ईश्वर बोले- भूमिके गन्ध, वर्ण, रस आदिकी भलीभाँति परीक्षाकर यहाँ अपने मनके अनुकूल स्थानपर वस्त्रका विशाल चंदोवा लगाकर दर्पणतलके तुल्य [सम तथा स्निग्ध] पृथ्वीतलपर दो हाथ प्रमाणके चौकोर मण्डलका निर्माण करे ॥ 1-2 ॥
ताड़का पत्ता लेकर उसीके समान लम्बे एवं चीड़े स्थानमें बराबर तेरह भाग करे। उस ताड़पत्रको वहीं रखकर पश्चिमकी ओर मुख करके बैठे और रँगा हुआ सुदृढ़ धागा लेकर उसे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण- चारों दिशाओंमें लपेटे हे देवदेवेशि इस प्रकार करनेसे उस मण्डलके एक सौ उनहत्तर कोष्ठक हो जायेंगे। उसके मध्यका कोष्टक कर्णिका है, उसके बाहरके आठ कोष्ठक आठ दल कहे जाते हैं । ll 3-6 ॥
सभी दलोंको श्वेत वर्णका बनाये। कर्णिकाको पीले रंगसे रंगना चाहिये और उसके चारों ओर लाल रंगका वृत बनाकर हे सुरेश्वरि [उस अष्टदल ] कमलके दलोंके दाहिनी ओरसे आरम्भ करके दलोंके सन्धिस्थानको क्रमसे लाल तथा काले रंगसे रँगना चाहिये ।। 7-8 ।।
कर्णिकामै प्रणवार्थको प्रकाशित करनेवाला यन्त्र लिखे पुनः नीचेकी ओर पीठ और उसके ऊपर श्रीकण्ठ लिखकर उसके ऊपर अमरेश, मध्यमें महाकाल और महाकालके मस्तकके समीप दण्ड लिखकर फिर ईश्वरको लिखे। श्याम रंगसे पीठ और पीत रंगसे श्रीकण्ठको चित्रित करे। अमरेश और | महाकालको क्रमशः लाल तथा काले रंगसे चित्रित करे बुद्धिमान्को चाहिये कि दण्डको धूमवर्ण तथा ईश्वरको धवलवर्णका बनाये। इस प्रकार रंग भरकर बनाये गये यन्त्रको सद्योजात मन्त्रसे वेष्टित कर दे ॥ 9-12 ॥
हे ईश्वरि उस मन्त्रसे उठे हुए नादसे ईशानका भेदन करे और आग्नेय आदिके क्रमसे उनकी बाह्य पंक्तियोंको ग्रहण करे ॥ 13 ॥हे सुन्दरि । उन कोणोंके चार कोष्ठकों को श्वेत तथा लाल धातुओंसे रँगकर चार द्वारोंकी परिकल्पना करे। उनके बगलके दोनों कोष्ठकोंको पीले रंगसे परिपूर्ण करना चाहिये ॥ 14-15 ॥
● आग्नेय कोणके कोष्ठके मध्यभागमें पीतवर्णवाले चौकोर स्थानमें लालरंगके अष्टदल कमलका निर्माण करना चाहिये और उसकी कर्णिकाको पीले रंगसे रँगना चाहिये ॥ 16 ॥
तत्पश्चात् सावधान होकर उसके मध्यमें बिन्दुयुक्त हकार लिखे। उस कमलके नैर्ऋत्यकोणवाले कोष्ठक में चौकोर [वृत्तवाला] रक्तवर्णका अष्टदल कमल बनाये और उसकी कर्णिकाओंमें पीला रंग भर दे। उसमें शवर्गके तीसरे अक्षर 'स' को छठे स्वर 'ऊ' से युक्त करके 'सू' लिखे ॥ 17-18 ।।
हे भद्रे ! बिन्दु- नादसे युक्त चौदहवाँ स्वर 'औं' इस श्रेष्ठ बीजमन्त्रको पद्मके मध्यमें लिखे ॥ 19 ॥
इसी प्रकार पद्मके ईशानकोणवाले कोष्ठकमें भी रक्तवर्णका वैसा ही कमल बनाये और उसमें कवर्गके तीसरे अक्षर 'ग' को पंचम स्वरसे युक्त करके 'गु' लिखे। उस वर्णके कण्ठभागमें बिन्दु लिखे। हे पार्वति ! हे शिवे ! इसकी बाहरवाली तीन पंक्तियोंमें पूर्वादि दिशाके क्रमसे चारों ओरके पाँच कोष्ठ ग्रहण करे और उसके मध्यमें कर्णिकाको पीला करे एवं वृत्तको रक्तवर्णका कर दे ॥ 20-22 ॥
इसकी विधि जाननेवालेको चाहिये कि कमल दलोंको लाल बनाये और दलोंके बाहरवाले छिद्रोंको काले रंगसे भर दे । आग्नेय आदि चारों कोनोंको सफेद रंगसे परिपूर्ण करे। पूर्वकी ओर छः बिन्दुसे युक्त षट्कोणको काले रंगसे लिखे ll23-24 ॥
दक्षिण कोष्ठक में रक्तवर्ण त्रिकोण, उत्तरकोष्ठकमें श्वेताभ अर्धचन्द्र, पश्चिम कोष्ठकमें पीतवर्ण चतुरस्र अंकित करके क्रमशः चार बीज लिखे। पूर्वकोष्ठकमें शुक्लवर्ण बिन्दु दक्षिणकोष्ठकमें कृष्णवर्ण उकार, उत्तरकोष्ठकमें रक्तवर्ण मकार और पश्चिम कोष्ठकमें पीतवर्ण अकार लिखे हे सुन्दरि सबसे ऊपरकी पंक्तिसे नीचेवाली पंक्ति में पीला, श्वेत, लाल और काला - ये चारों रंग भरे ॥ 25-28 ॥उसके नीचे श्वेत, श्याम, पीत एवं रक्त रंगसे रँगे। हे वरानने! नीचेके त्रिकोणमें लाल, सफेद और पीला रंग भरे । हे ईश्वरि ! इस प्रकार दक्षिणसे प्रारम्भकर उत्तर दिशातक चित्रण करे। उसकी बाहरी पंक्तिमें पूर्वसे मध्यभागतक पीला, लाल, काला, श्याम, श्वेत, पीतवर्ण चित्रित करे। हे प्रिये ! रक्त, श्याम, श्वेत, लाल, कृष्ण, लाल- - ये छ: रंग कहे गये हैं। आग्नेयकोणसे आरम्भकर [वायुकोणपर्यन्त ] इन रंगोंका क्रमशः प्रयोग करे। हे महेशानि! दक्षिणसे लेकर पूर्वपर्यन्त ये सब बताये गये हैं । हे ईश्वरि ! वैसे ही नैर्ऋत्यदिशासे लेकर आग्नेयदिशापर्यन्त जानना चाहिये, उसी रीतिसे पश्चिमदिशासे लेकर दक्षिणदिशा पर्यन्त भी कहा गया है। हे महादेवि ! वायव्यसे लेकर नैर्ऋत्यदिशातक यह क्रम कह दिया। इसी प्रकार परमेशानि! पूर्वसे लेकर पश्चिम दिशातक कहा गया। हे अम्बिके! उत्तरसे लेकर वायव्यतक यह क्रम जानना चाहिये। हे पार्वति ! इस प्रकार मैंने मण्डलकी विधि आपसे कह दी। जितेन्द्रिय यतिको चाहिये कि स्वयं इस प्रकार मण्डल लिखकर ब्रह्ममें तत्पर हो सौरपूजा करे ॥ 29 - 36 ॥