ब्रह्माजी बोले- अब मैं पूजाकी सर्वोत्तम विधि बता रहा हूँ, जो समस्त अभीष्ट सुखोंको सुलभ करानेवाली है। हे देवताओ तथा ऋषियो! आपलोग ध्यान देकर सुनें ॥ 1 ॥
उपासकको चाहिये कि वह ब्राह्म मुहूर्तमें उठकर जगदम्बा पार्वतीसहित भगवान् शिवका स्मरण करे तथा हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर भक्तिपूर्वक उनसे इस प्रकार प्रार्थना करे - ॥ 2 ॥
हे देवेश्वर ! उठिये, उठिये। मेरे हृदयमें शयन करनेवाले देवता! उठिये। हे उमाकान्त ! उठिये और ब्रह्माण्डमें सबका मंगल कीजिये। मैं धर्मको जानता हूँ, किंतु मेरी उसमें प्रवृत्ति नहीं होती, मैं अधर्मको जानता हूँ, परंतु मैं उससे दूर नहीं हो पाता। हे महादेव ! आप मेरे हृदयमें स्थित होकर मुझे जैसी प्रेरणा देते हैं, वैसा ही मैं करता हूँ ॥ 3-4 ॥
भक्तिपूर्वक यह वचन कहकर और गुरुके चरणोंका स्मरण करके गाँवसे बाहर दक्षिण दिशामें मलमूत्रका त्याग करनेके लिये जाय ॥ 5 ॥
इसके बाद मिट्टी और जलसे शरीरकी शुद्धि करके दोनों हाथों और पैरोंको धोकर दन्तधावन करे ॥ 6 ॥
सूर्योदय होनेसे पहले ही दातौन करके मुँहको सोलह बार जलकी अँजलियोंसे धोये। हे देवताओ तथा ऋषियो ! षष्ठी, प्रतिपदा, अमावास्या और नवमी तिथियों तथा रविवारके दिन शिवभक्तको यत्नपूर्वक दातौनको त्याग देना चाहिये ॥ 7-8 ।।
अवकाशके अनुसार नदी आदिमें जाकर अथवा घरमें ही भलीभाँति स्नान करे। मनुष्यको देश और कालके विरुद्ध स्नान नहीं करना चाहिये ॥ 9 ॥
रविवार, श्राद्ध, संक्रान्ति, ग्रहण, महादान, उपवासदिवस अथवा अशौच प्राप्त होनेपर मनुष्य जलसे स्नान न करे। शिवभक्तिसे युक्त मनुष्य तीर्थ तीर्थ, गर्म आदिमें प्रवाहके सम्मुख होकर स्नान करे ।। 10-11 ॥जो नहाने के पहले तेल लगाना चाहे, उसे विहित एवं निषिद्ध दिनोंका विचार करके ही तैलाभ्यंग करना चाहिये जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तेल लगाता हो, उसके लिये किसी भी दिन तैलाभ्यंग करना दोषपूर्ण नहीं है अथवा जो तेल इत्र आदिसे वासित हो, उसका लगाना किसी भी दिन दूषित नहीं है ॥ 12 ॥
श्राद्ध, ग्रहण, उपवास और प्रतिपदाके दिन तेल नहीं लगाना चाहिये। सरसोंका तेल ग्रहणको छोड़कर किसी भी दिन दुषित नहीं होता ॥ 13 ॥
इस तरह देश-कालका विचार करके ही विधिपूर्वक स्नान करे। स्नानके समय अपने मुखको उत्तर अथवा पूर्वकी ओर रखना चाहिये ॥ 14 ॥
उच्छिष्ट वस्त्र धारण करके स्नान कभी न करे। शुद्ध वस्त्र धारण करके इष्टदेवका स्मरण करते स्नान करना चाहिये ll 15 ll
जिस वस्त्रको दूसरेने धारण किया हो तथा जिसे स्वयं रातमें धारण किया गया हो, उससे तभी स्नान किया जा सकता है, जब उसे धो लिया गया हो ॥ 16 इसके पश्चात् देवताओं, ऋषियों तथा पितरोंको तृप्ति देनेवाला तर्पण करना चाहिये। उसके बाद धुला हुआ वस्त्र पहने और आचमन करे ॥ 17 ॥
हे श्रेष्ठ द्विजो ! तदनन्तर गोबर आदिसे लीप पोतकर स्वच्छ किये हुए शुद्ध स्थानमें जाकर वहाँ सुन्दर आसनकी व्यवस्था करे। वह आसन विशुद्ध काष्ठका बना हुआ, पूरा फैला हुआ तथा चित्रमय होना चाहिये। ऐसा आसन सम्पूर्ण अभीष्ट फलोंको देनेवाला है ॥ 18-19 ॥
