सनत्कुमार बोले- महात्मा उपमन्युका यह वचन सुनकर महादेवके प्रति उत्पन्न हुई भक्तिवाले |कृष्णने उन मुनिसे कहा- ॥ 1 ॥ श्रीकृष्ण बोले- हे उपमन्यो! हे मुने! हे तात! आप मेरे ऊपर कृपा कीजिये, जिन-जिन लोगोंने शिवकी आराधनाकर अपनी कामनाएँ प्राप्त कीं, उन्हें आप बताइये ॥ 2 ॥
सनत्कुमार बोले- श्रीकृष्णका यह वचन सुनकर शैवोंमें श्रेष्ठ कृपानिधि महात्मा उपमन्यु मुनिने उनकी प्रशंसा करके कहा- ॥ 3 ॥
उपमन्यु बोले- हे यदुश्रेष्ठ ! जिन-जिन लोगोंने सदाशिवको आराधनासे अपने- अपने हृदयकी कामना पूर्ण की, उन उन भक्तोंका वर्णन करूँगा, आप सुनें ll 4 ॥
पूर्व समयमें हिरण्यकशिपुने दस लाख वर्षातक शिवाराधनकर चन्द्रशेखर सदाशिवसे सभी देवगणका ऐश्वर्य प्राप्त किया ॥ 5 ॥
उसीका पुत्रप्रवर नन्दन नामसे प्रसिद्ध हुआ, उसने शिवजीसे वर प्राप्तकर दस हजार वर्षतक इन्द्रके साथ युद्ध किया था। हे श्रीकृष्ण! पूर्वकालमें उस महायुद्धमें विष्णुका भयानक [ सुदर्शन] चक्र तथा इन्द्रका वज्र उसके अंगोंमें लगकर चूर-चूर हो गये थे ॥ 6-7 ॥
युद्धमें उस अत्यन्त बलशाली एवं बुद्धिमान् ग्रह [राहु] के अंगमें [प्रहार किये गये] सुदर्शनचक्र | एवं इन्द्रके वज्र आदि मुख्य अस्त्र भी शिवजीकी तपस्याके प्रभावसे उसे पीड़ित नहीं करते थे। उस अत्यन्त बलवान् ग्रहके द्वारा पीड़ित हुए देवताओंने भी शिवसे ही वर प्राप्तकर दैत्योंको बहुत प्रताड़ित किया ॥ 8-9 ॥
सर्वलोकाधिपति सदाशिवने विद्युत्प्रभ नामक राक्षसपर भी प्रसन्न होकर एक लाख वर्षपर्यन्त उसे त्रैलोक्यका स्वामित्व प्रदान किया, शिवजीने उसे सहस्र अयुत (एक करोड़) पुत्र भी दिये और उससे कहा कि तुम मेरे नित्य अनुचर रहोगे। हे वासुदेव! भगवान् शिवने प्रसन्नचित्त होकर उसे प्रेमपूर्वक कुशद्वीपमें उत्तम राज्य भी प्रदान किया ।। 10-12 ॥पूर्वकालमें ब्रह्माजीद्वारा उत्पन्न शतमुख नामक दैत्यने सौ वर्षपर्यन्त तपस्या करके उनके वरसे एक हजार पुत्र प्राप्त किये ॥ 13 ॥
वेद जिनकी महिमाका गान करते हैं, उन महादेवकी आराधनाकर महर्षि याज्ञवल्क्यने उत्तम ज्ञान प्राप्त किया। जो [मुनिवर] वेदव्यास नामसे प्रसिद्ध हैं, उन्होंने भी शंकरकी आराधना करके अतुलनीय यश प्राप्त किया और वे त्रिकालज्ञ हुए ।। 14- 15 ।।
इन्द्रद्वारा अपमानित उन बालखिल्य महर्षियोंने सदाशिवसे सोमहर्ता तथा सभीसे दुर्जय गरुडको प्राप्त
किया। पूर्वकालमें शिवजीके क्रोधित हो जानेसे [घोर
अनावृष्टिके कारण] सम्पूर्ण जल समाप्त हो गया,
तब देवगणोंने सप्तकपाल यागके द्वारा शिवजीका
