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श्रीमद्भागवत महापुरण (भागवत पुराण)

Shrimad Bhagwat Purana (Bhagwat Katha)

स्कन्ध 8, अध्याय 14 - Skand 8, Adhyay 14

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मनु आदिके पृथक्-पृथक् कर्मोंका निरूपण

राजा परीक्षितने पूछा-भगवन्! आपके द्वारा वर्णित ये मनु, मनुपुत्र, सप्तर्षि आदि अपने-अपने मन्वन्तरमें किसके द्वारा नियुक्त होकर कौन-कौन-सा काम किस प्रकार करते हैं- यह आप कृपा करके मुझे बतलाइये ॥ 1 ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैं— परीक्षित्! मनु, मनुपुत्र, सप्तर्षि और देवता-सबको नियुक्त करनेवाले स्वयं भगवान् ही हैं ॥ 2 ॥राजन् ! भगवान्‌के जिन यज्ञपुरुष आदि अवतार शरीरोंका वर्णन मैंने किया है, उन्हींकी प्रेरणासे मनु आदि विश्व व्यवस्थाका सञ्चालन करते हैं ॥ 3 ॥ चतुर्युगी अन्तमे समयके उलट-फेरसे जब श्रुतियाँ नष्टप्राय हो जाती हैं, तब सप्तर्षिगण अपनी तपस्यासे पुनः उनका साक्षात्कार करते हैं। उन श्रुतियोंसे ही सनातनधर्मकी रक्षा होती है ॥ 4 ॥ राजन्! भगवान्की प्रेरणा से अपने-अपने मन्वन्तरमें बड़ी सावधानी से सब-के-सब मनु पृथ्वीपर चारों चरणसे परिपूर्ण धर्मका अनुष्ठान करवाते हैं ॥ 5 ॥ मनुपुत्र मन्वन्तरभर काल और देश दोनोंका विभाग करके प्रजापालन तथा धर्म-पालनका कार्य करते हैं। पञ्च-महायज्ञ आदि कर्मोंमें जिन ऋषि, पितर, भूत और मनुष्य आदिका सम्बन्ध है -उनके साथ देवता उस मन्वन्तरमें यज्ञका भाग स्वीकार करते हैं ॥ 6 ॥ इन्द्र भगवान्‌की दी हुई त्रिलोकीकी अतुल सम्पत्तिका उपभोग और प्रजाका पालन करते हैं। संसारमें यथेष्ट वर्षा करनेका अधिकार भी उन्हींको है ॥ 7 ॥ भगवान् युग-युगमें सनक आदि सिद्धों का रूप धारण करके ज्ञानका, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियोंका रूप धारण करके कर्मका और दत्तात्रेय आदि योगेश्वरीके रूपमें योगका उपदेश करते हैं॥ 8 वे मरीचि आदि प्रजापतियोंके रूपमें सृष्टिका विस्तार करते है, सम्राट्के रूपमें लुटेरोंका वध करते हैं और शीत, उष्ण आदि विभिन्न गुणों को धारण करके कालरूपसे सबको संहारकी ओर ले जाते हैं ॥ 9 ॥ नाम और रूपकी मायासे प्राणियोंकी बुद्धि विमूढ़ हो रही है। इसलिये वे अनेक प्रकारके दर्शनशास्त्रोंके द्वारा महिमा तो भगवान्‌की ही गाते हैं, परन्तु उनके वास्तविक स्वरूपको नहीं जान पाते ॥ 10 ॥ परीक्षित्! इस प्रकार मैंने तुम्हें महाकल्प और अवान्तर कल्पका परिमाण सुना दिया। पुराणतत्त्वके विद्वानोंने प्रत्येक अवान्तर कल्पमें चौदह मन्वन्तर बतलाये हैं ॥ 11 ॥

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श्रीमद्भागवत महापुरण
Index


  1. [अध्याय 1] मन्वन्तरोंका वर्णन
  2. [अध्याय 2] ग्राहके द्वारा गजेन्द्रका पकड़ा जाना
  3. [अध्याय 3] गजेन्द्र के द्वारा भगवान्‌की स्तुति और उसका संकट मुक्त होना
  4. [अध्याय 4] गज और ग्राहका पूर्वचरित्र तथा उनका उद्धार
  5. [अध्याय 5] देवताओंका ब्रह्माजीके पास जाना और स्तुति
  6. [अध्याय 6] देवताओं और दैत्योका मिलकर समुद्रमन्थन का विचार
  7. [अध्याय 7] समुद्रमन्थनका आरम्भ और भगवान् शङ्करका विषपान
  8. [अध्याय 8] समुद्रसे अमृतका प्रकट होना और भगवान्‌का मोहिनी अवतार
  9. [अध्याय 9] मोहिनीरूपसे भगवान्के द्वारा अमृत बाँटा जाना
  10. [अध्याय 10] देवासुर संग्राम
  11. [अध्याय 11] देवासुर संग्रामकी समाप्ति
  12. [अध्याय 12] मोहिनीरूपको देखकर महादेवजीका मोहित होना
  13. [अध्याय 13] आगामी सात मन्वन्तरोका वर्णन
  14. [अध्याय 14] मनु आदिके पृथक्-पृथक् कर्मोंका निरूपण
  15. [अध्याय 15] राजा बलिकी स्वर्गपर विजय
  16. [अध्याय 16] कश्यपनीके द्वारा अदितिको पयोव्रतका उपदेश
  17. [अध्याय 17] भगवान्‌का प्रकट होकर अदितिको वर देना
  18. [अध्याय 18] वामनभगवान्‌का प्रकट होकर राजा बलिकी यज्ञशाला में जाना
  19. [अध्याय 19] भगवान् वामनका बलिसे तीन पग पृथ्वी माँगना
  20. [अध्याय 20] भगवान् वामनजीका विराट् रूप होकर दो ही पगसे पृथ
  21. [अध्याय 21] बलिका बाँधा जाना
  22. [अध्याय 22] बलिके द्वारा भगवान्‌की स्तुति और भगवान्‌ का प्रसन्न होना
  23. [अध्याय 23] बलिका बन्धनसे छूटकर सुतल लोकको जाना
  24. [अध्याय 24] भगवान्के मत्स्यावतारकी कथा