शौनकजी बोले- हे शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ महाबुद्धिमान् सूतजी ! आप धन्य हैं, जो कि आपने यह अद्भुत एवं कल्याणकारिणी कथा हमें सुनायी। हे मुने! शिवपुराणकी कथा सुननेके लिये व्रत धारण करनेवाले लोगोंको किन नियमोंका पालन करना चाहिये - यह भी कृपापूर्वक सबके कल्याणकी दृष्टिसे बताइये ॥ 1-2 ॥सूतजी बोले- हे शौनक ! अब शिवपुराण सुननेका व्रत लेनेवाले पुरुषोंके लिये जो नियम हैं, उन्हें भक्तिपूर्वक सुनिये नियमपूर्वक इस श्रेष्ठ कथाको सुननेसे बिना किसी विघ्न-बाधाके उत्तम फलकी प्राप्ति होती है ॥ 3 ॥
दीक्षासे रहित लोगोंका कथा श्रवणमें अधिकार नहीं है। अतः मुने कथा सुननेकी इच्छावाले सब लोगोंको पहले वतासे दीक्षा ग्रहण करनी चाहिये। कथाव्रतीको ब्रह्मचर्यसे रहना, भूमिपर सोना पत्तलमें खाना और प्रतिदिन कथा समाप्त होनेपर ही अन्न ग्रहण करना चाहिये ।। 4-5 ।।
जिसमें शक्ति हो, वह पुराणकी समाप्तितक उपवास करके शुद्धतापूर्वक भक्तिभावसे उत्तम शिवपुराणको सुने। घृत अथवा दुग्ध पीकर सुखपूर्वक कथा श्रवण करे अथवा फलाहार करके अथवा एक ही समय भोजन | करके इसे सुनना चाहिये। इस कथाका व्रत लेनेवाले पुरुषको प्रतिदिन एक ही बार हविष्यान्न भोजन करना चाहिये। जिस प्रकारसे कथा श्रवणका नियम सुखपूर्वक पालित हो सके, वैसे ही करना चाहिये ॥ 6-8 ॥
कथा श्रवणमें विघ्न उत्पन्न करनेवाले उपवासकी तुलनामें तो मैं कथाश्रवणमें शक्ति प्रदान करनेवाले भोजनको ही अच्छा समझता हूँ ॥ 9 ॥
गरिष्ठ अन्न, दाल, जला अन्न, सेम, मसूर, भावदूषित तथा बासी अन्नको खाकर कथा व्रती पुरुष कभी कथाको न सुने ॥ 10 ॥
कथाव्रतीको बैंगन, तरबूज, चिचिंडा, मूली, कोहड़ा, प्याज, नारियलका मूल तथा अन्य कन्द मूलका त्याग करना चाहिये ll 11 ॥
जिसने कथाका व्रत ले रखा हो, वह पुरुष प्याज, लहसुन, हींग, गाजर, मादक वस्तु तथा आमिष कही जानेवाली वस्तुओंको त्याग दे। कथाका व्रत लेनेवाला जो पुरुष हो, उसे काम, क्रोध आदि छः विकारों, ब्राह्मणोंकी निन्दा तथा पतिव्रता और साधु-संतोंकी निन्दाका त्याग कर देना चाहिये ।। 12-13 ॥
कथा श्रवणका व्रत धारण करनेवाला व्यक्ति रजस्वला स्त्रीको न देखे, पतित मनुष्योंको कथाकी बात न सुनाये, ब्राह्मणोंसे द्वेष रखनेवालों और वेदबहिष्कृत | मनुष्योंके साथ सम्भाषण न करे ॥ 14 ॥कती पुरुष प्रतिदिन सत्य, शौच, दया, मौन | सरलता, विनय तथा मनकी उदारता-इन सद्गुणोंको स | अपनाये रहे। श्रोता निष्काम हो या सकाम, वह नियमपूर्वक कथा सुने। सकाम पुरुष अपनी अभीष्ट कामनाको प्राप्त करता है और निष्काम पुरुष मोक्ष पा लेता है दरिद्र क्षयका रोगी, पापी, भाग्यहीन तथा सन्तानरहित पुरुष भी इस उत्तम कथाको सुने ।। 15-17 ॥
काकवन्ध्या आदि जो सात प्रकारकी दुष्टा स्त्रियों हैं तथा जिस स्त्रीका गर्भ गिर जाता हो-इन सभीको शिवपुराणकी उत्तम कथा सुननी चाहिये। हे मुने! स्त्री हो या पुरुष- सबको यत्नपूर्वक विधि-विधानसे शिवपुराणकी उत्तम कथा सुननी चाहिये ॥ 18-19 ॥
इस शिवपुराणके कथापारायणके दिनोंको अत्यन्त उत्तम और करोड़ों यज्ञोंके समान पवित्र मानना चाहिये। इन श्रेष्ठ दिनोंमें विधिपूर्वक जो थोड़ी-सी भी वस्तु दान की जाती है, उसका अक्षय फल मिलता है । ll 20-21 ।।
इस प्रकार व्रतधारण करके इस परम श्रेष्ठ कथाका श्रवण करके आनन्दपूर्वक श्रीमान् पुरुषोंको इसका उद्यापन करना चाहिये। इसके उद्यापनकी विधि शिवचतुर्दशीके उद्यापनके समान है। अतः यहाँ बताये गये फलकी आकांक्षावाले धनाढ्य लोगोंको उसी प्रकारसे उद्यापन करना चाहिये। अल्पवित्तवाले भक्तोंके लिये प्राय: उद्यापनकी आवश्यकता नहीं है; वे तो कथाश्रवणमात्रसे पवित्र हो जाते हैं। शिवजीके निष्काम भक्त तो शिवस्वरूप ही होते हैं ।। 22-24 ॥
हे महर्षे! इस प्रकार शिवपुराणकी कथाके पाठ एवं श्रवण सम्बन्धी यज्ञोत्सवकी समाप्ति होनेपर श्रोताओंको भक्ति एवं प्रयत्नपूर्वक भगवान् शिवकी पूजाकी भाँति पुराण पुस्तककी भी पूजा करनी चाहिये। तदनन्तर विधिपूर्वक वक्ताका भी पूजन करना चाहिये। पुस्तकको आच्छादित करनेके लिये नवीन एवं सुन्दर | बस्ता बनाये और उसे बाँधनेके लिये दृढ एवं दिव्य सूत्र | लगाये; फिर उसका विधिवत् पूजन करे ॥ 25-27 ॥
पुराणके लिये जो लोग नया वस्त्र और सूत्र देते हैं, वे जन्म-जन्मान्तरमें भोग और ज्ञानसे सम्पन्न होते हैं। कथावाचकको अनेक प्रकारके बहुमूल्य पदार्थ देने चाहिये और उत्तम वस्त्र, आभूषण और सुन्दर पात्lआदि विशेष रूपसे देने चाहिये। पुराणके आसनरूपमें जो लोग कम्बल, मृगचर्म, वस्त्र, चौकी, तख्ता आदि प्रदान करते हैं, वे स्वर्ग प्राप्त करके यथेच्छ सुखोंका उपभोगकर पुनः कल्पपर्यन्त ब्रह्मलोकमें रहकर अन्तमें शिवलोक प्राप्त करते हैं ।। 28-31 ॥
मुनिश्रेष्ठ ! इस प्रकार महान् उत्सवके साथ | पुस्तक और वक्ताकी विधिवत् पूजा करके वक्ताकी सहायताके लिये स्थापित किये गये पण्डितका भी उसीके अनुसार उससे कुछ ही कम धन आदिके द्वारा सत्कार करे। वहाँ आये हुए ब्राह्मणोंको अन्न-धन आदिका दान करे। साथ ही गीत, वाद्य और आदिके द्वारा महान् उत्सव करे ।। 32-34 ॥
हे मुने! यदि श्रोता विरक्त हो तो उसके लिये कथा-समाप्तिके दिन विशेषरूपसे उस गीतांका पाठ करना चाहिये, जिसे श्रीरामचन्द्रजीके प्रति भगवान् शिवने कहा था ।। 35 ।।
यदि श्रोता गृहस्थ हो तो उस बुद्धिमान्को उस श्रवण-कर्मकी शान्तिके लिये शुद्ध हविष्यके द्वारा होम करना चाहिये। हे मुने रुद्रसंहिता प्रत्येक श्लोकद्वारा होम करे अथवा गायत्री मन्त्रसे होम करना चाहिये; क्योंकि वास्तव में यह पुराण गायत्रीमय ही है अथवा शिवपंचाक्षर मूलमन्त्रसे हवन करना उचित है। होम करनेकी शक्ति न हो तो विद्वान् पुरुष यथाशक्ति हवनीय हविष्यका ब्राह्मणको दान करे ॥ 36-38 ll
न्यूनातिरिक्ततारूप दोषोंकी शान्तिके लिये भक्तिपूर्वक शिवसहस्रनामका पाठ अथवा श्रवण करे। इससे सब कुछ सफल होता है, इसमें संशय नहीं है; क्योंकि तीनों लोकोंमें उससे बढ़कर कोई वस्तु नहीं है ।। 39-40 ।।
कथाश्रवणसम्बन्धी व्रतकी पूर्णताको सिद्धिके लिये ग्यारह ब्राह्मणोंको मधुमिश्रित खीर भोजन कराये और उन्हें दक्षिणा दे ॥ 41 ॥
मुने! यदि शक्ति हो तो तीन पल (बारह तोला) सोनेका एक सुन्दर सिंहासन बनवाये और उसपर उत्तम अक्षरोंमें लिखी अथवा लिखायी हुई शिवपुराणकीपुस्तक विधिपूर्वक स्थापित करे । तत्पश्चात् पुरुष आवाहन आदि विविध उपचारोंसे उसकी पूजा करके दक्षिणा चढ़ाये । तदनन्तर जितेन्द्रिय आचार्यका वस्त्र, | आभूषण एवं गन्ध आदिसे पूजन करके उत्तम बुद्धिवाला श्रोता भगवान् शिवके सन्तोषके लिये दक्षिणासहित वह पुस्तक उन्हें समर्पित कर दे ॥ 42 - 44 ॥
हे शौनक ! इस पुराणके उस दानके प्रभावसे भगवान् शिवका अनुग्रह पाकर पुरुष भवबन्धनसे मुक्त हो जाता है। इस तरह विधि-विधानका पालन करनेपर श्रीसम्पन्न शिवपुराण सम्पूर्ण फलको देनेवाला तथा भोग और मोक्षका दाता होता है ॥ 45-46 ॥
हे मुने! मैंने आपको शिवपुराणका यह सारा माहात्म्य, जो सम्पूर्ण अभीष्टको देनेवाला है, बता दिया। अब और क्या सुनना चाहते हैं ? श्रीसम्पन्न शिवपुराण समस्त पुराणोंका तिलकस्वरूप माना गया है। यह भगवान् शिवको अत्यन्त प्रिय, रमणीय तथा भवरोगका निवारण करनेवाला है ।। 47-48 ।।
जो सदा भगवान् विश्वनाथका ध्यान करते हैं, जिनकी वाणी शिवके गुणोंकी स्तुति करती है और जिनके दोनों कान उनकी कथा सुनते हैं, इस जीव जगत् में उन्हींका जन्म लेना सफल है, वे निश्चय ही संसारसागरसे पार हो जाते हैं ॥ 49 ॥
भिन्न-भिन्न प्रकारके समस्त गुण जिनके सच्चिदानन्दमय स्वरूपका कभी स्पर्श नहीं करते, जो अपनी महिमासे जगत्के बाहर और भीतर वाणी एवं मनोवृत्तिरूपमें प्रकाशित होते हैं, उन अनन्त आनन्दघनरूप परम शिवकी मैं शरण लेता हूँ ॥ 50 ॥