शिवजी बोले- हे महादेवि! अब मैं आपके ऊपर स्नेहके कारण सम्प्रदायोंके अनुसार संन्यास लेनेसे पूर्वके आह्निक कर्मका वर्णन करूँगा ll 1 ॥
हे महादेवि ! ब्राह्ममुहूर्त में उठकर यति अपने सिरमें सहस्र दलवाले श्वेत कमलपर बैठे हुए, शुद्ध स्फटिकके समान अत्यन्त निर्मल, दो नेत्रोंवाले, वरद एवं अभयमुद्राको धारण किये हुए शिवके समान कल्याणकारी एवं अत्यन्त मनोहर स्वरूपवाले गुरुका ध्यान करे। उसके अनन्तर मानसिक भावोंसे लाये गये गन्ध आदिसे क्रमशः पूजन करके हाथ जोड़कर गुरुको नमस्कार करे ॥ 2-4 ॥
हे महादेव! प्रातः कालसे सन्ध्यापर्यन्त तथा सन्ध्यासे प्रातः कालपर्यन्त मैं जो कुछ भी करता हूँ, वह सब आपका ही पूजन हो। इस प्रकार गुरुसे निवेदनकर उनसे आज्ञा लेकर प्राणोंको रोक करके मन एवं इन्द्रियोंको वशमें रखकर आसनपर बैठे और मूलाधारसे ब्रह्मरन्ध्रपर्यन्त छः चक्रोंका ध्यान करे। उनके मध्य में करोड़ों विद्युत्के समान कान्ति- वाले, सर्वतेजोमय सच्चिदानन्दस्वरूप, निर्गुण, निर्विकार, परब्रहारूप मुझ सदाशिवका चिन्तन करे ॥ 5-8 ॥उसके अनन्तर उस बुद्धिमान्को चाहिये कि 'वह मैं ही हूँ' - इस प्रकार मेरे साथ एकताका अनुभव करके बाहर निकलकर सुविधानुरूप दूर चला जाय ॥ 9 ॥
वह बुद्धिमान् [शिष्य] वस्त्रसे नासिका तथा सिरको ढँककर पृथ्वीपर तृण रखकर विधिवत् शौच करके वहाँसे उठकर शिश्नको हाथसे पकड़े हुए जलाशयकी ओर जाय और उचित रीतिसे जल लेकर सावधान हो विधिपूर्वक शुद्धि करे। पुनः हाथ-पैर धोकर 'ॐ' इस मन्त्रका स्मरण करता हुआ दो बार आचमन करके मौन धारणकर उत्तराभिमुख हो दन्तधावन करे । ll 10-12 ॥
एकादशी तथा अमावास्याको छोड़कर तृण तथा पत्ते ( डण्ठल आदि) से सदा दन्तधावन करे, इसके बाद जलसे बारह कुल्लाकर मुखको शुद्ध करे, पुनः दो बार आचमनकर मिट्टी तथा जलसे कटिपर्यन्त शरीरभागको शुद्ध करके सूर्योदयके समय मिट्टीका लेपनकर स्नान करे ।। 13-14 ॥
गुरुका तथा मेरा स्मरण करते हुए स्नान- सन्ध्या आदि करना चाहिये। इस विषयमें विस्तारके भयसे अधिक नहीं कहा गया है, इसे अन्यत्र देख लेना चाहिये ॥ 15 ॥
शंखमुद्रा बाँधकर प्रणवसे सिरपर बारह बार, उसका आधा छः बार अथवा उसका भी आधा तीन बार जल छिड़के। उसके अनन्तर किनारेपर आकर कौपीनका प्रक्षालनकर दो बार आचमन करके प्रणवसे ही वस्त्रपर जल छिड़के तथा अंगोंका मार्जन करे ll 16-17 ॥
सबसे पहले अँगोछेसे मुख पोंछकर बादमें सिरसे लेकर सम्पूर्ण देहको पोंछे। इसके बाद गुरुके समीप ही स्थित हो शुद्ध कौपीन धारणकर डोरेसे बाँध ले । पुनः भस्म धारण करे, हे प्रिये ! उसकी विधि कह रहा हूँ ॥ 18-19॥
दो बार आचमन करके सद्योजात0 इस आद्य मन्त्रसे भस्म ग्रहण करके अग्निरिति0 इत्यादि मन्त्रोंसे उसे अभिमन्त्रित करते हुए शरीरका स्पर्श करे। इसके बाद 'आपो वा' इस मन्त्रसे भस्ममें जल मिलाये पुनः ॐ आपो ज्योतिः - इस मन्त्रकोपढ़कर मानस्तोके - इस मन्त्रसे [भस्मको] मसलकर कवलके आकारके दो पिण्ड बनाये। फिर एकके पाँच भाग करे। हे परमेश्वरि ! उसे सिर, मुख, हृदय, गुह्यस्थान तथा चरणमें ईशानसे लेकर सद्योजातपर्यन्त पाँच मन्त्रोंसे क्रमशः लगाकर बादमें प्रणवसे अभिषेक करे। इसके साथ सभी अंगोंको तथा तत्पश्चात् दोनों हाथों को धोकर दूसरा पिण्ड ग्रहण करे और पहलेकी तरह मसलकर उससे त्रिपुण्ड्र धारण करे, 'त्र्यायुषं जमदग्नेः', 'त्र्यम्बकं यजामहे', प्रणव अथवा अन्य शिवमन्त्र के द्वारा सिर, ललाट, वक्षःस्थल, कन्धा, नाभि, दोनों बाहुओं, सन्धियों तथा पीठपर क्रमशः भस्म लगाये। इसके बाद दोनों हाथ धोकर यथाविधि दो बार आचमन करके पंचाक्षर मन्त्रका उच्चारणकर वह विद्वान् [शिष्य] अपने गुरुका ध्यान करे और आगे कही जानेवाली विधिके अनुसार छः प्राणायाम करे । ll 20-27 ॥
दाहिने हाथमें जल लेकर उसे बायें हाथसे ढँककर बारह बार प्रणवमन्त्र पढ़कर उसे अभिमन्त्रित करे। | इसके बाद तीन बार उसे अपने सिरपर छिड़ककर तीन बार उसका पान करे और एकाग्र मनसे सूर्यमण्डलमें स्थित, सर्वतेजोमय, आठ भुजावाले, चार मुखसे युक्त, अर्धनारीश्वर, अद्भुत स्वरूपवाले, सम्पूर्ण आश्चर्यमय गुणोंसे युक्त तथा सभी अलंकारोंसे सुशोभित ओंकाररूपी ईश्वरका ध्यान करे ।। 28-301/2 ll
इस प्रकार ध्यान करके विधिपूर्वक तीन बार अर्घ्य दे। इसके बाद एक सौ आठ बार [शिवमन्त्रका ] जप करके बारह बार तर्पण करे, पुनः विधिवत् आचमनकर तीन प्रणायाम करे ।। 31-32 ॥
तदनन्तर मनसे शिवजीका स्मरण करते हुए पूजास्थानमें आये, वहाँ द्वारपर दोनों पैर धो करके मौन होकर दो बार आचमन करे। बुद्धिमान्को चाहिये कि दाहिना चरण आगे करके पूजामण्डपमें विधिवत् प्रवेश करे और वहाँ क्रमसे मण्डलकी रचना करे ॥ 33-34 ll