श्रीशुकदेवजी कहते हैं- परीक्षित्! कुशका पुत्र हुआ अतिथि, उसका निषध, निषधका नभ, नभका पुण्डरीक और पुण्डरीकका क्षेमधन्वा ॥ 1 ॥ क्षेमधन्याका देवानीक, देवानीकका अनीह, अनीहका पारियात्र, पारियात्रका बलस्थल और बलस्थलका पुत्र हुआ वज्रनाभ। यह सूर्यका अंश था ॥ 2 ॥
वज्रनाभसे खगण, स्वगणसे विभूति और विभूतिसे हिरण्यनाभकी उत्पत्ति हुई। वह जैमिनिका शिष्य और योगाचार्य था ॥ 3 ॥ कोसलदेशवासी याज्ञवल्क्य ऋषिने | उसकी शिष्यता स्वीकार करके उससे अध्यात्मयोगकी शिक्षा ग्रहण की थी। वह योग हृदयकी गाँठ काट देनेवाला तथा परम सिद्धि देनेवाला है ॥ 4 ॥
हिरण्यनाभका पुष्य, पुष्यका धुवसन्धि, ध्रुवसन्धिका सुदर्शन, सुदर्शनका अभिवर्ण, अग्निवर्णका शीघ्र और शीघ्रका पुत्र हुआ मरु ॥ 5 ॥ मरुने योगसाधना से सिद्धि प्राप्त कर ली और वह इस समय भी कलाप नामक ग्राममें रहता है। कलियुगके अन्तमें सूर्यवंशके नष्ट हो जानेपर वह उसे फिरसे चलायेगा ॥ 6 ॥मरुसे प्रसुश्रुत, उससे सन्धि और सन्धिसे अमर्षणका जन्म हुआ। अमर्षणका महस्वान् और महस्वान्का विश्वसा ॥ 7 ॥ विश्वसाहका प्रसेनजित्, प्रसेनजित्का तक्षक और तक्षकका पुत्र बृहद्बल हुआ। परीक्षित्! इसी बृहद्बलको तुम्हारे पिता अभिमन्युने युद्ध में मार डाला था ॥ 8 ॥
परीक्षित् ! इक्ष्वाकुवंशके इतने नरपति हो चुके हैं। अब आनेवालोंके विषयमें सुनो। बृहद्बलका पुत्र होगा बृहद्रण ॥ 9 ॥ बृहद्रणका उरुक्रिय, उसका वत्सवृद्ध, वत्सवृद्धका प्रतिव्योम, प्रतिव्योमका भानु और भानुका पुत्र होगा सेनापति दिवाक ॥ 10 ॥ दिवाकका वीर सहदेव, सहदेवका बृहदश्व, बृहदश्वका भानुमान्, भानुमान्का प्रतीकाश्व और प्रतीकाश्वका पुत्र होगा सुप्रतीक ॥ 11 ॥ सुप्रतीकका मरुदेव, मरुदेवका सुनक्षत्र, सुनक्षत्रका पुष्कर, पुष्करका अन्तरिक्ष, अन्तरिक्षका सुतपा और उसका पुत्र होगा अमित्रजित् ॥ 12 ॥ अमित्रजित्से बृहद्राज, बृहद्राजसे बर्हि, बर्हिसे कृतञ्जय, कृतञ्जयसे रणञ्जय और उससे सञ्जय होगा ॥ 13 ॥ सञ्जयका शाक्य, उसका शुद्धोद और शुद्धोदका लाङ्गल, लाङ्गलका प्रसेनजित् और प्रसेनजित्का पुत्र क्षुद्रक होगा ॥ 14 ॥ क्षुद्रकसे रणक, रणकसे सुरथ और सुरथसे इस वंशके अन्तिम राजा सुमित्रका जन्म होगा। ये सब बृहद्बलके वंशधर होंगे ॥ 15 ॥ इक्ष्वाकुका यह वंश सुमित्रतक ही रहेगा। क्योंकि सुमित्रके राजा होनेपर कलियुगमें यह वंश समाप्त हो जायगा ॥ 16 ॥