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शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 23 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 23

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हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना

ब्रह्माजी बोले- हे मुनीश्वर शिवजीको प्राप्तिके लिये इस प्रकार तपस्या करती हुई पार्वतीका बहुत समय व्यतीत हो गया, तो भी शंकर प्रकट नहीं हुए॥ 1 ॥

तब अपने संकल्पमें दृढ़ निश्चयवाली परमेश्वरी पार्वतीके समीप अपनी भार्या, पुत्र तथा मन्त्रियोंसहित आकर गिरिराज हिमालय उनसे कहने लगे- ॥ 2 ॥

हिमालय बोले- हे महाभागे! हे पार्वति! तुम इस तपसे दुखी मत होओ, हे बाले। रुद्र विरक्त हैं, इसलिये तुम्हें दर्शन नहीं दे रहे हैं, इसमें सन्देह नहीं है ॥ 3 ॥

दुबली-पतली तथा सुकुमार अंगोंवाली तुम इस तपस्यासे मूच्छित हो जाओगी, इसमें सन्देह नहीं है, यह मैं सत्य सत्य कहता हूँ ॥ 4 ll

इसलिये हे वरवर्णिनि ! तुम उठो और अपने घर चलो। उन रुद्रसे तुम्हारा कौन-सा प्रयोजन सिद्ध होगा, जिन्होंने पहले कामदेवको ही भस्म कर दिया है ? ॥ 5 ll

जब र्निविकार होनेके कारण वे शिव तुम्हें ग्रहण करने नहीं आयेंगे, तो हे देवेशि तुम उनसे प्रार्थना भी क्यों करोगी? जिस प्रकार आकाशमें रहनेवाले चन्द्रमाको ग्रहण नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार हे अनधे! तुम शिवजीको भी दुर्गम समझो ।। 6-7 ।।ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार मेना, सह्याद्रि, मेरु, मन्दार एवं मैनाकने भी उन सतीको बहुत | समझाया, अन्य क्रौंचादि पर्वतोंने भी अनेक कारणोंको प्रदर्शित करते हुए आतुरतासे रहित उन पार्वतीको समझाया ॥। 8-9 ।।

इस प्रकार सब लोगोंके समझा लेनेके बाद तपस्या में संलग्न के पवित्र मुसकानवाली तन्वी पार्वती हँसती हुई [[अपने पिता] हिमालयसे कहने लगी- ॥ 10॥ पार्वती बोलीं- हे माता हे पिता। मैंने जो बात पहले कही थी, क्या आपलोग उसे भूल गये ? हे बन्धुगण ! इस समय आपलोग भी मेरी प्रतिज्ञा सुनें ॥ 11 ॥ जिन्होंने क्रोधसे कामदेवको जला दिया, वे महादेव निश्चय ही विरक्त हैं, किंतु उन भक्तवत्सल शंकरको मैं अपनी तपस्यासे सन्तुष्ट करूंगी ॥ 12 ॥

आप सभी लोग परम प्रसन्न होकर अपने अपने घरोंको जायें। वे अवश्य ही प्रसन्न होंगे, इसमें सन्देह नहीं। जिन्होंने कामदेवको भस्म कर दिया तथा जिन्होंने पर्वतके बनको भी जला दिया. उन सदाशिवको मैं केवल अपनी तपस्यासे यहाँ अवश्य बुलाऊँगी। हे महाभागो ! वे सदाशिव महान् तपोबलसे अवश्य प्रसन्न हो जाते हैं, यह निश्चित जानिये, मैं आपलोगोंसे सत्य कह रही हूँ ॥ 13-15 ll

ब्रह्माजी बोले- पर्वतराजकी पुत्री सुभाषिणी पार्वती अपनी माता मेनका, भाई मैनाक, मन्दर तथा पिता हिमालयसे इतना कहकर चुप हो गयीं। इस प्रकार जब शिवाने उनसे कहा, तब वे विचक्षण | हिमनग आदि पर्वत बार-बार गिरिजाकी प्रशंसा करते हुए जहाँसे आये थे, वहाँ अत्यन्त विस्मित हो चले गये ॥ 16-17 ॥

