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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 1, अध्याय 3 - Sanhita 1, Adhyaya 3

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साध्य-साधन आदिका विचार

व्यासजी बोले- सूतजीका यह वचन सुनकर वे सब महर्षि बोले-अब आप हमें वेदान्तके सार सर्वस्वरूप अद्भुत शिवपुराणको सुनाइये ll 1 ll मुनियोंका यह वचन सुनकर अतिशय प्रसन्न हो वे सूतजी शंकरजीका स्मरण करते हुए उन श्रेष्ठ मुनियोंसे कहने लगे ॥ 2 ॥

सूतजी बोले- आप सब महर्षिगण रोग शोकसे रहित कल्याणमय भगवान् शिवका स्मरण करके वेदके सारतत्त्वसे प्रकट पुराणप्रवर शिवपुराणको सुनिये। जिसमें भक्ति, ज्ञान और वैराग्य-इन तीनोंका प्रीतिपूर्वक गान किया गया है और वेदान्तवेद्य सद्वस्तुका विशेषरूपसे वर्णन किया गया है। ll 3-5 ॥

हे ऋषिगण ! अब आपलोग वेदके सारभूत पुराणको सुनें बहुत कालमें पुनः पुनः पूर्वकल्प व्यतीत होनेपर इस वर्तमान कल्पमें जब सृष्टिकर्म आरम्भ हुआ था, उन दिनों छः कुलोंके महर्षि परस्पर वाद-विवाद करते हुए कहने लगे-'अमुक वस्तु सबसे उत्कृष्ट है और अमुक नहीं है।' उनके इस विवादने अत्यन्त महान् रूप धारण कर लिया। तब वे सब के सब अपनी शंकाके | समाधानके लिये सृष्टिकर्ता अविनाशी ब्रह्माजीके पास गये और हाथ जोड़कर विनयभरी वाणीमें बोले - [हे प्रभो!] आप सम्पूर्ण जगत्का धारण-पोषण करनेवाले हैं तथा समस्त कारणोंके भी कारण हैं; हम यह जानना चाहते हैं कि सम्पूर्ण तत्त्वोंसे परे परात्परं पुराणपुरुष कौन हैं ? ।। 6 - 91/2 ll

ब्रह्माजी बोले- जहाँ से मनसहित वाणी उन्हें न पाकर लौट आती है तथा जिनसे ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और इन्द्र आदिसे युक्त यह सम्पूर्ण जगत् समस्त भूतों एवं इन्द्रियोंके साथ पहले प्रकट हुआ है, वे ही ये देव, महादेव सर्वज्ञ एवं सम्पूर्ण जगत्के स्वामी हैं ये ही सबसे उत्कृष्ट हैं। उत्तम भक्तिसे ही इनका साक्षात्कार होता है, दूसरे किसी उपायसे कहीं इनका दर्शन नहीं होता। रुद्र, हरि, हर तथा अन्य देवेश्वर सदा उत्तम भक्तिभावसे | उनका नित्य दर्शन करना चाहते हैं ।। 10-13 llअधिक कहनेकी क्या आवश्यकता, भगवान शिवमें भक्ति होनेसे मनुष्य संसार-बन्धनसे मुक्त हो जाता है। देवताओंके कृपाप्रसादसे ही उनमें भक्ति होती है और भक्तिसे देवताका कृपाप्रसाद प्राप्त होता है-ठीक उसी तरह, जैसे यहाँ अंकुरसे बीज और बीजसे अंकुर उत्पन्न होता है। इसलिये हे द्विजो । | आप लोग भगवान् शंकरका कृपाप्रसाद प्राप्त करने के लिये भूतलपर जाकर वहाँ सहस्र वर्षोंतक चलनेवाले एक विशाल यज्ञका आयोजन करें ।। 14-15 ॥

"इन यज्ञपति भगवान् शिवकी ही कृपासे वेदोक्त विद्याके सारभूत साध्य-साधनका ज्ञान होता है ॥ 16 ॥ मुनिगण बोले- हे भगवन् ! परम साध्य क्या है और उसका परम साधन क्या है? उसका साधक कैसा होता है? ये सभी बातें यथार्थ रूपसे कहें ॥ 17 ॥ ब्रह्माजी बोले- शिवपदकी प्राप्ति ही साध्य है, उनकी सेवा ही साधन है तथा उनके प्रसादसे जो | नित्य नैमित्तिक आदि फलोंकी ओरसे निःस्पृह होता है, वही साधक है॥ 18 ॥

