View All Puran & Books

शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 12 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 12

Previous Page 107 of 466 Next

हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना

ब्रह्माजी बोले - [ हे नारद!] तदनन्तर शैलराज हर्षित होकर उत्तम फल-फूलका समूह लेकर | अपनी पुत्रीके साथ भगवान् हरके समीप गये। वहाँ | जाकर उन्होंने ध्यानपरायण त्रिलोकीनाथको प्रणाम करके अपनी अद्भुत कन्या कालीको हृदयसे उन्हें अर्पित कर दिया ॥ 1-2 ॥

सब फल-फूल आदि उनके सामने रखकर और पुत्रीको आगे करके वे शैलराज शम्भुसे यह कहने लगे - ॥3॥

हिमगिरि बोले हे भगवन्! मेरी पुत्री आप चन्द्रशेखरकी सेवा करनेके लिये बड़ी उत्सुक है, आपकी आराधनाकी इच्छासे मैं इसको लाया हूँ ॥4॥

यह अपनी दो सखियोंके साथ सदा आप शंकरकी ही सेवा करेगी। हे नाथ! यदि आपका मुझ अनुग्रह है, तो इसे [सेवाके लिये] आज्ञा दीजिये ॥5॥

ब्रह्माजी बोले- तब शंकरने यौवनकी प्रथमावस्थायें वर्तमान पूर्ण चन्द्रमाके समान मुखवाली विकसित नीलकमलके पत्रके समान आभावाली, समस्त लीलाओंकी स्थानरूप, सुन्दर वेषसे सुसज्जित, शंख के समान ग्रीवावाली, विशाल नेत्रोंवाली, सुन्दर कर्णयुगलसे शोभित, मृणालके समान चिकनी एवंलम्बी दो भुजाओंसे मनोहर प्रतीत होनेवाली, कमलकलीके समान घने, मोटे तथा दृढ़ स्तनोंको धारण करनेवाली, पतले कटिप्रदेशवाली, त्रिवलीयुक्त मध्यभागवाली, स्थलपदाके समान चरणयुगलसे सुशोभित, अपने दर्शनसे ध्यानरूपी पिंजड़े में बन्द मुनियोंके मनको भी विचलित करनेमें समर्थ और स्त्रियोंमें सर्वश्रेष्ठ उस [कन्या] को देखा 6-10 ॥

ध्यानियोंके भी मनका हरण करनेवाली, विग्रहसे तन्त्रमन्त्रोंको बढ़ानेवाली तथा कामरूपिणी वैसी उस कन्याको देखकर उन महायोगीने शीघ्र दोनों नेत्र बन्द कर लिये और वे अपने उत्तम, परमतत्त्वमय, तीनों गुणोंसे परे तथा अविनाशी स्वरूपका ध्यान करने लगे ।। 11-12 ।।

उस समय सर्वेश्वर सर्वव्यापी, तप करते हुए, बन्द नेत्रोंवाले, चन्द्रकलारूप आभूषणवाले, जटा धारण करनेवाले, वेदान्तके द्वारा जाननेयोग्य तथा उत्तम आसनमें स्थित शिवको देखकर महात्मा हिमालयने उन्हें प्रणाम किया, वे पुनः संशयमें पड़ गये। इसके बाद वाक्यवेत्ताओंमें श्रेष्ठ गिरीश्वर जगत्के एकमात्र बन्धु शंकरसे यह वचन कहने लगे - ॥ 13-14 ॥

हिमालय बोले- हे देवदेव ! हे महादेव हे करुणाकर! हे शंकर! हे विभो ! आँखें खोलकर मुझ शरणागतको देखिये ।। 15 ।।

हे शिव हे सर्व हे महेशान! हे जगत्को आनन्द प्रदान करनेवाले प्रभो! हे महादेव मैं सम्पूर्ण आपत्तियोंको दूर करनेवाले आपको प्रणाम करता हूँ। हे देवेश वेद और शास्त्र भी आपको पूर्णरूपसे नहीं जानते हैं क्योंकि आपकी महिमा वाणी तथा मनके मार्गसे भी सर्वधा परे है ।। 16-17 ।।

सभी श्रुतियाँ भी आपकी महिमाका पार न पा सकनेके कारण चकित होकर नेति नेति कहते हुए सदा आपका वर्णन करती हैं, फिर दूसरोंकी क्या बात कही जाय ! ॥ 18 ॥

बहुत से भक्त ही भक्तिके द्वारा आपकी कृपा प्राप्त करके उसे जान सकते हैं; क्योंकि [आपकी] शरणमें आये हुए भक्तोंको कहीं भी भ्रम आदि नहीं होता ॥ 19 ॥अब आप दया करके इस समय मुझ अपने | दासका निवेदन सुनें। हे देव! हे तात! मैं आपकी आज्ञासे दीन होकर उसका वर्णन कर रहा हूँ ॥ 20 ॥ हे महादेव! हे शंकर! मैं आपकी कृपासे भाग्यशाली

हो गया हू। हे नाथ! मुझे अपना दास समझकर मुझपर कृपा करें, आपको नमस्कार है। हे प्रभो! मैं आपके | दर्शनके लिये प्रतिदिन इस कन्याके साथ आया करूंगा। हे स्वामिन्! मुझे आज्ञा प्रदान कीजिये ॥ 21-22 ॥

ब्रह्माजी बोले- उनका यह वचन सुनकर अपने नेत्र खोलकर ध्यान त्यागकर और कुछ सोच-विचारकर देवदेव महादेव यह वचन कहने लगे- ॥ 23 ॥

महेश्वर बोले - हे भक्त ! [अपनी] कन्याको | घरपर ही छोड़कर नित्य मेरे दर्शनके लिये आप आ सकते हैं। अन्यथा मेरा दर्शन नहीं होगा ॥ 24 ॥

ब्रह्माजी बोले- महेशके इस प्रकारके वचनको | सुनकर पार्वतीके पिता हिमालय सिर झुकाकर शिवजी से | यह कहने लगे- ॥ 25 ॥

हिमाचल बोले [हे प्रभो!] इस कन्याने साथ [आपके दर्शनके लिये] किस कारणसे मुझे नहीं आना चाहिये, इसे बताइये। क्या यह आपकी सेवा करनेमें अयोग्य है? मैं इसका कारण नहीं समझ पा रहा हूँ ॥ 26

ब्रह्माजी बोले- तत्पश्चात् वृषभध्वज शंकर विशेषतः कुयोगियोंका लोकाचार दिखाते हुए हँसकर हिमालयसे कहने लगे- ॥ 27 ॥

शम्भु बोले [हे शैलराज] मनोहर नितम्बवाली, तन्वी, चन्द्रमुखी तथा सुन्दरी इस कन्याको मेरे सन्निकट मत लाइयेगा, इसके लिये मैं बार-बार मना करता हूँ 28 ॥

वेदोंके पारगामी विद्वानोंने स्त्रीको मायारूपा कहा है, उसमें भी विशेष रूपसे युवती स्त्री तो उपस्वियोंके लिये विघ्नकारिणी होती है॥ 29 ॥

हे भूधर ! मैं तपस्वी, योगी तथा सदा मायासे निर्लिप्त रहनेवाला है। अतः मुझे युवती से क्या प्रयोजन है? हे तपस्वियोंके श्रेष्ठ आश्रय ! आपको पुनः ऐसा नहीं कहना चाहिये; क्योंकि आप वेदधर्ममें | प्रवीण ज्ञानियोंमें श्रेष्ठ तथा विद्वान् है ll 30-31 llहे पर्वत ! उनके संगसे शीघ्र ही विषयवासना उत्पन्न हो जाती है, वैराग्य नष्ट हो जाता है और उससे श्रेष्ठ तपस्या नष्ट हो जाती है। अतः हे शैल! तपस्वियोंको स्त्रियोंका संग नहीं करना चाहिये; वह [स्त्री] महाविषयका मूल तथा ज्ञान-वैराग्यका नाश करनेवाली होती है ।। 32-33 ।।

ब्रह्माजी बोले- हे नारद! इस प्रकारकी बहुत सी बातें उन गिरिराजसे कहकर महान् योगियोंमें श्रेष्ठ महायोगी प्रभु महेश्वर चुप हो गये ॥ 34 ॥

हे देवर्षे उन शम्भुका यह स्पृहारहित, निरामय तथा निष्ठुर वचन सुनकर कालीके पिता [हिमालय] विस्मयमें पड़ गये और वे कुछ-कुछ व्याकुल- से होकर चुप हो गये। उस समय तपस्वीके द्वारा कही गयी बातको सुनकर और गिरिराजको आश्चर्यमें पड़ा हुआ विचार करके शिवजीको प्रणामकर भवानी उनसे विशद वचन कहने लगीं ॥। 35-36 ।।

Previous Page 107 of 466 Next

शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा