शौनक बोले- हे सूतजी सगरके साठ हजार महाबली पुत्र किस प्रकार उत्पन्न हुए और उन्होंने किस प्रकार अपना पराक्रम प्रदर्शित किया, वह सब कहिये ॥ 1 ॥
सूतजी बोले- हे शौनक ! महाराज सगरकी दो स्त्रियाँ थीं, उन्होंने तपस्याके द्वारा अपने पापको दग्ध कर दिया, तब मुनिश्रेष्ठ और्वने प्रसन्न होकर उन्हें वर प्रदान किया ॥ 2 ॥
उनमेंसे एकने तो महाबलशाली साठ हजार पुत्रोंका बर माँगा और दूसरी वरशालिनीने स्वेच्छासे वंशवृद्धि करनेवाले एक ही पुत्रको माँगा पहलीने घर आनेपर यथासमय बहुत से शूरवीर पुत्रोंके वरके कारण पुत्ररूप बीजोंसे पूर्ण तुम्बीको उत्पन्न किया, जिसमें अलग अलग सभी बालक बीजरूपसे वर्तमान थे । ll 3-4 llमगरको प्रसन्न करनेवाले ये बालक पृथक पृथक् पृतकुम्भमें रखे गये और भाइयोंने यथाक्रम इनका पालन पोषण किया। [आगे चलकर] महर्षि कपिलकी क्रोधाग्निमें जलकर भस्म हुए उन महात्मा पुत्रोंके अतिरिक्त [ दूसरी रानीसे उत्पन्न हुआ) एक पंचजन नामक पुत्र [बादमें] राजा हुआ ॥5-6॥
उसके बाद पंचजनके पराक्रमी पुत्र अंशुमान् हुए। उनके पुत्र दिलीप हुए, जिनके पुत्र भगीरथ हुए, जिन सामर्थ्यवान्ने नदियोंमें श्रेष्ठ गंगाको लाकर पृथ्वीपर उतारा तथा इन्हें समुद्रमें मिलाया और इन्हें अपनी पुत्री बनाया ।। 7-8 ॥
भगीरथ के पुत्र राजा श्रुतसेन कहे गये हैं। उनके पुत्र नाभाग हुए, जो परम धार्मिक थे। नाभागके पुत्र अम्बरीष और उनके पुत्र सिन्धुद्वीप हुए। सिन्धुद्वीपके पुत्र वीर्यवान् अयुताजित् हुए ॥ 9-10 ॥
अयुताजितके पुत्र महायशस्वी राजा ऋतुपर्ण हुए, जो दिव्य अक्ष (द्यूतक्रीड़ा) के मर्मज्ञ थे एवं नलके परम सुहृद् थे ॥ 11 ॥
ऋतुपर्णके पुत्र महातेजस्वी अनुपर्ण हुए और उनके पुत्र कल्माषपाद हुए, जिनका दूसरा नाम मित्रसह भी था। कल्माषपादके सर्वकर्मा नामक पुत्र हुए और सर्वकमकि अनरण्य नामक पुत्र हुए ।। 12-13 ॥
अनरण्यके पुत्र विद्वान् राजा मुण्डिद्रुह हुए उनके पुत्र निषेध, रति और खट्वांग हुए। हे अनघ जिन खट्वांगने स्वर्गसे इस लोकमें आकर मुहूर्तमात्रका जीवन प्राप्तकर अपनी बुद्धि एवं सत्यसे तीनों लोकोंका संग्रह किया ।। 14-15 ।।
उनके पुत्र दीर्घबाहु हुए और उनके पुत्र रघु हुए। उनके पुत्र अज हुए और उनसे दशरथ उत्पन्न हुए ॥ 16 ॥
दशरथसे रामचन्द्र उत्पन्न हुए, जो धर्मात्मा महायशस्वी थे जो विष्णुके अंश तथा महाव थे और जिन्होंने रावणका वध किया था। उनका चरित्र पुराणोंमें अनेक प्रकारसे वर्णित है तथा रामायण में तो प्रसिद्ध ही है, इसलिये यहाँ विस्तारसे वर्णन नहीं किया गया ।। 17-18 ॥रामचन्द्रके कुश नामक पुत्र हुए, जो अत्यन्त प्रसिद्ध थे, कुशसे अतिथि उत्पन्न हुए। उन अतिथिके पुत्र निषेध हुए ।। 19 ।।
निषधके पुत्र नल, नलके पुत्र नभ, नभके पुत्र पुण्डरीक और उनके पुत्र क्षेमधन्वा कहे गये हैं ॥ 20 ॥
क्षेमधन्वाके पुत्र महाप्रतापी देवानीक थे और देवानीकके पुत्र राजा अहीनगु थे ॥ 21 ॥
अहीनगुके पुत्र पराक्रमी सहस्वान् हुए तथा । उनके पुत्र वीरसेन हुए। ये वीरसेन (निषधराज नलके पिता वीरसेनसे भिन्न) इक्ष्वाकुकुलमें उत्पन्न हुए थे इनके पुत्र पारियात्र थे, जिनके बल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। बलके पुत्रका नाम स्थल था ॥ 22-23 ॥
सूर्यदेवके अंशसे उत्पन्न तथा अतिपराक्रमी यक्ष स्थलके पुत्र थे। यक्षके पुत्रका नाम अगुण था, जिनके पुत्र विधृति हुए। उनके पुत्र योगाचार्य हिरण्यनाभ हुए। वे महर्षि जैमिनिके शिष्य तथा अध्यात्मविद्याके विशिष्ट | वेत्ता थे। इन्हीं नृपश्रेष्ठ हिरण्यनाभसे कोसलदेशवासी याज्ञवल्क्यऋषिने हृदयग्रन्थिका भेदन करनेवाला अध्यात्मयोग प्राप्त किया था ।। 24-26 ॥
हिरण्यनाभके पुत्र पुष्य थे और उनके पुत्र ध्रुव हुए। ध्रुवके पुत्र अग्निवर्ण थे, जिनके पुत्रका नाम शीघ्र था। शीघ्रके पुत्र सिद्धयोगी मरुत् (मरु) हुए, जो कलाप-ग्रामवासी मुनियोंके साथ इस समय भी विद्यमान हैं। वे [राजर्षि] मरु कलियुगके अन्तमें नष्ट हुए सूर्यवंशका पुनः प्रवर्तन करेंगे ॥ 27-29 ॥
उनके पुत्र पृथुश्रुत हुए तथा पृथुश्रुतके पुत्र सन्धि हुए। उनके अमर्षण हुए और अमर्षणके पुत्र मरुत्वान् हुए। उनके विश्वसा तथा विश्वसाह्वके प्रसेनजित् हुए। प्रसेनजित्से तक्षकका जन्म हुआ, जिनके पुत्र बृहद्बल थे ॥ 30-31 ॥
ये इक्ष्वाकुवंशमें अभीतक हुए राजागण यहाँ बताये गये हैं, आगे होनेवाले धर्मविद् राजाओं तथा उनके वंशधरोंके विषयमें श्रवण कीजिये। बृहद्बलका पुत्र बृहद्रण होगा तथा उसका पुत्र उरुक्रिय होगा। उरुक्रियसे वत्सवृद्ध और उससे प्रतिव्योमा होगा। प्रतिव्योमासे भानु तथा उससे सेनापति दिवाक होगा। दिवाकका पुत्र महावीर सहदेव तथा उसका पुत्र बृहदश्व होगा। बृहदश्वसे भानुमान् नामक बलवान् पुत्र होगा ।। 32-35 ॥भानुमान्का पुत्र भावी होगा और उसका पुत्र पराक्रमशाली प्रतीकाश्व होगा। प्रतीकाश्वसे नृपश्रेष्ठ सुप्रतीक होगा। उससे मरुदेव तथा मरुदेवसे सुनक्षत्रका जन्म होगा। हे ब्राह्मणो ! उसका पुत्र पुष्कर होगा, जिससे अन्तरिक्षका जन्म होगा। उससे सुतपा नामक वीर पुत्र होगा, जिसका पुत्र मित्रचित् होगा। मित्रचित्से बृहद्भाज तथा उससे बर्हिका जन्म होगा ।। 36-38 ॥
बर्हिसे कृतंजय और उससे रणंजय होगा। उसका पुत्र संजय तथा संजयसे शाक्यका जन्म होगा । शाक्यका पुत्र शुद्धोद तथा उससे लांगणका जन्म होगा। उससे प्रसेनजित्, प्रसेनजित्से शूद्रक, उससे रुणक, रुणकसे सुरथ तथा सुरथसे इस वंशके अन्तिम राजा सुमित्रका जन्म होगा ।। 39-41 ॥
धर्ममें निरत, पवित्र आचरणवाले तथा आश्चर्यजनक पराक्रमसे सम्पन्न इक्ष्वाकुवंशीय राजाओंका यह वंश [महाराज ] सुमित्रतक ही रहेगा। कलियुगमें राजा सुमित्रके साथ ही यह शोभन राजवंश समाप्त हो जायगा और पुनः ब्राह्म सत्ययुगमें बढ़ेगा ॥ 42-43 ।।
इस प्रकार मैंने वैवस्वतवंशमें हुए विपुल दक्षिणा | देनेवाले इक्ष्वाकुवंशीय मुख्य-मुख्य राजाओंका वर्णन कर दिया। प्रजाओंको पुष्टि प्रदान करनेवाले भगवान् आदित्यके पुत्र वैवस्वत श्राद्धदेवकी यह सृष्टि परम पुण्य प्रदान करनेवाली है ॥ 44-45 ॥
[ भगवान्] आदित्यकी इस सृष्टिको पढ़ने तथा | सुननेवाला मानव सन्तानपरम्परासे युक्त होता है और इस लोकमें परम सुख भोगकर सायुज्यमुक्ति प्राप्त करता है ।। 46 ।।