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॥ गोपीगीतम् ॥

॥ गोपीगीतम् ॥

गोप्य ऊचुः ।
जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः
    श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि ।
दयित दृश्यतां दिक्षु तावका-
    स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ १॥

शरदुदाशये साधुजातस-
    त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा ।
सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका
    वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥ २॥

विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा-
    द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् ।
वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया-
    दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥ ३॥

न खलु गोपिकानन्दनो भवा-
    नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् ।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये
    सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥ ४॥

विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते
    चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् ।
करसरोरुहं कान्त कामदं
    शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ॥ ५॥

व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां
    निजजनस्मयध्वंसनस्मित ।
भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो
    जलरुहाननं चारु दर्शय ॥ ६॥

प्रणतदेहिनां पापकर्शनं
    तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् ।
फणिफणार्पितं ते पदांबुजं
    कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥ ७॥

मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया
    बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण ।
विधिकरीरिमा वीर मुह्यती-
    रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥ ८॥

तव कथामृतं तप्तजीवनं
    कविभिरीडितं कल्मषापहम् ।
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं
    भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥ ९॥

प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं
    विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् ।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः
    कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥ १०॥

चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून्
    नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् ।
शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः
    कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥ ११॥

दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै-
    र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् ।
घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु-
    र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥ १२॥

प्रणतकामदं पद्मजार्चितं
    धरणिमण्डनं ध्येयमापदि ।
चरणपङ्कजं शंतमं च ते
    रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥ १३॥

सुरतवर्धनं शोकनाशनं
    स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् ।
इतररागविस्मारणं नृणां
    वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥ १४॥

अटति यद्भवानह्नि काननं
    त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् ।
कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते
    जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद्दृशाम् ॥ १५॥

पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवा-
    नतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः ।
गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः
    कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ॥ १६॥

रहसि संविदं हृच्छयोदयं
    प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् ।
बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते
    मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ॥ १७॥

व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते
    वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम् ।
त्यज मनाक् च नस्त्वत्स्पृहात्मनां
    स्वजनहृद्रुजां यन्निषूदनम् ॥ १८॥

यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेष
    भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु ।
तेनाटवीमटसि तद्व्यथते न किंस्वित्
    कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥ १९॥

   
इति श्रीमद्भागवत महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
दशमस्कन्धे पूर्वार्धे रासक्रीडायां गोपीगीतं नामैकत्रिंशोऽध्यायः ॥



gopi geet

.. gopeegeetam ..
gopi geet


gopy oochuh
jayati te'dhikan janmana vrajah
    shryat indira shashvadatr hi
dayit darashyataan dikshu taavakaa
    stvayi dharataasavastvaan vichinvate .. 1..

sharadudaashaye saadhujaatas
    tsarasijodarashreemusha darshaa
suratanaath te'shulkadaasikaa
    varad nighnato neh kin vdhah .. 2..

vishajalaapyayaadvyaalaraakshsaa
    dvarshamaarutaadvaidyutaanalaat
vrishamayaatmajaadvishvatobhayaa
    darshbh te vayan rakshita muhuh .. 3..

n khalu gopikaanandano bhavaa
    nkhiladehinaamantaraatmadarak
vikhanasaarthito vishvaguptaye
    skh udeyivaansaatvataan kule .. 4..

virchitaabhayan vrishnidhury te
    charanameeyushaan sansaraterbhayaat
karasaroruhan kaant kaamadan
    shirasi dhehi nah shreekaragraham .. 5..

vrajajanaartihanveer yoshitaan
    nijajanasmaydhavansanasmit
bhaj skhe bhavatkinkareeh sm no
    jalaruhaananan chaaru darshay .. 6..

pranatadehinaan paapakarshanan
    tarancharaanugan shreeniketanam
phaniphanaarpitan te padaanbujan
    krinu kucheshu nah krindhi harachchhayam .. 7..

mdhuraya gira valguvaakyayaa
    budhamanogyya pushkarekshn
vidhikareerima veer muhayatee
    rdharaseedhunaa''pyaayayasv nah .. 8..

tav kthaamaratan taptajeevanan
    kavibhireeditan kalmshaapaham
shrvanamangalan shreemadaatatan
    bhuvi garananti te bhoorida janaah .. 9..

prahasitan priy premaveekshnan
    viharanan ch te dhayaanamangalam
rahasi sanvido ya haradisparshah
    kuhak no manah kshobhayanti hi .. 10..

chalasi yadvrajaachchaarayanpshoon
    nalinasundaran naath te padam
shilataranaankuraih seedateeti nah
    kalilataan manah kaant gachchhati .. 11..

dinaparikshye neelakuntalai
    rvanaruhaananan bibhradaavritam
ghanarajasvalan darshayanmuhu
    rmanasi nah smaran veer yachchhasi .. 12..

pranatakaamadan padmajaarchitan
    dharanimandanan dhayeyamaapadi
charanapankajan shantaman ch te
    raman nah staneshvarpayaadhihan .. 13..

suratavardhanan shokanaashanan
    svaritavenuna sushthu chumbitam
itararaagavismaaranan naranaan
    vitar veer naste'dharamratam .. 14..

atati yadbhavaanahani kaananan
    trutiryugaayate tvaamapashyataam
kutilakuntalan shreemukhan ch te
    jad udeekshtaan pakshmakriddarshaam .. 15..

patisutaanvayabhraatarabaandhavaa
    nativilanghy te'ntyachyutaagataah
gatividastavodgeetamohitaah
    kitav yoshitah kastyajennishi .. 16..

rahasi sanvidan harachchhayodayan
    prahasitaananan premaveekshnam
barahadurah shriyo veekshy dhaam te
    muhuratisparaha muhayate manah .. 17..

vrajavanaukasaan vyaktirang te
    vrijinahantryalan vishvamangalam
tyaj manaak ch nastvatsparahaatmanaan
    svajanaharadrujaan yannishoodanam .. 18..

yatte sujaatcharanaamburuhan stanesh
    bheetaah shanaih priy ddheemahi karksheshu
tenaataveematasi tadvythate n kinsvit
    koorpaadibhirbhramati dheerbhavadaayushaan nah .. 19..

   

.. gopeegeetam ..
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