उसके ऊपर बिछानेके लिये यथायोग्य मृगचर्म आदि ग्रहण करे। शुद्ध बुद्धिवाला पुरुष उस आसनपर बैठकर भस्मसे त्रिपुण्ड्र लगाये ॥ 20 ॥
त्रिपुण्ड्रसे जप, तप तथा दान सफल होते हैं। भस्मके अभाव में त्रिपुण्ड्रका साधन जल आदि बताया गया है ॥ 21 ॥
इस तरह त्रिपुण्ड्र करके मनुष्य रुद्राक्ष धारण करे और अपने (सन्ध्योपासना आदि) नित्यकर्मका | सम्पादन करके पुनः शिवकी आराधना करे ॥ 22 ॥तत्पश्चात् तीन बार मन्त्रपूर्वक आचमन करे | अथवा 'गंगाबिन्दु: - ऐसा उच्चारण करते हुए एक बार आचमन करे ॥ 23 ॥
तत्पश्चात् वहाँ शिवकी पूजाके लिये अन्न और जल लाकर रखे। दूसरी कोई भी जो वस्तु आवश्यक हो, उसे यथाशक्ति जुटाकर अपने पास रखे ॥ 24 ॥
इस प्रकार पूजन सामग्रीका संग्रह करके यहाँ धैर्य धारण करके जल, गन्ध और अक्षतसे युक्त एक अर्घ्यपात्र लेकर उसे दाहिने भागमें रखे, उससे | उपचारकी सिद्धि होती है। फिर गुरुका स्मरण करके उनकी आज्ञा लेकर विधिवत् सकाम संकल्प करके पराभक्तिसे सपरिवार शिवका पूजन करे ॥ 25-27 ॥
एक मुद्रा दिखाकर सिन्दूर आदि उपचारोंद्वारा सिद्धिबुद्धिसहित विघ्नहारी गणेशका पूजन करे। लक्ष और लाभसे युक्त गणेशजीका पूजन करके उनके नामके आदिमें प्रणव तथा अन्तमें नमः जोड़कर नामके साथ चतुर्थी विभक्तिका प्रयोग करते हुए नमस्कार करे। यथा-ॐ गणपतये नमः अथवा ॐ लक्षलाभयुताय सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः ॥ 28-29 ॥
तदनन्तर उनसे क्षमाप्रार्थना करके पुनः भाई कार्तिकेयसहित गणेशजीका पराभक्तिसे पूजन करके उन्हें बारंबार नमस्कार करे ॥ 30 ॥ तत्पश्चात् सदा द्वारपर खड़े रहनेवाले महोदरका पूजन करके सती-साध्वी गिरिराजनन्दिनी उमाकी पूजा करे ॥ 31 ॥
चन्दन, कुंकुम तथा धूप, दीप आदि अनेक उपचारों तथा नाना प्रकारके नैवेद्योंसे शिवाका पूजन करके | नमस्कार करनेके पश्चात् साधक शिवजीके समीप जाय । | यथासम्भव अपने घरमें मिट्टी, सोना, चाँदी, धातु या अन्य [द्रव्य ] पारे आदिकी शिवप्रतिमा बनाये और उसे नमस्कार करके भक्तिपरायण होकर पूजा करे। उसकी पूजा जानेपर सभी देवता पूजित हो जाते हैं॥ 32-345 हो मिट्टीका शिवलिंग बनाकर विधिपूर्वक उसकी स्थापना करे। अपने घरमें रहनेवाले लोगोंको स्थापना सम्बन्धी सभी नियमोंका सर्वथा पालन करना चाहिये। भूतशुद्धि करके प्राणप्रतिष्ठा करे ।। 35-36 ॥
शिवालय में दिक्पालोंकी भी स्थापना करके उनकी पूजा करे। घरमें सदा मूलमन्त्रका प्रयोग करके शिवकी पूजा करनी चाहिये ॥ 37 ll
घरमें द्वारपालोंके पूजनका सर्वथा नियम नहीं है; क्योंकि घरमें जिस शिवलिंगकी पूजा की जाती है, उसमें सभी देवता प्रतिष्ठित रहते हैं ॥ 38 ll
घरपर होनेवाली शिवकी पूजाके समय अंगोंसहित तथा सपरिवार उन सदाशिवका आवाहन करके पूजन किया जाय, ऐसा कोई नियम नहीं है ॥ 39 ॥
भगवान् शिवके समीप ही अपने लिये आसनकी व्यवस्था करे। उस समय उत्तराभिमुख बैठकर आचमन करे ll 40 ll
उसके बाद दोनों हाथोंका प्रक्षालन करके प्राणायाम करे। प्राणायामकालमें मनुष्यको मूलमन्त्रकी दस आवृत्तियाँ करनी चाहिये ॥ 41 ll
हाथोंसे पाँच मुद्राएँ दिखाये यह पूजाका आवश्यक अंग है। इन मुद्राओंका प्रदर्शन करके ही मनुष्य पूजाविधिका अनुसरण करे ।। 42 ।।
तदनन्तर वहाँ दीप निवेदन करके गुरुको नमस्कार करे और पद्मासन या भद्रासन बाँधकर बैठे अथवा उत्तानासन या पर्यकासनका आश्रय लेकर सुखपूर्वक बैठे और पुन: पूजनका प्रयोग करे। पुराने समय तो पत्थरको बरियाकी ही श्रद्धापूर्वक पूजा करके लोग भवसागरसे पार हो जाते थे। यदि वे शुद्ध रूपमें स्वयमेव घरमें विद्यमान हैं, तो उसके लिये कोई नियमकी आवश्यकता नहीं है ।। 43-45 ।।
तत्पश्चात् अर्घ्यपात्रसे उत्तम शिवलिंगका प्रक्षालन करे। मनको भगवान् शिवसे अन्यत्र न ले जाकर पूजा सामग्रीको अपने पास रखकर निम्नांकित मन्त्रसमूहसे महादेवजीका आवाहन करे ।। 469/2 ।।
जो कैलासके शिखरपर निवास करते हैं, पार्वतीदेवीके पति हैं, समस्त देवताओंसे उत्तम हैं, जिनके स्वरूपका शास्त्रोंमें यथावत् वर्णन किया गया है, जो निर्गुण होते हुए भी गुणरूप हैं, जिनके पाँच मुख, दस भुजाएँ और प्रत्येक मुखमण्डलमें तीन-तीन नेत्र हैं, जिनकी ध्वजापर वृषभ चिह्न अंकित है, जिनके अंगको कान्ति कर्पूरके समान गौर है, जोदिव्यरूपधारी, चन्द्रमारूपी मुकुटसे सुशोभित तथा सिरपर जटाजूट धारण करनेवाले हैं, जो हाथीकी खाल पहनते हैं और व्याघ्रचर्म ओढ़ते हैं, जिनका स्वरूप शुभ है, जिनके अंगोंमें वासुकि आदि नाग लिपटे रहते हैं, जो पिनाक आदि आयुध धारण करते हैं, जिनके आगे आठों सिद्धियाँ निरन्तर नृत्य करती रहती हैं, भक्तसमुदाय जय-जयकार करते हुए जिनकी सेवामें लगे रहते हैं, दुस्सह तेजके कारण जिनकी ओर देखना भी कठिन है, जो देवताओंसे सेवित हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियोंको शरण देनेवाले हैं, जिनका मुखारविन्द प्रसन्नतासे खिला हुआ है, वेदों और शास्त्रोंने जिनकी महिमाका यथावत् गान किया है, विष्णु और ब्रह्मा भी सदा जिनकी स्तुति करते हैं तथा जो भक्तवत्सल हैं, उन परमानन्दस्वरूप शिवका मैं आवाहन करता हूँ। इस प्रकार साम्बशिवका ध्यान करके उनके लिये आसन दे ।। 47-53 ॥
चतुर्थ्यन्त पदसे ही क्रमशः सब कुछ अर्पित करे। [ यथा-साम्बाय सदाशिवाय नमः आसनं समर्पयामि इत्यादि।] तत्पश्चात् भगवान् शंकरको पाद्य और अर्घ्य दे तदनन्तर परमात्मा शम्भुको आचमन कराकर पंचामृतसम्बन्धी द्रव्योंद्वारा प्रसन्नता पूर्वक शंकरको स्नान कराये ।। 54-55 ।। वेदमन्त्रों अथवा समन्त्रक चतुर्थ्यन्त नामपदोंका उच्चारण करके भक्तिपूर्वक यथायोग्य समस्त
द्रव्य भगवान्को अर्पित करे। अभीष्ट द्रव्यको शंकरके
ऊपर चढ़ाये। फिर भगवान् शिवको जलधारासे स्नान
कराये ।। 56-57 ।। स्नानके पश्चात् उनके श्रीअंगोंमें सुगन्धित चन्दन तथा अन्य द्रव्योंका यत्नपूर्वक लेप करे। तत्पश्चात् | सुगन्धित जलसे ही उनके ऊपर जलधारा गिराकर अभिषेक करे। वेदमन्त्रों, पतंगों अथवा शिवके | ग्यारह नामोंद्वारा यथावकाश जलधारा चढ़ाकर शिवलिंगको अच्छी तरह पोछे ।। 58-59 । वस्त्रसे