उन सबके चले जानेपर सखियोंसहित वे पार्वती परमार्थके निश्चयसे युक्त हो और अधिक दृढ़तासे महान् तपस्या करने लगीं। हे मुनिश्रेष्ठ उस महान् तपस्यासे देवता, असुर एवं मनुष्यसहित चराचर त्रैलोक्य सन्तप्त हो उठा ।। 18-19 ।।

उस समय समस्त सुर, असुर, यक्ष, किन्नर, चारण,
सिद्ध, साध्य, मुनि, विद्याधर, महान् उरग, प्रजापति एवं
गुद्यक तथा अन्य प्राणी बड़े कष्टको प्राप्त हुए, किंतु वे इसका कारण न समझ सके ।। 20-21 ।।तपते हुए समस्त अंगवाले तथा व्याकुल वे सभी इन्द्र आदि परस्पर मिलकर गुरु बृहस्पतिसे परामर्श करके मुझ ब्रह्माकी शरणमें सुमेरु पर्वतपर गये। नष्ट कान्तिवाले तथा व्याकुल वे सब वहाँ पहुँचकर शीघ्र प्रणाम करके तथा स्तुति करके एक साथ मुझसे कहने लगे - ॥ 22-23 ॥

देवता बोले- हे विभो ! इस चराचर सम्पूर्ण जगत्का आपने ही निर्माण किया है, किंतु इस समय यह सारी सृष्टि क्यों जल रही है, इसका कारण ज्ञात नहीं हो पा रहा है ॥ 24 ॥ हे प्रभो! हे ब्रह्मन् ! इसका कारण आप बताइये क्योंकि आप ही इसे जाननेमें समर्थ हैं। हम देवगणोंका सारा शरीर जल रहा है। दग्ध होते हुए शरीरवाले हम देवताओंका आपके अतिरिक्त कोई अन्य रक्षक नहीं है॥ 25 ॥

ब्रह्माजी बोले- इस प्रकार देवताओंकी बातको सुनकर मैं शिवजीका स्मरणकर हृदयमें सोचने लगा कि यह सब पार्वतीकी तपस्याका फल है ॥ 26 ॥

सारा विश्व जल जायगा, यह जानकर मैं भगवान् विष्णुसे निवेदन करनेके लिये उन सभीके
साथ आदरपूर्वक शीघ्र क्षीरसागर गया ॥ 27 ॥

देवगणोंके साथ वहाँ जाकर मैंने देखा कि नारायण सुखपूर्वक आसनपर विराजमान हैं, उस समय मैं उन्हें प्रणामकर तथा स्तुति करके हाथ जोड़कर कहने लगा- ॥ 28 ॥

हे महाविष्णो तपस्यामें संलग्न पार्वतीकी परम कठोर तपस्यासे हमलोग सन्तप्त हो रहे हैं, अतः हम शरणागतोंकी आप रक्षा कीजिये ॥ 29 ॥

हम देवताओंका यह वचन सुनकर शेषासनपर बैठे हुए रमेश्वर हमलोगोंसे कहने लगे- ॥ 30 ॥ विष्णुजी बोले- मैंने सारा कारण जान लिया है। आप सब लोग पार्वतीकी तपस्यासे सन्तप्त हो रहे हैं, अतः मैं आपलोगोंके साथ अभी परमेश्वरके पास चल रहा हूँ। हे देवगणो! हमलोग सदाशिव के समीप चलकर उनसे प्रार्थना करें कि वे पार्वतीका पाणिग्रहण करें क्योंकि शिवजीके द्वारा पार्वतीका पाणिग्रहण करनेपर ही लोकका कल्याण होगा ।। 31-32॥देवाधिदेव पिनाकधारी सदाशिव पार्वतीको वर | प्रदान करनेके लिये जिस प्रकार उद्यत हो, उसी प्रकारका उपाय हमलोगोंको इस समय करना चाहिये ॥ 33 ॥ इसलिये अब हमलोग उस स्थानपर चलेंगे जहाँ परम मंगल महाप्रभु रुद्र इस समय उग्र तपस्या में
लीन हैं ॥ 34 ॥

ब्रह्माजी बोले- विष्णुजीकी वह बात | सुनकर प्रलय करनेवाले और क्रोधपूर्वक हठसे कामदेवको नष्ट करनेवाले शंकरसे भयभीत वे देवता विष्णुसे कहने लगे- ॥ 35 ॥

देवतागण बोले [हे विष्णो!] महाभयंकर - क्रोधी, कालाग्निके समान प्रभावाले तथा विरूपाक्ष महाप्रभुके पास हमलोग नहीं जायँगे; क्योंकि उन्होंने जिस प्रकार दुराधर्ष कामदेवको भस्म कर दिया, उसी प्रकार क्रोधमें भरकर वे हमलोगोंको भी भस्म कर देंगे, इसमें सन्देह नहीं है ।। 36-37 ॥

ब्रह्माजी बोले- हे मुने! इन्द्रादि देवताओंकी यह बात सुनकर वे विष्णु उन सभी देवताओंको धीरज बँधाते हुए कहने लगे- ll 38 ll

विष्णुजी बोले- हे देवगणो! आप सभी लोग आदरपूर्वक मेरी बात सुनिये, वे सदाशिव आपलोगोंको भस्म नहीं करेंगे; क्योंकि वे देवताओंके भयको नष्ट करनेवाले हैं। इसलिये आप सभी बुद्धिमान् लोग शम्भुको कल्याणकारी मानकर मेरे साथ उन परम प्रभुके पास चलिये ll 39-40 ।।

वे शिव ही पुराणपुरुष, सबके अधीश्वर, सबसे श्रेष्ठ, तपस्या करनेवाले, परमात्मस्वरूप और परात्पर हैं. हमलोगोंको उन्होंका आश्रय लेना चाहियेll 41 ॥

ब्रह्माजी बोले- जब सर्वसमर्थ विष्णुने इस प्रकार देवगणोंसे कहा, तब वे सब उनके साथ पिनाकी सदाशिव के दर्शन करनेकी इच्छासे चले। विष्णु आदि देवगण मार्गमें पड़नेके कारण सर्वप्रथम कुतूहलवश उस आश्रम में गये, जहाँ पार्वती तपस्या कर रही थीं ॥ 42-43 ॥

तदनन्तर सभी देवताओंने पार्वतीका तप | देखकर उनके तेजसे व्याप्त हो तेजोरूपवाली तथा | तपमें अधिष्ठित उन जगदम्बाको प्रणाम किया औरसाक्षात् सिद्धिका शरीर धारण करनेवाली उन पार्वतीके तपकी प्रशंसा करते हुए वे देवगण वहाँ गये, जहाँ वृषध्वज थे ॥ 44-45 ॥

हे मुने! वहाँ पहुँचकर उन देवताओंने [सर्वप्रथम ] आपको शिवके समीप भेजा और वे स्वयं कामको | नष्ट करनेवाले भगवान् शंकरको देखते हुए दूर ही स्थित रहे। उस समय हे नारद! विशेषरूपसे शिवभक्त आपने निर्भय होकर शिवजीके स्थानपर जाकर शिवजीको प्रसन्न मुद्रामें देखा। हे मुने! तदनन्तर लौटकर यत्नपूर्वक उन विष्णु आदि देवताओंको बुलाकर आप शिवजीके स्थानपर उन्हें ले गये ॥ 46-48 ॥

तदनन्तर विष्णु आदि सभी देवताओंने शिवजीके स्थानमें जाकर प्रसन्न मनसे उन भक्तवत्सल भगवान् सदाशिवको सुखपूर्वक बैठे हुए देखा। वे योगासन लगाये हुए अपने गणोंसे घिरे थे। वे परमेश्वररूपी शंकर साक्षात् तपस्याके विग्रहवान् रूप थे । ll 49-50 ॥

तब विष्णु एवं मेरे साथ रहनेवाले अन्य देव, मुनि तथा सिद्धगण उन परमेश्वर शिवजीको प्रणामकर वेद एवं उपनिषदोंके सूक्तोंद्वारा उनकी स्तुति करने लगे ॥ 51 ॥

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शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा