ब्रह्माजी बोले- तदनन्तर भगवान् शम्भुने नन्दी आदि सब गणोंको बुलाकर अपने साथ उन्हें वहाँ चलनेकी आज्ञा दी ॥ 1 ॥
शिवजी बोले- तुमलोग कुछ गणोंको यहीं रोककर महोत्सव करते हुए मेरे साथ हिमाचलपुरीको चलो ॥ 2 ॥
ब्रह्माजी बोले- शिवजीकी आज्ञा पाकर सभी गणेश्वर अपनी-अपनी टोली लेकर प्रसन्नतापूर्वक चलने लगे, मैं कुछ अंशमें उनका वर्णन करता हूँ- ॥ 3 ॥
शंखकर्ण नामक गणेश्वर अपने एक करोड़ गणसहित शिवजी के साथ हिमालयपुरीको चलनेके लिये उद्यत हुआ। केकराक्ष नामक गणराज दस करोड़ गणोंके साथ महान् उत्सवसे चला। इसी प्रकार विकृत नामक गणराज भी आठ करोड़ गणोंके साथ चला । ll 4-5 ।।
गणनायक विशाख चार करोड़ गणोंके साथ तथा गणश्रेष्ठ पारिजात नौ करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 6 ॥
श्रीमान् सर्वान्तक तथा विकृतानन साठ-साठ करोड़ गण लेकर चले। दुन्दुभ नामक गणनायक आठ करोड़ गणोंके साथ चला। हे मुने! कपाल नाम गणेश्वर पाँच करोड़ गणोंके साथ और वीर सन्दारक छः करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 7-8 ॥
कन्दुक तथा कुण्डक एक-एक करोड़ गणके साथ और गणेश्वर विष्टम्भ आठ करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 9 ॥ हे मुनिसत्तम ! पिप्पल नामक गणेश्वर एक सहस्रकोटि गणोंके साथ और इतने ही गणोंके साथ
वीर गणेश्वर सनादक प्रसन्नतापूर्वक चले ॥ 10 ॥ गणेश्वर आवेशन आठ करोड़ गणोंके साथ तथा गणाधीश महाकेश सहस्र कोटि गणोंके साथ चले ॥ 11 ॥
हे मुने! इसी प्रकार कुण्ड और पर्वतक बारह | करोड़ गणोंको तथा वीर चन्द्रतापन आठ करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 12 ॥
काल, कालक, महाकाल तथा अग्निक नामक गणनायक सौ-सौ करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 13 ॥इसी प्रकार अग्निमुख आदित्यमूर्धा तथा घनावह एक-एक करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 14 ॥ सन्नाह, कुमुद, अमोघ और कोकिल नामक गणराज सौ-सौ करोड़ गण लेकर चले। गणाध्यक्ष सुमन्त्र करोड़ों करोड़ों गणोंको लेकर तथा काकपादोदर एवं सन्तानक साठ करोड़ गणोंको लेकर चले । ll 15-16 ।। महाबल नौ करोड़ और मधुपिंग, कोकिल, नील तथा पूर्णभद्र नब्बे करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 17 ॥ चतुर्वका सात करोड़, करण बीस करोड़ तथा गणेश्वर नब्बे करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 18 ॥
इसी प्रकार हे नारद! यज्वाक्ष, शतमन्यु एवं मेघमन्यु- ये सभी गणेश्वर नब्बे नब्बे करोड़ गणोंके साथ पृथक्-पृथक् चले ॥ 19 ॥
गणनायक काष्टांगुष्ठ, विरूपाक्ष, सुकेश, सनातन और वृषभ चौंसठ करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 20 ॥
हे मुने! तालकेतु, षण्मुख, चंचुमुख, सनातन, संवर्तक, चैत्र, लकुलीश, स्वयंप्रभु, लोकान्तक, दीप्तात्मा, दैत्यान्तक, देव भूगिरिटि श्रीमान् देवदेवप्रिय, अशनि, भानुक आदि चौंसठ हजार गणोंके साथ बड़े उत्साहसे शिवजीके विवाहके लिये उनके साथ चले ॥ 21-23 ॥
प्रमाथगण सहस्त्रों भूतगणोंके साथ तथा तीन करोड़ अपने गणोंके साथ चले। वीरभद्र चौंसठ करोड़ गणोंके साथ तथा तीन करोड़ रोमज प्रेतगणोंको साथ लेकर चले ll 24 ll
इसी प्रकार नन्दी आदि गणेश्वर भी एक सौ बीस हजार करोड़ गणोंसे युक्त होकर शंकरके उत्सवमें चले ॥ 25 ॥
यह शंकरका विवाह महोत्सव है-ऐसा जानकर क्षेत्रपाल, भैरव करोड़ करोड़ गणोंके साथ प्रीतिपूर्वक आये। ये गण तथा शिवके असंख्य गण जो अत्यन्त बलवान् थे, वे उत्साह तथा प्रीतिसे युक्त हो शिवजीके विवाहोत्सवमें वहाँ गये 26-27 ।।
इन सभी गणेश्वरोंके हजारों हाथ थे तथा वे सिरपर जटामुकुट धारण किये हुए थे। वे मस्तकपर चन्द्ररेखा धारण किये हुए थे, नीले कण्ठसे युक्त थे तथा तीन नेत्रोंवाले थे। वे सबआभूषणके रूपमें रुद्राक्ष धारण किये हुए थे । उत्तम भस्म लगाये हुए थे। हार, कुण्डल, केयूर तथा मुकुटसे अलंकृत थे। इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा इन्द्रके समान अणिमादि गुणोंसे अलंकृत कोटि सूर्यके समान देदीप्यमान वे सभी गणेश्वर शोभासे समन्वित थे ॥ 28-30 ॥
