कथा कीर्तन और श्रवणके लिये उत्सुक हों, उन सबको आदरपूर्वक बुलवाना चाहिये ॥ 6-7 ॥
[उन्हें कहलाना चाहिये कि ] यहाँ सत्पुरुषोंको आनन्द देनेवाला समाज तथा अति अद्भुत उत्सव होग जिसमें शिवपुराणका पारायण होगा। श्रीशिवपुराणकी रसमयी कथाका श्रवण करने हेतु आपलोग प्रेमपूर्वक शीघ्र पधारनेकी कृपा करें। यदि समयका अभाव हो तो प्रेमपूर्वक एक दिनके लिये भी आइये। आपको निश्चय ही आना चाहिये क्योंकि इस कथामें क्षणभरके लिये बैठनेका सौभाग्य भी दुर्लभ है। इस प्रकार विनय और प्रसन्नतापूर्वक श्रोताओंको निमन्त्रण देना चाहिये और आये हुए लोगोंका सब प्रकारसे आदर-सत्कार करना चाहिये ॥ 8-11 ॥
शिवमन्दिरमें तीर्थमें, वनप्रान्तमें अथवा घरमें शिवपुराणकी कथा सुननेके लिये उत्तम स्थानका निर्माण करना चाहिये ॥ 12 ॥
कथाभूमिको लीपकर शोधन करना चाहिये तथा धातु आदिसे उस स्थानको सुशोभित करना चाहिये। महोत्सवके साथ-साथ वहाँ अद्भुत तथा सुन्दर व्यवस्था कर लेनी चाहिये। कथाके लिये अनुपयोगी धरके | साज-सामानको हटाकर घरके किसी एकान्त कोने में सुरक्षित रख देना चाहिये ।। 13-14 ll
केलेके खम्भोंसे सुशोभित एक ऊँचा कथामण्डप | तैयार कराये। उसे सब ओर फल-पुष्प आदिसे तथा सुन्दर दोवेसे अलंकृत करे और चारों ओर ध्वजा पताका लगाकर तरह-तरहके सामानोंसे सजाकर सुन्दर शोभासम्पन्न बना दे भगवान् शिवके प्रति सब प्रकारसे उत्तम भक्ति करनी चाहिये; क्योंकि वही सब तरहसे आनन्दका विधान करनेवाली है । ll 15-16 ॥
परमात्मा भगवान् शंकरके लिये दिव्य आसनका | निर्माण करना चाहिये तथा कथा वाचकके लिये भी एक ऐसा दिव्य आसन बनाना चाहिये, जो उनके | लिये सुखद हो सके ॥ 17 ॥,हे मुने! [नियमपूर्वक ] कथा सुननेवाले श्रोताओंके लिये भी यथायोग्य सुन्दर स्थानोंकी व्यवस्था करनी चाहिये। अन्य लोगोंके लिये भी सामान्यरूपसे स्थान बनाने चाहिये ll 18 ॥
हे शौनकजी ! विवाहोत्सवमें जैसी उल्लासपूर्ण मनःस्थिति होती है, वैसी ही इस कमोत्सवमें रखनी चाहिये सब प्रकारकी दूसरी लौकिक चिन्ताओंको भूल जाना चाहिये ॥ 19 ॥
वक्ता उत्तर दिशाकी ओर मुख करे तथा श्रोतागण पूर्व दिशाकी ओर मुख करके पालथी लगाकर बैठें। इस विषय में भी कोई विरोध नहीं है कि पूज्य पूजकके बीच पूर्व दिशा रहे अथवा वक्ताके सम्मुख श्रोताओंका मुख रहे ऐसा कहा गया है । ll 20-21 ll
पौराणिक वक्ता व्यासासनपर जबतक विराजमान रहें, तबतक प्रसंग समाप्तिके पूर्व किसीको नमस्कार नहीं करना चाहिये। पुराणका विद्वान् वक्ता चाहे बालक, युवा, वृद्ध, दरिद्र अथवा दुर्बल-जैसा भी हो, पुण्य चाहनेवालोंके लिये सदा वन्दनीय और पूज्य होता है ।। 22-23 ।।
जिसके मुखसे निकली हुई वाणी देहधारियोंके लिये कामधेनुके समान अभीष्ट फल देनेवाली होती है, उस पुराणवेता बक्ताके प्रति तुच्छबुद्धि कभी नहीं करनी चाहिये। संसारमें जन्म तथा गुणोंके कारण बहुत-से गुरु होते हैं, परंतु उन सबमें पुराणोंका ज्ञाता विद्वान् ही परम गुरु माना गया है ।। 24-25 ।।
करोड़ों योनियोंमें जन्म ले-लेकर दुःख भोगते हुए प्राणियोंको जो मुक्ति प्रदान करता है, उस [पुराणवक्ता ] से बड़ा दूसरा कौन गुरु हो सकता है ? ॥ 26 ॥
पुराणवेत्ता पवित्र, दक्ष, शान्त, ईर्ष्यापर विजय पानेवाला, साधु और दयालु होना चाहिये। ऐसा प्रवचनकुशल विद्वान् इस पुण्यमयी कथाको कहे। सूर्योदयसे आरम्भ करके साढ़े तीन पहरतक उत्तम बुद्धिवाले विद्वान् पुरुषको शिवपुराणकी कथा सम्यक् रीतिसे बाँचनी चाहिये ll 27-28 ll
जो धूर्त, दुराचारी तथा दूसरेसे विवाद करनेवाले और प्रपंची लोग हैं, उन कुटिलवृत्तिवाले लोगोंके सामने यह कथा नहीं कहनी चाहिये।दुष्टोंसे भरे तथा डाकुओंसे घिरे प्रदेशमें और धूर्त व्यक्तिके परमें इस पवित्र कथाको नहीं कहना चाहिये ।। 29-30 ॥
मध्याहनकालमें दो घड़ीतक कथा बन्द रखनी चाहिये, जिससे कथा-कीर्तनसे अवकाश पाकर लोग शौच आदि से निवृत्त हो सकें ॥ 31 ॥
कथा-प्रारम्भके दिनसे एक दिन पहले व्रत ग्रहण करनेके लिये वक्ताको क्षौर करा लेना चाहिये। जिन दिनों कथा हो रही हो, उन दिनों प्रयत्नपूर्वक प्रातः कालका सारा नित्यकर्म संक्षेपसे ही कर लेना चाहिये। वक्ताके पास उसकी सहायताके लिये एक दूसरा वैसा ही विद्वान् स्थापित करना चाहिये, जो सब प्रकारके संशयोंको निवृत्त करनेमें समर्थ और लोगोंको समझानेमें कुशल हो ॥ 32-33 ।।
कथामें आनेवाले विघ्नोंकी निवृत्तिके लिये गणेशजीका पूजन करे। कथाके स्वामी भगवान् शिवकी तथा विशेषतः शिवपुराण ग्रन्थको भक्तिभावसे पूजा करे। तत्पश्चात् उत्तम बुद्धिवाला श्रोता विधिपूर्वक तन-मनसे शुद्ध एवं प्रसन्नचित्त हो आदरपूर्वक शिवपुराणकी कथा सुने ।। 34-35 ll
जो वक्ता और श्रोता अनेक प्रकारके कर्मोंमें भटक रहे हों, काम आदि छः विकारोंसे युक्त हों, स्त्री आसक्ति रखते हों और पाखण्डपूर्ण बातें कहते हाँ, वे पुण्यके भागी नहीं होते जो लौकिक चिन्ता 1 तथा धन, गृह एवं पुत्र आदिकी चिन्ताको छोड़कर कथामें मन लगाये रहता है, उस शुद्धबुद्धि पुरुषको उत्तम फलकी प्राप्ति होती है। श्रद्धा और भक्तिसे युक्त, दूसरे कर्मोंमें मन नहीं लगानेवाले, मौन धारण करनेवाले, पवित्र एवं उद्वेगशून्य श्रोता ही पुण्यके भागी होते हैं ।। 36-38 ॥
जो नराधम भक्तिरहित होकर इस पुण्यमयी कथाको सुनते हैं, उन्हें श्रवणका कोई फल नहीं होता और वे जन्म-जन्मान्तरमें क्लेश भोगते ही रहते हैं। यथाशक्ति उपचारोंसे इस पुराणकी पूजा किये बिना जो मूढजन इस कथाको सुनते हैं, वे अपवित्र और दरिद्र होते हैं ।। 39-40 ॥कथा कहे जाते समय बीचमें ही जो लोग उठकर अन्यत्र चले जाते हैं, जन्मान्तरमें उनकी स्त्री आदि सम्पत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं जो पुरुष सिरपर पगड़ी आदि धारण करके इस कथाका श्रवण करते हैं, उनके पापी और कुलकलंकी पुत्र उत्पन्न होते हैं ।। 41-42 ।।
जो पुरुष पान चबाते हुए इस कथाको सुनते हैं, उन्हें नरकमें यमदूत उनकी ही विष्ठा खिलाते हैं। जो लोग ऊँचे आसनपर बैठकर इस कथाका श्रवण करते हैं, वे समस्त नरकोंको भोगकर काकयोनिमें जन्म लेते हैं ।। 43-44 ।।
जो लोग वीरासन आदिसे बैठकर इस शुभ कथाको सुनते हैं, वे अनेकों नरकोंको भोगकर विषवृक्षका जन्म पाते हैं। कथा सुनानेवाले पौराणिकको अच्छी प्रकार प्रणाम किये बिना जो लोग कथा सुनते हैं, वे सभी नरकोंको भोगकर अर्जुनवृक्ष बनते हैं। रोगयुक्त न होनेपर भी जो लोग लेटकर यह कथा सुनते हैं, वे सभी नरकोंको भोगकर अन्तमें अजगर आदि योनियोंमें जन्म लेते हैं। वक्ताके समान ऊंचाईवाले आसनपर बैठकर जो इस कथाका श्रवण करते हैं, उन नारकीय लोगोंको गुरुशय्यापर शयन करने जैसा पाप लगता है ।। 45-48 ॥
जो इस पवित्र कथा तथा वक्ताको निन्दा करते हैं, वे सौ जन्मोंतक दुःख भोगकर कुत्तेका जन्म पाते हैं। कथा होते समय बीचमें जो गन्दी बातें बोलते हैं, वे घोर नरक भोगनेके बाद गधेका जन्म पाते हैं। जो कभी भी इस परम पवित्र कथाका श्रवण नहीं करते, वे घोर नरक भोगनेके पश्चात् जंगली सूअरका जन्म | लेते हैं। जो दुष्ट कथाके बीचमें विघ्न डालते हैं, वे करोड़ों वर्षोंतक नरकयातनाओंको भोगकर गाँवके सूअरका जन्म पाते हैं ॥ 49-52 ॥
इसका विचार करके शुद्ध और प्रेमपूर्ण चित्तसे बुद्धिमान् श्रोताको वक्ताके प्रति भक्तिभाव रखकर कथाश्रवणका प्रयत्न करना चाहिये ॥ 53 ॥
सबसे पहले कथाके विघ्नोंका नाश करनेहेतु गणेशजीकी पूजा करनी चाहिये। अपने नित्यकर्मको संक्षेपमें सम्पन्न करके प्रायश्चित करना चाहिये । नवग्रह और सर्वतोभद्र देवताओंका पूजन करके शिवपूजाकी बतायी गयी विधिसे शिवपुराणकी पुस्तकका अर्चन करना चाहिये ।। 54-55 llपूजनके अन्तमें विनम्र होकर बड़ी भक्तिके साथ दोनों हाथ जोड़कर साक्षात् शिवस्वरूपिणी पुस्तककी इस प्रकार स्तुति करनी चाहिये - श्रीशिवपुराणके रूपमें आप प्रत्यक्ष सदाशिव हैं; हमने कथा सुननेके लिये आपको अंगीकार किया है। आप हमपर प्रसन्न हों। मेरा जो मनोवांछित हो, उसे आप कृपापूर्वक सम्पन्न करें। मेरा यह कथा श्रवण निर्विघ्नरूपसे सुसम्पन्न हो। कर्मरूपी ग्राहसे ग्रस्त शरीरवाले मुझ दीनका आप संसारसागरसे उद्धार कीजिये। हे शंकर! मैं आपका दास हूँ ॥ 56-59 ॥
प्रकार साक्षात् शिवस्वरूप शिवपुराणकी दीनतापूर्वक स्तुति करके वक्ताकी पूजा आरम्भ करनी चाहिये। शिवपूजाकी बतायी गयी विधिसे पुष्प, वस्त्र, अलंकार, धूप-दीपादिसे वक्ताकी | पूजा करे। तदनन्तर शुद्धचित्तसे उनके सामने नियम ग्रहण करे और कथासमाप्तिपर्यन्त यथाशक्ति उसका इस इस प्रयत्नपूर्वक पालन करे ॥ 60-62 ll
[तत्पश्चात् कथावाचक व्यासकी प्रार्थना करे] हे व्यासजीके समान ज्ञानीश्रेष्ठ, शिवशास्त्रके मर्मज्ञ ब्राह्मणदेवता! आप इस कथाके प्रकाशसे मेरे | अज्ञानान्धकारको दूर करें। भक्तिपूर्वक पाँच अथवा एक ब्राह्मणका वरण करे और उनके द्वारा शिवपंचाक्षर मन्त्र ( नमः शिवाय) का जप कराये ॥ 63-64॥
है मुने! इस प्रकार मैंने भक्त श्रोताओं द्वारा भक्तिपूर्वक कथाश्रवणकी उत्तम विधि आपको बता दी; अब आप और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ 65 ॥