श्रीशुकदेवजी कहते हैं-परीक्षित् राजेन्द्र पुरूरवाका एक पुत्र था आयु। उसके पाँच लड़के हुए नहुष, क्षत्रवृद्ध, रजि, शक्तिशाली रम्भ और अनेना। अब वृद्ध वंश वृद्ध पुत्र सुत्र सुहोत्र के तीन पुत्र हुए- काश्य, कुश और गृत्समद । गृत्समदका पुत्र हुआ शुनक इसी शुनकके पुत्र ऋग्वेदियोंमें श्रेष्ठ मुनिवर शौनकजी हुए ।। 1-3 ॥
काश्यका पुत्र काशि, काशिका राष्ट्र, राष्ट्रका दीर्घतमा और दीर्घतमा धन्वन्तरि यही आयुर्वेदके प्रवर्तक हैं ॥ 4 ॥ ये यज्ञभागके भोक्ता और भगवान् वासुदेवके अंश हैं। इनके स्मरणमात्रसे ही सब प्रकारके रोग दूर हो जाते हैं। धन्वन्तरिका पुत्र हुआ केतुमान् और केतुमान्का भीमरथ ॥ 5 ॥
भीमरथका दिवोदास और दिवोदासका घुमान्– जिसका एक नाम प्रतर्दन भी है। यही घुमान् शत्रुजित् वत्स, ऋतध्वज और कुवलयाश्वके नामसे भी प्रसिद्ध है। घुमान्के ही पुत्र अलर्क आदि हुए ॥ 6 ॥ परीक्षित् ! अलर्कके सिवा और किसी राजाने छाछठ हजार (66,000) वर्षतक युवा रहकर पृथ्वीका राज्य नहीं भोगा ॥ 7 ॥ अलर्कका पुत्र हुआ सन्तति, सन्ततिका सुनीथ, सुनीथका सुकेतन, सुकेतनका धर्मकेतु और धर्मकेतुका सत्यकेतु ॥ 8 ॥
सत्यकेतुसे धृष्टकेतु, धृष्टकेतुसे राजा सुकुमार, सुकुमारसे वीतिहोत्र, वीतिहोत्रसे भर्ग और भर्गसे राजा भार्गभूमिका जन्म हुआ ॥ 9 ॥ये सब-के-सब क्षत्रवृद्धके वंशमें काशिसे उत्पन्न नरपति हुए। रम्भके पुत्रका नाम था रभस, उससे गम्भीर और गम्भीरसे अक्रियका जन्म हुआ ॥ 10 ॥ अक्रियकी पत्नीसे ब्राह्मणवंश चला। अब अनेनाका वंश सुनो। अनेनाका पुत्र था शुद्ध, शुद्धका शुचि, शुचिका त्रिककुद् |और त्रिककुदका धर्मसारथि ॥ 11 ॥ धर्मसारथिके पुत्र थे शान्तरय । शान्तरय आत्मज्ञानी होनेके कारण कृतकृत्य थे, उन्हें सन्तानकी आवश्यकता न थी। परीक्षित् ! आयुके पुत्र रजिके अत्यन्त तेजस्वी पाँच सौ पुत्र थे ।। 12 ।।
देवताओंकी प्रार्थनासे रजिने दैत्योंका वध करके इन्द्रको स्वर्गका राज्य दिया। परन्तु वे अपने प्रह्लाद आदि शत्रुओंसे भयभीत रहते थे, इसलिये उन्होंने वह स्वर्ग फिर रजिको लौटा दिया और उनके चरण पकड़कर उन्हींको अपनी रक्षाका भार भी सौंप दिया। जब रजिकी मृत्यु हो गयी, तब इन्द्रके माँगनेपर भी रजिके पुत्रोंने स्वर्ग नहीं लौटाया। वे स्वयं ही यज्ञोंका भाग भी ग्रहण करने लगे। तब गुरु बृहस्पतिजीने इन्द्रकी प्रार्थनासे अभिचार विधिसे हवन किया। इससे वे धर्मके मार्गसे भ्रष्ट हो गये । तब इन्द्रने अनायास ही उन सब रजिके पुत्रोंको मार डाला। उनमें से कोई भी न बचा। क्षत्रवृद्धके पौत्र कुशसे प्रति, प्रतिसे सञ्जय और सज्जयसे जयका जन्म हुआ ॥ 13 – 16 ॥ जयसे कृत, कृतसे राजा हर्यवन, हर्यवनसे सहदेव, सहदेवसे हीन और होनसे जयसेन | नामक पुत्र हुआ || 17 ॥ जयसेनका सङ्कति, सङ्कृतिका पुत्र हुआ महारथी वीरशिरोमणि जय। क्षत्रवृद्धकी वंश-परम्परामें इतने ही नरपति हुए। अब नहुषवंशका वर्णन सुनो ॥ 18 ॥