शौनकजी बोले- हे महाभाग सूतजी ! आप धन्य हैं, परमार्थतत्त्वके ज्ञाता हैं, आपने कृपा करके हमलोगोंको यह बड़ी अद्भुत एवं दिव्य कथा सुनायी है॥1॥
हमने यह पापनाशिनी, मनको पवित्र करनेवाली और भगवान् शिवको प्रसन्न करनेवाली अद्भुत कथा सुनी ॥ 2 ॥
भूतलपर इस कथाके समान कल्याणका सर्वश्रेष्ठ साधन दूसरा कोई नहीं है, यह बात हमने आज आपकी कृपासे निश्चयपूर्वक समझ ली हे सूतजी !कलियुगमें इस कथाके द्वारा कौन-कौन-से पापी शुद्ध होते हैं? उन्हें कृपापूर्वक बताइये और इस जगत्को कृतार्थ कीजिये ॥ 3-4 ॥
सूतजी बोले- हे मुने! जो मनुष्य पापी, दुराचारी, खल तथा काम-क्रोध आदिमें निरन्तर डूबे रहनेवाले हैं, वे भी इस पुराणसे अवश्य शुद्ध हो जाते हैं ॥ 5 ॥
यह कथा वास्तवमें उत्तम ज्ञानयज्ञ है, जो सदा सांसारिक भोग और मोक्षको देनेवाला है, सभी पापोंको नष्ट करनेवाला है और भगवान् शिवको प्रसन्न करनेवाला है। जो अत्यन्त लालची, सत्यविहीन, | अपने माता-पितासे द्वेष करनेवाले, पाखण्डी तथा हिंसक वृत्तिके हैं; वे भी इस ज्ञानयज्ञसे शुद्ध हो जाते हैं। अपने वर्णाश्रमधर्मका पालन न करनेवाले और ईर्ष्याग्रस्त लोग भी कलिकालमें इस ज्ञानयज्ञके द्वारा पवित्र हो जाते हैं ॥ 6-8 ॥
जो लोग छल-कपट करनेवाले, क्रूर स्वभाववाले और अत्यन्त निर्दयी हैं, कलियुगमें वे भी इस ज्ञानयज्ञसे शुद्ध हो जाते हैं। ब्राह्मणके धनसे पलनेवाले तथा निरन्तर व्यभिचारपरायण जो लोग हैं, वे भी इस ज्ञानयज्ञसे इस कलिकालमें भी पवित्र हो जाते हैं। जो मनुष्य सदा पापकर्मोंमें लिप्त रहते हैं, शठ हैं और अत्यन्त दूषित विचारवाले हैं, वे कलियुगमें भी इस ज्ञानयज्ञसे निर्मल हो जाते हैं। दुश्चरित्र, दुर्बुद्धि, उद्विग्न चित्तवाले और देवताओंके द्रव्यका उपभोग | करनेवाले पापीजन भी कलिकालमें भी इस ज्ञानयज्ञसे पवित्र हो जाते हैं ॥ 9-12 ॥
इस पुराणके श्रवणका पुण्य बड़े-बड़े पापोंको नष्ट करता है, सांसारिक भोग तथा मोक्ष प्रदान करता है और भगवान् शंकरको प्रसन्न करता है ॥ 13 ॥
इस सम्बन्धमें मुनिगण इस प्राचीन इतिहासका उदाहरण दिया करते हैं, जिसके श्रवणमात्रसे पापोंका पूर्णतया नाश हो जाता है ॥ 14 ॥
पहलेकी बात है-किरातनगरमें एक ब्राह्मण रहता था, जो अज्ञानी, दरिद्र, रस बेचनेवाला तथा | वैदिक धर्मसे विमुख था। वह स्नान-सन्ध्या आदि कर्मोंसे भ्रष्ट हो गया था और वैश्यवृत्तिमें तत्पर रहता था। उसका नाम था देवराज। वह अपने ऊपरविश्वास करनेवाले लोगोंको ठगा करता था। उसने ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों शूद्रों तथा दूसरोंको भी अनेक बहानोंसे मारकर उनका धन हड़प लिया था। बादमें उसने अधर्मसे बहुत सारा धन अर्जित कर लिया, परंतु उस पापीका थोड़ा-सा भी धन कभी धर्मके काममें नहीं लगा ॥ 15- 18 ॥
एक दिन वह ब्राह्मण एक तालाबपर नहाने गया। वहाँ शोभावती नामकी एक वेश्याको देखकर वह अत्यन्त मोहित हो गया। वह सुन्दरी भी उस धनी ब्राह्मणको अपने वशीभूत हुआ जानकर प्रसन्न हुई। आपसमें वार्तालापसे उनमें प्रीति उत्पन्न हो गयी। उस ब्राह्मणने उस वेश्याको पत्नी बनाना तथा उस वेश्याने उसे पति बनाना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार कामवश होकर वे दोनों बहुत समयतक विहार करते रहे । ll 19 - 21 ॥
बैठने, सोने, खाने-पीने तथा क्रीडामें ये दोनों निरन्तर पति-पत्नीकी तरह व्यवहार करने लगे। अपने माता-पिता तथा पत्नीके बार-बार रोकनेपर भी पापकृत्यमें संलग्न वह ब्राह्मण उनकी बात नहीं मानता था ।। 22-23 ॥
एक दिन रात्रिमें उस दुष्टने ईर्ष्यावश अपने सोये हुए माता-पिता और पत्नीको मार डाला और उनका सारा धन हर लिया। वेश्यामें आसक्त चित्तवाले उस कामीने अपना और पिता आदिका सारा धन उस वेश्याको दे दिया। वह पापी अभक्ष्य भक्षण तथा मद्यपान करने लगा और वह नीच ब्राह्मण उस वेश्याके साथ एक ही पात्रमें सदा जूठा भोजन करने लगा ॥ 24-26 ॥
एक दिन घूमता- घामता वह दैवयोगसे प्रतिष्ठानपुर (सी प्रयाग) में जा पहुँचा। वहाँ उसने एक शिवालय देखा, जहाँ बहुतसे साधु-महात्मा एकत्र हुए थे ॥ 27 ॥
देवराज उस शिवालयमें ठहर गया और वहाँ उस ब्राह्मणको ज्वर आ गया। उस ज्वरसे उसको बड़ी पीड़ा होने लगी। वहाँ एक ब्राह्मणदेवता शिवपुराणकी कथा सुना रहे थे। ज्वरमें पड़ा हुआ देवराज ब्राह्मणके मुखारविन्दसे निकली हुई उस शिवकथाको निरन्तर सुनता रहा ॥ 28 ॥एक मासके बाद वह ज्वरसे अत्यन्त पीड़ित होकर चल बसा यमराजके दूत आये और उसे पाशोंसे बाँधकर बलपूर्वक यमपुरी में ले गये ॥ 29 ॥
इतनेमें ही शिवलोक भगवान शिवके पार्षदगण आ गये। उनके गौर अंग कर्पूरके समान उज्ज्वल थे, हाथ त्रिशूलसे सुशोभित हो रहे थे, उनके सम्पूर्ण अंग भस्मसे उद्भासित थे और स्ट्राक्षको मालाएँ उनके शरीरकी शोभा बढ़ा रही थीं। वे सब-के-सब क्रोध करते हुए यमपुरीमें गये और यमराजके दूतोंको मार पीटकर, बारम्बार धमकाकर उन्होंने देवराजको उनके चंगुल से छुड़ा लिया और अत्यन्त अद्भुत विमानपर बिठाकर जब वे शिवदूत कैलास जानेको उद्यत हुए. उस समय यमपुरीमें बड़ा भारी कोलाहल मच गया ।। 30-321/2 ॥
उस कोलाहलको सुनकर धर्मराज अपने भवनसे बाहर आये। साक्षात् दूसरे रुद्रोंके समान प्रतीत होनेवाले उन चारों दूतोंको देखकर धर्मज्ञ धर्मराजने | उनका विधिपूर्वक पूजन किया ।। 33-34 ।।
यमने ज्ञानदृष्टिसे देखकर सारा वृत्तान्त जान लिया, उन्होंने भयके कारण भगवान् शिवके उन महात्मा दूतोंसे कोई बात नहीं पूछी ॥ 35 ll
यमराजसे पूजित तथा प्रार्थित होकर वे शिवदूत कैलासको चले गये और उन्होंने उस ब्राह्मणको दयासागर साम्ब शिवको दे दिया ॥ 36 ॥
शिवपुराणको यह परम पवित्र कथा धन्य है, जिसके सुननेसे पापीजन भी मुक्तिके योग्य बन जाते हैं। भगवान् सदाशिव के परमधामको वेदज्ञ सभी लोकोंमें सर्वश्रेष्ठ बताते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा अन्य प्राणी; यहाँतक कि जिस पापीने धनके लोभसे अनेक लोगोंकी हत्या की तथा अपने माता-पिता और पत्नीको भी मार डाला; वह वेश्यागामी, शराबी ब्राह्मण देवराज भी इस कथाके प्रभावसे भगवान् शिवके परमधामको प्राप्तकर तत्क्षण मुक्त हो गया । ll 37-40 ।।