सनत्कुमार बोले [हे व्यासजी!] जहाँतक सूर्य एवं चन्द्रमाकी किरणें प्रकाश करती हैं, वहाँतक पृथ्वी हैं, उसीको भूलोक कहा जाता है ॥ 1 ॥
पृथ्वीसे एक लाख योजनकी दूरीपर सर्वदा एक हजार योजनके घेरे में सूर्यमण्डल स्थित है। अब संसारमें चन्द्रमाके प्रमाणकी स्थिति कही जा रही है। सूर्यमण्डलसे
एक लाख योजनकी दूरीपर चन्द्रमा स्थित है ॥ 2-3 ॥ चन्द्रमाके ऊपर दस हजार योजनकी दूरीपर चारों ओर नक्षत्रोंके सहित ग्रहमण्डल स्थित है। उसके आगे बुध, उसके आगे शुक्र और उसके ऊपर भीममण्डल है। फिर उसके ऊपर बृहस्पति और उसके ऊपर शनैश्वर स्थित है। उसके एक लाख योजन दूरीपर सप्तर्षिमण्डल है और सप्तर्षियोंसे सौ हजार योजन ऊपर ध्रुव स्थित है ॥ 4-6 ॥
यह ध्रुव [समस्त] ज्योतिश्चक्रका मेढीभूत अर्थात् केन्द्र होकर स्थित है। पृथ्वीके ऊपर तथा ध्रुवके नीचे भूर्लोक, भुवर्लोक तथा स्वर्लोक स्थित हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ 7 ॥
ध्रुवके ऊपर एक करोड़ योजनपर महर्लोक है, जहाँ ब्रह्माजीके कल्पान्तवासी सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोदु एवं पंचशिखये सात पुत्र निवास करते हैं ॥ 8-9 ॥
उसके ऊपर दो लाख योजनपर शुक्र स्थित है. शुक्रसे दो लाख योजन नीचे चन्द्रमापुत्र बुध बताया गया है। हे मुने। उससे दो लाख योजन ऊपर मंगल स्थित है और उससे दो लाख योजन ऊपर गुरु बृहस्पति स्थित हैं। बृहस्पतिसे दो लाख योजन ऊपर शनैश्वर स्थित है, ये सातों ग्रह अपनी अपनी राशियोंपर स्थित रहते हैं ॥ 10-12 ॥ उनसे ग्यारह लाख योजन ऊपर सप्तर्षि स्थित हैं और उनसे दस लाख योजनपर ध्रुवकी स्थिति बतायी गयी है। जनलोकसे आगे साढ़े चार गुनी दूरीपर तपलोक कहा गया हैं, जहाँपर वैराज देवता तापरहित होकर रहते हैं ।। 13-14 ॥,तपलोकसे छः गुनी दूरीपर सत्यलोक स्थित है, उसे ब्रह्मलोक जानना चाहिये। यहाँपर निर्मल आत्मावाले लोग रहते हैं और भूलोकसे ब्रह्मलोक जानेवाले, सत्यधर्ममें तत्पर, ज्ञानी तथा ब्रह्मचारी मनुष्य निवास करते हैं ।। 15-16 ।।
भुवर्लोक में सिद्ध तथा देवस्वरूप मुनि रहते हैं। स्वर्गलोक में देवता, आदित्य, मरुद्गण, वसुगण, दोनों अश्विनीकुमार, विश्वेदेव, रुद्र, साध्य, नाग, नक्षत्र आदि, नवग्रह तथा निष्पाप ऋषिगण निवास करते हैं ।। 17-18 ।।
हे व्यासजी ! मैंने इन सातों महालोकोंका, सातों पातालोंका तथा ब्रह्माण्डके विस्तारका वर्णन आपसे किया। जिस प्रकार कैथका फल ऊपर-नीचे चारों ओरसे आवृत रहता है, उसी प्रकार यह ब्रह्माण्ड भी अण्डकटाहसे सभी ओरसे घिरा हुआ है। यह दस गुने जलसे, तेजसे, वायुसे, आकाशसे एवं अन्धकारसे चारों ओरसे व्याप्त है। ये महाभूत आदिके सहित महत्तत्त्वसे भी दस गुना घिरा हुआ है और इस प्रधान महत्तत्त्वको घेरकर पुरुष स्थित है । 19-22 ॥ उन अनन्त परमात्माकी कोई संख्या नहीं है और उनका परिमाण भी नहीं है, अतः वे अनन्त कहे गये हैं ॥ 23 ॥
वे सबके कारण हैं और परा उनकी प्रकृति है। इस प्रकारके हजारों-लाखों ब्रह्माण्डसमुदाय उन अव्यक्त परमात्मासे उत्पन्न हुए हैं। जिस प्रकार काष्ठमें आग, तिलमें तेल तथा दूधमें घी व्याप्त रहता है, उसी प्रकार वे आत्मवेत्ता परमात्मा सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमें व्याप्त होकर स्थित हैं। सृष्टि आदि- बीजसे होती है, उसके बाद | उनसे अण्डज होते हैं। फिर उनसे पुत्रादि होते हैं, पुनः उनसे अन्य उत्पन्न होते हैं। इसके बाद उनसे महत्से लेकर विशेषपर्यन्त तत्त्व उत्पन्न होते हैं, उसके बाद देवता आदिकी उत्पत्ति होती है । ll 24-27 ॥
जिस प्रकार बीजसे वृक्ष तथा वृक्षसे बीज होता है और इससे वृक्षकी हानि नहीं होती है, जैसे सूर्यके सन्नियोगसे सूर्यकान्तमणिद्वारा अग्नि प्रकट होती है, उसी प्रकार [परमात्माके संयोगसे] सृष्टि होती है, उसमें शिवकी कोई कामना नहीं है।शिव तथा शक्तिका समायोग होनेपर देवता आदि उत्पन्न होते हैं। वे अपने एकमात्र कर्मसे ही उत्पन्न होते हैं, वे शिव ही ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्ररूपमें कहे जाते हैं। उन्हींसे सारा जगत् उत्पन्न होता है और उन्हीं में लयको भी प्राप्त होता है। वे शिव ही सभी क्रियाओंके कर्ता कहे जाते हैं॥ 28-31 ॥
व्यासजी बोले- हे सर्वज्ञ! सनत्कुमार! मेरे इस महान् संशयको दूर कीजिये। हे मुने! ब्रह्माण्डके ऊपर अन्य कोई लोक हैं अथवा नहीं ॥ 32 ॥
सनत्कुमार बोले- हे मुनीश्वर । ब्रह्माण्डके ! ऊपर भी लोक हैं, उन्हें विस्तारपूर्वक आप सुनिये, यहाँ आया हुआ मैं आपसे उनका वर्णन कर रहा हूँ ॥ 33 ॥
ब्रह्मलोकसे ऊपर श्रेष्ठ वैकुण्ठ नामक परम दीप्तियुक्त लोक विराजमान है, जहाँ विष्णु निवास करते हैं। उसके ऊपर अत्यन्त अद्भुत कौमारलोक है, जहाँ महातेजस्वी शम्भुपुत्र कार्तिकेय निवास करते हैं। उसके ऊपर परम दिव्य उमालोक विराजमान है, जहाँ तीनों देवताओंकी जननी एकमात्र महाशक्ति शिवा विराजती हैं। वे देवी [शिवा] स्वयं परात्पर प्रकृति, सत्त्व, रज, तमोमयी, निर्गुण, निर्विकार एवं शिवात्मिका हैं ॥ 34-37 ॥
उसके ऊपर सनातन, अविनाशी परम दिव्य तथा सर्वदा महान् शोभासे युक्त शिवलोकको जानना चाहिये, जहाँ तीनों देवताओंको उत्पन्न करनेवाले, सबके स्वामी तथा त्रिगुणातीत परब्रह्म महेश्वर निवास करते हैं ।। 38-39 ॥
उसके ऊपर कोई भी लोक नहीं है। उसके समीपमें गोलोक है, जहाँपर सुशीला नामवाली शिवप्रिया गोमाताएँ निवास करती हैं ॥ 40 ॥
उन गौओंका पालन करनेवाले श्रीकृष्ण शिवजीको आज्ञासे वहाँ निवास करते हैं। परम स्वतन्त्र शिवजीने ही अपनी शक्तिसे वहाँ उन्हें प्रतिष्ठित किया है। ll 49 ॥
हे व्यासजी! वह शिवलोक अद्भुत, निराधार, मनोहर अनिर्वचनीय तथा अनेक वस्तुओंसे सुशोभित है। सभी देवताओंमें श्रेष्ठ, ब्रह्मा विष्णु हरसे सेवित, परमात्मा | तथा निर्विकार शिवजी उस लोकके अधिष्ठाता हैं।हे तात! इस प्रकार मैंने सारे ब्रह्माण्डकी स्थिति तथा उसके ऊपर स्थित लोकोंका वर्णन क्रमसे कर दिया, अब आप और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ 42-44॥