राजा परीक्षितने पूछा-भगवन्! आपके द्वारा वर्णित ये मनु, मनुपुत्र, सप्तर्षि आदि अपने-अपने मन्वन्तरमें किसके द्वारा नियुक्त होकर कौन-कौन-सा काम किस प्रकार करते हैं- यह आप कृपा करके मुझे बतलाइये ॥ 1 ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं— परीक्षित्! मनु, मनुपुत्र, सप्तर्षि और देवता-सबको नियुक्त करनेवाले स्वयं भगवान् ही हैं ॥ 2 ॥राजन् ! भगवान्के जिन यज्ञपुरुष आदि अवतार शरीरोंका वर्णन मैंने किया है, उन्हींकी प्रेरणासे मनु आदि विश्व व्यवस्थाका सञ्चालन करते हैं ॥ 3 ॥ चतुर्युगी अन्तमे समयके उलट-फेरसे जब श्रुतियाँ नष्टप्राय हो जाती हैं, तब सप्तर्षिगण अपनी तपस्यासे पुनः उनका साक्षात्कार करते हैं। उन श्रुतियोंसे ही सनातनधर्मकी रक्षा होती है ॥ 4 ॥ राजन्! भगवान्की प्रेरणा से अपने-अपने मन्वन्तरमें बड़ी सावधानी से सब-के-सब मनु पृथ्वीपर चारों चरणसे परिपूर्ण धर्मका अनुष्ठान करवाते हैं ॥ 5 ॥ मनुपुत्र मन्वन्तरभर काल और देश दोनोंका विभाग करके प्रजापालन तथा धर्म-पालनका कार्य करते हैं। पञ्च-महायज्ञ आदि कर्मोंमें जिन ऋषि, पितर, भूत और मनुष्य आदिका सम्बन्ध है -उनके साथ देवता उस मन्वन्तरमें यज्ञका भाग स्वीकार करते हैं ॥ 6 ॥ इन्द्र भगवान्की दी हुई त्रिलोकीकी अतुल सम्पत्तिका उपभोग और प्रजाका पालन करते हैं। संसारमें यथेष्ट वर्षा करनेका अधिकार भी उन्हींको है ॥ 7 ॥ भगवान् युग-युगमें सनक आदि सिद्धों का रूप धारण करके ज्ञानका, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियोंका रूप धारण करके कर्मका और दत्तात्रेय आदि योगेश्वरीके रूपमें योगका उपदेश करते हैं॥ 8 वे मरीचि आदि प्रजापतियोंके रूपमें सृष्टिका विस्तार करते है, सम्राट्के रूपमें लुटेरोंका वध करते हैं और शीत, उष्ण आदि विभिन्न गुणों को धारण करके कालरूपसे सबको संहारकी ओर ले जाते हैं ॥ 9 ॥ नाम और रूपकी मायासे प्राणियोंकी बुद्धि विमूढ़ हो रही है। इसलिये वे अनेक प्रकारके दर्शनशास्त्रोंके द्वारा महिमा तो भगवान्की ही गाते हैं, परन्तु उनके वास्तविक स्वरूपको नहीं जान पाते ॥ 10 ॥ परीक्षित्! इस प्रकार मैंने तुम्हें महाकल्प और अवान्तर कल्पका परिमाण सुना दिया। पुराणतत्त्वके विद्वानोंने प्रत्येक अवान्तर कल्पमें चौदह मन्वन्तर बतलाये हैं ॥ 11 ॥