ब्रह्माजी बोले- गिरिराज हिमालय सर्वव्यापी शिवजीको अपने नगरके निकट आया हुआ सुनकर बड़े प्रसन्न हुए ॥ 1 ॥
तदनन्तर उन्होंने सभी सामग्री एकत्रित करके परमेश्वरकी अगवानी करनेके लिये बहुत से ब्राह्मणों तथा पर्वतोंको भेजा और प्राणोंसे प्रिय ईश्वरका दर्शन करनेके लिये भक्तिसे परिपूर्ण हृदयवाले वे हिमालय अपने भाग्यकी प्रशंसा करते हुए प्रसन्नतापूर्वक स्वयं भी गये ॥ 2-3 ॥
उस समय देवसेनाको देखकर हिमवान् विस्मित हो गये और मैं धन्य हूँ-ऐसा सोचते हुए वे उनके सामने गये। देवता भी हिमालयकी [विशाल] सेनाको देखकर आश्चर्यचकित हो गये। इस प्रकार देवताओं तथा पर्वतोंको परम आनन्द प्राप्त हुआ ।। 4-5 ll
हे मुने! [उस समय ] देवताओं तथा पर्वतोंकी विशाल सेना मिलकर पूर्व तथा पश्चिम सागरके समान शोभित हुई। वे देवता तथा पर्वत परस्पर मिलकर बड़ी प्रसन्नतासे अपनेको कृतकृत्य मानने लगे ॥ 6-7 ll
उसके बाद हिमालयने ईश्वरको सामने देखकर उन्हें प्रणाम किया और सभी पर्वतों तथा ब्राह्मणोंने भी सदाशिवको प्रणाम किया ॥ 8 ॥
हिमालयने वृषभपर सवार, प्रसन्न मुखवाले, नानालंकारोंसे शोभित, अपने दिव्य शरीरको शोभासे दिगन्तरोंको प्रकाशित करनेवाले, अत्यन्त सूक्ष्म तथा नवीन रेशमी वस्त्रसे शोभित विग्रहवाले, सिरपर रत्नोंसे जटित मुकुट धारण किये हुए, हँसते हुए, शुभ्र कान्तिवाले, सर्पोंके अलंकारोंसे सुशोभित अंगवाले, अंगोंकी अद्भुत प्रभावाले, दिव्य कान्तिसे सम्पन्न, हाथोंमें चँवर धारण किये देवताओंद्वारा सेवित, बायीं और अच्युत, दाहिनी ओर ब्रह्मा, पृष्ठभागमें इन्द्र और पीछे तथा पार्श्वभागमें देवता आदिसे शोभायमान, अनेकविध देवता आदिके द्वारा स्तुत, संसारका कल्याण करनेवाले, अपनी इच्छासे शरीर धारण करनेवाले,ब्रह्मस्वरूप, सर्वेश्वर, वर प्रदान करनेवाले, निर्गुण तथा सगुण रूपवाले, भर्तीके अधीन रहनेवाले, कृपा करनेवाले, प्रकृति तथा पुरुषसे भी परे और सच्चिदानन्दस्वरूप शिवको देखा ॥ 9-14 ॥
हिमालयने प्रभुके दक्षिण भागमें गरुड़पर सवार तथा नाना प्रकारके आभूषणोंसे सुसज्जित अच्युत श्रीहरिको देखा ॥ 15 ॥
हे मुने! उन्होंने प्रभुके वामभागमें चार मुखवाले, महान् शोभावाले तथा अपने परिवारसे युक्त मुझे देखा ॥ 16 ॥
इस प्रकार शिवके परम प्रिय हम दोनों सुरेश्वरोंको देखकर गिरीशने परिवारसहित आदरसे प्रणाम किया ॥ 17 ॥
फिर गिरीश्वरने देवाधिदेव सदाशिव के पीछे तथा पार्श्वभागमें स्थित हुए सभी देवताओंको प्रणाम किया ll 18 ॥
इसके बाद शिवजीकी आज्ञासे गिरिराज हिमालय आगे होकर अपने नगरमें प्रविष्ट हुए, तदनन्तर शेष, विष्णु तथा ब्रह्मा भी देवताओंके साथ नगरमें गये ॥ 19 ॥
हे नारद प्रभुके साथ जाते हुए सभी मुनि, देवता आदि एवं देवगण परम प्रसन्न हो हिमालयके नगरको प्रशंसा करने लगे। उसके बाद हिमालय सुरम्य तथा निवासके योग्य बनाये गये अपने शिखरपर देवता आदिको ठहराकर स्वयं वहाँ चले गये, जहाँ वेदी बनी थी ll 20-21 ॥
उसे चौकोर तथा तोरणोंसे विशेष रूपसे सुसजित कराकर स्नान दानादि क्रियाकर उन्होंने [विधिपूर्वक] वहाँका निरीक्षण किया॥ 22 ॥
तदनन्तर पर्वतराज हिमालयने विष्णु आदि सम्पूर्ण वर्गसे युक्त शिवके समीप अपने पुत्रोंको भेजा ॥ 23 ॥
ये पर्वतराज परम प्रसन्न हो अपने बन्धुगणोंके साथ महान् उत्सवपूर्वक वरका यथोचित आचार करना चाहते थे तब उन पर्वतपुत्रोंने वहाँ जाकर अपने वर्गोंक सहित विराजमान उन शिवको प्रणाम करके शैलेश्वरकी वह प्रार्थना सुनायी ।। 24-25 ।।तत्पश्चात् वे पर्वतपुत्र उनकी आज्ञासे अपने घर चले गये और प्रसन्न होकर शैलराजसे बोले कि अब लोग आ रहे हैं। हे मुने! इसपर शिवजीसहित विष्णु आदि समस्त देवता गिरिराजकी वह प्रार्थना सुनकर परम प्रसन्न और अत्यन्त आह्लादित हो गये। उसके बाद सभी देवता, मुनि, गण तथा अन्य लोग उत्तम वेशभूषा धारण करके प्रभुके साथ पर्वतराजके घर गये ॥ 26-28 ॥
उस अवसरपर मेनाने शिवजीको देखना चाहा और हे मुने! प्रभुको देखनेके लिये उन्होंने आप मुनिश्रेष्ठको बुलवाया। तब हे मुने! आप प्रभुसे प्रेरित होकर शिवजीके हृदयकी बात पूर्ण करनेकी इच्छासे युक्त मनसे वहाँ गये ॥ 29-30 ।।
हेमुने! आपको प्रणाम करके विस्मित मनवाली मेना भगवान् शंकरके मदविनाशक रूपको देखनेकी इच्छासे [आपसे] कहने लगीं ॥ 31 ॥