ब्रह्माजी बोले- हे मुनिसत्तम! इसके बाद हिमालयने प्रसन्न होकर महोत्सवसम्पन्न अपने नगरको विचित्र प्रकारसे सजाया ॥ 1 ॥
उन्होंने सभी मार्गोंपर जलका छिड़काव कराया और सभी प्रकारकी ऋद्धि-सिद्धिसे नगरको अलंकृतकर प्रत्येक द्वारको केलेके खम्भे तथा मंगलद्रव्योंसे सुसज्जित किया ॥ 2 ॥
आँगनमें केलेके खम्भे लगवाये गये रेशमी धागों में आमका पल्लव बाँधकर बंदनवार, जिसमें | मालतीकी माला बँधी हुई थी, लटकाया गया औरउस आँगनको चारों दिशाओंमें कल्याणकारी मंगलद्रव्योंसे सुशोभित किया गया। पर्वतराजने महाप्रभावशाली गर्गाचार्यके आज्ञानुसार अपनी कन्याके विवाहके निमित्त परम प्रसन्नतासे युक्त हो सारी सामग्री तथा सभी प्रकारके मंगलद्रव्य एकत्रित किये ॥ 3-5॥
उन्होंने विश्वकर्माको आदरपूर्वक बुलाकर विस्तृत मण्डप तथा मनोहर वेदिका आदिका निर्माण कराया ॥ 6 ॥
हे देवर्षे ! वह [मण्डप] दस हजार योजन लम्बा, अनेक लक्षणोंसे युक्त तथा अनेक आश्चर्योंसे परिपूर्ण था। स्थावर चित्रकी रचना जंगमके सदृश ही होनेसे वह मण्डप चारों ओर अद्भुत पदार्थोंसे परिपूर्ण हो गया ।। 7-8 ।।
स्थावर रचनाने विशेष रूपसे जंगमको तथा जंगम रचनाने स्थावर रचनाको पराजित कर दिया था ॥ 9 ॥
जलकी रचना स्थलभूमि जीत ली गयी। बड़े बड़े विशेषज्ञोंको भी पता नहीं लगता था कि कहाँ जल है और कहाँ स्थल है ॥ 10 ॥
कहीं पर कृत्रिम सिंह तथा सारसोंकी पंक्ति बनी हुई थी तथा कहीं अत्यन्त मनोहर कृत्रिम मोर बने हुए थे 11 ॥
कहीं पुरुषोंके साथ नाचती हुई स्त्रियोंके चित्र बनाये गये थे, वे कृत्रिम स्त्रियाँ अपनी दृष्टिसे देखते हुए पुरुषोंको मानो मोह रही थीं ॥ 12 ॥ इसी प्रकार हाथमें धनुष धारण किये मनोहर द्वारपाल स्थावर होकर भी जंगमके सदृश प्रतीत होते थे ॥ 13 ॥
क्षीरसागरसे उत्पन्न हुई सर्वलक्षणयुक्त साक्षात् लक्ष्मीके समान अद्भुत कृत्रिम महालक्ष्मी दरवाजेपर बनायी गयी थी ॥ 14 ॥
अलंकृत हाथी वास्तविक हाथीके समान दिखायी पड़ते थे। इसी प्रकार घुड़सवारोंसे समन्वित अश्व तथा गजारोहियोंसे युक्त गज और आश्चर्यपूर्ण रथीसे युक्त रथ समतामें किसी प्रकार जीवधारीसे कम न थे। अनेक प्रकारके वाहन तथा पैदल कृत्रिम होते अकृत्रिम - जैसे प्रतीत होते थे । ll 15-16 ॥ हे मुने! उन प्रसन्नचित्त विश्वकर्माने देवताओं और मुनियोंको मोहित करनेके लिये यह सब किया था ।। 17 ।।
हे मुने! महाद्वारपर शुद्ध स्फटिकके समान अत्यन्त उज्ज्वल नन्दीका चित्र बनाया गया था, वह साक्षात् नन्दीके ही समान था। उसके ऊपर महादिव्य, रत्नजटित एवं मनोहर पल्लवों तथा चामरोंसे शोभायमान पुष्पक विमान रखा हुआ था ।। 18-19 ॥
द्वारके बायें भागमें शुद्ध काश्मीरी रंगके चार दाँतवाले दो हाथी बनाये गये थे, जो महाकान्तिमान् तथा साठ वर्षके थे और एक दूसरेसे भिड़े हुए थे ॥ 20 ll
उसी प्रकार सूर्यके समान महाकान्तिमान् तथा दिव्य दो घोड़े भी बनाये गये थे, जो चैवरों तथा दिव्य अलंकारोंसे सुसज्जित थे ॥ 21 ॥
विश्वकर्माने श्रेष्ठ रत्नोंसे विभूषित यथार्थ रूपवाले सभी लोकपालों तथा देवताओंको बनाया था ॥ 22 ॥ इसी प्रकार तपोधन भृगु आदि ऋषियों, अन्य उपदेवताओं, सिद्धों तथा अन्य लोगोंके भी चित्रोंका निर्माण किया गया था। कृत्रिम विष्णु अपने गरुड़ आदि | पार्षदोंके साथ इस प्रकारके बनाये गये थे कि उनको देखनेसे महान् आश्चर्य प्रतीत हो रहा था ।। 23-24 ।।
हे नारद! इसी प्रकार अपने पुत्रों, वेदों एवं परिवारके साथ सूक्तपाठ करते हुए मुझ ब्रह्माके चित्रका भी निर्माण कराया गया था। विश्वकर्माने ऐरावतपर चढ़े हुए अपने दलसहित इन्द्रका निर्माण किया था, जो पूर्णचन्द्रके समान प्रकाशित हो रहे थे ।। 25-26 ॥
हे देवर्षे बहुत कहने से क्या लाभ? विश्वकर्माने हिमालयसे प्रेरित होकर सम्पूर्ण देवसमाजकी शीघ्र ही रचना की थी इस प्रकार दिव्य रूपसे युक्त, देवताओंको मोहित करनेवाले तथा अनेक आश्चर्योंसे परिपूर्ण उस विशाल मण्डपका निर्माण विश्वकर्माने किया ।। 27-28 ।।
इसके अनन्तर महाबुद्धिमान् विश्वकर्माने हिमालयकी आज्ञा पाकर देवताओं आदिके निवासके लिये यत्नपूर्वक उनके लोकोंकी रचना की ॥ 29 ॥विश्वकमनि देवताओंको सुख देनेवाले, अत्यधिक प्रभावाले, परम आश्चर्यकारक तथा दिव्य मंचोंका भी निर्माण किया ॥ 30 ॥
उन्होंने ब्रह्माके निवासके लिये क्षणभरमें परम दीप्तिसे युक्त अद्भुत सत्यलोककी रचना कर डाली ॥ 31 ॥ उसी प्रकार उन्होंने विष्णुके लिये वैकुण्ठ नामक स्थान क्षणमात्रमें बनाया, जो अति उज्ज्वल, दिव्य तथा नाना प्रकारके आश्चर्यसे युक्त था ॥ 32 ॥ उन विश्वकर्माने सम्पूर्ण ऐश्वर्यसे युद्ध, अत्यन्त अद्भुत, दिव्य तथा उत्तम इन्द्रभवनका निर्माण किया ॥ 33 ॥
उसी प्रकार उन्होंने लोकपालोंके लिये सुन्दर, दिव्य, अद्भुत तथा महान् गृहोंकी प्रीतिपूर्वक रचना की ll 34 ll
उन्होंने अन्य देवताओंके लिये क्रमशः विचित्र गृहोंकी रचना की। शिवजीसे वर प्राप्त करनेके कारण महाबुद्धिमान् विश्वकर्माने क्षणभरमें शिवजीकी प्रसन्नताके लिये सारे स्थानका निर्माण किया ।। 35-36 ।।
उन्होंने शिवलोकमें रहनेवाले, परम उज्ज्वल महान् प्रभावाले, श्रेष्ठ देवताओंसे पूजित, गिरीशके चिह्नोंसे युक्त तथा शोभासम्पन्न शिवगृहका निर्माण किया ॥ 37 ॥
उन विश्वकर्माने शिवजीकी प्रसन्नताके लिये इस प्रकारकी विचित्र, परम आश्चर्यसे युक तथा परमोज्ज्वल रचना की थी। इस प्रकार यह सारा लौकिक व्यवहार करके वे हिमालय अत्यन्त प्रेमसे शिवके आगमनकी प्रतीक्षा करने लगे। हे देवर्षे मैंने हिमालयका आनन्ददायक वृत्तान्त पूर्णरूपसे कह दिया, अब आप और क्या सुनना चाहते हैं? ॥ 38-40 ॥