तदनन्तर आचमन प्रदान करे और वस्त्र समर्पित करे नाना प्रकारके मन्त्रोंद्वारा भगवान् शिवको तिल, जौ, गेहूँ, मूंग और उड़द अर्पित करे। फिर पाँच | मुखवाले परमात्मा शिवको पुष्प चढ़ाये ।। 60-61 ।।प्रत्येक मुखपर ध्यानके अनुसार यथोचित अभिलाषा करके कमल, शतपत्र, शंखपुष्य, कुशपुष्प, धतूर, मन्दार, द्रोणपुष्प, तुलसीदल तथा बिल्वपत्रके द्वारा पराभक्तिके साथ भक्तवत्सल भगवान् शंकरकी विशेष पूजा करे। अन्य सब वस्तुओंका अभाव होनेपर शिवको केवल विल्वपत्र ही अर्पित करे ।। 62 - 64 ll
बिल्वपत्र समर्पित होनेसे ही शिवकी पूजा सफल होती है। तत्पश्चात् सुगन्धित चूर्ण तथा सुवासित उत्तम तैल, इत्र आदि विविध वस्तुएँ बड़े हर्षके साथ भगवान् शिवको अर्पित करे। तदनन्तर प्रसन्नतापूर्वक गुग्गुल और अगुरु आदिसे धूप निवेदित करे ।। 65-66 ।।
तदनन्तर शंकरजीको घृतपूर्ण दीपक दे। इसके बाद निम्न मन्त्रसे भक्तिपूर्वक पुनः अर्घ्य दे और भक्तिभावसे वस्त्रद्वारा उनके मुखका मार्जन करे- 'हे शंकर! आपको नमस्कार है। आप इस अर्घ्यको स्वीकार करके मुझे रूप दीजिये, यश दीजिये, सुख दीजिये तथा भोग और मोक्षका फल प्रदान कीजिये।' इसके बाद भगवान् शिवको भाँति-भाँतिके उत्तम नैवेद्य अर्पित करे ॥ 67-69 ॥
इसके पश्चात् प्रेमपूर्वक शीघ्र आचमन कराये। तदनन्तर सांगोपांग ताम्बूल बनाकर शिवको समर्पित करे। इसके अनन्तर पाँच बत्तीकी आरती बनाकर भगवान्को दिखाये। पैरोंमें चार बार, नाभिमण्डलके सामने दो बार, मुखके समक्ष एक बार तथा सम्पूर्ण अंगोंमें सात बार आरती दिखाये। तत्पश्चात् यथोक्त ध्यान करके मन्त्रका उच्चारण करे ।। 70-72 ।।
बुद्धिमान् मनुष्यको गुरुके द्वारा बताये गये नियमके अनुसार ही मन्त्रका जप करना चाहिये। अथवा अपने ज्ञानके अनुसार जितनी संख्यामें हो • सके, उतनी संख्या में ही मन्त्रोंका विधिवत् उच्चारण करे ।। 73-74 ।।
प्रेमपूर्वक नाना प्रकारके स्तोत्रोंसे वृषभध्वज शंकरकी स्तुति करे तत्पश्चात् धीरे-धीरे शिवकी परिक्रमा करे ।। 75 ।।इसके बाद भक्त पुरुष साष्टांग प्रणाम करे और शिवकी प्रसन्नताके लिये उन परमेश्वर शंकरको इस मन्त्रसे भक्तिपूर्वक पुष्पांजलि दे - हे शंकर! मैंने मैं आपका अज्ञानसे या जान-बूझकर जो-जो पूजन आदि किया है, वह आपकी कृपासे सफल हो। हे मृड ! हूँ, मेरे प्राण सदा आपमें लगे हुए हैं, मेरा चित्त सदा आपका ही चिन्तन करता है—ऐसा जानकर हे गौरीनाथ ! हे भूतनाथ ! आप मुझपर प्रसन्न होइये। हे प्रभो! धरतीपर जिनके पैर लड़खड़ा जाते हैं, उनके लिये भूमि ही सहारा है, उसी प्रकार जिन्होंने आपके प्रति अपराध किये हैं, उनके लिये भी आप ही शरणदाता हैं । ll 76 - 791/2 ॥
इस प्रकार बहुविध प्रार्थना करके उत्तम विधिसे पुष्पांजलि अर्पित करनेके पश्चात् पुनः भगवान्को बार-बार नमस्कार करे। [ तत्पश्चात् यह बोलकर विसर्जन करना चाहिये] हे देवेश! हे प्रभो ! अब आप परिवारसहित अपने स्थानको जायँ। नाथ! जब पूजाका समय हो, तब पुनः आप आदरपूर्वक पधारें ॥। 80-811/2 ॥
इस प्रकार भक्तवत्सल शंकरकी बारम्बार प्रार्थना करके उनका विसर्जन करे और उस जलको अपने हृदयमें लगाये तथा मस्तकपर चढ़ाये ॥ 82/2 ॥
हे ऋषियो! इस तरह मैंने शिवपूजनकी सारी विधि बता दी, जो भोग और मोक्षको देनेवाली है। अब आपलोग और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ 83 ॥