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जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥

जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥

जाम्बवान के सुहावने वचन सुनकर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे॥
और हनुमानजी ने कहा की हे भाइयो! आप लोग कन्द, मूल व फल खा, दुःख सह कर मेरी राह देखना॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥

जबतक मै सीताजीको देखकर लौट न आऊँ, क्योंकि कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥
ऐसे कह, सबको नमस्कार करके, रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर, प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी।
तरकेउ पवनतनय बल भारी॥

समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था। उसपर कूदकर हनुमानजी कौतुकी से चढ़ गए॥
फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके, बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥

जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखे थे, वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया॥
और जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है, ऐसे हनुमानजी वहा से चले॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥

समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम(रघुनाथ का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की हे मैनाक, तू जा, और इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

मैनाक पर्वत की हनुमानजी से विनतीसोरठा –

सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब।
कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥

समुद्रके वचन कानो में पड़तेही मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत उठा और हनुमानजीके पास आकर वारंवार हाथ जोड़कर उसने हनुमानजीको प्रणाम किया॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

दोहा ( –

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥॥

हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छूकर फिर उसको प्रणाम किया, और कहा की, रामचन्द्रजीका का कार्य किये बिना मुझको विश्राम कहा है? ॥॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

_

हनुमानजीकी सुरसा से भेंटचौपाई ( –

जात पवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥

हनुमानजी को जाते देखकर उसके बल और बुद्धि के वैभव कोजानने के लिए देवताओं ने नाग माता सुरसा को भेजा।
उस नागमाताने आकर हनुमानजीसे यह बात कही॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा।
सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं।
सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥

आज तो मुझको देवताओं ने यह अच्छा आहार दिया। यह बात सुन हँस कर, हनुमानजी बोले॥
– मैं रामचन्द्रजी का काम करके लौट आऊ और सीताजी की खबर रामचन्द्रजी को सुना दूं॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

तब तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥

फिर हे माता! मै आकर आपके मुँह में प्रवेश करूंगा। अभी तू मुझे जाने दे। इसमें कुछभी फर्क नहीं पड़ेगा। मै तुझे सत्य कहता हूँ॥
जब उसने किसी उपायसे उनको जाने नहीं दिया, तब हनुमानजी ने कहा कि तू क्यों देरी करती है? तू मुझको नही खा सकती॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥

सुरसाने अपना मुंह एक योजनभरमें फैलाया। हनुमानजी ने अपना शरीर दो योजन विस्तारवालाकिया॥
सुरसा ने अपना मुँह सोलह (१६ योजनमें फैलाया। हनुमानजीने अपना शरीर तुरंत बत्तीस (३२ योजन बड़ा किया॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥

सुरसा ने जैसा जैसा मुंह फैलाया,हनुमानजीने वैसेही अपना स्वरुप उससे दुगना दिखाया॥
जब सुरसा ने अपना मुंह सौ योजन (चार सौ कोस का में फैलाया, तब हनुमानजी तुरंत बहुत छोटा स्वरुप धारण कर॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥

उसके मुंहमें पैठ कर (घुसकर झट बाहर चले आए। फिर सुरसा से विदा मांग कर हनुमानजी ने प्रणाम किया॥
उस वक़्त सुरसा ने हनुमानजी से कहा की हे हनुमान! देवताओंने मुझको जिसके लिए भेजा था, वह तेरा बल और बुद्धि का भेद मैंनेअच्छी तरह पा लिया है॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

दोहा ( –

राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ॥॥

तुम बल और बुद्धि के भण्डार हो, सो श्रीरामचंद्रजी के सब कार्य सिद्ध करोगे। ऐसे आशीर्वाद देकर सुरसा तो अपने घर को चली, और हनुमानजी प्रसन्न होकर लंकाकी ओर चले ॥॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

हनुमानजी की छाया पकड़ने वाले राक्षस से भेंटचौपाई

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई।
करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं।
जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥

समुद्र के अन्दर एक राक्षस रहता था। सो वह माया करके आकाशचारी पक्षी और जंतुओको पकड़ लिया करता था॥
जो जीवजन्तु आकाश में उड़करजाता, उसकी परछाई जल में देखकर, परछाई को जल में पकड़ लेता॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई।
एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा।
तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥

परछाई को जल में पकड़ लेता, जिससे वह जिव जंतु फिर वहा से सरक नहीं सकता। इसतरह वह हमेशा आकाशचारी जिवजन्तुओ को खाया करता था॥
उसने वही कपट हनुमानसे किया। हनुमान ने उसका वह छल तुरंत पहचान लिया॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

ताहि मारि मारुतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बन सोभा।
गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥

धीर बुद्धिवाले पवनपुत्र वीर हनुमानजी उसे मारकर समुद्र के पार उतर गए॥
वहा जाकर हनुमानजी वन की शोभा देखते है कि भ्रमर मकरंद के लोभसे गुँजाहट कर रहे है॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

हनुमानजी लंका पहुंचे

नाना तरु फल फूल सुहाए।
खग मृग बृंद देखि मन भाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें।
ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥

अनेक प्रकार के वृक्ष फल और फूलोसे शोभायमान हो रहे है। पक्षी और हिरणोंका झुंड देखकर मन मोहित हुआ जाता है॥
वहा सामने हनुमान एक बड़ा विशाल पर्वत देखकर निर्भय होकर उस पहाड़पर कूदकर चढ़ बैठे॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

उमा न कछु कपि कै अधिकाई।
प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी।
कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥

महदेव जी कहते है कि हे पार्वती! इसमें हनुमान की कुछ भी अधिकता नहीं है। यह तो केवल एक रामचन्द्रजीके ही प्रताप का प्रभाव है कि जो कालकोभी खा जाता है॥
पर्वत पर चढ़कर हनुमानजी नेलंका को देखा, तो वह ऐसी बड़ी दुर्गम है की जिसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥

पहले तो वह पुरी बहुत ऊँची,फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई।
उसपर भी सुवर्णके कोटका महाप्रकाश कि जिससे नेत्रचकाचौंध हो जावे॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

लंका का वर्णनछंद

कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥

उस नगरीका रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट अतिव सुन्दर बना हुआ है। चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार उस सुन्दर नगरीके अन्दर बनी है॥
जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथोकी गिनती कोई नहीं कर सकता। और जहा महाबली अद्भुत रूपवाले राक्षसोके सेनाके झुंड इतने है की जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥

जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है। जहां मनुष्यकन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर मुनिलोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥
कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट मल्ल गर्जनाकरते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एकको आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥

जहा कही विकट शरीर वाले करोडो भट चारो तरफसे नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे, बकरे और पक्षीयोंको खा रहे है॥
राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है। इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है। ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्रतीर्थनदीके अन्दर अपना शरीर त्यागकर गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥

जय सियाराम जय जय सियाराम

दोहा ( –

पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार ॥॥

हनुमानजी ने बहुत से रखवालो को देखकर मन में विचार किया की मै छोटा रूप धारण करके नगर में प्रवेश करूँ ॥॥



sunderkand path

jaamavant ke bchan suhaae.
suni hanumant haraday ati bhaae..
tab lagi mohi parikhehu tumh bhaai.
sahi dukh kand mool phal khaai..

jaambavaan ke suhaavane vchan sunakar hanumanjee ko apane man me ve vchan bahut achchhe lage..
aur hanumanji ne kaha ki he bhaaiyo! aap log kand, mool v phal kha, duhkh sah kar meri raah dekhanaa..

jay siyaaram jay jay siyaaram

jab lagi aavaun seetahi dekhi.
hoihi kaaju mohi harsh biseshi..
yah kahi naai sabanhi kahun maathaa.
chaleu harshi hiyan dhari rghunaathaa..

jabatak mai seetaajeeko dekhakar laut n aaoon, kyonki kaary siddh hone par man ko badaa harsh hogaa..
aise kah, sabako namaskaar karake, ramchandrajee ka haraday me dhayaan dharakar, prasann hokar hanumanji lanka jaane ke lie chale..

jay siyaaram jay jay siyaaram

sindhu teer ek bhoodhar sundar.
kautuk koodi chadaheu ta oopar..
baar-baar rghubeer sanbhaari.
tarakeu pavanatanay bal bhaari..

samudr ke teer par ek sundar pahaad thaa. usapar koodakar hanumanjee kautukee se chadah ge..
phir vaaranvaar ramchandraji ka smaran karake, bade paraakram ke saath hanumanji ne garjanaa ki..

jay siyaaram jay jay siyaaram

jehin giri charan dei hanumantaa.
chaleu so gaa paataal turantaa..
jimi amogh rghupati kar baanaa.
ehi bhaanti chaleu hanumanaa..

jis pahaad par hanumanji ne paanv rkhe the, vah pahaad turant paataal ke andar chala gayaa..
aur jaise shreeramchandrajee kaa amogh baan jaata hai, aise hanumanji vaha se chale..

jay siyaaram jay jay siyaaram

jalanidhi rghupati doot bichaari.
tain mainaak hohi shrm haari..

samudr ne hanumanji ko shreeram(rghunaath ka doot jaanakar mainaak naam parvat se kahaa ki he mainaak, too ja, aur inako thahara kar shrm mitaanevaala ho..

jay siyaaram jay jay siyaaram

mainaak parvat ki hanumanji se vinateesortha

sindhuvchan suni kaan, turat utheu mainaak tab.
kapikahan keenh pranaam, baar baar kar jorikai..

samudrake vchan kaano me padatehi mainaak parvat vahaanse turant utha aur hanumanjeeke paas aakar vaaranvaar haath jodakar usane hanumanjeeko pranaam kiyaa..

jay siyaaram jay jay siyaaram

doha (

hanoomaan tehi parasa kar puni keenh pranaam.
ram kaaju keenhen binu mohi kahaan bishram ....

hanumanji ne usako apane haathase chhookar phir usako pranaam kiya, aur kaha ki, ramchandrajeekaa ka kaary kiye bina mujhako vishram kaha hai ....

jay siyaaram jay jay siyaaram

_

hanumanjeeki surasa se bhentchaupaai (

jaat pavanasut devanh dekhaa.
jaanain kahun bal buddhi biseshaa..
surasa naam ahinh kai maataa.
pthinhi aai kahi tehin baataa..

hanumanji ko jaate dekhakar usake bal aur buddhi ke vaibhav kojaanane ke lie devataaon ne naag maata surasa ko bhejaa.
us naagamaataane aakar hanumanjeese yah baat kahi..

jay siyaaram jay jay siyaaram

aaju suranh mohi deenh ahaaraa.
sunat bchan kah pavanakumaaraa..
ram kaaju kari phiri mainaavaun.
seetaa ki sudhi prbhuhi sunaavaun..

aaj to mujhako devataaon ne yah achchha aahaar diyaa. yah baat sun hans kar, hanumanji bole..
main ramchandrajee ka kaam karake laut aaoo aur seetaaji ki khabar ramchandraji ko suna doon..

jay siyaaram jay jay siyaaram

tab tav badan paithihun aai.
saty kahun mohi jaan de maai..
kavanehun jatan dei nahin jaanaa.
grasasi n mohi kaheu hanumanaa..

phir he maataa! mai aakar aapake munh me pravesh karoongaa. abhi too mujhe jaane de. isame kuchhbhee phark nahi padegaa. mai tujhe saty kahata hoon..
jab usane kisi upaayase unako jaane nahi diya, tab hanumanjee ne kaha ki too kyon deri karati hai too mujhako nahi kha sakati..

jay siyaaram jay jay siyaaram

jojan bhari tehin badanu pasaaraa.
kapi tanu keenh dugun bistaaraa..
sorah jojan mukh tehin thayoo.
turat pavanasut battis bhayoo..

surasaane apana munh ek yojanbharame phailaayaa. hanumanji ne apana shareer do yojan vistaaravaalaakiyaa..
surasa ne apana munh solah (16 yojaname phailaayaa. hanumanjeene apana shareer turant battees (32 yojan bada kiyaa..

jay siyaaram jay jay siyaaram

jas jas surasa badanu badahaavaa.
taasu doon kapi roop dekhaavaa..
sat jojan tehin aanan keenhaa.
ati lghu roop pavanasut leenhaa..

surasa ne jaisa jaisa munh phailaaya,hanumanjeene vaisehee apana svarup usase dugana dikhaayaa..
jab surasa ne apana munh sau yojan (chaar sau kos ka me phailaaya, tab hanumanji turant bahut chhota svarup dhaaran kar..

jay siyaaram jay jay siyaaram

badan pithi puni baaher aavaa.
maaga bidaa taahi siru naavaa..
mohi suranh jehi laagi pthaavaa.
budhi bal maramu tor mainpaavaa..

usake munhame paith kar (ghusakar jhat baahar chale aae. phir surasa se vida maang kar hanumanji ne pranaam kiyaa..
us vakat surasa ne hanumanji se kaha kee he hanuman! devataaonne mujhako jisake lie bheja tha, vah tera bal aur buddhi ka bhed mainneachchhi tarah pa liya hai..

jay siyaaram jay jay siyaaram

doha (

ram kaaju sabu karihahu tumh bal buddhi nidhaan.
aasish dei gi so harshi chaleu hanuman ....

tum bal aur buddhi ke bhandaar ho, so shreeramchandraji ke sab kaary siddh karoge. aise aasheervaad dekar surasa to apane ghar ko chali, aur hanumanjee prasann hokar lankaaki or chale ....

jay siyaaram jay jay siyaaram

hanumanji ki chhaaya pakadane vaale raakshs se bhentchaupaai

nisichari ek sindhu mahun rahi.
kari maaya nbhu ke khag gahi..
jeev jantu je gagan udaaheen.
jal biloki tinh kai parichhaaheen..

samudr ke andar ek raakshs rahata thaa. so vah maaya karake aakaashchaari pakshi aur jantuoko pakad liya karata thaa..
jo jeevajantu aakaash me udakarajaata, usaki parchhaai jal me dekhakar, parchhaai ko jal me pakad letaa..

jay siyaaram jay jay siyaaram

gahi chhaahan sak so n udaai.
ehi bidhi sada gaganchar khaai..
soi chhal hanoomaan kahan keenhaa.
taasu kapatu kapi turatahin cheenhaa..

parchhaai ko jal me pakad leta, jisase vah jiv jantu phir vaha se sarak nahi sakataa. isatarah vah hameshaa aakaashchaaree jivajantuo ko khaaya karata thaa..
usane vahi kapat hanumanse kiyaa. hanuman ne usaka vah chhal turant pahchaan liyaa..

jay siyaaram jay jay siyaaram

taahi maari maarutasut beeraa.
baaridhi paar gayu matidheeraa..
tahaan jaai dekhee ban sobhaa.
gunjat chanchareek mdhu lobhaa..

dheer buddhivaale pavanaputr veer hanumanji use maarakar samudr ke paar utar ge..
vaha jaakar hanumanjee van ki shobha dekhate hai ki bhramar makarand ke lobhase gunjaahat kar rahe hai..

jay siyaaram jay jay siyaaram

hanumanji lanka pahunche

naana taru phal phool suhaae.
khag marag barand dekhi man bhaae..
sail bisaal dekhi ek aagen.
ta par dhaai chadaheu bhay tyaagen..

anek prakaar ke vriksh phal aur phoolose shobhaayamaan ho rahe hai. pakshi aur hiranonka jhund dekhakar man mohit hua jaata hai..
vaha saamane hanuman ek bada vishaal parvat dekhakar nirbhay hokar us pahaadapar koodakar chadah baithe..

jay siyaaram jay jay siyaaram

uma n kchhu kapi kai adhikaai.
prbhu prataap jo kaalahi khaai..
giri par chadahi lanka tehin dekhi.
kahi n jaai ati durg biseshi..

mahadev ji kahate hai ki he paarvatee! isame hanuman ki kuchh bhi adhikata nahi hai. yah to keval ek ramchandrajeeke hee prataap ka prbhaav hai ki jo kaalakobhi kha jaata hai..
parvat par chadahakar hanumanji nelanka ko dekha, to vah aisi badi durgam hai ki jisake vishay me kuchh kaha nahi jaa sakataa..

jay siyaaram jay jay siyaaram

ati utang jalanidhi chahu paasaa.
kanak kot kar param prakaasaa..

pahale to vah puri bahut oonchi,phir usake chaaro or samudr ki khaai.
usapar bhee suvarnake kotaka mahaaprakaash ki jisase netrchakaachaundh ho jaave..

jay siyaaram jay jay siyaaram

lanka ka varnanchhand

kanak koti bichitr mani krit sundaraayatana ghanaa.
chuhatt hatt subatt beetheen chaaru pur bahu bidhi banaa..
gaj baaji khachchar nikar padchar rth baroothanhi ko ganai.
bahuroop nisichar jooth atibal sen baranat nahin banai..

us nagareeka ratnon se jada huaa suvarn ka kot ativ sundar bana hua hai. chauhate, dukaane v sundar galiyon ke bahaar us sundar nagareeke andar bani hai..
jaha haathi, ghode, khachchar, paidal v rthoki ginati koi nahi kar sakataa. aur jaha mahaabali adbhut roopavaale raakshsoke senaake jhund itane hai ki jisaka varnan kiya nahi ja sakataa..

jay siyaaram jay jay siyaaram

ban baag upaban baatika sar koop baapeen sohaheen.
nar naag sur gandharb kanya roop muni man mohaheen..
kahun maal deh bisaal sail samaan atibal garjaheen.
naana akhaarenh bhirahin bahubidhi ek ekanh tarjaheen..

jaha van, baag, baageeche, baavadiya, taalaab, kuen, baavaliyaa shobhaayamaan ho rahi hai. jahaan manushyakanya, naagakanya, devakanya aur gandharvakanyaaye viraajamaan ho rahi hai jinakaa roop dekhakar munilogokaa man mohit hua jaata hai..
kahi parvat ke samaan bade vishaal dehavaale mahaabalisht mall garjanaakarate hai aur anek akhaadon me anek prakaarase bhid rahe hai aur ek ekako aapas me patak patak kar garjana kar rahe hai..

jay siyaaram jay jay siyaaram

kari jatan bhat kotinh bikat tan nagar chahun disi rachchhaheen.
kahun mahish maanush dhenu khar aj khal nisaachar bhachchhaheen..
ehi laagi tulaseedaas inh ki kthaa kchhu ek hai kahi.
rghubeer sar teerth sareeranhi tyaagi gati paihahin sahi..

jaha kahi vikat shareer vaale karodo bhat chaaro tarphase nagaraki raksha karate hai aur kahi ve raakshs log bhainse, manushy, gau, gdhe, bakare aur paksheeyonko kha rahe hai..
raakshs logo ka aacharan bahut bura hai. iseelie tulaseedaasaji kahate hai ki mainne inaki ktha bahut sankshepase kahi hai. ye mahaadusht hai, parantu ramchandrajeeke baanaroop pavitrteerthanadeeke andar apanaa shareer tyaagakar gati arthaat mokshko praapt honge..

jay siyaaram jay jay siyaaram

doha (

pur rkhavaare dekhi bahu kapi man keenh bichaar.
ati lghu roop dharon nisi nagar karaun pisaar ....

hanumanji ne bahut se rkhavaalo ko dekhakar man me vichaar kiya kee mai chhota roop dhaaran karake nagar me pravesh karoon ....







Bhajan Lyrics View All

मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
तेरा पल पल बिता जाए रे
मुख से जप ले नमः शवाए
राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
एक बार आ गए तो कबू नहीं जायेंगे ॥
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
ज़री की पगड़ी बाँधे, सुंदर आँखों वाला,
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
सुबह सवेरे  लेकर तेरा नाम प्रभु,
करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया
दिल दीवाना हो गया, दिल दीवाना हो गया ॥
तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ ।
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
तमन्ना यही है के उड के बरसाने आयुं मैं
आके बरसाने में तेरे दिल की हसरतो को
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
आज बृज में होली रे रसिया।
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
राधा नाम की लगाई फुलवारी, के पत्ता
के पत्ता पत्ता श्याम बोलता, के पत्ता
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
कोई ना बताये और शाम हो गयी,
ऐसी होली तोहे खिलाऊँ
दूध छटी को याद दिलाऊँ
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
यह मेरी अर्जी है,
मैं वैसी बन जाऊं जो तेरी मर्ज़ी है

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पूछ रहे भोलेनाथ,
के गौरा तुम कै बहना,
श्रृंगार प्यारो लागे, दरबार प्यारो
नैना निरखे बारम्बार, श्रृंगार प्यारो
जय माता दी, जय माता दी,
प्रेम से बोलो जय माता दी,
लड्डू बरसे रंगलाल बरसे,
बरसाने की होली में गुलाल बरसे...
अब के नवरात मेरे,
अंगना पधारो जगदम्बे भवानी,