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रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही यह सृष्टि चला रहे हैं,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही यह सृष्टि चला रहे हैं,
जो पेड़ हमने लगाए पहले,
उसी का फल अब हम पा रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने...


इसी धारा से शरीर पाए,
इसी धारा में फिर सब समाये,
एक आ रहे हैं एक जा रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने...

जिन्होंने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट कर के फिर से आना,
जो भेजने वाले हैं जहां में,
वही फिर वापस बुला रहे,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने...

बैठे हैं जो धान की बादियों में,
हैं डाल हर पत्ते में,
फूल रंगबिरंगे खिला रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने...

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही यह सृष्टि चला रहे हैं,
जो पेड़ हमने लगाए पहले,
उसी का फल अब हम पा रहे हैं,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने...




rcha hai sarashti ko jis prbhu ne,
vahi yah sarashti chala rahe hain,

rcha hai sarashti ko jis prbhu ne,
vahi yah sarashti chala rahe hain,
jo ped hamane lagaae pahale,
usi ka phal ab ham pa rahe hain,
rcha hai sarashti ko jis prbhu ne...


isi dhaara se shareer paae,
isi dhaara me phir sab samaaye,
ek a rahe hain ek ja rahe hain,
rcha hai sarashti ko jis prbhu ne...

jinhonne bheja jagat me jaana,
tay kar diya laut kar ke phir se aana,
jo bhejane vaale hain jahaan me,
vahi phir vaapas bula rahe,
rcha hai sarashti ko jis prbhu ne...

baithe hain jo dhaan ki baadiyon me,
hain daal har patte me,
phool rangabirange khila rahe hain,
rcha hai sarashti ko jis prbhu ne...

rcha hai sarashti ko jis prbhu ne,
vahi yah sarashti chala rahe hain,
jo ped hamane lagaae pahale,
usi ka phal ab ham pa rahe hain,
rcha hai sarashti ko jis prbhu ne...




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