View All Puran & Books

शिव पुराण (शिव महापुरण)

Shiv Purana (Shiv Mahapurana)

संहिता 2, खंड 3 (पार्वती खण्ड) , अध्याय 52 - Sanhita 2, Khand 3 (पार्वती खण्ड) , Adhyaya 52

Previous Page 147 of 466 Next

हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन

ब्रह्माजी बोले- हे तात! इसके बाद भाग्यवान् एवं बुद्धिमान् पर्वतश्रेष्ठ हिमालयने सबको भोजन करानेके लिये आँगनको सजाया ॥ 1 ॥उन्होंने अच्छी प्रकारसे उसका मार्जन तथा लेपन कराया और अनेक प्रकारकी सुगन्धित वस्तुओंसे आदरपूर्वक उसे अलंकृत कराया ॥ 2 ॥ तदनन्तर अपने पुत्रों तथा अन्य पर्वतोंद्वारा शंकरजी- सहित सभी देवगणों तथा अन्य लोगोंको भोजनके लिये बुलवाया ॥ 3 ॥

हे मुने! हिमालयके आमन्त्रणको सुनकर विष्णु तथा सभी देवता आदिके साथ वे प्रभु प्रसन्नताके साथ भोजनके लिये वहाँ गये 4 ॥

हिमालयने प्रभु तथा उन सभी देवगणोंका यथोचित सत्कार करके घरके भीतर उत्तम आसनोंपर प्रसन्नताके साथ बैठाया और उन्हें अनेक प्रकारकी सुभोज्य वस्तुओंको परोसकर नम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर भोजनके लिये प्रार्थना की ।। 5-6 ॥

उसके बाद विष्णु आदि सभी देवता [हिमालयसे] इस प्रकार सम्मानित होकर सदाशिवको आगेकर भोजन करने लगे ॥ 7 ॥

उस समय सभी देवगण मिलकर एक साथ पंक्तिबद्ध होकर [परस्पर] हास्य करते हुए अलग अलग भोजन करने लगे ॥ 8 ॥

महाभाग नन्दी, भृंगी, वीरभद्र तथा वीरभद्रके गण पृथक् होकर कौतूहलमें भरकर भोजन करने लगे ॥ 9 ॥

अनेक प्रकारकी शोभासे सम्पन्न महाभाग इन्द्र आदि लोकपाल तथा देवगण अनेक प्रकारके हास परिहासके साथ भोजन करने लगे ॥ 10 ॥

सभी मुनि, ब्राह्मण तथा ऋषिगण आनन्दके साथ पृथक् पंक्तिमें बैठकर भोजन करने लगे ॥ 11 ॥ भृगु आदि
इसी प्रकार चण्डीके सभी गणोंने भी भोजन किया। वे भोजन करनेके बाद प्रसन्नतापूर्वक कौतूहल करते हुए अनेक प्रकारके हास-परिहास कर रहे थे ॥ 12 ॥

इस तरह विष्णु आदि उन सभी देवताओंने आनन्दके साथ भोजन किया, फिर आचमन करके विश्रामके लिये वे प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने निवासस्थानको चले गये ॥ 13 ॥इधर, मेनाकी आज्ञासे सभी पतिव्रता स्त्रियों भक्तिपूर्वक शिवसे प्रार्थनाकर वास नामक परमानन्ददायक निवासगृहमें ले गयीं ॥ 14 ॥

वहाँपर मेनाके द्वारा दिये गये मनोहर रत्नके सिंहासनपर बैठकर प्रसन्नतापूर्वक शिवजी वासगृहको देखने लगे ॥ 15 ॥

यह गृह सैकड़ों जलते हुए रत्नदीपकों से प्रकाशित तथा सोभासम्पन्न था, वहाँ अनेक प्रकारके रत्नोंके पात्र विराज रहे थे, उसमें स्थान-स्थानपर मोती तथा मणियाँ लगी हुई थीं। वह रत्नोंके दर्पणकी शोभासे युक्त था, वह श्वेत वर्णके चैवरोंसे मण्डित था, उसमें मोतियों और मणियोंकी मालाएँ लगी हुई थीं। वह परम ऐश्वर्यसे सम्पन्न, अनुपम, महादिव्य, विचित्र, अत्यन्त मनोहर तथा चित्तको प्रसन्न करनेवाला था और उसके प्रत्येक स्थलमें नाना प्रकारकी कारीगरी की गयी थी ॥ 16-18 ॥

