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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 34 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 34

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सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना

वसिष्ठजी बोले [हे गिरिश्रेष्ठ!] इन्द्रसावर्णि नामक चौदहवें मनुके वंशमें वह अनरण्य नामक राजा उत्पन्न हुआ था ॥ 1 ॥

वह राजराजेश्वर तथा सात द्वीपोंका सम्राट् था। वह मंगलारण्यका पुत्र अनरण्य महाबलवान् एवं विशेषरूपसे शिवजीका भक्त था। उसने महर्षि भृगुको अपना पुरोहित बनाकर एक सौ यज्ञ किये और देवताओंके द्वारा इन्द्रपद दिये जानेपर भी उसने उसे स्वीकार नहीं किया ।। 2-3 ।।

हे हिमालय उस राजाके सौ पुत्र उत्पन्न हुए थे और लक्ष्मीसदृश सुन्दर एक पद्मा नामकी कन्या उत्पन्न हुई ॥ 4 ॥

हे नगश्रेष्ठ ! उस राजाका जो प्रेम अपने सौ पुत्रोंके प्रति था, उससे भी अधिक उस कन्यापर रहा करता था ॥ 5 ॥

उस अनरण्य राजाकी सर्वसौभाग्यशालिनी पाँच रानियाँ थीं, जो राजाको प्राणोंसे भी अधिक प्रिय थीं ॥ 6 ॥

जिस समय वह कन्या पिताके घरमें युवावस्थाको प्राप्त हुई, तब राजाने उसके लिये उत्तम वर प्राप्त करने हेतु [अपने दूतोंसे] पत्र भेजा ॥ 7 ॥एक समय ऋषि पिप्पलाद जब अपने आश्रम जानेके लिये तत्पर थे, तभी तपस्याके योग्य एक निर्जन स्थानमें उन्होंने कामकलामें निपुण तथा स्त्रीके साथ शृंगाररसके सागरमें निमग्न हो बड़े प्रेमसे बिहार करते हुए एक गन्धर्वको देखा ।। 8-9 ।।

वे मुनिश्रेष्ठ उसे देखकर कामके वशीभूत हो गये और तपसे चित्त हटाकर दारसंग्रहकी चिन्तामें पड़ गये ॥ 10 ll

इस प्रकार कामसे व्याकुलचित्त हुए उन श्रेष्ठ मुनि पिप्पलादका कुछ समय बीत गया ॥ 11 ॥ एक समय जब वे मुनिश्रेष्ठ पुष्पभद्रा नदीमें स्नान करनेके लिये जा रहे थे, तब उन्होंने लक्ष्मीके समान मनोरम युवती पद्माको देखा ॥ 12 ॥ उसके बाद मुनिने आस-पासके लोगोंसे पूछा कि यह किसकी कन्या है, तब शापके भयसे व्याकुल उन लोगोंने नमस्कार करके बताया ॥ 13 ॥

लोग बोले- यह [राजा] अनरण्यकी पद्मा नामक कन्या है, जो साक्षात् दूसरी लक्ष्मीके समान है, श्रेष्ठ राजागण गुणोंकी निधिस्वरूपा इस सुन्दरीको पानेकी इच्छा कर रहे हैं ।। 14 ।। ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार वे मुनि उन सत्यवादी मनुष्योंकी बात सुनकर अत्यन्त व्याकुल हो उठे और मनमें उसे प्राप्त करनेकी इच्छा करने लगे ॥ 15 ॥

हे गिरे ! उसके बाद मुनि स्नानकर विधिपूर्वक अपने इष्टदेव शंकरका विधिवत् पूजन करके कामके वशीभूत हो भिक्षाके लिये अनरण्यकी सभा में गये ॥ 16 ॥

राजाने मुनिको देखते ही भयभीत होकर प्रणाम किया और मधुपर्कादि देकर भक्तिपूर्वक उनकी पूजा की ॥ 17 ॥

पूजा ग्रहण करनेके अनन्तर मुनिने कन्याकी याचना की, तब राजा [इस बातको सुनकर] अवाक् हो गया और कुछ भी कहने में समर्थ नहीं हुआ ॥ 18 ॥ उन मुनिने कन्याको माँगा और कहा- हे नृपेश्वर। तुम अपनी कन्या हमें दे दो, अन्यथा मैं क्षणभरमें सब कुछ भस्म कर दूंगा ॥ 19 ॥[उस समय] हे मुने मुनिके तेजसे [राजाके ] सब सेवक हक्के बक्के हो गये और वृद्धावस्थासे जर्जर उस विप्रको देखकर परिकरोंसहित राजा रोने लगे ॥ 20 ॥ सभी रानियों को भी कुछ सूझ नहीं रहा था, वे रोने
लगीं। कन्याकी माता महारानी शोकसे व्यथित होकर मूच्छित हो गयीं, राजाके सभी पुत्र भी शोकसे आकुल चित्तवाले हो गये। हे शैलपति ! इस प्रकार राजाके सभी सगे-सम्बन्धी शोकसे व्याकुल हो गये । ll 21-22 ॥