हे मुने! इनमें कुछ पृथिवीपर, कुछ पाताल में चलनेवाले तथा कोई आकाशगामी तथा कोई सप्तस्वर्ग में विचरण करनेवाले थे। हे देवर्षे! मैं बहुत वर्णन क्या करूँ, सभी लोकोंमें रहनेवाले वे सभी गणेश्वर शिवके विवाहका महोत्सव देखनेके लिये बड़े प्रेमसे आये ॥ 31-32 ॥
इस प्रकार इन देवताओं तथा गणोंसे युक्त भगवान् सदाशिवने अपना विवाह करनेके लिये हिमालयके नगरको प्रस्थान किया। हे मुनीश्वर ! जिस समय सर्वेश्वर शिवजी देवताओं एवं गणोंके साथ विवाहके लिये चले, उस समयका वृत्तान्त सुनिये ।। 33-34 ।।
शत्रुओंको भय देनेवाली चण्डी रुद्रकी भगिनी बनकर उत्सव मनाती हुई बड़े प्रेमके साथ वहाँ आयी ॥ 35 ॥
वह चण्डी प्रेतके आसनपर सवार थी; सर्पका आभूषण पहने हुई थी और सिरपर महादेदीप्यमान जलपूर्ण कलश धारण किये हुई थी। वह अपने परिवारसे युक्त थी। उसके मुख तथा नेत्रसे अग्निकी ज्वाला निकल रही थी। वह बलशालिनी हर्षसे युक्त होकर नाना प्रकारके कुतूहल कर रही थी ।। 36-37॥
हे मुने! वहाँ विकृत वेष धारण किये हुए अनेक प्रकारके करोड़ों दिव्य भूतगण शोभित हो रहे थे ॥ 38 ॥
इन भूतगणोंको साथ लेकर भयानक मुखवाली उपद्रवकारिणी वह चण्डी हुई प्रसन्नतापूर्वक वहाँ गयी ॥ 39 ॥ कुतूहल करती उस चण्डीने रुद्रमें अनन्य प्रीति करनेवाले ग्यारह हजार करोड़ रुद्रगणोंको अपने पीछे कर लिया ॥ 40 ॥
उस समय डमरूके शब्द, भेरियोंकी गड़गड़ाहट और शंखोंके नादसे तीनों लोक गूँज रहे थे ॥ 41 ॥इसी प्रकार दुन्दुभिके निर्घोषसे बहुत बड़ा कोलाहल हुआ, जो जगत्में मंगल करनेवाला तथा अमंगलका विनाशक था। मुने! बरातमें गणोंके पीछे होकर सभी देवता, सिद्धगण तथा लोकपाल अत्यन्त उत्कण्ठाके साथ चलने लगे ।। 42-43 ॥
हे मुने! बरातके मध्यभागमें बहुत बड़े छत्रसे शोभित गरुड़ासनपर बैठे हुए भगवान् वैकुण्ठनाथ थे तथा विष्णु विविध प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित होकर चल रहे थे। उनके अगल-बगल पार्षद घेरे हुए उनके दोनों ओर चँवर डुलाये जा रहे थे । ll 44-45 ।।
विग्रहधारी वेदों, शास्त्रों, पुराणों, आगमों तथा सनक आदि महासिद्धों, प्रजापतियों, पुत्रों और परिवारके साथ मैं भी शिवजीकी सेवामें तत्पर हो मार्गमें शोभासम्पन्न होकर चल रहा था। ऐरावत हाथीपर आरूढ़ देवराज इन्द्र अनेक प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित होकर सेनाके मध्यमें चलते हुए शोभा पा रहे थे । ll 46 - 48 ॥
उस समय विवाह देखनेकी उत्कण्ठासे बहुत-से ऋषिगण भी मार्गमें जाते हुए शोभा पा रहे थे ।। 49 ।।
इसी प्रकार शाकिनी, यातुधान, वेताल, ब्रह्मराक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, प्रमथ, तुम्बुरु, नारद, हाहा, हूहू आदि श्रेष्ठ गन्धर्व एवं किन्नरगण हर्षित होकर बाजा बजाते हुए चले ॥ 50-51 ॥
सम्पूर्ण जगत्की माताएँ, देवकन्याएँ, गायत्री, सावित्री, लक्ष्मी, अन्य देवस्त्रियाँ - ये सब तथा अन्य देवपत्नियाँ और जगन्माताएँ शंकरजीका विवाह हो रहा है - ऐसा जानकर प्रसन्नतापूर्वक वहाँ गयीं ।। 52-53 ॥
शुद्ध स्फटिकके समान सर्वसुन्दर वृषभ, जिसे वेदों, शास्त्रों तथा महर्षियोंने धर्म कहा है, उसपर सवार होकर धर्मवत्सल भगवान् शिवजी सम्पूर्ण देवगणों तथा ऋषियोंसे सेवित हो मार्गमें चलते हुए अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे। इन सभी देवगणों, महर्षियों तथा गणोंके साथ अलंकृत हुए शिवजी पार्वतीसे विवाह करनेके लिये हिमाचलके घर जाते हुए मार्ग में अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे ॥ 54-56 ॥हे नारद! इस प्रकार मैंने शिवजीके वरयात्रा-प्रस्थानका आपसे वर्णन किया, अब हिमालयके नगरमें जो शिवचरित्र हुआ, उस वृत्तान्तको सुनिये ॥ 57॥