वेदोक कर्मका अनुष्ठान करके उसके महान् फलको भगवान् शिवके चरणोंमें समर्पित कर देना ही परमेश्वरपदकी प्राप्ति है। वही सालोक्य आदिके क्रमसे प्राप्त होनेवाली मुक्ति है ॥ 19 ॥

उन-उन पुरुषोंकी भक्तिके अनुसार उन सबको उत्कृष्ट फलकी प्राप्ति होती है। उस भक्तिके साधन अनेक प्रकारके हैं, जिनका प्रतिपादन साक्षात् महेश्वरने ही किया है ॥ 20 ॥

उसे संक्षिप्त करके मैं सारभूत साधनको बता रहा हूँ। कानसे भगवान्‌ के नाम-गुण और लीलाओंका श्रवण वाणीद्वारा उनका कीर्तन तथा मनके द्वारा उनका मनन इन तीनोंको महान् साधन कहा गया है। [तात्पर्य यह कि] महेश्वरका र कीर्तन और मनन करना चाहिये यह श्रुतिका वाक्य हम सबके लिये प्रमाणभूत है। सम्पूर्ण मनोरथोंकी सिद्धिमें लगे हुए आपलोग इसी साधनसे परम साध्यको प्राप्त हो। लोग प्रत्यक्ष वस्तुको नेत्रसे देखकर उसमें प्रवृत्त होते हैं; परंतु जिस वस्तुका कहीं भी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होता, उसे श्रवणेन्द्रियद्वारा जान-सुनकर मनुष्य | उसकी प्राप्तिके लिये चेष्टा करता है॥ 21-24 ॥अत: पहला साधन श्रवण ही है। उसके द्वारा गुरुके मुखसे तत्त्वको सुनकर बुद्धिशाली विद्वान् पुरुष अन्य साधन-कीर्तन एवं मननकी सिद्धि करे ॥ 25 ॥ क्रमशः मननपर्यन्त इस साधनकी अच्छी तरह साधना कर लेनेपर उसके द्वारा सालोक्य आदिके क्रमसे धीरे-धीरे भगवान् शिवका संयोग प्राप्त होता है ॥ 26 ॥ पहले सारे अंगोंके रोग नष्ट हो जाते हैं। तत्पश्चात् सब प्रकारका लौकिक आनन्द भी विलीन हो जाता है । अभ्यासके ही समय यह साधन कष्टप्रद है, किंतु बादमें निरन्तर मंगल देनेवाला है । ll 27 ।।

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] प्रयागमें सूतजीसे मुनियों का शीघ्र पापनाश करनेवाले साधनके विषयमें प्रश्न
  2. [अध्याय 2] शिवपुराणका माहात्म्य एवं परिचय
  3. [अध्याय 3] साध्य-साधन आदिका विचार
  4. [अध्याय 4] श्रवण, कीर्तन और मनन इन तीन साधनोंकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन
  5. [अध्याय 5] भगवान् शिव लिंग एवं साकार विग्रहकी पूजाके रहस्य तथा महत्त्वका वर्णन
  6. [अध्याय 6] ब्रह्मा और विष्णुके भयंकर युद्धको देखकर देवताओंका कैलास शिखरपर गमन
  7. [अध्याय 7] भगवान् शंकरका ब्रह्मा और विष्णु के युद्धमें अग्निस्तम्भरूपमें प्राकट्य स्तम्भके आदि और अन्तकी जानकारीके लिये दोनोंका प्रस्थान
  8. [अध्याय 8] भगवान् शंकरद्वारा ब्रह्मा और केतकी पुष्पको शाप देना और पुनः अनुग्रह प्रदान करना
  9. [अध्याय 9] महेश्वरका ब्रह्मा और विष्णुको अपने निष्कल और सकल स्वरूपका परिचय देते हुए लिंगपूजनका महत्त्व बताना
  10. [अध्याय 10] सृष्टि, स्थिति आदि पाँच कृत्योंका प्रतिपादन, प्रणव एवं पंचाक्षर मन्त्रकी महत्ता, ब्रह्मा-विष्णुद्वारा भगवान् शिवकी स्तुति तथा उनका अन्तर्धान होना
  11. [अध्याय 11] शिवलिंगकी स्थापना, उसके लक्षण और पूजनकी विधिका वर्णन तथा शिवपदकी प्राप्ति करानेवाले सत्कर्मोका विवेचन
  12. [अध्याय 12] मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रोंका वर्णन, कालविशेषमें विभिन्न नदियोंके जलमें स्नानके उत्तम फलका निर्देश तथा तीर्थों में पापसे बचे रहनेकी चेतावनी
  13. [अध्याय 13] सदाचार, शौचाचार, स्नान, भस्मधारण, सन्ध्यावन्दन, प्रणव- जप, गायत्री जप, दान, न्यायतः धनोपार्जन तथा अग्निहोत्र आदिकी विधि एवं उनकी महिमाका वर्णन
  14. [अध्याय 14] अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ आदिका वर्णन, भगवान् शिवके द्वारा सातों वारोंका निर्माण तथा उनमें देवाराधनसे विभिन्न प्रकारके फलोंकी प्राप्तिका कथन
  15. [अध्याय 15] देश, काल, पात्र और दान आदिका विचार
  16. [अध्याय 16] मृत्तिका आदिसे निर्मित देवप्रतिमाओंके पूजनकी विधि, उनके लिये नैवेद्यका विचार, पूजनके विभिन्न उपचारोंका फल, विशेष मास, बार, तिथि एवं नक्षत्रोंके योगमें पूजनका विशेष फल तथा लिंगके वैज्ञानिक स्वरूपका विवेचन
  17. [अध्याय 17] लिंगस्वरूप प्रणवका माहात्म्य, उसके सूक्ष्म रूप (अकार) और स्थूल रूप (पंचाक्षर मन्त्र) का विवेचन, उसके जपकी विधि एवं महिमा, कार्यब्रह्मके लोकोंसे लेकर कारणरुद्रके लोकोंतकका विवेचन करके कालातीत, पंचावरणविशिष्ट शिवलोकके अनिर्वचनीय वैभवका निरूपण तथा शिवभक्तोंके सत्कारकी महत्ता
  18. [अध्याय 18] बन्धन और मोक्षका विवेचन, शिवपूजाका उपदेश, लिंग आदिमें शिवपूजनका विधान, भस्मके स्वरूपका निरूपण और महत्त्व, शिवके भस्मधारणका रहस्य, शिव एवं गुरु शब्दकी व्युत्पत्ति तथा विघ्नशान्तिके उपाय और शिवधर्मका निरूपण
  19. [अध्याय 19] पार्थिव शिवलिंगके पूजनका माहात्म्य
  20. [अध्याय 20] पार्थिव शिवलिंगके निर्माणकी रीति तथा वेद-मन्त्रोंद्वारा उसके पूजनकी विस्तृत एवं संक्षिप्त विधिका वर्णन
  21. [अध्याय 21] कामनाभेदसे पार्थिवलिंगके पूजनका विधान
  22. [अध्याय 22] शिव- नैवेद्य-भक्षणका निर्णय एवं बिल्वपत्रका माहात्म्य
  23. [अध्याय 23] भस्म, रुद्राक्ष और शिवनामके माहात्म्यका वर्णन
  24. [अध्याय 24] भस्म-माहात्म्यका निरूपण
  25. [अध्याय 25] रुद्राक्षधारणकी महिमा तथा उसके विविध भेदोंका वर्णन
  1. [अध्याय 1] सूतजीसे शौनकादि मुनियोंका शिवावतारविषयक प्रश्न
  2. [अध्याय 2] भगवान् शिवकी अष्टमूर्तियों का वर्णन
  3. [अध्याय 3] भगवान् शिवका अर्धनारीश्वर अवतार एवं सतीका प्रादुर्भाव
  4. [अध्याय 4] वाराहकल्पके प्रथमसे नवम द्वापरतक हुए व्यासों एवं शिवावतारोंका वर्णन
  5. [अध्याय 5] वाराहकल्पके दसवेंसे अट्ठाईसवें द्वापरतक होनेवाले व्यासों एवं शिवावतारोंका वर्णन
  6. [अध्याय 6] नन्दीश्वरावतारवर्णन
  7. [अध्याय 7] नन्दिकेश्वरका गणेश्वराधिपति पदपर अभिषेक एवं विवाह
  8. [अध्याय 8] भैरवावतारवर्णन
  9. [अध्याय 9] भैरवावतारलीलावर्णन
  10. [अध्याय 10] नृसिंहचरित्रवर्णन
  11. [अध्याय 11] भगवान् नृसिंह और वीरभद्रका संवाद
  12. [अध्याय 12] भगवान् शिवका शरभावतार-धारण
  13. [अध्याय 13] भगवान् शंकरके गृहपति अवतारकी कथा
  14. [अध्याय 14] विश्वानरके पुत्ररूपमें गृहपति नामसे शिवका प्रादुर्भाव
  15. [अध्याय 15] भगवान् शिवके गृहपति नामक अग्नीश्वरलिंगका माहात्म्य
  16. [अध्याय 16] यक्षेश्वरावतारका वर्णन
  17. [अध्याय 17] भगवान् शिवके महाकाल आदि प्रमुख दस अवतारोंका वर्णन
  18. [अध्याय 18] शिवजीके एकादश रुद्रावतारोंका वर्णन
  19. [अध्याय 19] शिवजीके दुर्वासावतारकी कथा
  20. [अध्याय 20] शिवजीका हनुमान्के रूपमें अवतार तथा उनके चरितका वर्णन
  21. [अध्याय 21] शिवजीके महेशावतार वर्णनक्रममें अम्बिकाके शापसे भैरवका बेतालरूपये पृथ्वीपर अवतरित होना
  22. [अध्याय 22] शिवके वृषेश्वरावतार वर्णनके प्रसंगों समुद्रमन्थनकी कथा
  23. [अध्याय 23] विष्णुद्वारा भगवान् शिवके वृषभेश्वरावतारका स्तवन
  24. [अध्याय 24] भगवान् शिवके पिप्पलादावतारका वर्णन
  25. [अध्याय 25] राजा अनरण्यकी पुत्री चाके साथ पिप्पलादका विवाह एवं उनके वैवाहिक जीवनका वर्णन
  26. [अध्याय 26] शिवके वैश्यनाथ नामक अवतारका वर्णन
  27. [अध्याय 27] भगवान् शिवके द्विजेश्वरावतारका वर्णन
  28. [अध्याय 28] नल एवं दमयन्तीके पूर्वजन्मकी कथा तथा शिवावतार यतीश्वरका हंसरूप धारण करना
  29. [अध्याय 29] भगवान् शिवके कृष्णदर्शन नामक अवतारकी कथा
  30. [अध्याय 30] भगवान् शिवके अवधूतेश्वरावतारका वर्णन
  31. [अध्याय 31] शिवजीके भिक्षुवर्यावतारका वर्णन
  32. [अध्याय 32] उपमन्युपर अनुग्रह करनेके लिये शिवके सुरेश्वरावतारका वर्णन
  33. [अध्याय 33] पार्वतीके मनोभावकी परीक्षा लेनेवाले ब्रह्मचारीस्वरूप शिवावतारका वर्णन
  34. [अध्याय 34] भगवान् शिवके सुनर्तक नटावतारका वर्णन
  35. [अध्याय 35] परमात्मा शिवके द्विजावतारका वर्णन
  36. [अध्याय 36] अश्वत्थामाके रूपमें शिवके अवतारका वर्ण
  37. [अध्याय 37] व्यासजीका पाण्डवोंको सान्त्वना देकर अर्जुनको इन्द्रकील पर्वतपर तपस्या करने भेजना
  38. [अध्याय 38] इन्द्रका अर्जुनको वरदान देकर शिवपूजनका उपदेश देना
  39. [अध्याय 39] भीलस्वरूप गणेश्वर एवं तपस्वी अर्जुनका संवाद
  40. [अध्याय 40] मूक नामक दैत्यके वधका वर्णन
  41. [अध्याय 41] भगवान् शिवके किरातेश्वरावतारका वर्णन
  42. [अध्याय 42] भगवान् शिवके द्वादश ज्योतिर्लिंगरूप अवतारोंका वर्णन