नारदजी बोले - हे तात! हे महाप्राज्ञ! हे प्रभो! अब आप कृपाकर मुझे यह बताइये कि उन सप्तर्षियोंके चले जानेके बाद हिमालयने क्या किया ? ॥ 1 ॥ब्रह्माजी बोले- हे मुनीश्वर! अरुन्धतीसहित उन सप्तर्षियोंके चले जानेपर हिमालयने जो किया, उसे मैं आपसे कह रहा हूँ। उसके बाद महामनस्वी गिरिराज हिमालय प्रिय पुत्रोंसहित अपने मेरु आदि बन्धुओंको बुलाकर बड़े प्रसन्न हुए ।। 2-3 ॥
उनसे आज्ञा लेनेके बाद हिमालयने प्रीतिपूर्वक अपने पुरोहित गर्गजीसे लग्नपत्रिका लिखवायी और उन्होंने प्रसन्न मनवाले अपने सेवकोंसे अनेक प्रकारकी | सामग्रियों तथा उस लग्नपत्रिकाको बड़े प्रेमसे शिवजीके पास भिजवाया ।। 4-5 ।।
उन लोगोंने कैलासपर शिवजीके समीप जाकर उनको तिलक लगाकर वह पत्रिका उन्हें प्रदान की ॥ 6 ॥
भगवान् सदाशिवने उन लोगोंका विशेष रूपसे यथोचित सम्मान किया और प्रसन्नतापूर्वक वे सभी लोग हिमालयके पास लौट आये। हिमालय भी शिवजीके द्वारा विशेष रूपसे सम्मानित हुए हर्षित लोगोंको देखकर मन-ही-मन अत्यन्त प्रसन्न हो गये । ll 7-8 ॥
तत्पश्चात् उन्होंने भी अनेक देशोंमें रहनेवाले अपने सम्बन्धियोंको बड़े प्रेमके साथ सुखदायक निमन्त्रण भेजा। उसके बाद उन्होंने आदरसे उत्तम अन्न तथा विवाहके लिये अनेक प्रकारकी उपयोगी सामग्रियाँ एकत्रित कीं ॥ 9-10 ॥
उन्होंने चावल, चिउड़ा, गुड़, शर्करा तथा नमकका पहाड़ लगवा दिया। दूध, घी, दहीकी वापी बनवाकर उन्होंने जौ आदिका आटा लड्डू, पूड़ी, स्वस्तिक सर्कका प्रभूत-संग्रह करवाया और अमृतके समान स्वादिष्ट इक्षुरसकी वापी बनवा दी तथा मक्खन, आसवोंका समूह एवं महास्वादिष्ट पक्वान्नों एवं रसोंका ढेर लगवा दिया ॥ 11-14 ॥
शिवजीके गण तथा देवताओंके लिये हितकारक अनेक प्रकारके व्यंजन, वस्तुएँ तथा अग्निसे पवित्र किये गये अनेक प्रकारके बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकारको मणियों, रत्न, सुवर्ण तथा चाँदी इन द्रव्योंको तथा अन्य वस्तुओंको विधिपूर्वक एकत्रित करके गिरिराजने मंगलदायक दिनमें मंगलाचार प्रारम्भ किया। पर्वतोंकी स्त्रियाँ पार्वतीका संस्कार करने लगीं।वे स्वयं अनेक प्रकारके आभूषणोंसे सुसज्जित होकर प्रसन्नतापूर्वक मंगलाचार करने लगीं। नगरमें रहनेवाली द्विजस्त्रियाँ भी प्रसन्न होकर उत्सव तथा | मंगलाचारके साथ अनेक प्रकारके लोकाचार करने लगीं ॥। 15 - 181 / 2 ॥
हिमालय भी प्रसन्नचित्त होकर प्रेमके साथ समस्त मंगलाचारकर बन्धुवर्गोंके आनेकी प्रतीक्षा करने लगे। इसी बीच निमन्त्रित उनके सभी बान्धव अपनी स्त्रियों, पुत्रों तथा सेवकोंसहित प्रसन्नतापूर्वक वहाँ आ गये। हे देवर्षे ! अब उन | पर्वतोंका आगमन आदरपूर्वक सुनिये। मैं शिवजीकी प्रीति बढ़ानेके लिये संक्षेपसे इसका वर्णन कर रहा हूँ ॥ 19 - 21 1/2 ॥
सबसे पहले सर्वश्रेष्ठ तथा श्रीमान् देवालय नामक पर्वत सुन्दर वेषसे अलंकृत होकर दिव्य रूप धारणकर अनेक प्रकारके रत्नोंसे देदीप्यमान अपने समाज तथा कुटुम्बके साथ अनेक मणियों तथा बहुमूल्य रत्नोंको लेकर हिमालयके यहाँ पहुँचे । सम्पूर्ण शोभासे संयुक्त मन्दराचल अनेक प्रकारके उत्तम उपहारोंको लेकर अपनी स्त्री तथा पुत्रोंसहित हिमालयके पास गये। उदारबुद्धिवाले तथा दिव्यात्मा अस्ताचल पर्वत भी महान् शोभासे युक्त हो विविध प्रकारकी भेंटसामग्री लेकर प्रसन्नतापूर्वक हिमालयके निकट आये। उसी प्रकार हर्षोल्लाससे समन्वित उदयाचल भी सभी प्रकारके उत्तम रत्न तथा मणियोंको लेकर अत्युत्तम परिवारके साथ आये। मलयाचल भी आदरपूर्वक अत्यन्त दिव्य रचनासे युक्त हो बहुत-सी सेना तथा परिवारसहित हिमालयके यहाँ आये। हे तात! दर्दर नामक पर्वत भी प्रसन्न हो अपनी पत्नीके साथ महान् शोभासे युक्त होकर हिमालयके घर शीघ्र पहुँचे। निषद पर्वत भी प्रसन्नचित्त होकर अपने परिवारजनोंके साथ हिमालयके घर आये। इसी प्रकार | महाभाग्यवान् गन्धमादन पर्वत भी पुत्र तथा स्त्रियोंके साथ प्रसन्नतासे हिमालयके घर आये। महान् ऐश्वर्यसे समन्वित होकर करवीर तथा पर्वतश्रेष्ठ महेन्द्र भी हिमालयके घर आये ॥ 22- 31 ॥अनेक प्रकारकी शोभासे सम्पन्न पारियात्र भी प्रसन्न चित्त होकर अनेक गणों, पुत्रों एवं स्त्रियोंको साथ लेकर मणि तथा रत्नोंकी खानसे युक्त हो हिमालयके पास गये। गिरिश्रेष्ठ पर्वतराज क्रौंच अपनी सेना तथा सेवकोंको लेकर अपने पुत्र, स्त्री तथा परिवारसहित प्रसन्न हो भेंटसामग्रीसे युक्त हो आदरपूर्वक हिमालयके घर गये ।। 32-33 ॥
पुरुषोत्तम पर्वत भी अपने समाजसहित बड़े आदरके साथ बहुत-सी भेंट-सामग्री लेकर हिमालयके पास आये। नीलपर्वत भी अपनी स्त्री तथा पुत्रके साथ बहुत-सा द्रव्य लेकर आनन्दित होकर हिमालयके घर आये ।। 34-35 ।।
त्रिकूट, चित्रकूट, वेंकट, श्रीगिरि, गोकामुख तथा नारद-ये पर्वत भी हिमालयके घर आये। पर्वतश्रेष्ठ विन्ध्य भी अत्यन्त प्रसन्नचित्त होकर अपने स्त्री-पुत्रसहित नाना प्रकारको सम्पत्तिसे युक्त हो हिमालयके घर आये ।। 36-37 ।।
महाशैल कालंजर अपने अनेक गणोंके साथ प्रसन्नता पूर्वक हिमालयके घर आये। कैलास नामक महापर्वत भी बड़ी प्रसन्नताके साथ कृपापूर्वक हिमालयके घर आये। वे सभी पर्वतोंकी अपेक्षा अधिक शोभासम्पन्न थे । ll 38-39 ॥
हे नारद! इसी प्रकार अन्य द्वीपोंमें रहनेवाले तथा भारतवर्ष में रहनेवाले जो अन्य पर्वत थे, वे सब हिमालयके घर आये हे मुने! हिमालयने जिन पर्वतोंको पहले ही प्रेमसे आमन्त्रित किया था, वे सभी यह सोचकर कि यह शिवा-शिवका विवाह है, प्रसन्नतापूर्वक वहाँ आये ॥ 40-41 ॥
शिवा- शिवका विवाह हो रहा है- यह जानकर उस समय शोणभद्रादि सभी नद अनेक शोभासे युक्त | होकर बड़ी प्रसन्नताके साथ वहाँ आये ॥ 42 ॥
शिवा-शिवका विवाह हो रहा है-यह जानकर सभी नदियाँ दिव्य रूप धारण करके नाना भाँतिके अलंकारोंसे युक्त हो प्रेमपूर्वक वहाँ आयीं। शिवा शिवका विवाह हो रहा है- यह जानकर गोदावरी, यमुना, ब्रह्मस्त्री तथा वेणिका हिमालयके यहाँ आयीं ।। 43-44 ।।शिवा- शिवका विवाह हो रहा है—यह जानकर गंगाजी भी महाप्रसन्न हो दिव्य रूप धारण करके अनेक प्रकारके आभूषणोंसे सुसज्जित हो वहाँ आयीं ॥। 45 ।। शिवा- शिवका विवाह हो रहा है-यह जानकर सरिताओंमें श्रेष्ठ, अत्यन्त आनन्द प्रदान करनेवाली, रुद्रकी कन्या नर्मदा भी बड़े प्रेमसे शीघ्र वहाँ आ गयीं ॥ 46 ॥
उस समय हिमालयके यहाँ आये हुए उन सभी लोगोंसे वह दिव्य तथा सभी शोभासे युक्त पुरी भर गयी। वह महोत्सवसे युक्त हो गयी, उसमें नाना प्रकारके केतु, ध्वज एवं तोरण सुशोभित होने लगे, नाना प्रकारके वितानोंसे सूर्यका प्रकाश रुक गया और वह पुरी रंग बिरंगे रत्नोंकी छटासे पूर्ण हो गयी ॥ 47-48 ll
हिमालयने भी प्रभूत आदरके साथ अत्यन्त प्रेमपूर्वक उन स्त्रियों तथा पुरुषोंका यथोचित सम्मान किया। उन्होंने सभी लोगोंको अलग-अलग उत्तम स्थानों पर निवास प्रदान किया और अनेक प्रकारकी सामग्रियोंसे उन्हें पूर्णरूपसे सन्तुष्ट किया । ll 49-50 ।।