View All Puran & Books

शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 40 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 40

Previous Page 135 of 466 Next

शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान

ब्रह्माजी बोले- तदनन्तर भगवान् शम्भुने नन्दी आदि सब गणोंको बुलाकर अपने साथ उन्हें वहाँ चलनेकी आज्ञा दी ॥ 1 ॥

शिवजी बोले- तुमलोग कुछ गणोंको यहीं रोककर महोत्सव करते हुए मेरे साथ हिमाचलपुरीको चलो ॥ 2 ॥

ब्रह्माजी बोले- शिवजीकी आज्ञा पाकर सभी गणेश्वर अपनी-अपनी टोली लेकर प्रसन्नतापूर्वक चलने लगे, मैं कुछ अंशमें उनका वर्णन करता हूँ- ॥ 3 ॥

शंखकर्ण नामक गणेश्वर अपने एक करोड़ गणसहित शिवजी के साथ हिमालयपुरीको चलनेके लिये उद्यत हुआ। केकराक्ष नामक गणराज दस करोड़ गणोंके साथ महान् उत्सवसे चला। इसी प्रकार विकृत नामक गणराज भी आठ करोड़ गणोंके साथ चला । ll 4-5 ।।

गणनायक विशाख चार करोड़ गणोंके साथ तथा गणश्रेष्ठ पारिजात नौ करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 6 ॥

श्रीमान् सर्वान्तक तथा विकृतानन साठ-साठ करोड़ गण लेकर चले। दुन्दुभ नामक गणनायक आठ करोड़ गणोंके साथ चला। हे मुने! कपाल नाम गणेश्वर पाँच करोड़ गणोंके साथ और वीर सन्दारक छः करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 7-8 ॥

कन्दुक तथा कुण्डक एक-एक करोड़ गणके साथ और गणेश्वर विष्टम्भ आठ करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 9 ॥ हे मुनिसत्तम ! पिप्पल नामक गणेश्वर एक सहस्रकोटि गणोंके साथ और इतने ही गणोंके साथ
वीर गणेश्वर सनादक प्रसन्नतापूर्वक चले ॥ 10 ॥ गणेश्वर आवेशन आठ करोड़ गणोंके साथ तथा गणाधीश महाकेश सहस्र कोटि गणोंके साथ चले ॥ 11 ॥

हे मुने! इसी प्रकार कुण्ड और पर्वतक बारह | करोड़ गणोंको तथा वीर चन्द्रतापन आठ करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 12 ॥

काल, कालक, महाकाल तथा अग्निक नामक गणनायक सौ-सौ करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 13 ॥इसी प्रकार अग्निमुख आदित्यमूर्धा तथा घनावह एक-एक करोड़ गणोंको साथ लेकर चले ॥ 14 ॥ सन्नाह, कुमुद, अमोघ और कोकिल नामक गणराज सौ-सौ करोड़ गण लेकर चले। गणाध्यक्ष सुमन्त्र करोड़ों करोड़ों गणोंको लेकर तथा काकपादोदर एवं सन्तानक साठ करोड़ गणोंको लेकर चले । ll 15-16 ।। महाबल नौ करोड़ और मधुपिंग, कोकिल, नील तथा पूर्णभद्र नब्बे करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 17 ॥ चतुर्वका सात करोड़, करण बीस करोड़ तथा गणेश्वर नब्बे करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 18 ॥

इसी प्रकार हे नारद! यज्वाक्ष, शतमन्यु एवं मेघमन्यु- ये सभी गणेश्वर नब्बे नब्बे करोड़ गणोंके साथ पृथक्-पृथक् चले ॥ 19 ॥

गणनायक काष्टांगुष्ठ, विरूपाक्ष, सुकेश, सनातन और वृषभ चौंसठ करोड़ गणोंके साथ चले ॥ 20 ॥

हे मुने! तालकेतु, षण्मुख, चंचुमुख, सनातन, संवर्तक, चैत्र, लकुलीश, स्वयंप्रभु, लोकान्तक, दीप्तात्मा, दैत्यान्तक, देव भूगिरिटि श्रीमान् देवदेवप्रिय, अशनि, भानुक आदि चौंसठ हजार गणोंके साथ बड़े उत्साहसे शिवजीके विवाहके लिये उनके साथ चले ॥ 21-23 ॥

प्रमाथगण सहस्त्रों भूतगणोंके साथ तथा तीन करोड़ अपने गणोंके साथ चले। वीरभद्र चौंसठ करोड़ गणोंके साथ तथा तीन करोड़ रोमज प्रेतगणोंको साथ लेकर चले ll 24 ll

इसी प्रकार नन्दी आदि गणेश्वर भी एक सौ बीस हजार करोड़ गणोंसे युक्त होकर शंकरके उत्सवमें चले ॥ 25 ॥

यह शंकरका विवाह महोत्सव है-ऐसा जानकर क्षेत्रपाल, भैरव करोड़ करोड़ गणोंके साथ प्रीतिपूर्वक आये। ये गण तथा शिवके असंख्य गण जो अत्यन्त बलवान् थे, वे उत्साह तथा प्रीतिसे युक्त हो शिवजीके विवाहोत्सवमें वहाँ गये 26-27 ।।

इन सभी गणेश्वरोंके हजारों हाथ थे तथा वे सिरपर जटामुकुट धारण किये हुए थे। वे मस्तकपर चन्द्ररेखा धारण किये हुए थे, नीले कण्ठसे युक्त थे तथा तीन नेत्रोंवाले थे। वे सबआभूषणके रूपमें रुद्राक्ष धारण किये हुए थे । उत्तम भस्म लगाये हुए थे। हार, कुण्डल, केयूर तथा मुकुटसे अलंकृत थे। इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा इन्द्रके समान अणिमादि गुणोंसे अलंकृत कोटि सूर्यके समान देदीप्यमान वे सभी गणेश्वर शोभासे समन्वित थे ॥ 28-30 ॥

हे मुने! इनमें कुछ पृथिवीपर, कुछ पाताल में चलनेवाले तथा कोई आकाशगामी तथा कोई सप्तस्वर्ग में विचरण करनेवाले थे। हे देवर्षे! मैं बहुत वर्णन क्या करूँ, सभी लोकोंमें रहनेवाले वे सभी गणेश्वर शिवके विवाहका महोत्सव देखनेके लिये बड़े प्रेमसे आये ॥ 31-32 ॥

इस प्रकार इन देवताओं तथा गणोंसे युक्त भगवान् सदाशिवने अपना विवाह करनेके लिये हिमालयके नगरको प्रस्थान किया। हे मुनीश्वर ! जिस समय सर्वेश्वर शिवजी देवताओं एवं गणोंके साथ विवाहके लिये चले, उस समयका वृत्तान्त सुनिये ।। 33-34 ।।

शत्रुओंको भय देनेवाली चण्डी रुद्रकी भगिनी बनकर उत्सव मनाती हुई बड़े प्रेमके साथ वहाँ आयी ॥ 35 ॥

वह चण्डी प्रेतके आसनपर सवार थी; सर्पका आभूषण पहने हुई थी और सिरपर महादेदीप्यमान जलपूर्ण कलश धारण किये हुई थी। वह अपने परिवारसे युक्त थी। उसके मुख तथा नेत्रसे अग्निकी ज्वाला निकल रही थी। वह बलशालिनी हर्षसे युक्त होकर नाना प्रकारके कुतूहल कर रही थी ।। 36-37॥

हे मुने! वहाँ विकृत वेष धारण किये हुए अनेक प्रकारके करोड़ों दिव्य भूतगण शोभित हो रहे थे ॥ 38 ॥

इन भूतगणोंको साथ लेकर भयानक मुखवाली उपद्रवकारिणी वह चण्डी हुई प्रसन्नतापूर्वक वहाँ गयी ॥ 39 ॥ कुतूहल करती उस चण्डीने रुद्रमें अनन्य प्रीति करनेवाले ग्यारह हजार करोड़ रुद्रगणोंको अपने पीछे कर लिया ॥ 40 ॥

उस समय डमरूके शब्द, भेरियोंकी गड़गड़ाहट और शंखोंके नादसे तीनों लोक गूँज रहे थे ॥ 41 ॥इसी प्रकार दुन्दुभिके निर्घोषसे बहुत बड़ा कोलाहल हुआ, जो जगत्में मंगल करनेवाला तथा अमंगलका विनाशक था। मुने! बरातमें गणोंके पीछे होकर सभी देवता, सिद्धगण तथा लोकपाल अत्यन्त उत्कण्ठाके साथ चलने लगे ।। 42-43 ॥

हे मुने! बरातके मध्यभागमें बहुत बड़े छत्रसे शोभित गरुड़ासनपर बैठे हुए भगवान् वैकुण्ठनाथ थे तथा विष्णु विविध प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित होकर चल रहे थे। उनके अगल-बगल पार्षद घेरे हुए उनके दोनों ओर चँवर डुलाये जा रहे थे । ll 44-45 ।।

विग्रहधारी वेदों, शास्त्रों, पुराणों, आगमों तथा सनक आदि महासिद्धों, प्रजापतियों, पुत्रों और परिवारके साथ मैं भी शिवजीकी सेवामें तत्पर हो मार्गमें शोभासम्पन्न होकर चल रहा था। ऐरावत हाथीपर आरूढ़ देवराज इन्द्र अनेक प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित होकर सेनाके मध्यमें चलते हुए शोभा पा रहे थे । ll 46 - 48 ॥

उस समय विवाह देखनेकी उत्कण्ठासे बहुत-से ऋषिगण भी मार्गमें जाते हुए शोभा पा रहे थे ।। 49 ।।

इसी प्रकार शाकिनी, यातुधान, वेताल, ब्रह्मराक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, प्रमथ, तुम्बुरु, नारद, हाहा, हूहू आदि श्रेष्ठ गन्धर्व एवं किन्नरगण हर्षित होकर बाजा बजाते हुए चले ॥ 50-51 ॥

सम्पूर्ण जगत्की माताएँ, देवकन्याएँ, गायत्री, सावित्री, लक्ष्मी, अन्य देवस्त्रियाँ - ये सब तथा अन्य देवपत्नियाँ और जगन्माताएँ शंकरजीका विवाह हो रहा है - ऐसा जानकर प्रसन्नतापूर्वक वहाँ गयीं ।। 52-53 ॥

शुद्ध स्फटिकके समान सर्वसुन्दर वृषभ, जिसे वेदों, शास्त्रों तथा महर्षियोंने धर्म कहा है, उसपर सवार होकर धर्मवत्सल भगवान् शिवजी सम्पूर्ण देवगणों तथा ऋषियोंसे सेवित हो मार्गमें चलते हुए अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे। इन सभी देवगणों, महर्षियों तथा गणोंके साथ अलंकृत हुए शिवजी पार्वतीसे विवाह करनेके लिये हिमाचलके घर जाते हुए मार्ग में अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे ॥ 54-56 ॥हे नारद! इस प्रकार मैंने शिवजीके वरयात्रा-प्रस्थानका आपसे वर्णन किया, अब हिमालयके नगरमें जो शिवचरित्र हुआ, उस वृत्तान्तको सुनिये ॥ 57॥

Previous Page 135 of 466 Next

शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा