श्रीशुकदेवजीने कहा- परीक्षित् तुमने मुझसे जो पूछा था कि मरते समय बुद्धिमान मनुष्यको क्या करना चाहिये, उसका उत्तर मैने तुम्हें दे दिया ॥ 1 ॥ जो ब्रह्मतेजका इच्छुक हो, वह बृहस्पतिकी, जिसे इन्द्रियोंकी विशेष शक्तिको कामना हो, वह इन्द्रकी और जिसे सन्तानकी लालसा हो, वह प्रजापतियोंकी उपासना करे ॥ 2 ॥ जिसे लक्ष्मी चाहिये वह मायादेवीकी, जिसे तेज चाहिये वह अफ्रिकी, जिसे धन चाहिये यह वसुओंकी और जिस प्रभावशाली पुरुषको वीरताकी चाह हो उसे रुद्रोंकी उपासना करनी चाहिये ॥ 3॥ जिसे बहुत अन्न प्राप्त करने की इच्छा हो वह अदितिका, जिसे स्वर्गकी कामना हो वह अदितिके पुत्र देवताओंका जिसे राज्यकी अभिलाषा हो यह विश्वेदेवोंका और जो प्रजाको अपने अनुकूल बनानेकी इच्छा रखता हो उसे साध्य देवताओंका आराधन करना | चाहिये ॥ 4 ॥ आयुकी इच्छासे अश्विनीकुमारोका, पुष्टिको इच्छासे पृथ्वीका और प्रतिष्ठाको चाह हो तो लोकमाता पृथ्वी और धौ (आकाश) का सेवन करना चाहिये ॥ 5 ॥ सौन्दर्यको चाहसे गन्धवोंकी, पत्नीकी प्राप्तिके लिये उर्वशी असराको और सबका स्वामी बननेके लिये ब्रह्माको आराधना करनी चाहिये ।। 6 ।। जिसे यशकी इच्छा हो वह यज्ञपुरुषको जिसे खजाने की लालसा हो वह वरुणकी; विद्या प्राप्त करनेकी आकाङ्क्षा हो तो भगवान् शङ्करकी और पति-पत्नीमें परस्पर प्रेम बनाये रखनेके लिये पार्वतीजीको उपासना करनी चाहिये 7 ॥ धर्म-उपार्जन करनेके लिये विष्णुभगवान्की, वंशपरम्पराको रक्षाके लिये पितरोंकी, बाधाओंसे बचनेके लिये यक्षोंकी और बलवान् होनेके लिये मरुद्गणीको आराधना करनी चाहिये 8 ॥ राज्यके लिये मन्वन्तरोके अधिपति देवोंको, अभिचारके लिये निर्ऋतिको, भोगोंके लिये चन्द्रमाको और निष्कामता प्राप्त करनेके लिये परम पुरुष नारायणको भजना | चाहिये ।। 9 ।। और जो बुद्धिमान पुरुष है वह चाहे निष्काम हो, समस्त कामनाओंसे युक्त हो अथवा मोक्ष चाहता हो उसे तो तीव्र भक्तियोग द्वारा केवल पुरुषोत्तम भगवान्को ही आराधना करनी चाहिये ||10|| जितने भी उपासक हैं, उनका सबसे बड़ा हित इसमें है कि वे भगवान्के प्रेमी भक्तोका सङ्ग करके भगवान्मे अविचल प्रेम प्राप्त कर ले 1.1 ॥ऐसे पुरुषोंके जो भगवानकी लीलाकथाएँ होती है. उनसे उस दुर्लभ ज्ञानकी प्राप्ति होती है, जिससे संसार सागरकी त्रिगुणमयी तरङ्गमालाओंके थपेड़े शान्त हो जाते हैं, हृदय शुद्ध होकर आनन्दका अनुभव होने लगता है, इन्द्रियोंके विषयों में आसक्ति नहीं रहती केवल्यमोका सर्वसम्मत मार्ग भक्तियोग प्राप्त हो जाता है। भगवान्की ऐसी रसमयी कथाओंका चस्का लग जानेपर भला कौन ऐसा है, जो उनमें प्रेम न करे ।। 12 ।।
शौनकजीने कहा-सूतजी ! राजा परीक्षितने शुकदेवजीकी यह बात सुनकर उनसे और क्या पूछा? वे तो सर्वज्ञ होने के साथ-ही-साथ मधुर वर्णन करनेमें भी बड़े निपुण थे ॥ 13 ॥ सूतजी ! आप तो सब कुछ जानते हैं, हमलोग उनकी वह बातचीत बड़े प्रेमसे सुनना चाहते हैं, आप कृपा करके अवश्य सुनाइये। क्योंकि संतोंकी सभामें ऐसी ही बातें होती हैं, जिनका पर्यवसान भगवान्की रसमयी लीला-कथामें ही होता है ॥ 14 ॥ पाण्डुनन्दन महारथी राजा परीक्षित् बड़े | भगवद्भक्त थे। बाल्यावस्थामें खिलौनोंसे खेलते समय भी वे श्रीकृष्णलीलाका ही रस लेते थे ॥ 15 ॥ भगवन्मयः श्रीशुकदेवजी भी जन्मसे ही भगवत्परायण हैं। ऐसे संतोंके भगवान् महलय गुणको दिव्य वर्षा अवश्य ही हुई होगी ॥ 16 ॥ जिसका समय भगवान् श्रीकृष्णके गुणोंके गान अथवा श्रवणमें व्यतीत हो रहा है, उसके अतिरिक्त सभी मनुष्योंकी आयु व्यर्थ जा रही है। ये भगवान् सूर्य प्रतिदिन अपने उदय और अस्तसे उनकी आयु छीनते जा रहे हैं ।। 17 ।। क्या वृक्ष नहीं जीते ? क्या लुहारकी धौंकनी साँस नहीं लेती ? गाँवके अन्य पालतू पशु क्या मनुष्य पशुकी ही तरह खाते-पीते या मैथुन नहीं करते ? || 18 | जिसके कानमें भगवान् श्रीकृष्णकी लीला-कथा कभी नहीं पड़ी, वह नर पशु, कुत्ते, ग्रामसूकर, ऊँट और गधेसे भी गया बीता है ॥ 19 ॥
सूतजी ! जो मनुष्य भगवान् श्रीकृष्णकी कथा कभी नहीं सुनता, उसके कान बिलके समान है। जो जीभ भगवान्की लीलाओंका गायन नहीं करती, वह मेढककी जोभके समान टर्र-टर्र करनेवाली है; उसका तो न रहना ही अच्छा है ॥ 20 ॥ जो सिर कभी भगवान् श्रीकृष्णके चरणोंमें झुकता नहीं, वह | रेशमी वस्त्रसे सुसज्जित और मुकुटसे युक्त होनेपर भी बोझामात्र ही है। जो हाथ भगवान्की सेवा-पूजा नहीं करते, वे सोनेके कंगनसे भूषित होनेपर भी मुर्दे हाथ है।॥ 29॥