श्रीशौनकजी बोले- हे महाज्ञानी सूतजी! सम्पूर्ण सिद्धान्तोंके ज्ञाता हे प्रभो! मुझसे पुराणोंकी कथाओंके सारतत्त्वका विशेषरूपसे वर्णन कीजिये ॥ 1 ॥
सदाचार, भगवद्भक्ति और विवेककी वृद्धि कैसे होती है तथा साधुपुरुष किस प्रकार अपने काम-क्रोध आदि मानसिक विकारोंका निवारण करते हैं ? ॥ 2 ॥
इस घोर कलियुगमें जीव प्रायः आसुर स्वभावके हो गये हैं, उस जीवसमुदायको शुद्ध (दैवी सम्पत्तिसे युक्त) बनानेके लिये सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? ॥ 3 ॥
आप इस समय मुझे ऐसा कोई शाश्वत साधन बताइये, जो कल्याणकारी वस्तुओंमें भी सबसे उत्कृष्ट एवं परम मंगलकारी हो तथा पवित्र करनेवाले उपायोंमें भी सर्वोत्तम पवित्रकारक उपाय हो ll 4 ॥
तात! वह साधन ऐसा हो, जिसके अनुष्ठानसे शीघ्र ही अन्तःकरणकी विशेष शुद्धि हो जाय तथा | उससे निर्मल चित्तवाले पुरुषको सदाके लिये शिवकी प्राप्ति हो जाय 5
सूतजी बोले- मुनिश्रेष्ठ शौनक ! आप धन्य हैं आपके हृदयमें पुराण कथा सुननेके प्रति विशेष प्रेम एवं लालसा है, इसलिये मैं शुद्ध बुद्धिसे विचारकर परम उत्तम शास्त्रका वर्णन करता हूँ ॥ 6 ॥
वत्स! सम्पूर्ण शास्त्रोंके सिद्धान्तसे सम्पन्न, भक्ति आदिको बढ़ानेवाले, भगवान् शिवको सन्तुष्ट करनेवाले तथा कानोंके लिये रसायनस्वरूप दिव्य पुराणका श्रवण कीजिये ॥ यह उत्तम शिवपुराण कालरूपी सर्पसे प्राप्त होनेवाले महान् त्रास का विनाश करनेवाला है। है मुने! पूर्वकालमें शिवजीने इसे कहा था। गुरुदेवव्यासजीने सनत्कुमार मुनिका उपदेश पाकर कलियुगके | | प्राणियोंके कल्याणके लिये बड़े आदरसे संक्षेपमें इस पुराणका प्रतिपादन किया है ।। 8-9 ।।
हे मुने विशेष रूपसे कलियुगके प्राणियों की चित्तशुद्धिके लिये इस शिवपुराणके अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं है ॥ 10 ॥
हे मुने! जिस बुद्धिमान् मनुष्यके पूर्वजन्मके बड़े पुण्य होते हैं, उसी महाभाग्यशाली व्यक्तिको इस पुराणमें प्रीति होती है ॥ 11 ॥
यह शिवपुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस भूतलपर भगवान् शिवका वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिये और सब प्रकारसे इसका सेवन करना चाहिये ॥ 12 ॥
इसके पठन और श्रवणसे शिवभक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थितिमें पहुँचा हुआ मनुष्य शीघ्र ही शिवपदको प्राप्त कर लेता है। इसलिये सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्योंने इस पुराणके अध्ययनको अभीष्ट साधन माना है और इसका प्रेमपूर्वक श्रवण भी सम्पूर्ण वांछित फलोंको देनेवाला है ॥ 13-14 ॥
भगवान् शिवके इस पुराणको सुननेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है तथा बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगोंका उपभोग करके [अन्तमें] शिवलोकको प्राप्त कर लेता है ll 15 ll
राजसूयज्ञ और सैकड़ों अग्निष्टोमयज्ञोंसे जो पुण्य प्राप्त होता है, वह भगवान् शिवकी कथाके सुननेमात्रसे प्राप्त हो जाता है ॥ 16 ॥ हे मुने! जो लोग इस श्रेष्ठ शास्त्र शिवपुराणका श्रवण करते हैं, उन्हें मनुष्य नहीं समझना चाहिये; वे रुद्रस्वरूप ही हैं; इसमें सन्देह नहीं है ॥ 17 ॥ इस पुराणका श्रवण और कीर्तन करनेवालोंके चरण कमलकी धूलिको मुनिगण तीर्थ ही समझते हैं ॥ 18 ॥
जो प्राणी परमपदको प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें सदा भक्तिपूर्वक इस निर्मल शिवपुराणका श्रवण करना चाहिये ॥ 19 हे मुनिश्रेष्ठ यदि मनुष्य सदा इसे सुनने में समर्थ न हो, तो उसे प्रतिदिन स्थिर चित्तसे एक मुहूर्त भी | इसको सुनना चाहिये। हे मुने! यदि मनुष्य प्रतिदिन सुनने में भी अशक्त हो, तो उसे किसी पवित्र महीने में इस शिवपुराणका श्रवण करना चाहिये ॥ 20-21 ॥जो लोग एक मुहूर्त, उसका आधा, उसका भी आधा अथवा क्षणमात्र भी इस पुराणका श्रवण करते हैं, उनकी दुर्गति नहीं होती ॥ 22 ॥ हे मुनीश्वर ! जो पुरुष इस शिवपुराणकी कथाको सुनता है, वह सुननेवाला पुरुष कर्मरूपी महावनको जलाकर संसारके पार हो जाता है ॥ 23 ॥
हे मुने सभी दानों और सभी यज्ञोंसे जो पुण्य मिलता है, वह फल भगवान् शिवके इस पुराणको सुननेसे निश्चल हो जाता है 24 हेमुने! विशेषकर इस कलिकालमें तो शिवपुराणके श्रवणके अतिरिक्त मनुष्योंके लिये मुक्तिदायक कोई अन्य श्रेष्ठ साधन नहीं है ॥ 25 ॥
शिवपुराणका श्रवण और भगवान् शंकरके नामका संकीर्तन दोनों ही मनुष्योंको कल्पवृक्षके समान सम्यक् फल देनेवाले हैं, इसमें सन्देह नहीं है ॥ 26 ll
कलियुगमें धर्माचरणसे शून्य चित्तवाले दुर्बुद्धि मनुष्योंके उद्धारके लिये भगवान् शिवने अमृतरसस्वरूप शिवपुराणकी उद्भावना की है ॥ 27 ॥
अमृतपान करनेसे तो केवल अमृतपान करनेवाला ही मनुष्य अजर-अमर होता है, किंतु भगवान् शिवका यह कथामृत सम्पूर्ण कुलको ही अजर-अमर कर देता है ॥ 28 ॥
इस शिवपुराणकी परम पवित्र कथाका विशेष रूपसे सदा ही सेवन करना चाहिये, करना ही चाहिये, करना ही चाहिये इस शिवपुराणकी कथाके श्रवणका क्या फल कहूँ? इसके श्रवणमात्रसे भगवान् सदाशिव उस प्राणीके हृदयमें विराजमान हो जाते हैं ।। 29-30 ॥
यह [शिवपुराण नामक] ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोकोंसे युक्त है। इसमें सात संहिताएँ हैं। मनुष्यको चाहिये कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे भली-भाँति सम्पन्न हो बड़े आदरसे इसका श्रवण करे ॥ 31 ॥
पहली विद्येश्वरसंहिता, दूसरी रुद्रसंहिता, तीसरी शतरुद्रसंहिता, चौथी कोटिरुद्रसंहिता और पाँचवीं उमासंहिता कही गयी है छठी कैलाससंहिता और सातवीं वायवीयसंहिता इस प्रकार इसमें सात संहिताएँ हैं । ll 32-33 ॥सात संहिताओंसे युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करनेवाला है ॥ 34 ॥
जो मनुष्य सात संहिताओंवाले इस शिवपुराणको आदरपूर्वक पूरा पढ़ता है, वह जीवन्मुक कहा जाता है ॥ 35 ॥
हे मुने! जबतक इस उत्तम शिवपुराणको सुननेका सुअवसर नहीं प्राप्त होता, तबतक अज्ञानवश प्राणी इस संसार-चक्रमें भटकता रहता है ॥ 36 ॥
भ्रमित कर देनेवाले अनेक शास्त्रों और पुराणोंके श्रवणसे क्या लाभ है, जबकि एक शिवपुराण ही मुक्ति प्रदान करनेके लिये गर्जन कर रहा है ॥ 37 ॥
जिस घरमें इस शिवपुराणकी कथा होती है, वह घर तीर्थस्वरूप ही है और उसमें निवास करनेवालोंक पाप यह नष्ट कर देता है ॥ 38 ॥
हजारों अश्वमेधयज्ञ और सैकड़ों वाजपेययज्ञ शिवपुराणकी सोलहवीं कलाकी भी बराबरी नहीं कर सकते ॥ 39 ॥
हे मुनिश्रेष्ठ कोई अथम प्राणी जबतक भक्तिपूर्वक शिवपुराणका श्रवण नहीं करता, तभीतक उसे पापी कहा जा सकता है ॥ 40 ॥
गंगा आदि पवित्र नदियाँ, [मुक्तिदायिनी] सप्त पुरियाँ तथा गयादि तीर्थ इस शिवपुराणकी समता कभी नहीं कर सकते ॥ 41 ॥
जिसे परमगतिकी कामना हो, उसे नित्य शिवपुराणके एक श्लोक अथवा आधे श्लोकका ही स्वयं भक्तिपूर्वक पाठ करना चाहिये ॥ 42 ॥
जो निरन्तर अर्थानुसन्धानपूर्वक इस शिवपुराणको बाँचता है अथवा नित्य प्रेमपूर्वक इसका पाठमात्र करता है, वह पुण्यात्मा है, इसमें संशय नहीं है । ll 43 ।।
जो उत्तम बुद्धिवाला पुरुष अन्तकालमें भक्तिपूर्वक इस पुराणको सुनता है, उसपर अत्यन्त प्रसन्न हुए भगवान् महेश्वर उसे अपना पद (धाम) प्रदान करते हैं ॥ 44 ॥
जो प्रतिदिन आदरपूर्वक इस शिवपुराणका पूजन करता है, वह इस संसारमें सम्पूर्ण भोगोंको भोगकर अन्तमें भगवान् शिवके पदको प्राप्त कर लेता है ॥ 45 ॥जो प्रतिदिन आलस्यरहित हो रेशमी वस्त्र आदिके वेष्टनसे इस शिवपुराणका सत्कार करता है, वह सदा सुखी होता है ॥ 46 ॥ यह शिवपुराण निर्मल तथा शैवोंका सर्वस्व है;
इहलोक और परलोकमें सुख चाहनेवालेको आदरके
साथ प्रयत्नपूर्वक इसका सेवन करना चाहिये ॥ 47 ll यह निर्मल एवं उत्तम शिवपुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूप चारों पुरुषार्थोंको देनेवाला है, अतः सदा प्रेमपूर्वक इसका श्रवण एवं विशेष रूपसे पाठ करना चाहिये ॥ 48 ॥
वेद, इतिहास तथा अन्य शास्त्रोंमें यह शिवपुराण विशेष कल्याणकारी है-ऐसा मुमुक्षुजनोंको समझना चाहिये ॥ 49 ॥
यह शिवपुराण आत्मतत्त्वज्ञोंके लिये सदा सेवनीय है, सत्पुरुषोंके लिये पूजनीय है, तीनों प्रकारके तापोंका शमन करनेवाला है, सुख प्रदान करनेवाला है तथा ब्रह्मा-विष्णु-महेशादि देवताओंको प्राणोंके समान प्रिय है ॥ 50 ॥
ऐसे शिवपुराणको मैं प्रसन्नचित्तसे सदा वन्दन करता हूँ। भगवान् शंकर मुझपर प्रसन्न हों और अपने चरणकमलोंकी भक्ति मुझे प्रदान करें ॥ 51 ॥