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कैसी होरी मचाई, कन्हाई
अचरज लख्यो ना जाई, कैसी होरी मचाई...

कैसी होरी मचाई, कन्हाई
अचरज लख्यो ना जाई, कैसी होरी मचाई...

एक समय श्री कृष्णा प्रभो को, होरी खेलें मन आई
एक से होरी मचे नहीं कबहू, याते करूँ बहुताई
यही प्रभु ने ठहराई, कैसी होरी मचाई...

पांच भूत की धातु मिलाकर, एण्ड पिचकारी बताई
चौदह भुवन रंग भीतर भर के, नाना रूप धराई
प्रकट भये कृष्ण कन्हाई, कैसी होरी मचाई...

पांच विषय की गुलाल बना के, बीच ब्रह्माण्ड उड़ाई
जिन जिन नैन गुलाल पड़ी वह, सुध बुध सब बिसराई
नहीं सूझत अपनहि, कैसी होरी मचाई...

वेद अनेक अनजान की सिला का, जिसने नैन में पायी
ब्रह्मानंद तिस्का तम नास्यो, सूझ पड़ी अपनहि



kaisi hori machayi re kanhayi

kaisi hori mchaai, kanhaaee
acharaj lakhyo na jaai, kaisi hori mchaai...


ek samay shri krishna prbho ko, hori khelen man aaee
ek se hori mche nahi kabahoo, yaate karoon bahutaaee
yahi prbhu ne thaharaai, kaisi hori mchaai...

paanch bhoot ki dhaatu milaakar, end pichakaari bataaee
chaudah bhuvan rang bheetar bhar ke, naana roop dharaaee
prakat bhaye krishn kanhaai, kaisi hori mchaai...

paanch vishay ki gulaal bana ke, beech brahamaand udaaee
jin jin nain gulaal padi vah, sudh budh sab bisaraaee
nahi soojhat apanahi, kaisi hori mchaai...

ved anek anajaan ki sila ka, jisane nain me paayee
brahamaanand tiska tam naasyo, soojh padi apanahi
ori kchhu bani n banaai, kaisi hori mchaai...

kaisi hori mchaai, kanhaaee
acharaj lakhyo na jaai, kaisi hori mchaai...




kaisi hori machayi re kanhayi Lyrics





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