सनत्कुमार बोले- [ हे व्यास!] महादेवीने युद्धस्थलमें पहुँचते ही सिंहनाद किया, देवीके उस नादसे दानव मूच्छित हो गये ॥ 1 ॥
भगवतीने बार-बार अशुभ अट्टहास किया, वे मद्यपान करने लगीं तथा युद्धभूमिमें नृत्य करने लगीं ॥ 2 ॥ इसी प्रकार उग्रदंष्ट्रा, उग्रदण्डा, कोटवी आदि भी मधुपान करने लगीं। अन्य देवियाँ भी युद्धक्षेत्रमें मधुपान और नृत्य करने लगीं ॥ 3 ॥उस समय गणों एवं देवताओंके दलमें महान् कोलाहल उत्पन्न हो गया और सभी देवता तथा गण आदि तीव्र गर्जन करते हुए हर्षित हो रहे थे ॥ 4 ॥ तब शंखचूड कालीको देखकर शीघ्र संग्रामभूमिमें आया। जो दानव भयभीत हो रहे थे, उन्हें राजाने अभयदान दिया। कालीने प्रलयाग्निकी शिखाके समान आग्नेयास्त्र चलाया, तब शंखचूडने उसे अपने वैष्णवास्त्रसे शान्त कर दिया ।। 5-6 ll
उन देवीने शीघ्र ही उसके ऊपर नारायणास्त्रका प्रयोग किया। वह अस्त्र दानवको प्रतिकूल देखकर जब बढ़ने लगा, तब तो प्रलयाग्निकी शिखाके समान उस अस्त्रको [ अपनी ओर आता देखकर वह पृथ्वीपर दण्डकी भाँति गिर पड़ा और गिरकर बारंबार उसे प्रणाम करने लगा ।। 7-8 ।।
दानवको इस प्रकार विनम्र देखकर वह अस्त्र शान्त हो गया। तब उन देवीने मन्त्रपूर्वक ब्रह्मास्त्र चलाया ॥ 9 ॥ जलते हुए उस ब्रह्मास्त्रको देखकर उसे प्रणामकर वह पृथ्वीपर खड़ा हो गया। दानवेन्द्रने इस प्रकार ब्रह्मास्त्रसे भी अपनी रक्षा की ॥ 10 ॥ इसके बाद दानवेन्द्र क्रोधित हो बड़े वेग से धनुष चढ़ाकर देवीपर मन्त्रपूर्वक दिव्यास्त्र छोड़ने लगा ॥ 11 ॥
देवी भी विशाल मुख फैलाकर संग्राममें समस्त अस्त्र-शस्त्र खा गयीं और अट्टहासपूर्वक गरजने लगीं, जिससे दानव भयभीत हो उठे ॥ 12 ॥
तब उस दानवने सौ योजन विस्तारवाली अपनी शक्तिसे कालीपर प्रहार किया, किंतु उन देवीने दिव्यास्त्रोंसे उस शक्तिके सौ-सौ टुकड़े कर दिये ॥ 13 ॥ तब उसने चण्डिकापर वैष्णवास्त्र चलाया, किंतु कालीने माहेश्वर अस्त्रसे उसे निष्फल कर दिया ।। 14 ।।
इस प्रकार बहुत कालपर्यन्त उन दोनोंका परस्पर युद्ध होता रहा, देवता एवं दानव दर्शक बनकर उस युद्धको देखते रहे। उसके बाद युद्धमें कालके समान क्रुद्ध हुई महादेवीने रोषपूर्वक मन्त्रसे पवित्र किया हुआ पाशुपतास्त्र ग्रहण किया ।। 15-16 ।।उसके चलानेके पूर्व ही उसे रोकनेके लिये यह आकाशवाणी हुई- हे देवि ! आप क्रोधपूर्वक इस अस्त्रको शंखचूड़पर मत चलाइये। हे चण्डिके ! इस अमोघ पाशुपतास्त्रसे भी वीर शंखचूडकी मृत्यु नहीं होगी। अतः कोई अन्य उपाय सोचिये ॥ 17-18 ॥
यह सुनकर भद्रकालीने उस अस्त्रको नहीं चलाया और वे भूखसे युक्त होकर लीलापूर्वक मौ लाख दानवोंका भक्षण कर गयीं। वे भयंकर देवी | शंखचूडको भी खानेके लिये वेगपूर्वक दौड़ीं, तब उस दानवने दिव्य रौद्रास्वके द्वारा उन्हें रोक दिया। इसके बाद दानवेन्द्रने कुपित होकर शीघ्र ही ग्रीष्मकालीन सूर्यके सदृश, तीक्ष्ण धारवाला तथा अत्यन्त भयंकर खड्ग चलाया ॥ 19-21 ॥
तब काली उस प्रज्वलित खड्गको अपनी ओर आता देखकर रोषपूर्वक अपना मुख फैलाकर उसके देखते-देखते उसका भक्षण कर गयीं ॥ 22 ॥
इसी प्रकार उसने और भी बहुत-से दिव्यास्त्रोंका प्रयोग किया, किंतु भगवतीने उसके सभी अस्त्रकि पूर्ववत् सौ खण्ड कर दिये ॥ 23 ॥
पुनः महादेवी उसे खानेके लिये बड़े वेगसे दौड़ीं, तब सर्वसिद्धेश्वर वह [ दानवराज] अन्तर्धान हो गया ।। 24 ।।
कालीने उस दानवको न देखकर बड़े वेगसे अपनी मुष्टिकाके द्वारा उसके रथको नष्ट कर दिया तथा सारथीको मार डाला ॥ 25 ॥
इसके बाद उस मायावी शंखचूडने बड़ी शीघ्रतासे युद्धस्थलमें प्रकट होकर प्रलयाग्निकी शिखाके समान जलते हुए चक्रसे भद्रकालीपर प्रहार किया ॥ 26 ॥
देवीने उस चक्रको अपने बायें हाथसे लोलापूर्वक | पकड़ लिया और बड़े क्रोधके साथ शीघ्र ही अपने मुखसे उसका भक्षण कर लिया। देवीने अत्यन्त क्रोधपूर्वक बड़े वेगसे मुष्टिकद्वारा उसपर प्रहार किया, जिससे वह दानवराज चक्कर काटने लगा और मूर्च्छित हो गया ll 27-28 ॥
वह प्रतापी क्षणभरमें चेतना प्राप्त करके पुनः उठ गया और उनके प्रति माताका भाव रखनेके कारण उसने उनके साथ बाहुयुद्ध नहीं किया ॥ 29 ॥देवीने उस दानवको पकड़कर बारंबार घुमाकर बड़े क्रोधके साथ वेगपूर्वक ऊपरको फेंक दिया ॥ 30 ॥
वह प्रतापी शंखचूड बड़े वेगसे ऊपर गया, पुनः नीचे गिरकर भद्रकालीको प्रणामकर स्थित हो गया। तत्पश्चात् प्रसन्नचित्त वह दानवश्रेष्ठ रत्ननिर्मित विमानपर सवार हुआ और सावधान होकर युद्धके लिये उद्यत हो गया। काली भी क्षुधातुर हो दानवोंका रक्तपान करने लगीं, इसी बीच वहाँ आकाशवाणी हुई कि हे ईश्वरि अभीतक इस रणमें महान् उद्धत एवं गर्जना करते हुए एक लाख दानव शेष हैं। अतः आप इनका भक्षण करें ॥ 31-34 ॥
हे देवि ! आप संग्राममें इस दानवराजके वधका विचार न कीजिये, यह शंखचूड आपसे अवध्य है यह निश्चित है। आकाशमण्डलसे निकली हुई इस वाणीको सुनकर देवी भद्रकाली बहुतसे दानवोंका मांस एवं रुधिर खा-पीकर शिवजीके पास आ गयीं और आद्योपान्त युद्धका सारा वृत्तान्त पूर्वापर क्रमसे उन्होंने उनसे निवेदन किया ॥ 35-37 ॥