यजनकर जलको पुनः प्रकट किया । ll 16 17 ॥
[[महर्षि अत्रिकी भार्या अनसूयाने तीन सौ वर्ष पर्यन्त निराहार रहकर मुसलोंपर शयन करके शिवजीसे दत्तात्रेय, चन्द्रमा एवं दुर्वासा जैसे पुत्र प्राप्त किये और उन पतिव्रताने चित्रकूटमें गंगाको प्रकट किया ।। 18-19 ।।
हे मधुसूदन विकर्णने भक्तोंको सुख देनेवाले ! महादेवको प्रसन्न करके बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्त की ॥ 20 ॥
[शिवमें] दृढ़ भक्तिसे युक्त राजा चित्रसेन (चन्द्रसेन) ने शिवजीको प्रसन्न करके सम्पूर्ण राजाओंके भयसे मुक्त हो निर्भयता और अतुल सम्पत्ति प्राप्त की। राजाके द्वारा की जाती हुई पूजाको देखनेसे महादेवके प्रति उत्पन्न भक्तिवाले गोपिकापुत्र श्रीकरने परम सिद्धिको प्राप्त किया ।। 21-22 ॥
हे हरे शिक्के अनुग्रहसे सीमन्तिनीका पति चित्रांगद नामक राजपुत्र यमुनायें डूबनेपर भी नहीं मरा ॥ 23 ॥
तक्षकके घर जाकर उससे मित्रता स्थापितकर उत्तम व्रतवाला वह अनेक धन- सम्पत्तिसे परिपूर्ण हो प्रसन्नतापूर्वक अपने घर लौट आया ॥ 24 ॥
हे कृष्ण! उसकी भार्या सीमन्तिनीने सोमवारका व्रतकर शिवके अनुग्रहसे उत्तम सौभाग्य प्राप्त किया ।। 25 ।।पूर्वकालमें उस व्रतमें निरत किसी ब्राह्मणपुत्रने | लोभके वशीभूत हो छलसे स्त्रीका रूप धारण करनेके कारण उसके प्रभावसे स्त्रीत्वको प्राप्त कर लिया ॥ 26 ॥
पूर्वकालमें गोकर्णक्षेत्रमें किसी दुष्टा चंचुका (चंचुला) नामक व्यभिचारिणी स्त्रीने किसी द्विजसे शिवजीकी धार्मिक कथाको भक्तिपूर्वक सुनकर परम गति प्राप्त की। चंचुकाके पापी पति बिन्दुगने भी अपनी पत्नीकी कृपासे शिवपुराण सुनकर उत्तम शिवलोकको प्राप्त किया ।। 27-28 ॥ पिंगला नामक वेश्या और मदर नामक अधम ब्राह्मण- उन दोनोंने महादेव शिवजीकी आराधना करके उत्तम गति प्राप्त की ।। 29 ।।
महानन्दा नामक किसी वेश्याने शिवचरणोंमें तल्लीन होकर अपनी दृढ़ प्रतिज्ञासे शिवजीको भलीभाँति प्रसन्नकर सद्गति प्राप्त की। केकयदेशकी रहनेवाली शिवव्रता सादरा नामक विप्रकन्याने भगवान् शिवका व्रत धारण करनेसे परम सुख प्राप्त किया । ll 30-31 ।।
हे कृष्ण! पूर्वकालमें राजा विमर्षणने शिवभक्तिकर शिवके अनुग्रहसे श्रेष्ठ गति प्राप्त की ॥ 32 ॥
अनेक स्त्रियोंमें आसक्त, पापी तथा दुष्ट, दुर्जन | नामक राजाने शिवभक्तिके द्वारा सम्पूर्ण कर्मोंमें निर्लिप्त रहकर शिवको प्राप्त किया ॥ 33 ॥
शिवव्रतपरायण शंबर नामक शैव भीलने अपनी स्त्रीसहित भक्तिभावसे चिताकी विभूतिका लेपकर उत्तम गतिको प्राप्त किया। हे कृष्ण सौमिनी नामक चाण्डालीने अज्ञानसे पूजा करके महादेवकी परम कृपासे शिवगति प्राप्त की ।। 34-35 ।।
दूसरोंकी हिंसा करनेवाले महाकाल नामक किरात- जातीय व्याधने भक्तिसे शिवपूजनकर उत्तम सद्गति प्राप्त की । पूर्वकालमें मुनिश्रेष्ठ दुर्वासाने शिवके अनुग्रहसे मुक्ति देनेवाली शिवभक्ति एवं अपने मतका लोकमें प्रचार किया ॥ 36-37 ॥
लोककल्याणकारी भगवान् सदाशिवकी आराधनाकर विश्वामित्रने क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मणत्वको प्राप्त किया तथा दूसरे ब्रह्माके समान हो गये ॥ 38 ॥ हे कृष्ण ! शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ सर्वलोकपितामह ब्रह्माजी उत्तम भक्तिसे शिवकी पूजाकर सृष्टिकर्ता बन गये ॥ 39 ॥हे हरे ! शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ श्रीमान् मुनिवर मार्कण्डेय | शिवजीकी कृपासे महाप्रभुतासम्पन्न एवं चिरंजीवी हुए। हे कृष्ण ! सभी देवताओंके स्वामी महान् शिवभक्त और प्रभुतासम्पन्न देवेन्द्रने पूर्व समयमें शिवके अनुग्रहसे त्रैलोक्यका उपभोग किया । ll40-41 ॥
महाशैव तथा जितेन्द्रिय बलिपुत्र बाणासुर शिवजीकी कृपासे सबका स्वामी एवं ब्रह्माण्डका नायक हुआ ॥ 42 ॥
विष्णु, [ महर्षि ] शक्ति, महान् सामर्थ्यवाले दधीचि एवं श्रीराम भी शिवके अनुग्रहसे महाशैव हुए ॥ 43 ॥ कणाद, भार्गव, गुरु बृहस्पति, गौतम - ये सभी शिवकी भक्तिसे महाप्रभुतासम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हुए ॥ 44 ॥
हे माधव ! प्रशंसनीय आत्मावाले शाकल्य ऋषिने नौ सौ वर्षपर्यन्त मानसयज्ञसे शिवकी आराधना की। तब भगवान् शिव प्रसन्न हो गये और बोले-हे वत्स ! तुम ग्रन्थकार होओगे, तीनों लोकोंमें तुम्हारी अक्षय कीर्ति होगी और तुम्हारा वंश अक्षय तथा महर्षियोंसे अलंकृत होगा। हे ऋषिश्रेष्ठ! तुम्हारा पुत्र सूत्रकार बनेगा ।। 45 - 47 ll
हे यदुनन्दन ! इस प्रकार उन मुनिश्रेष्ठने शिवसे वरदान प्राप्त किया और वे त्रैलोक्यमें प्रख्यात तथा पूजनीय हुए ॥ 48 ॥
सत्ययुगमें सावर्णि इस नामसे प्रसिद्ध एक ऋषि हुए, जिन्होंने इसी स्थानपर छः हजार वर्षपर्यन्त तप किया। तब साक्षात् भगवान् रुद्रने उनसे कहा- हे अनघ ! मैं तुमसे सन्तुष्ट हूँ, तुम लोकविख्यात ग्रन्थकर्ता और अजर-अमर होओगे ।। 49-50 ॥
इस प्रकार पूर्वजन्मके पुण्योंसे समर्चित हुए महादेव यथेच्छ शुभ कामनाओंको प्रदान करते हैं। [हे कृष्ण ! ] भगवान् शिवके जो गुण हैं, उनका वर्णन मैं एक मुखसे तो सैकड़ों वर्षोंमें भी नहीं कर सकता हूँ ॥ 51-52 ॥