वह गृह शिवके द्वारा दिये गये वरका अतुलनीय प्रभाव प्रकट कर रहा था और शोभासे सम्पन्न होनेके कारण उस गृहका शिवलोक नामकरण किया गया था ।। 19 ।।

वह अनेक प्रकारके सुगन्धित उत्तम द्रव्योंसे सुवासित, उत्तम प्रकाशसे युक्त, चन्दन अगरुयुक्त तथा पुष्पकी शय्यासे समन्वित था ॥ 20 ॥

यह गृह विश्वकर्माके द्वारा रचित नाना प्रकारके चित्रोंकी विचित्रतासे युक्त था, उसमें सभी उत्तम रत्नों के सारोंसे रचित श्रेष्ठ हारोंके ढेर लगे हुए थे॥ 21 ॥

कहीं देवताओंके लिये अत्यन्त मनोहर वैकुण्ठ बना हुआ था, कहीं ब्रह्मलोक बना हुआ था, कहीं लोकपालोंका पुर बना हुआ था, कहीं मनोहर कैलास बना हुआ था, कहीं इन्द्रका मन्दिर बना हुआ था और कहीं सबके ऊपर शिवलोक सुशोभित हो रहा था ।। 22-23 ।।

आश्चर्यचकित करनेवाले ऐसे घरको देखकर शिवजी गिरिराज हिमालयकी प्रशंसा करते हुए परम प्रसन्न हो गये ॥ 24 ॥

उसके बाद शिवजीने परम रमणीय तथा उत्तम रत्न- पर्वकपर प्रसन्न हो लीलापूर्वक शयन किया ।। 250 llहिमालयने अपने सभी भाइयोंको तथा अन्य लोगोंको बड़े प्रेमसे भोजन कराया तथा शेष कृत्य पूर्ण किया ll 26 ll इस प्रकार हिमालयको सब कार्य पूर्ण करते हुए एवं ईश्वर शिवजीके शयन करते हुए सारी रात बीत गयी और प्रभातकाल उपस्थित हो गया ॥ 27 ॥ तब प्रातः काल होनेपर धैर्य एवं उत्साहसे भरे हुए लोग अनेक प्रकारके बाजे बजाने लगे ॥ 28 ll

विष्णु आदि सभी देवगण उठ गये और अपने इष्टदेव शंकरका स्मरणकर प्रसन्नताके साथ शीघ्रतासे सज्जित होकर तैयार हो गये। अपने अपने वाहनोंको सजाकर कैलास जानेके लिये उत्सुक उन लोगोंने | शिवजीके समीप धर्मको भेजा। तत्पश्चात् नारायणकी आज्ञासे निवासगृहमें आकर योगी धर्म योगीश्वर शंकरसे समयोचित वचन कहने लगे- ॥ 29-31 ॥

धर्म बोले- हे भव! उठिये, उठिये, आपका कल्याण हो । हे प्रमथाधिप। जनवासेमें चलिये और वहाँ उन सभीको कृतार्थ कीजिये ॥ 32 ll

ब्रह्माजी बोले [हे नारद!] धर्मराजके इस वचनको सुनकर शिवजी हँसे। उन्होंने कृपादृष्टिसे धर्मकी ओर देखा और शय्याका परित्याग किया। वे हँसते हुए धर्मसे कहने लगे-तुम आगे चलो, मैं भी वहाँ शीघ्र ही आऊँगा, इसमें सन्देह नहीं है ।। 33-34 ।।

ब्रह्माजी बोले- शंकरजीके द्वारा इस प्रकार कहे जानेपर धर्मराज जनवासेमें गये और बादमें स्वयं प्रभु शंकरजी भी वहाँ जानेका विचार करने लगे ॥ 35 ॥

इसे जानकर स्त्रियाँ आनन्दमें भरकर वहाँ पहुँच गयीं और शिवके दोनों चरणोंको देखती हुई मंगलगान करने लगीं। इसके बाद वे शिवजी लोकाचार प्रदर्शित करते हुए प्रातःकृत्य करके मेना एवं पर्वतराजसे आज्ञा लेकर जनवासेमें गये ॥ 36-37 ॥

हे मुने! उस समय महोत्सव होने लगा, वेदध्वनि होने लगी और लोग चारों प्रकारके बाजे बजाने लगे ॥ 38 ॥

