ब्रह्माजी बोले- हे नारद! तदनन्तर मैंने शिवजीकी आज्ञासे मुनियोंके साथ परमप्रीतिसे शिवाशिवके विवाहके शेष कृत्योंका सम्पादन किया उन दोनोंके सिरपर आदरपूर्वक मांगलिक अभिषेक हुआ और ब्राह्मणोंने आदरके साथ उन्हें ध्रुवदर्शन कराया ॥ 1-2 ॥
हे विप्रेन्द्र ! उसके बाद हृदयालम्भनका कर्म तथा बड़े महोत्सवके साथ स्वस्तिवाचन हुआ ॥ 3 ॥
ब्राह्मणोंकी आज्ञासे शम्भुने शिवाकी माँगमें सिन्दूर लगाया, उस समय गिरिजा अत्यन्त अद्भुत अवर्णनीय रूपवती हो गयीं। तत्पश्चात् ब्राह्मणोंकी आज्ञासे दोनों एक आसनपर विराजमान हुए और भक्तोंके चित्तको आनन्द देनेवाली अपूर्व शोभासे सम्पन्न हो गये ॥ 4-5 ॥हे मुने! तदनन्तर अद्भुत लीला करनेवाले उन दोनोंने अपने स्थानपर आकर मेरी आज्ञासे प्रसन्नतापूर्वक संस्रव * प्राशन किया। इस प्रकार विवाह यज्ञके विधिवत् सम्पन्न हो जानेपर प्रभु शिवने मुझ लोककर्ता ब्रह्माको पूर्णपात्रका दान किया। | तत्पश्चात् शिवजीने आचार्यको विधिपूर्वक गोदान दिया तथा मंगल प्रदान करनेवाले जो अन्य महादान हैं, उन्हें भी बड़े प्रेमसे दिया ॥ 6-8 ॥
उसके बाद उन्होंने बहुत-से ब्राह्मणोंको अलग-अलग सौ-सौ स्वर्णमुद्राएँ, करोड़ों रत्न तथा अनेक प्रकारके द्रव्य दिये। उस समय सभी देवगण एवं अन्य चराचर जीव हृदयसे अत्यन्त प्रसन्न हुए और जोर-जोरसे जयध्वनि होने लगी। सभी ओर मंगलध्वनिके साथ गान होने लगा और सबके आनन्दको बढ़ानेवाली रम्य वाद्य-ध्वनि होने लगी। उसके बाद मेरे साथ विष्णु, देवता, मुनिगण तथा अन्य लोग हिमालयसे आज्ञा लेकर प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने निवासस्थानको गये । ll 9 - 12 ॥
उस समय हिमालयके नगरकी स्त्रियाँ प्रसन्न होकर शिवा एवं शिवको लेकर दिव्य कोहवर-घरमें गयीं ॥ 13 ॥
वहाँपर वे स्त्रियाँ आदरके साथ लौकिकाचार करने लगीं। चारों ओर आनन्द प्रदान करनेवाला महान् उत्साह फैल गया। उसके बाद उन सबने लोगोंका कल्याण करनेवाले उन शिव-शिवाको महादिव्य निवासस्थानमें ले जाकर प्रसन्नतापूर्वक लौकिकाचार किया ll 14-15 ।।
तत्पश्चात् हिमालयके नगरकी स्त्रियाँ समीपमें आकर मंगलकर्म करके दम्पतीको घरमें ले गयीं ॥ 16 ॥
वे जय-जयकारकर ग्रन्थि-बन्धन खोलने लगीं। उस समय वे कटाक्ष करती हुई मन्द मन्द हँस रही थीं और उनका शरीर रोमांचित हो रहा था ॥ 17 ॥वे श्रेष्ठ स्त्रियाँ वासगृहमें प्रवेश करते ही मोहित हो गयीं और सुन्दर रूप तथा वेषवाले, सम्पूर्ण लावण्यसे युक्त, नवीन यौवनसे परिपूर्ण, कामिनियोंके चित्तको मोहित करनेवाले, मन्द मन्द मुसकानयुक्त प्रसन्न मुख-मण्डलवाले, कटाक्षयुक्त, अत्यन्त सुन्दर, अत्यन्त सूक्ष्म वस्त्र धारण किये हुए और अनेक रत्नोंसे विभूषित परमेश्वरको देखती हुईं अपने-अपने भाग्यकी प्रशंसा करने लगीं ॥18 - 20 ॥
उस समय सोलह दिव्य नारियाँ बड़े आदरके साथ इन दम्पतीको देखनेके लिये शीघ्र ही पहुँच गयीं। सरस्वती, लक्ष्मी, सावित्री, जाह्नवी, अदिति, शची, लोपामुद्रा, अरुन्धती, अहल्या, तुलसी, स्वाहा, रोहिणी, वसुन्धरा, शतरूपा, संज्ञा और रति-ये देवस्त्रियाँ हैं। अन्य जो-जो मनोहर देवकन्याएँ एवं मुनिकन्याएँ वहाँ स्थित थीं, उनकी गणना करनेमें कौन समर्थ है । ll 21 - 24 ॥
उनके द्वारा दिये गये रत्नके आसनपर शिवजी प्रसन्नताके साथ बैठे। इसके बाद सब देवियाँ क्रमसे मन्द मन्द हँसती हुई उनसे मधुर वचन कहने लगीं ॥ 25 ॥ सरस्वती बोलीं- हे महादेव ! अब प्राणोंसे भी अधिक प्यारी सतीदेवी आपको प्राप्त हो गयी हैं। हे कामुक ! इनके चन्द्रमाके समान आभावाले प्रिय मुखको प्रसन्नतापूर्वक देखकर आप सन्तापको त्याग दीजिये ॥ 26 ॥
हे कालेश! आप इस सतीका आलिंगन करते हुए अपना समय व्यतीत कीजिये। सभी समय आपके आश्रित रहनेवाली इस सखीसे आपका वियोग नहीं होगा ॥ 27 ॥
लक्ष्मी बोलीं- हे देवेश ! अब लज्जाका त्यागकर | सतीको अपने वक्षःस्थलमें स्थित कीजिये, जिसके बिना आपके प्राण निकल रहे थे, उसके प्रति कौन सी लज्जा ! ॥ 28 ॥
सावित्री बोलीं- हे शम्भो ! सतीको भोजन कराकर आप भी शीघ्र भोजन कीजिये, किसी बातका खेद मत कीजिये और आचमन करके सतीको आदरसे कपूरमिश्रित ताम्बूल दीजिये ॥ 29 ॥जाह्नवी बोलीं- अब इस सुवर्णकान्तिवाली पार्वतीके केशोंको पकड़कर सँवारिये; क्योंकि कामिनी स्त्रियोंका इससे बढ़कर और कोई पतिसे प्राप्त होनेवाला सौभाग्यसुख नहीं होता ll 30 ll
अदिति बोलीं- हे शिवे! आप भोजनके पश्चात् मुख शुद्ध करनेके लिये शम्भुको अति प्रेमसे जल प्रदान कीजिये; क्योंकि दम्पतीका परस्पर प्रेम [सर्वथा] दुर्लभ है ॥ 31 ॥
शची बोलीं- जिसके लिये आप मोहवश विलाप करते-करते [दर-दर] भटक रहे थे, उस शिवाको वक्षःस्थलपर धारण कीजिये, उस प्रियाके प्रति आपको लज्जा क्यों ? ll 32 ॥
लोपामुद्रा बोलीं- हे शंकर! भोजन करके आप वासगृहमें जाइये, यह स्त्रियोंका व्यवहार है। आप शिवाको ताम्बूल देकर शयन कीजिये ॥ 33 ॥
अरुन्धती बोलीं- हे शिव ! मेना आपके निमित्त पार्वतीको देना नहीं चाहती थीं, किंतु मेरे बहुत समझानेपर उन्होंने पार्वतीको देना स्वीकार किया, अब आप इनसे अधिक प्रेम कीजिये ll 34 ॥
अहल्या बोलीं -अब आप वृद्धावस्थाको छोड़कर पूर्ण युवा हो जाइये, जिससे कन्या देनेवाली इस मेनाको पुत्रीदानसे सन्तुष्टि प्राप्त हो जाय ll 35 ॥
तुलसी बोलीं- हे प्रभो! आपने पूर्वकालमें सतीका त्याग किया, उसके बाद कामदेवको जलाया, अब आपने [पार्वतीको प्राप्त करनेके लिये] हिमालयके घर वसिष्ठको कैसे भेजा ? ॥ 36 ॥
स्वाहा बोलीं- हे महादेव! अब आप स्त्रियोंके वचनमें स्थिर हो जाइये; क्योंकि विवाहमें स्त्रियोंकी प्रगल्भता एक व्यवहार होता है ॥ 37 ॥
रोहिणी बोलीं- हे कामशास्त्रविशारद! अब आप पार्वतीको कामना पूर्ण कीजिये, आप स्वयं कामी हैं, अतः कामिनीके कामसागरको पार कीजिये ॥ 38 ॥
वसुन्धरा बोलीं- हे भावज्ञ! आप कामार्त स्त्रियोंके भावको जानते हैं। हे शम्भो स्त्री अपने स्वामीकी ईश्वरभावसे निरन्तर सेवा करती है, वह पतिके अतिरिक्त अपनी किसी भी वस्तुकी रक्षा करना नहीं चाहती ॥ 39 ॥शतरूपा बोलीं- भूख से तड़पता हुआ व्यक्ति दिव्य सुखका भोग किये बिना सन्तुष्ट नहीं होता। अतः हे शम्भो ! जिससे स्त्रीको सन्तुष्टि हो, आपको वही करना उचित है ॥ 40 ॥
संज्ञा बोलीं- [ हे सखि!] रत्नदीपक जलाकर एकान्तमें पलंग बिछाकर और उसपर ताम्बूल रखकर परम प्रीतिसे शीघ्रतापूर्वक शिवाके साथ शिवको स्थापित करो ॥ 41 ॥
ब्रह्माजी बोले- स्त्रियोंके वे वचन सुनकर निर्विकार एवं महान् योगियोंके गुरुके भी गुरु भगवान् शंकरजी उनसे स्वयं कहने लगे- ॥ 42 ॥
शंकरजी बोले- हे देवियो ! मेरे समीप इस प्रकारके वचनको आपलोग न बोलें, आप सब पतिव्रताएँ एवं जगत्की माताएँ हैं, फिर पुत्रके विषयमें इस प्रकारकी चपलता क्यों ? ॥ 43 ॥
ब्रह्माजी बोले- शंकरकी यह बात सुनकर सभी देवस्त्रियाँ लज्जित हो गयीं और सम्भ्रमके कारण चित्रलिखित पुतलियोंकी भाँति चुप हो गयीं ॥ 44 ॥ तदनन्तर मिष्टान्न ग्रहणकर आचमनकर प्रसन्नचित्त महेशने पार्वतीके साथ कर्पूरयुक्त पानका सेवन किया ॥ 45 ॥