मुनिगण बोले- हे ब्रह्मन् ! मनन कैसा होता है, श्रवणका स्वरूप कैसा है और उनका कीर्तन कैसे किया जाता है, यथार्थ रूपमें आप वर्णन करें ॥ 1 ॥ ब्रह्माजी बोले- [हे मुनियो!] भगवान् शंकरकी पूजा, उनके नामोंका जप तथा उनके गुण, रूप, विलास और नामोंका युक्तिपरायण चित्तके द्वारा जो निरन्तर परिशोधन या चिन्तन होता है, उसीको मनन कहा गया है, वह महेश्वरकी कृपादृष्टिसे उपलब्ध होता है। वह समस्त श्रेष्ठ साधनों में प्रमुखतम है ॥ 2 ॥ शम्भुके प्रताप, गुण, रूप, विलास और नामको
प्रकट करनेवाले संगीत, वेदवाक्य या भाषाके द्वारा
अनुरागपूर्वक उनकी स्तुति ही मध्यम साधन है, जिसको कीर्तन शब्दसे कहा जाता है ॥ 3 ॥ हे ज्ञानियो स्वीक्रीडामें जैसे मनकी आसक्ति होती है, वैसे ही किसी कारणसे किसी स्थानमें शिवविषयक वाणियोंमें श्रवणेन्द्रियकी दृढतर आसकि ही जगत् में श्रवणके नामसे प्रसिद्ध है ॥ 4 ॥
सर्वप्रथम सज्जनोंकी संगतिसे श्रवण सिद्ध होता है. बादमें शिवजीका कीर्तन दृढ होता है और अन्तमें सभी साधनोंसे श्रेष्ठ शंकरविषयक मनन उत्पन्न होता है, किंतु यह सब उनकी कृपादृष्टिसे ही सम्भव होता है ॥ 5 ॥सूतजी बोले- मुनीश्वरो ! इस साधनका माहात्म्य बताने के प्रसंगों मैं आपलोगोंके लिये एक प्राचीन वृत्तान्तका वर्णन करूँगा, उसे ध्यान देकर आपलोग सुनें ॥ 6 ॥
पूर्व कालमें पराशर मुनिके पुत्र मेरे गुरु व्यासदेवजी सरस्वती नदीके सुन्दर तटपर तपस्या कर रहे थे ॥ 7 ॥ एक दिन सूर्यतुल्य तेजस्वी विमानसे यात्रा करते हुए भगवान् सनत्कुमार अकस्मात् वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने मेरे गुरुदेवको वहाँ देखा ॥ 8 ॥ वे ध्यानमें मग्न थे उससे जगनेपर उन्होंने ब्रह्माके पुत्र सनत्कुमारजीको अपने सामने उपस्थित देखा। वे बड़े वेगसे उठे और उनके चरणोंमें प्रणाम करके मुनिने उन्हें अर्घ्य प्रदान करके देवताओंके बैठनेयोग्य आसन भी अर्पित किया। तब प्रसन्न हुए भगवान् सनत्कुमार विनीत भावसे खड़े हुए व्यासजीसे गम्भीर वाणीमें कहने लगे ।। 9-10 ॥
सनत्कुमार बोले- हे मुने! आप सत्य सनातन भगवान् शंकरका हृदयसे ध्यान कीजिये, तब वे शिव प्रत्यक्ष होकर आपकी सहायता करेंगे; आप यहाँ तप किसलिये कर रहे हैं ? ॥ 11 ॥
इस प्रकार सनत्कुमारके कहनेपर मुनि व्यासने अपना आशय कहा- मैंने आपकी कृपासे वेदसम्मत धर्म, अर्थ, काम और मोक्षकी कथाको मानवसमाजमें अनेक प्रकारसे प्रदर्शित किया है। ll 129/3 ॥
इस प्रकार सर्वथा गुरुस्वरूप होनेपर भी मुझमें मुक्तिके साधन ज्ञानका उदय नहीं हुआ है- यह आश्चर्य ही है मुक्तिका साधन न जाननेके कारण | उसके लिये मैं तपस्या कर रहा हूँ ।। 13-14 ।।
हे विप्रेन्द्रो इस प्रकार जब व्यासमुनिने भगवान् सनत्कुमारसे प्रार्थना की, तब वे समर्थ सनत्कुमारजी | मुक्तिका निश्चित कारण बताने लगे ॥ 15 ॥
भगवान् शंकरका श्रवण, कीर्तन, मनन- ये तीनों महत्तर साधन कहे गये हैं। ये तीनों ही वेदसम्मत है ll 16 ॥
पूर्वकालमें मैं दूसरे दूसरे साधनोंके सम्भ्रममें |पड़कर घूमता-घामता मन्दराचलपर जा पहुँचा और | वहाँ तपस्या करने लगा ॥ 17 ॥तदनन्तर महेश्वर शिवकी आज्ञासे भगवान् नन्दिकेश्वर वहाँ आये। उनकी मुझपर बड़ी दया थी। वे सबके साक्षी तथा शिवगणोंके स्वामी भगवान् नन्दिकेश्वर मुझे स्नेहपूर्वक मुक्तिका उत्तम साधन बताते हुए बोले- 'भगवान् शंकरका श्रवण, कीर्तन और मनन - ये तीनों साधन वेदसम्मत हैं और मुक्तिके साक्षात् कारण हैं; यह बात स्वयं भगवान् शिवने मुझसे कही है। अतः हे ब्रह्मन् ! आप श्रवणादि तीनों साधनोंका बार-बार अनुष्ठान करें ।। 18-20 ॥
व्यासजीसे बार-बार ऐसा कहकर अनुगामियों सहित ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार अपने विमानसे परम सुन्दर ब्रह्मधामको चले गये। इस प्रकार पूर्वकालके इस उत्तम वृत्तान्तका मैंने संक्षेपसे वर्णन किया है । ll 211 / 2 ॥
ऋषिगण बोले- हे सूतजी ! आपने श्रवण आदि तीनों साधनोंको मुक्तिका उपाय बताया है। जो मनुष्य श्रवण आदि तीनों साधनोंमें असमर्थ हो, वह किस उपायका अवलम्बन करके मुक्त हो सकता है और किस साधनभूत कर्मके द्वारा बिना यत्नके ही मोक्ष मिल सकता है ? ॥ 22-23 ॥