शिवजीने अपने स्थानपर आकर मुनियोंको, मुझे तथा विष्णुको प्रणाम किया तथा देवता आदिने भी लौकिक आचारवश उनकी वन्दना की ॥ 39 ॥[ उस समय चारों ओर] जय शब्द, नमः शब्द और मंगलदायक वेदध्वनि होने लगी, इस प्रकार वहाँ महान् कोलाहल व्याप्त हो गया ॥ 40 ॥

Previous Page 147 of 466 Next

शिव पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] पितरोंकी कन्या मेनाके साथ हिमालयके विवाहका वर्णन
  2. [अध्याय 2] पितरोंकी तीन मानसी कन्याओं-मेना, धन्या और कलावतीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त तथा सनकादिद्वारा प्राप्त शाप एवं वरदानका वर्णन
  3. [अध्याय 3] विष्णु आदि देवताओंका हिमालयके पास जाना, उन्हें उमाराधनकी विधि बता स्वयं भी देवी जगदम्बाकी स्तुति करना
  4. [अध्याय 4] उमादेवीका दिव्यरूपमें देवताओंको दर्शन देना और अवतार ग्रहण करनेका आश्वासन देना
  5. [अध्याय 5] मेनाकी तपस्यासे प्रसन्न होकर देवीका उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन देकर वरदान देना, मेनासे मैनाकका जन्म
  6. [अध्याय 6] देवी उमाका हिमवान्‌के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओं द्वारा स्तवन, देवीका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे वार्तालाप तथा पुनः नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना
  7. [अध्याय 7] पार्वतीका नामकरण तथा उनकी बाललीलाएँ एवं विद्याध्ययन
  8. [अध्याय 8] नारद मुनिका हिमालयके समीप गमन, वहाँ पार्वतीका हाथ देखकर भावी लक्षणोंको बताना, चिन्तित हिमवान्‌को शिवमहिमा बताना तथा शिवसे विवाह करनेका परामर्श देना
  9. [अध्याय 9] पार्वतीके विवाहके सम्बन्धमें मेना और हिमालयका वार्तालाप, पार्वती और हिमालयद्वारा देखे गये अपने स्वप्नका वर्णन
  10. [अध्याय 10] शिवजीके ललाटसे भौमोत्पत्ति
  11. [अध्याय 11] भगवान् शिवका तपस्याके लिये हिमालयपर आगमन, वहाँ पर्वतराज हिमालयसे वार्तालाप
  12. [अध्याय 12] हिमवान्‌का पार्वतीको शिवकी सेवामें रखनेके लिये उनसे आज्ञा मांगना, शिवद्वारा कारण बताते हुए इस प्रस्तावको अस्वीकार कर देना
  13. [अध्याय 13] पार्वती और परमेश्वरका दार्शनिक संवाद, शिवका पार्वतीको अपनी सेवाके लिये आज्ञा देना, पार्वतीका महेश्वरकी सेवामें तत्पर रहना
  14. [अध्याय 14] तारकासुरकी उत्पत्तिके प्रसंगों दितिपुत्र बज्रांगकी कथा, उसकी तपस्या तथा वरप्राप्तिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] वरांगीके पुत्र तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरकी तपस्या एवं ब्रह्माजीद्वारा उसे वरप्राप्ति, वरदानके प्रभावसे तीनों लोकोंपर उसका अत्याचार
  16. [अध्याय 16] तारकासुरसे उत्पीड़ित देवताओंको ब्रह्माजीद्वारा सान्त्वना प्रदान करना
  17. [अध्याय 17] इन्द्रके स्मरण करनेपर कामदेवका उपस्थित होना, शिवको तपसे विचलित करनेके लिये इन्द्रद्वारा कामदेवको भेजना
  18. [अध्याय 18] कामदेवद्वारा असमयमें वसन्त ऋतुका प्रभाव प्रकट करना, कुछ क्षणके लिये शिवका मोहित होना, पुनः वैराग्य भाव धारण करना
  19. [अध्याय 19] भगवान् शिवकी नेत्रज्वालासे कामदेवका भस्म होना और रतिका विलाप, देवताओं द्वारा रतिको सान्त्वना प्रदान करना और भगवान् शिवसे कामको जीवित करनेकी प्रार्थना करना
  20. [अध्याय 20] शिवकी क्रोधाग्निका वडवारूप धारण और ब्रह्माद्वारा उसे समुद्रको समर्पित करना
  21. [अध्याय 21] कामदेवके भस्म हो जानेपर पार्वतीका अपने घर आगमन, हिमवान् तथा मेनाद्वारा उन्हें धैर्य प्रदान करना, नारदद्वारा पार्वतीको पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश
  22. [अध्याय 22] पार्वतीकी तपस्या एवं उसके प्रभावका वर्णन
  23. [अध्याय 23] हिमालय आदिका तपस्यानिरत पार्वतीके पास जाना, पार्वतीका पिता हिमालय आदिको अपने तपके विषयमें दृढ़ निश्चयकी बात बताना, पार्वतीके तपके प्रभावसे त्रैलोक्यका संतप्त होना, सभी देवताओंका भगवान् शंकरके पास जाना
  24. [अध्याय 24] देवताओंका भगवान् शिवसे पार्वतीके साथ विवाह करनेका अनुरोध, भगवान्का विवाहके दोष बताकर अस्वीकार करना तथा उनके पुनः प्रार्थना करनेपर स्वीकार कर लेना
  25. [अध्याय 25] भगवान् शंकरकी आज्ञासे सप्तर्षियोंद्वारा पार्वतीके शिवविषयक अनुरागकी परीक्षा करना और वह वृत्तान्त भगवान् शिवको बताकर स्वर्गलोक जाना
  26. [अध्याय 26] पार्वतीकी परीक्षा लेनेके लिये भगवान् शिवका जटाधारी ब्राह्मणका वेष धारणकर पार्वतीके समीप जाना, शिव-पार्वती संवाद
  27. [अध्याय 27] जटाधारी ब्राह्मणद्वारा पार्वतीके समक्ष शिवजीके स्वरूपकी निन्दा करना
  28. [अध्याय 28] पार्वतीद्वारा परमेश्वर शिवकी महत्ता प्रतिपादित करना और रोषपूर्वक जटाधारी ब्राह्मणको फटकारना, शिवका पार्वतीके समक्ष प्रकट होना
  29. [अध्याय 29] शिव और पार्वतीका संवाद, विवाहविषयक पार्वतीके अनुरोधको शिवद्वारा स्वीकार करना
  30. [अध्याय 30] पार्वतीके पिताके घरमें आनेपर महामहोत्सवका होना, महादेवजीका नटरूप धारणकर वहाँ उपस्थित होना तथा अनेक लीलाएँ दिखाना, शिवद्वारा पार्वतीकी याचना, किंतु माता-पिताके द्वारा मना करनेपर अन्तर्धान हो जाना
  31. [अध्याय 31] देवताओंके कहनेपर शिवका ब्राह्मण वेषमें हिमालयके यहाँ जाना और शिवकी निन्दा करना
  32. [अध्याय 32] ब्राह्मण वेषधारी शिवद्वारा शिवस्वरूपकी निन्दा सुनकर मेनाका कोपभवनमें गमन शिवद्वारा सप्तर्षियोंका स्मरण और उन्हें हिमालयके घर भेजना, हिमालयकी शोभाका वर्णन तथा हिमालयद्वारा सप्तर्षियोंका स्वागत
  33. [अध्याय 33] वसिष्ठपत्नी अरुन्धती reद्वारा मेना को समझाना तथा
  34. [अध्याय 34] सप्तर्षियोंद्वारा हिमालयको राजा अनरण्यका आख्यान सुनाकर पार्वतीका विवाह शिवसे करनेकी प्रेरणा देना
  35. [अध्याय 35] धर्मराजद्वारा मुनि पिप्पलादकी भार्या सती पद्माके पातिव्रत्यकी परीक्षा, पद्माद्वारा धर्मराजको शाप प्रदान करना तथा पुनः चारों युगोंमें शापकी व्यवस्था करना, पातिव्रत्यसे प्रसन्न हो धर्मराजद्वारा पद्माको अनेक वर प्रदान करना, महर्षि वसिष्ठद्वारा हिमवान्से पद्माके दृष्टान्तद्वारा अपनी पुत्री शिवको सौंपनेके लिये कहना
  36. [अध्याय 36] सप्तर्षियोंके समझानेपर हिमवान्‌का शिवके साथ अपनी पुत्रीके विवाहका निश्चय करना, सप्तर्षियोंद्वारा शिवके पास जाकर उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त बताकर अपने धामको जाना
  37. [अध्याय 37] हिमालयद्वारा विवाहके लिये लग्नपत्रिकाप्रेषण, विवाहकी सामग्रियोंकी तैयारी तथा अनेक पर्वतों एवं नदियोंका दिव्य रूपमें सपरिवार हिमालयके घर आगमन
  38. [अध्याय 38] हिमालयपुरीकी सजावट, विश्वकर्माद्वारा दिव्यमण्डप एवं देवताओंके निवासके लिये दिव्यलोकोंका निर्माण करना
  39. [अध्याय 39] भगवान् शिवका नारदजीके द्वारा सब देवताओंको निमन्त्रण दिलाना, सबका आगमन तथा शिवका मंगलाचार एवं ग्रहपूजन आदि करके कैलाससे बाहर निकलना
  40. [अध्याय 40] शिवबरातकी शोभा भगवान् शिवका बरात लेकर हिमालयपुरीकी ओर प्रस्थान
  41. [अध्याय 41] नारदद्वारा हिमालयगृहमें जाकर विश्वकर्माद्वारा बनाये गये विवाहमण्डपका दर्शनकर मोहित होना और वापस आकर उस विचित्र रचनाका वर्णन करना
  42. [अध्याय 42] हिमालयद्वारा प्रेषित मूर्तिमान् पर्वतों और ब्राह्मणोंद्वारा बरातकी अगवानी, देवताओं और पर्वतोंके मिलापका वर्णन
  43. [अध्याय 43] मेनाद्वारा शिवको देखनेके लिये महलकी छतपर जाना, नारदद्वारा सबका दर्शन कराना, शिवद्वारा अद्भुत लीलाका प्रदर्शन, शिवगणों तथा शिवके भयंकर वेषको देखकर मेनाका मूर्च्छित होना
  44. [अध्याय 44] शिवजीके रूपको देखकर मेनाका विलाप, पार्वती तथा नारद आदि सभीको फटकारना, शिवके साथ कन्याका विवाह न करनेका हठ, विष्णुद्वारा मेनाको समझाना
  45. [अध्याय 45] भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
  46. [अध्याय 46] नगरमें बरातियोंका प्रवेश द्वाराचार तथा पार्वतीद्वारा कुलदेवताका पूजन
  47. [अध्याय 47] पाणिग्रहण के लिये हिमालयके घर शिवके गमनोत्सवका वर्णन
  48. [अध्याय 48] शिव-पार्वती विवाहका प्रारम्भ, हिमालयद्वारा शिवके गोत्रके विषयमें प्रश्न होनेपर नारदजीके द्वारा उत्तरके रूपमें शिवमाहात्म्य प्रतिपादित करना, हर्षयुक्त हिमालयद्वारा कन्यादानकर विविध उपहार प्रदान करना
  49. [अध्याय 49] अग्निपरिक्रमा करते समय पार्वतीके पदनखको देखकर ब्रह्माका मोहग्रस्त होना, बालखिल्योंकी उत्पत्ति, शिवका कुपित होना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  50. [अध्याय 50] शिवा शिवके विवाहकृत्यसम्पादनके अनन्तर देवियोंका शिवसे मधुर वार्तालाप
  51. [अध्याय 51] रतिके अनुरोधपर श्रीशंकरका कामदेवको जीवित करना, देवताओंद्वारा शिवस्तुति
  52. [अध्याय 52] हिमालयद्वारा सभी बरातियोंको भोजन कराना, शिवका विश्वकर्माद्वारा निर्मित वासगृहमें शयन करके प्रातःकाल जनवासेमें आगमन
  53. [अध्याय 53] चतुर्थीकर्म, बरातका कई दिनोंतक ठहरना, सप्तर्षियोंके समझानेसे हिमालयका बरातको विदा करनेके लिये राजी होना, मेनाका शिवको अपनी कन्या सौंपना तथा बरातका पुरीके बाहर जाकर ठहरना
  54. [अध्याय 54] मेनाकी इच्छा अनुसार एक ब्राह्मणपत्नीका पार्वतीको पातिव्रतधर्मका उपदेश देना
  55. [अध्याय 55] शिव-पार्वती तथा बरातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और शिव विवाहोपाख्यानके श्रवणकी महिमा