इसी समय महापण्डित, बुद्धिमान् तथा सर्वोत्तम गुरु एवं पुरोहित ब्राह्मण- दोनों राजाके समीप आये ॥ 23 ॥

राजाने प्रणामकर उनका पूजन करके उन दोनोंके आगे रुदन किया और अपना सारा वृत्तान्त निवेदन किया एवं पूछा कि [इस समय] जो उचित हो, उसको जल्दीसे बताइये ॥ 24 ll

तब राजाके नीतिशास्त्रज्ञ पण्डित गुरु तथा ब्राह्मण पुरोहित दोनोंने राजाको तथा शोकसे व्याकुल रानियों, राजपुत्रों तथा उस कन्याको सभीके हितकारक तथा नीतियुक्त वाक्योंसे आदरपूर्वक समझाया ।। 25-26 ll

गुरु तथा पुरोहित बोले- हे राजन्! हे महाप्राज्ञ ! आप हमारी हितकारी बात सुनिये, आप परिवारके सहित शोक मत कीजिये और शास्त्रमें अपनी बुद्धि लगाइये ॥ 27 ll

हे राजन्! आज ही अथवा एक वर्षके बाद आपको अपनी कन्या किसी-न-किसी पात्रको देनी ही है, वह पात्र चाहे ब्राह्मण हो अथवा अन्य कोई हो ॥ 28 ॥

किंतु हम इस ब्राह्मणसे बढ़कर सुन्दर पात्र इस त्रिलोकीमें अन्यको नहीं देख रहे हैं, अतः आप अपनी कन्या इन मुनिको देकर अपनी सम्पूर्ण सम्पत्तिकी रक्षा कीजिये ॥ 29 ॥

हे राजन् ! [ यदि ऐसा नहीं करेंगे तो ] एकके कारण तुम्हारी सारी सम्पत्ति नष्ट हो जायगी। उस एकका त्यागकर सबकी रक्षा करो। शरणागतका त्याग नहीं करना चाहिये, चाहे उसके लिये सब कुछ नष्ट हो जाय ॥ 30 ॥

वसिष्ठजी बोले- राजाने उन दोनों बुद्धिमानों की बात सुनकर बार-बार विलाप करके उस कन्याको [वस्त्र तथा आभूषणसे] अलंकृतकर मुनीन्द्रको दे दिया ॥ 31 ॥हे गिरे ! इस प्रकार उस कन्यासे विधानपूर्वक विवाहकर महर्षि पिप्पलाद महालक्ष्मीके समान उस पद्माको लेकर प्रसन्नतासे युक्त अपने घर चले गये ॥ 32 ॥ इधर, राजा उस वृद्धको अपनी कन्या प्रदान करके सभी लोगोंको छोड़कर मनमें ग्लानि रखकर तपस्याके लिये वनमें चले गये ॥ 33 ॥

हे गिरे ! अपने प्राणनाथके वन चले जानेपर उनकी भार्याने भी पति तथा कन्याके शोकसे प्राण त्याग दिये ॥ 34 ॥

राजाके पूज्य लोग, पुत्र, सेवक राजाके बिना मूच्छित हो गये तथा अन्य सभी पुरवासी एवं दूसरे लोग यह सब जानकर उच्छास लेकर शोक करने लगे ॥ 35 ॥ [राजा] अनरण्य वनमें जाकर कठोर तप करके भक्तिपूर्वक शंकरकी आराधनाकर शाश्वत शिवलोकको चला गया। तदनन्तर राजाका कीर्तिमान् नामक धार्मिक ज्येष्ठ पुत्र राज्य करने लगा और पुत्रके समान प्रजाका पालन करने लगा ।। 36-37 ॥

हे शैल! मैंने अनरण्यका यह शुभ चरित्र आपसे कहा, जिस प्रकार अपनी कन्या प्रदानकर उन्होंने अपने वंशकी तथा सम्पूर्ण धनकी रक्षा की ॥ 38 ॥ इसी प्रकार हे शैलराज! आप भी अपनी कन्या शंकरजीको देकर अपने समस्त कुलकी रक्षा कीजिये और सभी देवताओंको भी वशमें कीजिये ॥ 39 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा