ब्रह्माजी बोले- हे मुनीश्वर शिवजीको प्राप्तिके लिये इस प्रकार तपस्या करती हुई पार्वतीका बहुत समय व्यतीत हो गया, तो भी शंकर प्रकट नहीं हुए॥ 1 ॥
तब अपने संकल्पमें दृढ़ निश्चयवाली परमेश्वरी पार्वतीके समीप अपनी भार्या, पुत्र तथा मन्त्रियोंसहित आकर गिरिराज हिमालय उनसे कहने लगे- ॥ 2 ॥
हिमालय बोले- हे महाभागे! हे पार्वति! तुम इस तपसे दुखी मत होओ, हे बाले। रुद्र विरक्त हैं, इसलिये तुम्हें दर्शन नहीं दे रहे हैं, इसमें सन्देह नहीं है ॥ 3 ॥
दुबली-पतली तथा सुकुमार अंगोंवाली तुम इस तपस्यासे मूच्छित हो जाओगी, इसमें सन्देह नहीं है, यह मैं सत्य सत्य कहता हूँ ॥ 4 ll
इसलिये हे वरवर्णिनि ! तुम उठो और अपने घर चलो। उन रुद्रसे तुम्हारा कौन-सा प्रयोजन सिद्ध होगा, जिन्होंने पहले कामदेवको ही भस्म कर दिया है ? ॥ 5 ll
जब र्निविकार होनेके कारण वे शिव तुम्हें ग्रहण करने नहीं आयेंगे, तो हे देवेशि तुम उनसे प्रार्थना भी क्यों करोगी? जिस प्रकार आकाशमें रहनेवाले चन्द्रमाको ग्रहण नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार हे अनधे! तुम शिवजीको भी दुर्गम समझो ।। 6-7 ।।ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार मेना, सह्याद्रि, मेरु, मन्दार एवं मैनाकने भी उन सतीको बहुत | समझाया, अन्य क्रौंचादि पर्वतोंने भी अनेक कारणोंको प्रदर्शित करते हुए आतुरतासे रहित उन पार्वतीको समझाया ॥। 8-9 ।।
इस प्रकार सब लोगोंके समझा लेनेके बाद तपस्या में संलग्न के पवित्र मुसकानवाली तन्वी पार्वती हँसती हुई [[अपने पिता] हिमालयसे कहने लगी- ॥ 10॥ पार्वती बोलीं- हे माता हे पिता। मैंने जो बात पहले कही थी, क्या आपलोग उसे भूल गये ? हे बन्धुगण ! इस समय आपलोग भी मेरी प्रतिज्ञा सुनें ॥ 11 ॥ जिन्होंने क्रोधसे कामदेवको जला दिया, वे महादेव निश्चय ही विरक्त हैं, किंतु उन भक्तवत्सल शंकरको मैं अपनी तपस्यासे सन्तुष्ट करूंगी ॥ 12 ॥
आप सभी लोग परम प्रसन्न होकर अपने अपने घरोंको जायें। वे अवश्य ही प्रसन्न होंगे, इसमें सन्देह नहीं। जिन्होंने कामदेवको भस्म कर दिया तथा जिन्होंने पर्वतके बनको भी जला दिया. उन सदाशिवको मैं केवल अपनी तपस्यासे यहाँ अवश्य बुलाऊँगी। हे महाभागो ! वे सदाशिव महान् तपोबलसे अवश्य प्रसन्न हो जाते हैं, यह निश्चित जानिये, मैं आपलोगोंसे सत्य कह रही हूँ ॥ 13-15 ll
ब्रह्माजी बोले- पर्वतराजकी पुत्री सुभाषिणी पार्वती अपनी माता मेनका, भाई मैनाक, मन्दर तथा पिता हिमालयसे इतना कहकर चुप हो गयीं। इस प्रकार जब शिवाने उनसे कहा, तब वे विचक्षण | हिमनग आदि पर्वत बार-बार गिरिजाकी प्रशंसा करते हुए जहाँसे आये थे, वहाँ अत्यन्त विस्मित हो चले गये ॥ 16-17 ॥
उन सबके चले जानेपर सखियोंसहित वे पार्वती परमार्थके निश्चयसे युक्त हो और अधिक दृढ़तासे महान् तपस्या करने लगीं। हे मुनिश्रेष्ठ उस महान् तपस्यासे देवता, असुर एवं मनुष्यसहित चराचर त्रैलोक्य सन्तप्त हो उठा ।। 18-19 ।।
उस समय समस्त सुर, असुर, यक्ष, किन्नर, चारण,
सिद्ध, साध्य, मुनि, विद्याधर, महान् उरग, प्रजापति एवं
गुद्यक तथा अन्य प्राणी बड़े कष्टको प्राप्त हुए, किंतु वे इसका कारण न समझ सके ।। 20-21 ।।तपते हुए समस्त अंगवाले तथा व्याकुल वे सभी इन्द्र आदि परस्पर मिलकर गुरु बृहस्पतिसे परामर्श करके मुझ ब्रह्माकी शरणमें सुमेरु पर्वतपर गये। नष्ट कान्तिवाले तथा व्याकुल वे सब वहाँ पहुँचकर शीघ्र प्रणाम करके तथा स्तुति करके एक साथ मुझसे कहने लगे - ॥ 22-23 ॥
देवता बोले- हे विभो ! इस चराचर सम्पूर्ण जगत्का आपने ही निर्माण किया है, किंतु इस समय यह सारी सृष्टि क्यों जल रही है, इसका कारण ज्ञात नहीं हो पा रहा है ॥ 24 ॥ हे प्रभो! हे ब्रह्मन् ! इसका कारण आप बताइये क्योंकि आप ही इसे जाननेमें समर्थ हैं। हम देवगणोंका सारा शरीर जल रहा है। दग्ध होते हुए शरीरवाले हम देवताओंका आपके अतिरिक्त कोई अन्य रक्षक नहीं है॥ 25 ॥
ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार देवताओंकी बातको सुनकर मैं शिवजीका स्मरणकर हृदयमें सोचने लगा कि यह सब पार्वतीकी तपस्याका फल है ॥ 26 ॥
सारा विश्व जल जायगा, यह जानकर मैं भगवान् विष्णुसे निवेदन करनेके लिये उन सभीके
साथ आदरपूर्वक शीघ्र क्षीरसागर गया ॥ 27 ॥
देवगणोंके साथ वहाँ जाकर मैंने देखा कि नारायण सुखपूर्वक आसनपर विराजमान हैं, उस समय मैं उन्हें प्रणामकर तथा स्तुति करके हाथ जोड़कर कहने लगा- ॥ 28 ॥
हे महाविष्णो तपस्यामें संलग्न पार्वतीकी परम कठोर तपस्यासे हमलोग सन्तप्त हो रहे हैं, अतः हम शरणागतोंकी आप रक्षा कीजिये ॥ 29 ॥
हम देवताओंका यह वचन सुनकर शेषासनपर बैठे हुए रमेश्वर हमलोगोंसे कहने लगे- ॥ 30 ॥ विष्णुजी बोले- मैंने सारा कारण जान लिया है। आप सब लोग पार्वतीकी तपस्यासे सन्तप्त हो रहे हैं, अतः मैं आपलोगोंके साथ अभी परमेश्वरके पास चल रहा हूँ। हे देवगणो! हमलोग सदाशिव के समीप चलकर उनसे प्रार्थना करें कि वे पार्वतीका पाणिग्रहण करें क्योंकि शिवजीके द्वारा पार्वतीका पाणिग्रहण करनेपर ही लोकका कल्याण होगा ।। 31-32॥देवाधिदेव पिनाकधारी सदाशिव पार्वतीको वर | प्रदान करनेके लिये जिस प्रकार उद्यत हो, उसी प्रकारका उपाय हमलोगोंको इस समय करना चाहिये ॥ 33 ॥ इसलिये अब हमलोग उस स्थानपर चलेंगे जहाँ परम मंगल महाप्रभु रुद्र इस समय उग्र तपस्या में
लीन हैं ॥ 34 ॥
ब्रह्माजी बोले- विष्णुजीकी वह बात | सुनकर प्रलय करनेवाले और क्रोधपूर्वक हठसे कामदेवको नष्ट करनेवाले शंकरसे भयभीत वे देवता विष्णुसे कहने लगे- ॥ 35 ॥
देवतागण बोले [हे विष्णो!] महाभयंकर - क्रोधी, कालाग्निके समान प्रभावाले तथा विरूपाक्ष महाप्रभुके पास हमलोग नहीं जायँगे; क्योंकि उन्होंने जिस प्रकार दुराधर्ष कामदेवको भस्म कर दिया, उसी प्रकार क्रोधमें भरकर वे हमलोगोंको भी भस्म कर देंगे, इसमें सन्देह नहीं है ।। 36-37 ॥
ब्रह्माजी बोले- हे मुने! इन्द्रादि देवताओंकी यह बात सुनकर वे विष्णु उन सभी देवताओंको धीरज बँधाते हुए कहने लगे- ll 38 ll
विष्णुजी बोले- हे देवगणो! आप सभी लोग आदरपूर्वक मेरी बात सुनिये, वे सदाशिव आपलोगोंको भस्म नहीं करेंगे; क्योंकि वे देवताओंके भयको नष्ट करनेवाले हैं। इसलिये आप सभी बुद्धिमान् लोग शम्भुको कल्याणकारी मानकर मेरे साथ उन परम प्रभुके पास चलिये ll 39-40 ।।
वे शिव ही पुराणपुरुष, सबके अधीश्वर, सबसे श्रेष्ठ, तपस्या करनेवाले, परमात्मस्वरूप और परात्पर हैं. हमलोगोंको उन्होंका आश्रय लेना चाहियेll 41 ॥
ब्रह्माजी बोले- जब सर्वसमर्थ विष्णुने इस प्रकार देवगणोंसे कहा, तब वे सब उनके साथ पिनाकी सदाशिव के दर्शन करनेकी इच्छासे चले। विष्णु आदि देवगण मार्गमें पड़नेके कारण सर्वप्रथम कुतूहलवश उस आश्रम में गये, जहाँ पार्वती तपस्या कर रही थीं ॥ 42-43 ॥
तदनन्तर सभी देवताओंने पार्वतीका तप | देखकर उनके तेजसे व्याप्त हो तेजोरूपवाली तथा | तपमें अधिष्ठित उन जगदम्बाको प्रणाम किया औरसाक्षात् सिद्धिका शरीर धारण करनेवाली उन पार्वतीके तपकी प्रशंसा करते हुए वे देवगण वहाँ गये, जहाँ वृषध्वज थे ॥ 44-45 ॥
हे मुने! वहाँ पहुँचकर उन देवताओंने [सर्वप्रथम ] आपको शिवके समीप भेजा और वे स्वयं कामको | नष्ट करनेवाले भगवान् शंकरको देखते हुए दूर ही स्थित रहे। उस समय हे नारद! विशेषरूपसे शिवभक्त आपने निर्भय होकर शिवजीके स्थानपर जाकर शिवजीको प्रसन्न मुद्रामें देखा। हे मुने! तदनन्तर लौटकर यत्नपूर्वक उन विष्णु आदि देवताओंको बुलाकर आप शिवजीके स्थानपर उन्हें ले गये ॥ 46-48 ॥
तदनन्तर विष्णु आदि सभी देवताओंने शिवजीके स्थानमें जाकर प्रसन्न मनसे उन भक्तवत्सल भगवान् सदाशिवको सुखपूर्वक बैठे हुए देखा। वे योगासन लगाये हुए अपने गणोंसे घिरे थे। वे परमेश्वररूपी शंकर साक्षात् तपस्याके विग्रहवान् रूप थे । ll 49-50 ॥
तब विष्णु एवं मेरे साथ रहनेवाले अन्य देव, मुनि तथा सिद्धगण उन परमेश्वर शिवजीको प्रणामकर वेद एवं उपनिषदोंके सूक्तोंद्वारा उनकी स्तुति करने लगे ॥ 51 ॥